Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [3] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
विपाके
श्रुत०१
प्रत
॥३६॥
गमा
सूत्रांक
SCAAAAAAसर
इंदमहेह वा जाव णिग्गच्छति, एवं खलु देवाणुपिया! समणे जाव विहरति, तते णं एते जाव| मृगापुनिग्गच्छति, तते णं से अंधपुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी-गच्छामो णं देवाणुप्पिया! अम्हेवि समणं त्रीयाध्य. भगवं जाव पजुवासामो, तते णं से जातिअंधे पुरिसे पुरतो दंडएणं पगढिजमाणे २ जेणेव समणे भगवंजात्यन्धामहावीरे तेणेव उवागए २त्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ २सा वंदति नमसति २त्ता जाच पज्जुवासति, तते णं समणे० विजयस्सतीसे य. धम्ममाइक्खति. परिसा जाव पडिगया, विजएवि गते सू०३ (सू०३) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स० जेहे अंतेवासी इंदभूतिनाम अणगारे जाव विहरह, तते गं |
१'इंदमहे इ वति इन्द्रोत्सवो वा, इह यावत्करणात् 'खंदमहे वा रुद्दमहे वा जाव उजाणजत्ताइ वा, जन्न बहवे उग्गा भोगा जाव एगदिसि एगाभिमुहा' इति दृश्यम्, इतो यहाक्यं तदेवमनुसर्तव्यं, सूत्रपुसके सूत्राक्षराण्येव सन्तीति, 'तए णं से पुरिसे तं | जाइअंधपुरिसं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया! अज मियग्गामे नवरे इंदमहे वा जाव जत्ताइ वा जन्नं एए उम्गा जाव एगदिसि | एगाभिमुहा णिग्गच्छंति, एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे जाव इह समागते इह संपत्ते इहेब मियगामे णगरे मिगवणुजाणे | अहापडिरूवं उम्गई उग्गिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरति, तए णं से अंधपुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी' इति, 'विजयस्स तीसे य धम्म'त्ति इदमेवं दृश्य-विजयस्स रनो तीसे व मइइमहालियाते परिसाए विवित्तं धम्ममाइक्खइ जहा| जीवा बझंती'त्यादि परिषद् यावत् परिगता 'जाइअंधेत्ति जातेरारभ्यान्धो जात्यन्धः, स च चक्षुरुपघातादपि भवतीत्यत आह'जायअंधारूवेति जातं-उत्पन्नमन्धक-नयनयोरादित एवानिष्पत्तेः कुत्सिताझं रूपं सरूपं यस्यासी जातान्धकरूपः,
दीप अनुक्रम
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~114

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