Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
दीप
पाउन्भूए जे णं से दारए आहारेति से णं खिप्पामेव विद्धसमागच्छति पूयत्साए सोणियत्ताए य परिणमति, तंपिय से पूर्यच सोणियं च आहारेति, तते णं सा मियादेवी अन्नया कयाई नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं दा-13 रगं पयाया जातिअंधे जाव आगइमित्ते, तते णं सामियादेवी तं दारगं हुंडं अंधारूवं पासति २त्ता भीया अम्मधाई सद्दावेति २त्ता एवं वयासी-गच्छह णं देवाणुप्पिया! तुम एयं दारगं एगते उकुरुडियाए उ-12 ज्झाहि, तते णं सा अम्मधाई मियादेवीए तहत्ति एयम8 पडिमुणेति २त्ता जेणेव विजए खत्तिए तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं एवं वयासी-एवं खलु सामि! मियादेवी नवण्हं मासाणं जाव आगतिमित्ते, तते णं सा मियादेवी तं हुंडं अंधारूवं पासति २त्ता भीया तत्था उचिग्गा संजायभया ममं सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! एवं दारगं एगते उकुरुडियाए|४ उज्झाहि, तं संविसह णं सामी! तं दारगं अहं एगते उज्झामि उदाहु मा?, तते णं से विजए खत्तिये तीसे अम्मधाईए अंतिए एयमह सोचा तहेव संभंते उट्ठाए उद्देति उट्ठा २त्ता जेणेष मियादेवी तेणेव उवागच्छ
१'जाइअंधे' इत्यत्र यावत्करणात् 'जाइमूए' इत्यादि दृश्यं, 'हुंडं ति अव्यवस्थिताकावयव 'अंधारूवं'ति अन्धाकृतिः, 'भीया' इत्यत्रैतदृश्यं 'तत्था उब्विग्गा संजायभया' भयप्रकर्षाभिधानायैकार्थाः शब्दाः, 'करयले यत्र 'करयलपरिग्गहियं दसणहं | मत्थए अंजलिं कुटु' इति दृश्य, 'नवण्ह'मित्यत्र 'मासाणं बहुपडिपुन्नाण'मित्यादि दृश्य, तथा 'जाइअंध'मित्यापि च, 'संभंतेति उत्सुकः 'उडाते उद्देइति उत्थानेनोत्तिष्ठति, 'पय'त्ति ग्रजा:-अपत्यानि, 'रहस्सिगयंसि'त्ति राहसिके विजने इत्यर्थः ।
SECRECACA-CA
सरकASANA
अनुक्रम
~ 24 ~

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