Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
(११)
श्रतस्कंध: [१], .....................-- अध्य यनं [२]---- -- -- मूल [१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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प्रत
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सूत्रांक
[१०]
दीप अनुक्रम [१३]
तते णं से भीमे कूडग्गाही उप्पलं भारियं एवं बयासी-मा णं तुम देवाणुप्पिया! ओह. झियाहि, अहन्नं तंतहा करिस्सामि जहा णं तव दोहलस्स संपसी भविस्सति, ताहिं इहाहिं ५ जाप वर्षि समासा
सेति, तते णं से भीमे कूडग्गाही अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सन्नद्ध जाब पहरणे सयाओ गिहाओ है निग्गा सयाओ गिहाओ निग्गच्छित्ता हत्षिणाउरे नगरे मझमज्झेणं जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागते |बहूर्ण णगरगोरुवाणं जाव वसभाण य अप्पेगइयाणं ऊहे छिदति जाव अप्पेगतियाणं कंचले छिंदति अप्पेगइयाण अण्णमण्णाणं अंगोवंगाणं वियंगेतिरजेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति र उपपलाए कूडग्गाहिणीए उवणेति, तते णं सा उप्पला भारिया तेहिं बहहिं गोमंसेहि य सूलेहि य सुरं च आसाएमाणी तं दोहलं विणेति, सते णं सा उप्पला कूडग्गाही संपुग्नहोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला बोच्छिन्नदोहला संपभदोहला सं गम्भ मुहंसुहेणं परिवहइ, तते णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अन्नया कयाई मवण्ई मासाणं बहुप
ताहि इटाहिं' इत्यत्र पञ्चकलक्षणादकादिदं दृश्य-कताहिं पियाहिं मणुनाहिं मणाभाहिं' एकार्थाश्चैते, पम्गूहि ति वाग्भिः 'एगे'त्ति सहायाभावात् 'अबीए'त्ति धर्मरूपसहायाभावात् । २ 'सन्नद्धवद्धवम्मियकवए' पूर्ववत् यावत्करणात् 'उप्पीलियसरासणपट्टीए' इत्यादि 'गहियाउहपहरणे' इत्येतदन्त रश्यम् । ४ संपुन्नदोहल'त्ति समस्तवान्छितार्थपूरणात् 'सम्माणियदो. हल'त्ति वान्छितार्थसमानयनात् 'विणीयदोहल'त्ति बाच्छाविनयनात् 'विच्छिन्नदोहल'त्ति विवक्षितार्थवाम्छाऽनुबन्धविच्छेदात् 'संपन्नदोहल'त्ति विवक्षितार्थभोगसंपाद्यानन्दप्राप्तेरिति ।
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