Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
(११)
श्रुतस्कंध: [8], ..............------------ अध्य यनं [२] ---------------------- मूल [१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
विपाके श्रुत०१
२ उजिनतकाध्य.
प्रत
सूत्रांक
॥५१॥
वाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उयबस्ने, तते णे सा सुभदा सत्यवाही अण्णया कयाईनवण्ह मासाणं बहुपडिपुन्नाणं दारगं पयाया, तते गं सा सुभदा सत्यवाहीसं दारगं जायमेसयं चेव एगते उकुरु- डियाए उज्झायेद उज्यावेत्ता दोचंपि गिहावेइ २ सा आणुपुब्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवढेति, सते णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवेडियं चंदसूरदसणं च जागरियं महया इहीसकारसमुदएणं करति, तते णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो इकारसमे दिवसे निव्वत्ते संपत्ते पारसमे दिवसे इममेयारूवं गोण्णं गुणनिष्फन नामधेनं करेंति, जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमित्तए चेव एगते पक्कुरुडियाए उज्झिते तम्हा ण होउ अम्हं दारए उज्झियए नामेणं, तते णं से उजिमयए दारए पंचधातीपरिग्गहीए तंजहा-वीरपाईए १ मजणधाईप २ मंडणधाईए ३ कीलावणधाईए ४ अंकाईए ६ जहा दहपाइने जाव निवाघाए गिरिकंद
भवः सू०१२
[१२]
दीप अनुक्रम
4
[१५]
C+
*
१ 'सारक्खमाणी'ति अपायेभ्यः 'संगोवेमाणी'ति वनाच्छादनगर्भगृहप्रवेशनादिमिः। २ठिइवडियं वति स्थितिपतितां कुलक्रमागतो बर्द्धमानकादिकां पुत्रजन्मकियां 'चंदसूरपासणियं वत्ति अन्वर्धानुसारिणं तृतीयदिवसोत्सवं 'जागरिय'ति षष्ठीयविजागरणप्रधानमुल्सवम् । ३ 'गोणं गुणनिष्फन'न्ति गौषं अप्रधानमपि स्पादत्त उक्त-गुणनिष्पन्न मिति । ४ 'जहा दढपाइनेति
औपपातिके यथा दृढप्रतिज्ञो वर्णितस्सवाऽयमपीह वाच्यः, किमवधिकं तत्र तत्सूत्रमित्याह-यावत् 'निवाघातगिरिकंदरमल्लीणेब्व। चंपगपायवे सुहं विहरति ।
+
+
~41~

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132