Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 21
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक जाव पञ्चप्पिणंति, तते णं से विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घोसणं सोचा निसम्म बहवे विज्जा य ६ सत्यकोसहत्थगया सरहिं २ गिहेहिंतो पडिनिक्खमंति २त्ता विजयवद्धमाणस्स खेडस्स मझमजलेणं जे व इकाइरहकूडस्स गिहे तेणेव उवागच्छद २त्ता इकाईरहकूडस्स सरीरगं परामुसंति २ ता तेसिं रोगाणं निदाणं पुच्छंति २त्ता इक्काईरहकूडस्स बहूहिं अन्भंगेहि य उब्वहणाहि य सिणेहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणेहि य अवद्दहणाहि य अवण्हाणेहि य अणुवासणाहि य वस्थिकम्मेहि य निरुहेहि य सिरावेहेहि य तच्छणेहि य पच्छणेहि य सिरोवस्थीहि य तप्पणाहि य पुडपागेहि य छल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य SANCHAR दीप अनुक्रम १ 'सत्थकोसहत्थगय'त्ति शस्त्रकोशो-नखरदनादिभाजनं हस्ते गतो-व्यवस्थितो येषां ते तथा, २ 'अबद्दहणाहि यत्ति दम्भनैः 'अवण्हाणेहि यत्ति तथाविधद्रव्यसंस्कृतजलेन सानैः 'अणुवासणाहि यत्ति अपानेन जठरे तैलप्रवेशनैः 'बस्थिकम्मेहि | यति चर्मवेष्टनप्रयोगेण शिराप्रभृतीनां स्नेहपूरणैः गुदे वा वादिक्षेपणैः 'निरुहेहि यत्ति निरुहः-अनुवास एव केवलं द्रव्यकृतो विशेष: 'सिरावेहेहि यत्ति नाडीवेधैः 'तच्छणेहि यत्ति क्षुरादिना त्वचसनूकरणैः 'पच्छणेहि यत्ति हखैस्त्वचोविदारणैः 'सिरो-15 वस्थीहि यत्ति शिरोमस्तिभिः शिरसि बद्धस्य धर्मकोशकस्य द्रव्यसंस्कृततैलायापूरणलक्षणामिः, प्रागुक्तबसिकमाणि सामान्यानि अनुवासनानिरुह शिसवस्तयस्तु बदाः 'तप्पणाहि यत्ति तर्पणैः स्नेहादिभिः शरीवृंदणैः 'पुडपागेहि यति पुटपाका:-पाकविशेपनिष्पन्ना औषधिविशेषाः 'छल्लीहि यत्ति छल्लयो-रोहिणीप्रभृतयः ~ 20~

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