Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], -------------------- अध्ययनं [१] -------------------- मूलं [५] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
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पुन्वभवे के आसि [किंनामए वा किंगोए वा] कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा किं वा दचा किं वा भोचा किं वा समायरित्ता केसि वा पुरा जाब विहरति?, गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं ब-17 यासी-एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे २भारहे वासे सयदुवारे नाम नगरे होत्था रिद्धस्थिमिए वन्नओ, तत्थ णं सयदुवारे नगरे धणवई नामंराया हुत्था वणओ, तस्स सयदुवारस्स नगरस्स
अदूरसामते दाहिणपुरच्छिमे दिसीभाए विजयबद्धमाणे णाम खेडे होत्था रिथिमियसमिडे, तस्स णं विजइयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई आभोए यावि हुत्या, तत्थ णं विजयवद्धमाणे खेडे इकाई णामं रहकूडे, होत्था अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे, से णं इकाई रहकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्हं गामसयाणं
१ 'पुष्यभवे के आसि' इत्यत एवमध्ये-किनामए वा किंगोत्तए वा' तत्र नाम-यादृच्छिकमभिधानं गोत्रं तु-यथार्थ कुलं वा 'कयरंसि गामंसि वा नगरैसि वा किंवा दचा किंवा भोचा किंवा समायरेचा केसि वा पुरा पोराणाणं दुचिन्नाणं दुप्पडिकताणं असुहाणं पावाणं कम्माणं पावर्ग फलवित्तिचिसेसं पञ्चणुभवमाणे विहरईत्ति । २ 'गोयमाइत्ति गौतम इत्येषमामक्येति गम्यते ३ 'ऋद्धिस्थिमिए'त्ति ऋद्धिप्रधानं स्तिमितं च--निर्भयं यत्तत्तथा, 'वण्णओ'त्ति नगरवर्णकः, स चौपपातिकवद्रष्टव्यः, 'अदूरसामंते'त्ति नातिदूरे न च समीपे इत्यर्थः, 'खेडे'त्ति भूलीमाकारं 'रिद्धत्ति रिद्धत्वमियसमिद्धे' इति द्रष्टव्यम् , 'आभोए'त्ति विस्तारः 'राउडे'ति | राष्ट्रकूटो-मण्डलोपजीवी राजनियोगिकः ४ 'अहम्मिए'त्ति अधार्मिमको यावत्करणादिदं दृश्यम्-'अधम्माणुए अधम्मि अधम्मपलोई | अधम्मपलजणे अधम्मसमुदाचारे अधम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणे दुस्सीले दुब्बए'त्ति, तन्त्र अधार्मिकत्वपश्वनायोच्यते-'अधम्माणुए'
दीप अनुक्रम [७-८]
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मृगापुत्रस्य पूर्वभव: -- "इक्काई रहकूड"
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