Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 28
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक ७) विपाके तत्य उम्मुक्कबालभावे जाव जोवणगमणुपत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्मं सोचा निसम्म मुंडे भवित्ता ४ामृगार श्रुत०१ अगाराओ अणगारियं पव्वहस्सति, से णं तत्थ अणगारे भविस्सति ईरियासमिए जाव बंभयारी, से गंदीयाध्य. तस्थ बहूई वासाई सामनपरियागं पाणित्ता आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किया सोहम्मे मृगापुत्र॥४४॥ कप्पे देवत्ताए उववजिहिति, से णं ततो अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे बासे जाई कुलाई भवंति अट्ठाई ४ गत्यादि जैहा दढपइन्ने सा चेव वत्तवया कलाओ जाव सिजिझहिति । एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावी सू०७ रेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्तेत्तिबेमि (सू०७)॥१॥ १ उम्मुक जाव'त्ति 'उम्मुकपालभावे विजयपरिणयमेचे जोव्वणगमणुपत्तेत्ति दृश्य, तत्र विश एवं विज्ञकः स चासौ परिणतमात्रश्न-बुद्धशादिपरिणामापन्न एव विज्ञकपरिणतमात्रः । २ 'अणंतरं चयं चइत्तति अनन्तरं शरीरं त्यक्त्वा व्यपनं वा कृत्वा । ट्र ३ 'जहा दढपइन्नेत्ति औपपातिके यथा दृढप्रतिज्ञाभिधानो भव्यो वर्णितस्तथाऽयमपि वाच्यः, कस्मादेवमित्याह-सा चेव ति| सैव दृढप्रतिशसम्बन्धिनी अस्यापि बक्तव्यतेति, तामेव स्मरयमाह-कलाओ'त्ति कलास्तेन गृहीष्यन्ते दृढप्रतिज्ञेनेव यावकरणाञ्च प्रत्रज्यामहणादिः तस्येवास्य वाच्यं, यावत्सेत्स्यतीत्यादि पदपश्चकमिति, ततः सेत्स्यति-कृतकृत्यो भविष्यति भोत्स्यते-केवळशानेन सकलं शेयं शास्थति मोक्ष्यति-सकलकर्मविमुक्तो भविष्यति परिनिर्वास्थति-सकलकर्मकृतसन्तापरहितो भविष्यति, किमुक्तं भ-| ॥४४॥ डावति ?-सर्वदुःखानामन्तं करिष्यतीति ॥ प्रथमाध्ययनविवरणं ॥ १ ॥ दीप अनुक्रम [१०] मृगापुत्रस्य सिद्धिगमनं अब प्रथम अध्ययनं परिसमाप्त ~27~

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