Book Title: Jinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Author(s): Lalchandra Bhagwan Gandhi
Publisher: Jinharisagarsuri Gyanbhandar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ @labbjlička lys જૈન ગ્રંથમાળા OREसाहेन, लापन. ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨ ( 5228008 श्रीजिनप्रभसूरि अने सुलतान महम्मद लेखकपं. लालचन्द्र भगवान गान्धी. Sooooooooooooooooooooooo प्रकाशक श्रीजिनहरिसागरसूरि-ज्ञानभंडार, लोहावट (मारवाड) GOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FODDDDDHA श्रीसुखसागर-ज्ञानबिन्दु [ नं. ३५ ] श्रीजिनप्रभसूरि अने सुलतान महम्मद LORLDHILLIOHD HIROLOG लेखकपं. लालचंद्र भगवान् गांधी. प्रकाशकश्रीजिनहरिसागरसूरि-ज्ञानभंडार, लोहावट (मारवाड) ORILLED . नवीन संस्करण ५२५] ....... [मूल्य रू. ०-१२ [विक्रम संवत् १९९५] :: [ई. सन् १९३९] thamPIODEODIIIIILE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पुस्तक-प्राप्तिस्थानहै व्य. श्रीजिनहरिसागरसूरि-ज्ञानभंडार, ठि. जाटावासमें, मु. लोहावट (मारवाड) vwww भावनगर-'आनंद' प्रि. प्रेसमां शेठ देवचंदभाई दामजीए प्रकाशक माटे छाप्यु. ता. १-९-३९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखरूप प्रथम आवृत्तिनापत प्रकाशकनुं वक्तव्य. ney " महान सम्राट्सत्ता उपर अपूर्व प्रभा पाडीने तीर्थो अने शासनसमृद्धिनुं संरक्षण करनारा धुरंधराचार्य जैनज्योतिधर श्रीहीरविजयसरिना प्रसिद्ध इतिहासथी पण में लगभग २५० वर्ष पहेलां एटले विक्रमनी चौदमी सदीना उत्तरार्धमां मुस्लीम आक्रमणना विषम युगमां परम प्रभावक श्रीजिनप्रभसूरिए सुलतान महम्मद उपर पाडेली अजब प्रभानो अप्रगट इतिहास आलेखमां बहु जीणवटथी अने विस्तारपूर्ण टिप्पण-टीका साथे प्रगट करवामां आव्यो छे. जो के आ लेख छेक असूरे मळवाथी तेनो केटलोक भाग छोडी देवो पड्यो छे; छतां लेखकना संस्कृत-प्राकृत अभ्यास अने वडोदराना ओरीएन्टल खाता द्वारा संशोधनना मेळवेल ऊंडा अनुभवनो लाम समाजने आ लेखथी मळ्शे-तेम खात्री छे." -संपादक 'जैन' —'जैन' रौप्य महोत्सव अंक ॥ Lh वि. सं. १९८६ [पृ. २१९] । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रास्ताविक आनंद-प्रमोदनो प्रसंग छे के-लगभग एक दसका पहेलां संक्षिप्त लेखरूपे प्रकाशित थयेल अम्हारो शुभ प्रयास, विशेष समृद्ध थइ विस्तृत स्वरूपमा आजे ग्रंथरूपे प्रकाशमां आवे छे. एना अन्वेषणमां-प्रामाणिक ऐतिहासिक संशोधनमा केटलो परिश्रम उठाव्यो हशे ? वर्षोना केटला प्रयत्नथी केवी केवी मुश्केलीओ वच्चे आ गवेषणा थइ हशे ? ' श्रेयांसि बहुविघ्नानि । सूक्तने यथार्थ प्रामाणिक करतां केवां केवां विघ्नोमांथी पसार थइ आनी संकलना थइ हशे ? अने वर्षों पछी आवा स्वरूपमा आजे आ प्रसिद्धिमां आवे छे, ते दरम्यान पण लेखकने केवा केवा प्रतिकूल संयोगो पसार करवा पड्या हशे ? ते लेखके स्वयं उच्चारवं अप्रस्तुत लेखाय. इतिहासप्रेमी परिश्रमविज्ञ सज्जनो कदाच ए समनी शके. आ परिश्रम, आवा