Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 15
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक तं कहसगडियं अणुकहमाणी २ जेणामेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता भगवं गोयम एवं घयासी-एहणं तुन्भे भंते ! मम अणुगच्छह जा णं अहं तुम्भं मियापुत्तं दारगं उचदंसेमि, तते णं से भगवं गोयमे मियं देवि पिट्ठओ समणुगच्छति, तते णं सामियादेवीतं कट्ठसगडियं अणुकद्दमाणी २ जेणेव भूमिघरे ? तेणेव उवागच्छह २त्ता चउप्पुडेणं वस्थेणं मुहं बंधेति मुहं बंधमाणि भगवं गोयम एवं चयासी तुम्भेऽवि गं भंते! मुहपोत्तियाए मुहं बंधह, तते णं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं बुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधे-15 ति, तते णं सा मियादेवी परम्मुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेति, तते णं गंधे निग्गच्छति से जहानामए अहिमडेति वा सप्पकडेवरे इ वा जाव ततोऽविणं अणिहतराए चेव जाव गंधे पन्नत्ते, तते णं से मियापुत्ते दारए तस्स विपुलस्स असणपाणखाइमसाइमस्स गंघेणं अभिभूते समाणे तंसि विपुलंसि असणपाण मुच्छितेतं विपुलं असणं ४ आसएणं आहारेति आहारित्ता खिप्पामेव विद्धंसेति विद्धंसेत्ता ततो पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य परिणामेति तंपि य णं पूर्य च सोणियं च आहारेति, तते णं भगवओ गोयमस्स तं मिया से जहानामए'त्ति तद्यथा नामेति वाक्यालकारे । २ 'अहिमडेइ वा सपकडेवरे इ वा इह यावत्करणात् 'गोमडेइ वा सुणहदगडेइ वा' इत्यादि द्रष्टव्यम् । ३ 'ततोविणं'ति ततोऽपि-अहिकडेवरादिगन्धादपि । ४ 'अणिद्वतराए चेय'त्ति अनिष्टतर एवं गन्ध | इति गम्यते, इह यावत्करणात् 'अकंततराए चेव अपियतराए चेव अमणुनतराए चेव अमणामतराए वत्ति दृश्यम् , एकार्थाश्वते ।। ४/५ 'मुच्छिए' इत्यत्र गढिते गिद्धे अझोववन्ने इति पदत्रयमन्यद् दृश्यम् , एकार्थान्येतानि चत्वार्यपीति । दीप अनुक्रम [६] ~14~

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