Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 10
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत विपाके श्रुत०१ सूत्रांक ॥३५॥ 4-45515s जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं-मियापुत्ते य १ जाव अंजू य १०, पढमस्स णं मृगापुभंते! अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पन्नते?, तते णं से सुहम्मे अणगारे जंबूअण- त्रीयाध्य. गारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं मियगामे नामे णगरे होत्था वण्णओ, तस्स णं है मृगापुत्र|मियगामस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए चंदणपायवे नाम उज्जाणे होत्था, सव्वोउयव- जन्म पणओ, तत्थ णं सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था चिरातीए जहा पुन्नभद्दे, तस्थ णं मियग्गामे णगरे सू०२ विजएनाम खत्तिए राया परिवसह वन्नओ, तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स मिया नामं देवी होत्था अहीणवनओ, तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियाए देवीए अत्तए मियापुत्ते नार्म दारए होत्या, जातिअंधे| जाइमूए जातिबहिरे जातिपंगुले य हुंडे व बायब्वे य, नस्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कन्ना वा अच्छी चा नासा वा, केवलं से तेर्सि अंगोवंगाणं आगई आगतिमित्ते, १ एवं खलु'त्ति एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेण 'खलुः' वाक्यालङ्कारे 'सब्बोउयवण्णओ'त्ति सर्व ककुसुमसंछन्ने नंदणवणप्पगासे इत्याविरुद्यानवर्णको वाच्य इति, 'चिराइए'ति चिरादिक-चिरकालीनप्रारम्भमित्यादिवर्णकोपेतं वाच्यं, यथा पूर्णभद्रचैत्यमौपपातिके, 'अहीणवन्नओ'ति 'अहीणपुन्नपंचिंदियसरीरे' इत्यादिवर्णको वाच्यः 'अत्तए'त्ति आत्मजः-सुतः 'जाइअंधे'त्ति जात्यन्धोजन्मकालादारभ्यान्ध एवं 'हुंडे यति हुण्डका सर्वावववप्रमाणविकलः 'वायब्वे'त्ति वायुरस्खास्तीति वायवो-वातिक इत्यर्थः, 'आगिई ॥ ३५॥ आगइमेत्ते'त्ति अङ्गावयवानामाकृति:-आकारः किंविधा ? इत्याह-आकृतिमात्रं-आकारमात्र नोचितस्वरूपेत्यर्थः दीप अनुक्रम [२-४] CANCS दुःखविपाक-श्रुतस्कन्धे मृगापुत्रस्य कथायाः आरम्भ: ~9~

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