संशोधित-वर्षित नवीन स्वरूपमा प्रकाशमां आवी शक्यो छे, तेनो वास्तविक सुयश, इतिहासप्रेमी गुणज्ञ जैनाचार्य श्रीजिनहरिसागरसूरिजी महाराजने घटे छे, जेमना प्रेरणा-प्रोत्साहन विना आ निबंध-ग्रंथर्नु प्रकाशन कार्य प्रायः अशक्य थयुं होत. शासन-प्रभावक माननीय पूज्य पूर्वन आचार्योना इतिहास-संशोधनमां अने तेना प्रकाशनमां असाधारण उत्कंठा धरावनार उपर्युक्त आचार्यना आदर्शने कृतज्ञ अन्य महानुभावो पण अनुसरे-एम इच्छीशं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिनप्रभसूरि-मत्तिः EAMERMallingther श्रीशत्रुञ्जयतीर्थ खरतरवसतौ प्रतिष्ठिता। पानंद प्रेस-भावनगर. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशत्रुजय तीर्थ पर (खरतर-वसहीमां) रहेली मूर्ति परथी तैयार करावेल प्रस्तुत जिनप्रभसरिनो फोटो अहिं समुचित लागशे. प्रबल इच्छा होवा छतां पण योग्य प्रतिकृति प्राप्त न थवाथी सुलतान महम्मद (तुगलक)नो फोटो अहिं न मूकातां न्यूनता लागशे, परंतु ते माटे निरुपाय छं. जिनचंद्रसूरि अने सम्राट अकबरना नामे प्रख्याति पामेलुं चित्र, चरित्र-प्रसंग विचारतां म्हने तो जिनप्रभसूरि अने सुलतान महम्मद(तुगलक)नु होय, तेम लागे छे. विशेष वक्तव्य न करतां जिज्ञासुओने सूचवीए केविषयानुक्रम, ऐतिहासिक नामोनी अनुक्रमणिका, ऐतिहासिक घटना-निर्देशक संवत्सर-सूची विगेरे योजनाओ साथे आ निबंध, इतिहास-प्रेमीओने विशेष उपयोगी थशे-एवी आशा छे. आ ग्रंथ-रचनामा उपयुक्त थयेला ग्रंथोनुं सूचन, ते ते स्थळे करवामां आव्युं छे. श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा जेवा जे इतिहासप्रेमीओए आ प्रकाशनमा प्रत्यक्ष के परोक्ष प्रेरणा, सहायता के सहानुभूति दर्शावी छे, ते सर्वनो हुं आभार मानुं छं. संकलनामां अने संशोधन-प्रकाशनमां बनी शकी तेटली सावधानी राखी छे, छतां आमां कोइ स्खलना दृष्टि-गोचर थाय, तो ते साक्षरो मने जरूर सूचवे, पुनः प्रसंगे ते सुधारी शकाशे. सज्जन विद्वानो आनुं निष्पक्षपात दृष्टिथी साद्यन्त अवलोकन करो, अने ग्रन्थ-रचनाप्रकाशन-परिश्रम सफल थाओ-एम इच्छं छं. वि. सं. १९९५ विद्वदनुचरअक्षयतृतीया वडोदरा. लालचंद्र भगवान् गांधी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम विषय पृष्ठ विषय उपक्रम १-३ जिनप्रभसूरिने पातशाहर्नु परिचय आमंत्रण ३१ अन्य ग्रंथकारने साहाय्य ४-५ पातशाहे जिनप्रभसूरिनो विद्वत्ता अने विहारस्थळो ५-७ करेल सत्कार ३२ ग्रन्य-रचना ७-९ जैन श्वेतांबर-समाज-रक्षा ७०० स्तोत्रोनी रचना ९-१८ अने तोर्थ-रक्षा-फरमान ३४ कल्प-प्रदीप तीर्थ-कल्प १८-२१ बंदी-मोचन ३४ राज-प्रसाद शत्रुजय महावीर-प्रतिमान समर्पणकल्प २१-२२ सन्मान ३५ दिल्लीश्वर हम्मीर महम्मदनी प्रि-विहार प्रसन्नता २२-२५ देवगिरि(दोलताबादमा ३६ कन्नाणयनयर-कल्पमा प्रतिष्ठान(पैठण)पुर-यात्रा ३६ जणावेल ऐतिहासिक वृत्तांत २५ दिल्लीमा सुलताने समर्पल महावीरनो प्राचीन मनोहर सराई, चैत्य, उपाश्रय विगेरे ३७ प्रतिमा २७ कन्नाणय-चीर-कल्प-परिशेष ३८ शहाबुद्दीन घोरीना अमलमा दोलताबादमां प्रभावना ४२ गुप्त २८ पातशाहे करेल स्मरण महावीर-प्रतिमा पुनः अने फरी आमंत्रण ४५ प्रकट थर्बु २९ प्रयाण, अल्लावपुरमा उपद्रवउपद्रवना वखतमा ३० निवारण ४७ तुगलकाबादमा शाही- सिरोहमा सरकार ४७ खजानामा ३० दिल्लीमां सूरिनु स्वागत ४८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ विषय पृष्ठ विषय पर्युषणामा प्रभावना विजययंत्र-महिमा सत्कर्तव्यो ४९ वडनुं चालवू विगेरे ६१ सुलताननी माताना शत्रुजयमां रायणथी दूध सन्मानमा वरसावq ६७ दीक्षा विगेरे कर्तव्यो ५० गिरनारमा जैनबिंब–प्रतिष्ठा ५० अन्य प्रसंगो गोष्ठी-विनोद ७० सुलताने समर्पल भट्टारक- समकालीन इतिहास ७६ सराईमा प्रवेशोत्सव ५१ पेथडशाहे देवगिरि( दोलमथुरा तीर्थनो उद्धार विगेरे ५२ ।। तावाद)मां राजा रामदेव हस्तिनापुर-यात्रा-फरमान ५२ अने मंत्री हेमादिना सम. संघ साथे हस्तिनापुरमां यमां जिनदेव-मंदिर केवी प्रतिष्ठा-महोत्सव ५३ रीते कराव्यु ? जेनी रक्षा महावीरना बिंबनी पुनः जिनप्रभसूरिए करी हती. ७८ स्थापना ५५ पेथडशाह पातशाही फरमानथी जैन पेथडशाहे करावेला समाज अने जैन तीर्थोमां ८४ जिन-प्रासादो ८२ ८६ निर्भयता ५५ पथडशाहनों सुकृतो देवगिरिमां जिन-प्रासाद प्रभावक जिनप्रभसूरिना केवी रीते कराव्यो? ८९ प्रभावथी प्रवर्तेला धामिक देवगिरिमा रामदेव राजाना महोत्सवो ५६ राज्यमां शाह देसल अने सुलताननी सभामा सूरिजीनो सहजाशाहे करावेल जिन बचन-प्रभाव ५७ मंदिर, जेनी रक्षा जिनप्रभकल्प-परिशेषनो उपसंहार ५७ सूरिए करी हती १०१ जिनप्रभसूरिनां चमत्कारी भयानक अल्लाउद्दीन-युग १०३ वृत्तान्तो, पीरोज सुलतान- कन्नाणपुरना जैन शिल्प पर प्रभाव ५९ शास्त्री ठक्कुर फेरु १०७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय दिल्लीश्वर सम्मानित पातशाहोथी समकालीन अन्य जैनाचार्यो १०९ शाहि मुहम्मद अने पेरोजथी गौरवित गुणभद्रसूरि अने मुनिभद्रसूरि महम्मदशाहथी प्रशंसित महेन्द्रसूरि १११ सुलतान-सम्मानित शाह जगसिंह अने महणसिंह; जेना देवगिरिना जिनमंदिरनी प्रशंसा जिनप्रभ पेरोज पातशाहना मान्य गणितज्ञ महेन्द्रसूरि ११३ पेरोज पातशाहथी सत्कृत रत्नशेखरसूरि ११४ पृष्ठ जिनप्रभसूरिनो विशेष सूरिए करी हती ११५ ११० श्रीमाल संघना गुरु जिन परिचय १३४ जिनप्रभसूरिनां जन्म, सिंहसूरि ९३४ पद्मावतीना प्रभावथी दीक्षा, सूरिपदादि १३६ चमत्कारो १३७ महम्मदशाहनी मुलाकात १३८ पृष्ठ विषय व्यंतरनो वळगाड दूर करवो १३९ राघवचैतन्यने हराववा १४१ ६४ जोगणीओने वश करवी १४३ कलंदरनो गर्व हरवी अद्भुत निमित्त-कथन वडने साथ चलाववां १४५ महावीरनी प्रतिमाने बोलती करवी १४८ महावीरनुं सम्मान-पूजन कराव १५० अन्य चमत्कारो १५० खंडेलवालोने जैनो कर्या १५० जिनप्रभसूरिनी अप्रकट कृतियो १५४ १५४ जिनप्रभसूरिनी पट्ट - परंपरा १५४ जिन देवसूरि जिनमेरुसूरि जिनहितसूरि १५७ १५८ चारित्रवर्धन वाचनाचार्य १५९ अन्य अनुयायीओ उपसंहार १६२ १६४ ऐतिहासिक नामोनी अनु १४६ १४८ ऐतिहासिक घटना- निर्दे शुद्धि पत्रक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat क्रमणिका १६६ शक संवत्सर-सूची १८८ १९२ www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनप्रभसूरि अने सुलतान महम्मद. ( ले. पं. लालचंद्र भ. गांधी. प्राच्यविद्यामंदिर, वडोदरा ) पोतानी विद्वत्ता अने सच्चारित्रताथी जन-समाज पर उपकार करनारा, जैन-शासननी कीर्ति-पताका फरकावनारा, जैन-शासनना उज्ज्वल गौरवने प्रकाशित करनारा, जनसमाजमां अने राजा-महाराजाओमां हिंदु राजाओ अने मुसल्मान पातशाहो पर अपूर्व प्रभाव पाडनारा प्रभावशाली जे जे प्रभावक महापुरुषो थई गया छे; तेमां जिनप्रभसूरिनुं विशिष्ट स्थान छे. ___विक्रमनी चौदमी सदीना उत्तरार्धमां-मुसल्मानी आक्रमणना भयानक विषम युगमां, दिल्लीश्वर सम्राट् महम्मद तुघलक पर अनुपम प्रभाव पाडी जैनसमाजने निरुपद्रव बनावनार, जैन-तीर्थो-मंदिरोने तुरकोना दुःखद विप्लवोमांथी बचावी निर्भय करनार, तुरकोना कब्जामां गयेल शासन-नायक महावीरना बिंबने सत्कारपूर्वक पार्छ वाळी प्रतिष्ठित करनार, जन-समाजने सुरक्षित करनार, सुलतान महम्मद तघलकथी सन्मानित थयेला आ सत्पुरुषने आपणे कमभाग्ये हजु यथार्थ रूपमा ओळखी शक्या नथी; एथी आ लेखद्वारा ए आचा . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ namar २] [जिनप्रभसूरि अने र्यनो ऐतिहासिक प्रामाणिक परिचय कराववा कईक यत्न करूं छं. आ प्रयत्नथी, महम्मद तघलक संबंधी अन्यत्र जाणवामां न आवेली-प्रकाशित अतिहासिक पुस्तकोमा वांचवामां नहि आवेली; छतां तेना समकालीन परिचित विद्वान् जैन लेखकोए प्राकृतभाषामां लखी राखेली ऐतिहासिक घटना प्रकाशमां आवशे के जे पुरातत्त्वप्रेमी इतिहास-रसिक जिज्ञासु पाठकोने आनन्दप्रद थशे तेम धारूं छु. ___ जैनाचार्य हीरविजयसरि तथा जिनचंद्रसूरि (सपरिवार) अने सम्राट अकब्बरनी इतिहासप्रसिद्ध विशिष्ट समागमवाळी संतोषकारक सफळ घटना पहेलां लगभग अढीसो वर्ष पर थयेल चिरस्मरणीय आ ऐतिहासिक वृत्तान्त हालमां प्रकाशमां आवे छे एमां पण कुदरतनो कंइक संकेत हशे. जैन ज्योतिर्धरोना झळहळता तेजने न सहन करी शकनारा, ए महाविभूतियोने यथार्थ रूपमां न ओळखी शकनारा, अथवा ओळखवा छतां गमे ते अव्यक्त तुच्छ कारणे ए सत्पुरुषोने विकृत रूपमां आलेखनारा, ए विशिष्ट उच्च ज्योतिर्घरो सामे जाण्ये-अजाण्ये रज उडाडी तेमने झांखा पाडवानी उपहासयोग्य स्वभाव-सुलभ व्यर्थ चेष्टा करे ए स्वाभाविकबनवा योग्य छे, परंतु आपणे तो एमांथी पण प्रेरणानो बोधपाठ मेळवी. प्रमादनो परित्याग करी,आपणी तन-मन-धनादिक शक्तियोनो क्षुद्र कलहादिमां दुर्व्यय न करता, जीवननी अमूल्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] [३ क्षणोनो सदुपयोग करी एवा ज्योतिधरोने प्रकाशमां लाववा जोईए अने तेमना सद्गुणो तथा सत्कर्तव्योथी परिचित थई, तेमांथी शुभ प्रेरणा प्राप्त करी, प्रगतिने पंथे प्रयाण करतां एवा ज्योतिर्धरो प्रकटाववा प्रयत्नशील थर्बु जोईए. जेनी सफळतामां स्व-परर्नु श्रेयः समायेलुं छे. प्रस्तुत प्रयत्न पण ए विचारनुं परिणाम छे. प्रस्तुत जिनप्रभसूरिनो सांसारिक परिचय, माता-पितादि, ज्ञाति-गोत्र, पूर्वनाम, जन्म-समय, परिचय जन्म-स्थल, दीक्षा-समय, दीक्षास्थान