Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
NORAMA
तते णं सा मियादेवी तं मियापुत्तं दारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी रविहरह (सू०२) तत्थणं मियग्गामे णगरे एगे जातिअंधे पुरिसे परिवसह, सेणं एगेणं सचक्खुतेणं परिसेणं पुरओ दंडएणं पगढिजमाणे २ फूहडाइडसीसे मच्छियाचडगरपहकरेणं अपिणजमाणमग्गे मियग्गामे नयरे गेहे २ कालुणवडियाए विर्ति कप्पेमाणे विहरह। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिए जाव परिसा निग्गया। तए णं से विजए खसिए इमीसे कहाए लढे समाणे जहा कोणिए तहा निग्गते जाव पब्रुवासह, तते णं से जातिअंधे पुरिसे तं महया जणसई जाच सुणेत्ता तं पुरिसं एवं बयासी-किन्न देवाणुप्पिया! अज्ज मियग्गामे णगरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छद, तते णं से पुरिसे तं जातिअंधपुरिसं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया!
१ 'रहस्सिय'ति राहसिके जनेनाविदिते 'फुट्टहडाहडसीसेति 'फुट्ट ति स्फुटितकेशसंचयत्वेन विकीर्णकेशं 'इडाहडं ति अत्यर्व शीर्ष-शिरो यस्य स तथा, 'मच्छियाचडकरपहयरेणं ति मक्षिकाणां प्रसिद्धानां चटकरप्रधानो-विस्तरवान् यः प्रहकर:-समूहः स तथा अथवा मक्षिकाचटकराणां-तद्वन्दानां यः प्रहकरः स तथा तेन 'अणिज्जमाणमग्गे'त्ति 'अन्वीयमानमार्गः' अनुगम्यमानमार्गः, मलाविलं हि वस्तु प्रायो मक्षिकाभिरनुगम्यत एवेति 'कालुणवडियाए'त्ति कारुण्यवृत्या 'वित्तिं कप्पेमाणे'त्ति जीविका कुर्वाणः । २ 'जाव समोसरिए'त्ति इह यावत्करणात् 'पुव्वाणुपुर्वि परमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे इत्यादिवर्णको दृश्यः, 'तं महया जणसई पति सूत्रखान्महाजनशब्द प, इद यावत्करणात् 'जणवूई च जणबोलं 'त्यादि दृश्य, तत्र जनम्यूहः-पकायाकारा समूहस्तस्य | शब्दसदभेदाजनन्यूह एवोच्यते ऽतसं बोल:-अव्यक्तवर्णों ध्वनिरिति
दीप अनुक्रम [२-४]
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