Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 41
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रतस्कंध: [१], .....................-- अध्य यनं [२]---- -- -- मूल [११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: 4% प्रत सूत्रांक % [११] राया गोत्तासं दारयं अन्नया कयाइ सयमेव कूडग्गाहित्ताए ठावेति, तते णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहे जाए यावि होत्था अहम्मिए जाच दुप्पडियाणंदे, तते णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहित्ताए कल्लाकल्लिं अद्धरत्तियकालसमयसि एगे अबीए सन्नद्धबद्धकवए जाव गहिआउहपहरणे सयातो गिहाओ निग्गच्छति जे-18 व गोमंडवे तेणेव उवागच्छति तेणेच उवागच्छित्ता बहूणं णगरगोरुवाणं सणाहाण य जाव वियंगेति २ जेणेव सए गेहे तेणेव उवागते, तते णं से गोत्तासे कूड० तेहिं बहहिं गोमंसेहि य सूलेहि य मुरं च मज्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे जाव विहरति,ततेणं से गोत्तासे कूड. एयकम्मे [एयविजेएयप० एयसमायारे] सुबहुं पावकम्मं समन्विणित्ता पंचवाससयाई परमाउयं पालइत्ता अदुहहोवगए कालमासे कालं किया दोचाए पुढवीए उकोसं तिसागरोचमठिइएसु नेरइएसु णेरइयत्ताए उपवने (सू०११) तते णं सा विजयमित्तस्स सत्यवाहस्स सुभद्दा नाम भारिया जायनिया यावि होत्था जाया जाया दारगा विणिहायमावजंति, तते पाणं से गोत्तासे कूड दोचाओ पुढवीओ अणंतरं उव्वहिता इहेब वाणियगामे नगरे विजयमित्तस्स सस्थ दीप अनुक्रम ACCAR [१४] १'एयकम्मे' इत्यत्रेदं रश्यम्-'एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारेति । २'अदृदुहट्टोवगए'ति आर्त-आर्तध्यानं दुर्घटदुःखस्थगनीय दुर्वायमित्यर्थः अपगतः-प्राप्तो यः स तथा। ३ 'जायणिंदुया यावित्ति जातानि-उत्पन्नान्यपत्यानि निर्वृतानि-निर्यातानि मृतानीयों यस्याः सा जातनिर्द्वता चाऽपीति समर्थनार्थः, एतदेवाइ-जाना जाता दारका विनिधातमापद्यन्ते तस्या इति गम्यम् ।। उज्झितकस्य आगामि-भवा: ~ 40~

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