ए विगेरे संबंधमां खास कई जाणवामां आव्युं नथी; तेम छतां तेओ विक्रमनी चौदमी १. आ न नामना अने आ आचार्य पहेलां पच्चीशेक वर्ष पूर्वे थई गयेला लगभग समकालीन बीजा एक जिनप्रभसूरि आगमिकगच्छना हता. तेओए विक्रमनी तेरमी सदीना अन्तमां तथा चौदमी सदीना पूर्वार्धमां शत्रुजयमा रही प्राकृत-अपभ्रंशादि भाषामां नाना-म्होटा अनेक ग्रंथो रच्या छे, जे पाटण विगेरेना जैन भंडारोमा मळी आवे छे [ जुओ पाटण भं. सूची भा. १ गा, ओ. सिरीझ ]. पोताने शत्रुजय-सेवक तरीके ओळखावनाग आगमिकगच्छना ए जिनप्रभसूरिथी खरतरगच्छना आ जिनप्रभसूरिने जुदा समजवा जोइये. २. विक्रमनी १७ मी सदीना अंतमां रचायेली जणाती एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..... .. [जिनप्रभसूरि अने सदीना बीजा चरण( वि. सं. १३२५ पछी )थी चोथा चरणना अंत (वि. सं. १३९० ) सुधी विद्यमान हता, तथा तेओ खरतरगच्छमां थयेला जिनसिंहसरिना पट्टधर हता, एम तेमना पोताना उल्लेखो परथी जणाय छे. जिनप्रभसूरि नामनो प्रथम उल्लख, नागेन्द्रगच्छना उदयप्रभसूरिना पट्टधर मल्लिषेणमूरिए अन्य ग्रंथकारने शकाब्द १२१४=वि. सं. १३४९ मां साहाय्य रचेली सुप्रसिद्ध स्याद्वादमंजरी (हेम चंद्राचार्यरचित अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिकानी विस्तृत विवृति)मां को छे. ए स्थळे विशेष ख. ग. पट्टावलीमा मळता उल्लेख प्रमाणे प्रस्तुत जिनप्रभसूरि, वागड देशना झंझणू (वडोद्रा) नगरना तांबी श्रीमालगोत्र (? ज्ञाति) वणिक्ना पांच पुत्रोमांथी मध्यम(बीजा उल्लेख प्रमाणे अने दशमां लघु)पुत्र हता. १. आ जिनसिंहसूरिथी वि. सं. १३३१ लगभगमां खरतरगच्छमांथी एक शाखा प्रकट थई हती, जे लघु खरतरगण नामथी प्रसिद्धिमा आवी हती-एम खरतरगच्छनी पट्टावलीओमांथी सूचन मळे छे. ए शाखा-भेड़ने कारणे मूलगच्छ, जे बृहत्खरतरगच्छ नामथी ओळखावा लाग्यो, तेनी पट्टावलीओमां आ आचार्योनो विशेष परिचय कराव्यो जणातो नथी. ____२. " श्रीजिनप्रभसूरीणां साहाय्योदभिन्नसौरभा । श्रुतावुत्तंसतु सतां वृत्तिः स्याद्वादमञ्जरी ॥” । . . याद्वादमंजरी | प्रशस्ति श्लो०८] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com . . .... . . . Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] स्पष्टता न होवाथी निश्चितरूपमां कही शकाय तेम नथी के-ए मंजरीमा सौरभ प्रकट करवामां प्रस्तुत जिनप्रभसूरिनी ज सहायता होय, मात्र समान समयने तथा नाम-साम्यने लईने तेमनी संभावना करवामां आवे छे. आ जिनप्रभसूरिए रचेली कृतियोमा प्रथम जणाती कातंत्रविभ्रम ग्रंथनी टीका छे. तेमां विद्वत्ता अने सूचव्या प्रमाणे ए रचना वि. सं. विहार-स्थळो १३५२ मां योगिनीपुर( दिल्ली )मां माथुरवंशीय ठक्कुरकुलीन कायस्थ खेतलनी अभ्यर्थनाथी थई हती. व्याकरणविषयक २६१ श्लोकप्रमाण आ वृत्तिनी प्रति, जेसलमेरना जैन भंडारमा 'छे. आ टीकाना अंतमां पोताने 'अप्रौढधीः ' विशेषण आप्यु छ. ए पोतानी वयविषयक लघुता सूचववा वापर्यु होय एवी कल्पना करीए तो पण ते वखते तेमनुं वय वीशेक वर्षतुं कल्पी शकाय; कारण के एज