Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 31
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [२] ------------------------ मूलं [१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक दीप अनुक्रम (सू०८)तत्थ णं वाणियगामे विजयमित्ते नाम सत्थवाहे परिवसति अड्डे तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नाम भारिया होत्था अहीण, तस्स णं विजयमित्तस्स पुसे सुभद्दाए भारियाए अत्तए उज्झियए नाम दारए होत्या अहीण जाव सुरूवे । तेणं कालेणं तेणे समएणं समणे भगवं महावीरे समोसवे परिसा निग्गया राया निग्गओ जहा कोणिओ तहा णिग्गओ धम्मो कहिओ परिसा पडिगया राया य गओ, सेणं कालेणं है तेणं समपणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेढे अंतेवासी इंदभूइनामं अणगारे जाव लेसे ण्टुंछट्टेणं जहा प्रपन्नत्तीए पढम जाव जेणेव वाणियगामे तेणेच उवा० उच्चनीयअडमाणे जेणेव रायमग्गे तेणेव ओगावे, तत्थ |विदं दृश्य-पोरेव' पुरोवर्तित्वं-अग्रेसरत्वमित्यर्थः भर्तृत्व' पोषकत्वं 'स्वामित्वं' खस्वामिसम्बन्धमानं 'महत्तरगत महत्तरत्वं शेष वेश्याजनापेक्षया महत्तमताम् 'आणाईसरसेणावचं आशेश्वर:-आज्ञाप्रधानो यः सेनापतिः-सैन्यनायकस्तस्य भावः फर्म वा आज्ञेश्वरसेनापत्यम् आशेश्वरसेनापत्यमिव आशेश्वरसेनापत्र 'कारेमाणा' कारयन्ती परैः 'पालेमाणा' पालयन्ती खयमिति । १'अहीण'त्ति 'अहीणपुन्नपंचिंदियसरीरे'त्ति व्यक्तं च, यावत्करणादिदं दृश्यं 'लक्खणवंजणगुणोषवेए' इत्यादि । २ 'इंदभूई इत्यत्र यावत्करणात् 'नामे अणगारे गोयमगोण'मित्यादि 'संखित्तविउलतेयलेसें' इत्येतदन्तं दृश्यं । ३ 'छदैछट्टेणं जहा पन्नत्तीए'त्ति | यथा भगवत्या तवेदं वाच्यं, तचैव-छट्वछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तबोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे विहरति, तए णं से भगवं गोयमे छहक्समणपारणगंसि' 'पढम' इत्यत्र थावत्करणादिदं दृश्य-पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेति बीयाए पोरिसीए झाणं झियाति तइयाए पोरिसीए | अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेद भावणवत्थाई पडिलेहेइ भावणाणि पमजति भायणाणि उग्गाहेइ जेणेव समणे भगवं महा [१२] ~30~

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