Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 22
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक विपाके पत्तेहि य पुष्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति मृगापुश्रुत०१तसिं सोलसह रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसमाविसए, नो चेव णं संचाएंति उबसामित्सए। ततेत्रीयाध्य. ते बहवे विज्जा य विजपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसहं रोगार्यकाणं एगमवि रोगायक उप- मृगापुत्र॥४१॥ सामित्तए ताहे संतो तंता परितंता जामेव विसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया, तते णं इमाईरहकडेपूर्वभवः विबेहि य पडियाइक्खिए परियारगपरिचते निविषणोसहमेसजे सोलसरोगायंकेहिं अभिभूए समाणे रज्जेय रडेय जाय अंतेउरे य मुछिए रज्जं च रहेंच आसाएमाणे पत्थेमाणे पीहेमाणे अभिलसमाणे अद्वसहे अहाइजाई वाससयाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किया इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्को सू०५ दीप अनुक्रम 'सिलियाहि यति शिलिका:-किराततिक्तकप्रभृतिकाः 'गुलियाहि यत्ति द्रव्यवटिकाः 'ओसहेहि यति औषधानिएकद्रव्यरूपाणि 'भेसजेहि यत्ति भैषज्यानि-अनेकद्रव्ययोगरूपाणि पध्यानि चेति । २ 'संत'त्ति आन्ता देहखेदेन 'तेत'त्ति तान्ता मनःखेदेन 'परितंत'त्ति उभयसेदेनेति 'रजे य रढे य' इत्यत्र यावत्करणाविदं दृश्यं-'कोसे व कोडागारे य वाहणे याति, 'मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववणें त्ति एकार्थाः, आसाएमाणे त्यादय एकार्थाः, 'अदृदुहट्टवसट्टे'त्ति आत्तों मनसा दुःखितो-दुःखातों देहेन वशार्तस्तु-इन्द्रियवशेन पीडितः, ततः कर्मधारयः, 'उजला' इह यावत्करणादिदं दृश्य-विउला ककसा पगाढा वेडा दुहा तिव्या दुरहियास'त्ति एकार्था एव, 'अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुना अमणामा' एतेऽपि तथैव । X ॥४१॥ ~214

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