Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: विपाके प्रत सूत्रांक श्रुत०१ ॥४०॥ गाथा जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउम्भूया, तंजहा-सासे १ कासे २ जरे ३ दाहे ४, कुच्छिसूले ५ भगंदरे मृगापु६। अरिसा ७ अजीरए ८ विट्ठी ९, मुद्धसूले १० अकारए ११ ॥१॥ अच्छिवेयणा १२ कन्नवेपणा १३ कंडूत्रीयाध्य. १४ उदरे १५ कोढे १६ तते णं से इकाई रहकूडे सोलसहिं रोगायकेहिं अभिभूए समाणे कोडंपियपुरिसे मृगापुत्रसद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! विजयवद्धमाणे खेडे संघाडगतिगचउक्चचर- पूर्वभवः महापहपहेसु महया २ सहेणं उग्घोसेमाणा २ एवं बदह-इहं खलु देवाणुप्पिया! इकाईरहकूडस्स सरीर- सू०५ गसि सोलस रोगायंका पाउम्भूया, तंजहा-सासे १ कासे २ जरे ३ जाव कोढे १६, तं जो णं इच्छति देवाणुप्पिया! विजो वा विजपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छी वा तेगिच्छिपुत्तो वा इकाईरहडस्स तेर्सि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायक उवसामित्तए तस्स णं इकाई रहकूडे विपुलं अत्यसंपयाणं दलयति, दोचंपि तच्चपि उग्घोसेह २ त्ता एयमाणत्तियं पचप्पिणह, तते ण ते कोढुंबियपुरिसा १ 'जमगसमग ति युगपत् 'रोगायकति रोगा-व्याधयस्त एवातका:-कष्टजीवितकारिणः । 'सासें' इत्यादि श्लोकः, 'जोणि|सूले'त्ति अपपाठः 'कुच्छिसूले' इत्यस्यान्यत्र दर्शनात् , 'भगंदले'त्ति भगन्दरः 'अकारए'त्ति अरोचकः, 'अच्छिवेयणा' इत्यादि| | लोकातिरिक्त, उदरे त्ति जलोदरं । शृङ्गाटकादयः स्थानविशेषाः । २ बिजो वति वैद्यशाने चिकित्सायां च कुशलः 'विजपुत्तो वति तत्पुत्रः 'जाणुओ वत्ति ज्ञायक:-केवलशास्त्रकुशलः 'तेगिच्छिओ वत्ति चिकित्सामात्रकुशलः 'अत्थसंपयाणं दलयइति | ला॥४०॥ अर्थदानं करोतीत्यर्थः, दीप अनुक्रम [७-८] अत्र मूल सम्पादकेन न किचित् स्वतंत्र सूत्र घोषित:, परंतु एका सूत्र संख्या-क्रमांकने स्खलना कृता: मया तत् स्थाने स्वतन्त्र अनुक्रम: दत्वा सूत्र . ६ इति सूत्रक्रम-६ लिखितं ...[यहां प्रत के संपादनमें सूत्र ५ के बाद ६ के स्थानमे सिधा ७ सूत्रक्रम हि दिया है, मैने सूत्रगाथा के बाद अतिरिक्त . क्रम देकर सू०६, सू०७ ऐसा लिख दिया है ] ~19~

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132