टीकाना अंतमा 'मूरि' पद साथे पोताना नामनो निर्देश कर्यो छे. विभ्रम उपजावनार व्याकरणविषयक १. गायकवाड ऑरिएन्टल सिरीझ नं. २१ मां प्रकाशित थयेल 'जेसलमेर भाण्डागारीय प्रन्थसूची' [पृ. ४८-४९] मां तथा तेना · अप्रसिद्धग्रन्थ-ग्रन्थकृत्परिचय' [पृ. ५८] मां अम्हे आ ग्रन्थ साथे ग्रन्थकारनो संस्कृतमा संक्षेपमा परिचय कराव्यो छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ram..... [ जिमप्रभसूरि अने प्रयोगो संबंधमां सूक्ष्म ज्ञान थर्बु अने ए प्रयोगोने व्याख्यानद्वारा समजाववानी शक्ति प्राप्त थवी, सूरिपद-प्राप्ति थवी ए सर्वनो समय लक्ष्यमां लई विचार करतां जिनप्रभसूरिनो जन्म वि. सं. १३२५ लगभगमां थयो हशे एम संभावना करी शकाय. वि. सं. १५०३ मां सोमधर्मगणिए रचेली उपदेश-सप्ततिमां थयेला एक उल्लेखने तेमना जन्मसमय संबंधमां घटावीए तो वि. सं. १३३२ मां तेमनो जन्म कल्पी शकाय. तरुण वयमां ज तेमनी दीक्षा थई जणाय छे अने सूरिपद पण वि. सं. १३५२ पहेलां थयु होवू जोइये एम विचारी शकाय छे. वि. सं. १३९० सुधीनी तेमनी कृतियो जाणवामां आवी छे. वृद्धावस्थाने लीधे छेल्लां दशेक वर्ष तेमने निवृत्ति स्वीकारवानी जरूर पडी होय अने विक्रमनी चौदमी सदीना अंतमां तेमनुं अवसान थयु होय एम विचारतां तेमनी आयुष्य-मर्यादा लगभग ७५ पोणोसो वर्षनी संभवे छे. तेमनी देह-विलयनी भूमि निश्चितरूपमां जाणवामां आवी नथी, तेम छतां तेमना विहार अने वास-स्थानमां तथा ग्रन्थ-रचनामां दिल्ली, देवगिरि ( दोलताबाद ) अने अयोध्याने प्राधान्य मळ्युं होय तेम १. " दैन्त-विश्वमिते वर्षे श्रीजिनप्रभसूरयः । अभूवन भूभृतां मान्याः प्राप्तपद्मावतीवराः ॥" -उपदेशसप्तति ( जैन आत्मानंद सभा-भावनगर द्वारा प्रकाशित पृ. ५८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [७ जणाय छे. विशेषतः ते तरफनो प्रदेश, तेमना स्मरणीय प्रभावो, उपदेशो, स्मारको अने उपकारोथी पावन थयो हतो. जिनप्रभसूरिए रचेली कृतियोमा संवत्ना निर्देशवाळी ग्रंथ-रचना कृतियो आप्रमाणे जाणवामां आवी छे:वि. सं. १३५२ मां योगिनीपुर कातंत्रविभ्रम-टीका (दिल्ली)मां ग्रं. २६१ वि. सं. १३५६ मां श्रेणिकचरित्र (द्वयाश्रयकाव्य) तपोटमतकुट्टनशतक वि. सं. १३६३ मां कोसलानयर विधिप्रपा (प्रा. श्राव विजयादशमी (अयोध्या)मां कोनी अने मुनिओनां [प्रथमादर्श ले. वाच कृत्योनी सामाचारी) नाचार्य उदयाकरगणि ग्रं. ३५७४ वि. सं. १३६४ मां कल्पसूत्र-वृत्ति(पंजिका संदेहविषौषधि) ग्रं. २२६८ वि. सं. १३६५ मां दाशरथिपुर अजितशांतिस्तव-वृत्ति १. जिनप्रभसूरिए पर्युषणा-कल्पनां दुर्गम पदो पर विवरणरूप पंजिका रची छे, जेनुं अपरनाम सन्देहविषौषधि छे. जामनगरनिवासी पं. ही. हं. द्वारा आ ग्रंथ प्रकट थयो छे, परंतु तेमां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जिनप्रभसूरि अने पोषमां (अयोध्या)मां (बोधदीपिका)ग्रं.