Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
(११)
श्रतस्कंध: [१] ... .....------ अध्ययनं [२] ...... . .... .- मूलं [१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
विपाके श्रुत०१
प्रत
॥४९॥
सूत्रांक
ओमंथियनयणवयणकमला जहोइयं पुप्फवस्थगंधमल्लालंकाराहारं अपरिभुञ्जमाणी करयलमलियन्च कमलमा-II उजिझला ओहय जाव झियायति । इमं च णं भीमे कूडग्गाहे जेणेव उपस्ता कूडग्गाहिणी तेणेव उवाग-प्रतकाध्य. च्छति रसा ओहय जाव पासति ओहय जाय पासिसा एवं बयासी-किं णं तुमे देवाणुप्पिए! ओहय उज्झितकझियासि, तते णं सा उप्पला भारिया भीमं कूष्ट एवं क्यासी-एवं खलु वेवाणुप्पिया। ममं तिराहं | स्य पूर्वभवः मासाणं बहुपडिपुत्राणं दोहला पाउम्भूया धन्ना ताओ जाओ गं बहणं गो कह लावणपहि प सुरं पदसू०१० आसाएमाणी ३ दोहलं विणेति, तते णं अहं देवाणुप्पिया! तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि जाब झियामि।
[१०]
दीप अनुक्रम [१३]
विमना:-शून्यचित्ता हीणा च-भीतेति कर्मधारयः, 'दीणविमणवयण'चि पाठान्तरं, तत्र विमनस इव-विगतचेतस इव बर्ग यस्लाः सा तया, दीना चासौ विमनवदना चेति समासः, 'पंडलइयमुहा' पाण्डकित्तमुखी पाण्दुरीभूतवदनेत्यर्थः 'भोमंथियणयणवयणकमलेति 'ओमंथियति अधोमुखीकृतानि नयनवदनरूपाणि कमलानि यया सा तथा, 'ओहय'ति ओहयमणसंकप्पा विगतयुक्तायुक्तविवेचनेत्यर्थः, इह यावत्करणाविदं दृश्यं करतलपल्लत्यमुहा' करतछे पर्वसं-निवेशितं मुखं यवा सा तथा 'अट्टन्झायोवगया भूमीगयदिहीया झियाईति ध्यायति-चिन्तयति ।
'इमं च णति इतश्चेत्यर्थः 'भीमे कूडग्गाहे जेणेव उप्पला कुडम्गाही तेणेव उवामच्छति बवागच्चित्ता उप्पर कूड- ग्गाहिणि ओहयमाणसंकल्प' इत्यादि सूत्र प्रागुक्तसूत्रानुसारेण परिपूर्ण कृत्वाऽभ्येयं, सूचामात्रस्वात्पुस्तकस्य ।
४९॥
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