Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 35
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रतस्कंध: [१] ... .....------ अध्ययनं [२] ...... . .... .- मूलं [१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत % सूत्रांक अचमीयमजिझमकुले जाव अडमाणे अहापजसं समुयाणियं गिण्हति २त्ता वाणियगामे नयरे मझमज्झणंद। जाव परिदसति, समर्ण भगवं महावीरं वंदद ममंसह २ सा एवं बयासी-एवं खलु अहं भंते! तुमहिं | अम्भणुझाए समाणे वाणियगामं जाय तहेव वेदेति, सेणं भंते! पुरिसे पुटवभये के आसी? जाव पञ्चणु म्भवमाणे विहरति ।, एवं खलु गोयमा। तेणं कालेणं तेणं समएम इहेव जंबुडीवे २ भारहे वासे हत्थिणादाउरे नाम नगरे होत्था रिद्ध०, तत्थ णं हथियाउरे गरे सुनंदे नामं राया होत्था महया हि०, तस्थ णं ह६ स्थिणाउरे गगरे बहुमझदेसभाए एत्थणं महं एगे गोमंडवए होस्था अणेगखंभसयसन्निविटे साईए ४, तत्थ णबहये णगरगोरूवाणं सणाहा य अणाहा यणगरगाविओ य जगरवसभा य जगरबलिवद्दा य गगरिपड्याओ य परतणपाणिया निम्भया निरुवसग्गा सुहंसुहेणं परिवति, तस्थ गं हथिणाउरे नगरे भीमे % [१०] C4%A दीप अनुक्रम [१३] A % रिद्धि'त्ति 'रिस्थिमिवसमिद्धे' इत्यादि दृश्य, तत्र ऋझु-भषनादिमिनिगुपगतं सिमित भयवर्जितं समृद्ध-धनादिमायुक्तमिति । २ 'महया हि'ति इह 'महयाहिमवैतमलयमंदरमहिंदसा इत्यादि दृश्य, तत्र महाहिमवदादयः पर्वतास्तद्वत्सास-प्रधानो या| | स तथा, 'पासा' इत्यत्र 'पासाईए दरिसणिज्जे अमिरूवे पतिरूवेत्ति दृश्य, तत्र प्रासादीयो-मनःप्रसन्नताहेतुः वर्शनीयो-यं पश्यञ्चक्षुर्न | आम्यति अभिरूप:-अभिमतरूपः प्रतिरूपः-द्रष्टारं द्रष्टारं प्रति रूपं यस्येति । ३ 'नगरबलीवद्दे'त्यादौ वलीवा-बर्द्धितगवाः पडिकाइस्थमहिष्यो इस्वगोत्रियो वा वृषभाः-साण्डगवः 'कूडगाहे'त्ति कूटेन जीवान् गृहातीति कूटयाहः । | उज्झितकस्य पूर्वभव: -- "गोत्रास" ~ 34 ~

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