७४० साकेतपुर उपसर्गहरस्तोत्र-वृत्ति पोष व. ९ (अयोध्या)मां ( अर्थकल्पलता) , साकेतपुर भयहरस्तोत्र-वृत्ति पोष शु. ९ (अयोध्या)मां (अभिप्रायचन्द्रिका) वि. सं. १३६९ मां फलोधीमां फलवर्धिपार्श्व-स्तोत्र वि. सं. १३८० मां पादलिप्तकृतवीरस्तोत्र वृत्ति रचना-समयवाळो उल्लेख जोवामां आवतो नथी, अन्य प्रति परथो तेनी रचना वि. सं १३६४ मां थयेलो जणाय छे " सुरीन्द्रस्यान्वये जातो नवाङ्गोवृत्तिवेधसः । श्रीजिनेश्वरसूरीणां पौत्रः पात्रमनेधसः ।। पुत्रः श्रीमज्जिनसिंहसूरीणां रीणरेफसाम् । जग्रन्थ ग्रन्थमेतं श्रीजिनप्रभमुनिप्रभुः ।। वैक्रमे स्वीकला-विश्वदेवसाव्ये तु वत्सरे x x" ही. र. कापडियाए चतुर्विशतिजिनानन्दस्तुतिनी भूमिका [पृ. ४४ ] मां 'विश्व' शब्दनी तेर संख्यावाचकतानुं समर्थन करवामां · विश्वदेव ' शब्दवाळा उपर्युक्त पाठने दर्शावतां 'वीकला' ने बदले 'ऽस्ति कला' पाठ दर्शाव्यो छे, ते असंगत लागे छे. हालमा प्रचलित कल्प-किरणावली, कल्पलता, कल्पसुबोधिका, कल्प-कलिका, कल्प-दीपिका विगेरे कल्पसूत्रनी वृत्तियो, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] वि. सं. १३८१ मां राजादि-रुचादिगण-वृत्ति साधुप्रतिक्रमणसूत्र-वृत्ति सरिमंत्राम्नाय(सूरिविद्या-कल्प) वि. सं. १३८५ मां [दिल्लीमां] शत्रुजयकल्प(राजप्रसाद) वि. सं. १३८६ (शकव.१२५१)मां टींपरी-तीर्थस्तोत्र वि.सं. १३८७ मां देवगिरि(दोल- पावापुरी-कल्प ताबाद )मां (दीपालिका-कल्प) वि. सं. १३८९ मां योगिनीपुर तीर्थकल्पनी पूर्णता (दिल्ली) मां वि. सं. १३९० मां हस्तिनापुरमा हस्तिनापुरतीर्थ-स्तोत्र जिनप्रभसरि पछी लगभग सो वर्षे थयेला तपागच्छीय पं. सोमधर्मगणिए वि. सं. १५०३ ७०० स्तोत्रानी मां संस्कृतमां रचेली उपदेशसप्ततिमां रचना सूचव्यु छ के- 'जेणे विविध प्रका रनी श्रेष्ठ प्रभावनाओवडे सुलतानने उपर्युक्त जिनप्रभसूरिनी संदेहविषौषधि पछी लगभग अढीसो वर्षे रचायेली छे. पाछळना वृत्तिकारोए जिनप्रभसूरिनी उपर्युक्त पंजिकानो थोडेघणे अंशे आधार लीधो हशे, एम मान, अयुक्त नहि गणाय, १. केटलाक लेखकोए आनो रचना-समय वि. सं. १३२७ जणान्यो छे, ते समजफेरथी कों जणाय छे. २. " इश्यादि नानाप्रवरप्रभावनाभरैः सुरत्राणमपि व्यबबुधत् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.] [ जिनप्रभसूरि अने पण विशिष्ट बोध पमाड्यो हतो, जेणे सातसें स्तोत्रो अने बहु उपकारी ग्रंथो गुंथ्या हता, समस्त अज्ञान-अंधकारने दूर करनारा, शासन-प्रभावक ते जिनप्रभसूरि संघर्नु भद्रकल्याण करो.. जिनप्रभसूरिना रचेला सिद्धान्त-स्तव पर विवरण-अवचूरि रचनार आदिगुप्त-शिष्य ( तपागच्छीय ? विशालराजगणि शिष्य?) उपर्युक्त रचना-संबंधमां विशेषमा जणावे छे के 'पहेला, प्रतिदिन नवीन स्तवन निर्माण कर्या पछी निर्दोष आहार ग्रहण करवाना अभिग्रहवाळा जिनप्रभसूरिए स्तोत्राणि यःसप्तशतीमितानि च ग्रन्थांश्च जग्रन्थ बहूपकारिणः ।। स श्रीजिनप्रभसूरिरिताशेषतामसः । भद्रं करोतु सङ्घाय शासनस्य प्रभावकः ॥" -उपदेशसप्तति (भावनगर आ. सभा प्र. पृ. ५८-५९) १. " पुरा श्रीजिनप्रभसूरिभिः प्रतिदिनं नवस्तवनिर्माणपुरस्सरं निरवद्याहारग्रहणाभिग्रहवद्भिः प्रत्यक्षपद्मावतीदेवीवचसाम(s). भ्युदयिनं श्रीतपागच्छं विभाव्य भगवतां श्रीसोमतिलकसूरीणां स्वशैक्ष-शिष्यादिपठन-विलोकनाद्यर्थ यमक-श्लेष-चित्र-च्छन्दो. विशेषादि-नवनवभङ्गीसुभगाः सप्तशतीमिताः स्तवा उपदीकृता निजनामाङ्किताः।" -सिद्धान्तस्तवावचूरि[नि.