Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 26
________________ आगम (११) प्रत सूत्रांक [६] दीप अनुक्रम [s] विपाके श्रुत० १ “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र - ११ ( मूलं + वृत्ति:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययनं [१] मूलं [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित... .. आगमसूत्र [११], अंग सूत्र [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः ॥ ४३ ॥ ति २ ता मियादेवीं एवं बयासी देवाणुप्पिया! तुब्भं पढमं गन्भे तं जइ णं तुभे एवं एगंते कुरुडियाए उज्झासि ततो णं तुम्भे पया नो थिरा भविस्सति, तो णं तुमं एवं दारगं रहस्सियस भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी २ विहराहि तो णं तुभं पया थिरा भविस्सति, तते णं सा मियादेवी ४ विजयस्स खत्तियस्स तहत्ति एयमहं विणएणं परिसुणेति पडि २ सा तं दारणं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रह० भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी विहरति, एवं खलु गोयमा ! मियापुत्ते दारए पुरापुराणाणं जाव पञ्चशुष्भवमाणे विहरति । (सू० ६) मियापुत्ते णं भंते! दारए हओ कालमासे कालं किवा कहिं गमहिति ? कहिँ उबवजिहिति १, गोयमा । मियापुत्ते दारए छब्बीसं वासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किया इहेब अंबुद्दीवे दीवे भार वाले वेहगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पञ्चायाहिति, से णं तत्थ सीहे भवि स्पति अहम्मिए जाव साहसिए सुबहूं पावं जाव समजिणति जाव समज्जिणित्ता कालमासे कालं किया इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससॉगरोवमठितीएस जाव उववज्जिहिति, से णं ततो अनंतरं उच्च १ 'पुरा पोराणाणं'ति पुरा - पूर्वकाले कृतानामिति गम्यम् अत एव 'पुराणानां' चिरन्तनानाम्, इह च यावत्करणात् 'दुचिन्नाणं दुष्पडिकंताणं' इत्यादि 'पावर्ग फलवित्तिविसेस' मित्यन्तं द्रष्टव्यम् । २ 'अहम्मिए' इत्यत्र यावत्करणाविवं दृश्यं --- 'बहुनगरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी ति, व्यक्तं च । ३ 'कालमासे'त्ति मरणावसरे । ४ 'सागरोत्रम जावति 'सागरोपमहिईएस नेरइयत्ताएं द्रष्टव्यम् । मृगापुत्रस्य आगामि-भवा: For Praise Only ~ 25~ १ मृगापुत्रीयाध्य. मृगापुत्रगत्यादि सू० ७ ॥ ४३ ॥

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