Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 37
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रतस्कंध: [१], .....................-- अध्य यनं [२]---- -- -- मूल [१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत वसभाण य ऊहेहि य थणेहि य वसणेहि य छप्पाहि य ककुहेहि य वहेहि य कन्नेहि य अच्छिहि य ना. साहि य जिन्भाहि य उद्देहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भजिएहि य परिसुफेहि य लावणेहि य सुरं च महुंच मेरगं च जातिं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ परिभुजेमाणीओ परिभाएमाणीओ दोहलं विणयंति, तं जइणं अहमवि बहूर्ण नगर जाव विणिज्जामित्तिका, तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा पंडुल्लइयमुहा सूत्रांक [१०] ee दीप अनुक्रम [१३] %96 १ 'ऊहेहि यत्ति गवादीनां स्तनोपरिभागैः 'थणेहि यत्ति व्यक्तं 'वसणेहि य'त्ति दृषण:-अण्डै: 'छप्पाहि य'त्ति पुच्छैः । ककुदैः स्कन्धशिखरैः 'बहेहि यत्ति बहै। स्कन्धैः कर्णादीनि व्यक्तानि 'कंबलेहि यत्ति सानाभिः 'सोल्लिएहि यति पकै 'तलिएहि यत्ति मेहेन पकैः ‘भजिएहि यत्ति भ्रष्टैः 'परिसुक्केहि यत्ति स्वतः शोषमुपगतैः 'लावणेहि यत्ति लवणसंस्कृतैः सुरातन्दुलधवादिल्लीनिष्पन्ना मधु च-माक्षिकनिष्पन्न मेरकं तालफलनिष्पन्नं जातिश्च-जातिकुसुमवर्ण मयमेव सीधु च-गुडधातकीसंभव है। प्रसन्ना-द्राक्षादिद्वन्यजन्या मनःप्रसत्तिहेतुरिति । 'आसाएमाणीओ'त्ति ईधत्स्वादयन्त्यो बटु च लान्यन्त्य इक्षुखण्डादेरिव 'विसाएमाणीओ'त्ति विशेषेण खादयन्त्योऽल्पमेव त्यजन्य खजूरादेरिव 'परिभाएमाणीओ'त्ति ददत्यः परि जमाणीओ'त्ति सर्वमुपभुजानाः | अल्पमप्यपरित्यज्यन्त्यः शुष्का-शुष्केव शुष्का रुधिरक्षयात् 'भुक्ख'त्ति भोजनाकरणाद्धीनबलतया बुभुक्षायुक्तेव बुभुक्षा अत एव निमासा 'ओलुग्ग'त्ति अवरुग्णा-भन्नमनोवृत्तिः 'ओलुग्गसरीरा' भनदेहा 'णित्यत्ति गतकान्तिः 'दीणविमणवयण'त्ति दीना-दैन्यवती k 4 ~36~

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