सा. काव्यमाला गुच्छक ७,पृ.८६) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] [११ प्रत्यक्ष पद्मावती-देवीना वचनथी तपागच्छने अभ्युदयवाळो जाणी, पूज्य सोमतिलकसूरिने पोताना शिष्य-शिष्याओ १. वृद्धक्षेत्रसमास, सप्ततिशतस्थान ( रचना सं. १३८७ ) विगेरेना कर्ता आ. सोमतिलकसूरिनो जन्म वि. सं. १३५५ मां, दीक्षा वि. सं. १३६९ मां, सूरिपढ़ वि. सं. १३७३ मां जंघ. रालनगरमां वीरमंदिरमा संघपति गजे करेला २५००० टंकोना व्ययपूर्वक, अने स्वर्गवास वि. सं. १४२४ मां थयेल होवानुं सूचन मुनिसुंदरसूरिए वि. सं. १४६६ मां रचेली गुर्वावली { यशोविजय जैन ग्रन्थमालाप्रकाशित पृ. २८-३१)मां कयु छे. जिनप्रभसूरिए रचेला पुष्कल स्तोत्रोमांथी हालमां उपलब्ध स्तवन-स्तोत्र नीचे सूचववामां आवे छे: स्तोत्रनाम. भाषा, विशेष. प्रारंभ. पद्यसंख्या. प्रकाशन-स्थळ. १ ऋषभदेवस्तव (सं. दशदिक्पाल- ११ [प्रकरणरत्नाकर स्तुतिगर्भ । अस्तु भा.४, पृ. २४; श्रीनाभिभूर्देवो) जैनस्तोत्रसमुच्चय पृ. २६ ] २ , " (अष्टभाषामय । निर. (अष्टभाषा [प्र. २. भा. २, वधिरुचिरज्ञान) ४० पृ. २६३] ३* , , (पारसीभाषामय । ११ [जैन० पृ.२४७] अल्लालाहि) * आ स्तोत्र पर अवचूरि छ. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ] [जिनप्रभसूरि अने विगेरेने भणवा, जोवा विगेरे माटे यमक, श्लेष, चित्र-छन्दो४ " , (प्रा. आज्ञाप्राधान्य ११ [जैनस्तोत्रसंदोह " (मा नय-गम-भंगपहाणा) पृ. २२७ ] ५ अजितनाथस्तवन (सं. यमकमय । वि. २१ [प्र. २८-३२] श्वेश्वरं मथितमन्मथ) ६ चंद्रप्रभस्तवन (षड्भाषामय । नमो १३ [प्र. र. भा. २ महासेननरेन्द्रतनूज) पृ. २६९ ] ७ , स्तुति (सं. देवैर्यस्तुष्टुवे तुष्टैः) ४ [, २६२ ] र शांतिजिनस्तवन (सं. श्रीशान्ति- २० [म. र. भा. ४, नाथो भगवान्) पृ. २६ ] ९ मुनिसुव्रतस्तोत्र (सं. निर्माय नि- ३० र्मायगुणद्धि) १० नेमिस्तव (सं. क्रियागुप्त । २० [प्र. र. भा. २, श्रीहरिकुलहीराकर) पृ. २४४] ११ पार्श्वस्तव (सं. का मे वामेय ! १७ [म. २. भा. ४, शक्तिः ) पृ. ३०; का. मा. ७ गुच्छ पृ. १०७] (सं. अधियदुपनमन्तो) १२ [, पृ. ११७] १३ , (सं. पार्श्वभुं श. ८ [प्र. र. भा.२ श्वदकोपमानं ) पृ. २५१] (सं. श्रीपार्श्व ! पादान्त ८ [ , पृ. २५२] नागराज !) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] विशेष विगेरे नवा नवा प्रकारोथी सुन्दर, पोताना नामांकित १५ , (सं. प्रातिहार्य । त्वां १० [प्र. र. भा. २, विनुत्य महिमश्रि- पृ. २५९] श्रियामह) १६* " (प्रा. नवग्रहात्मक। १० [जैनस्तोत्रसंदोह दोसावहारदक्खो) पृ. २२८] १७ " (सं. श्रीपार्श्व भा- ९ [प्र. र. भा. ४, वतः स्तौमि) पृ. २३ ] १८ , ( सं. श्रीपार्श्वः ४४ [ ,, पृ. २६ ] श्रेयसे भूयात् ) (सं. पार्श्वनाथमनघं) ९ ........ (सं.जीरापल्ली। जी. १५ [प्र. र. भा. २, रिकापुरपतिं सदैव तं) २६८ ] २१ ॥ (प्रा. फलवधि। १२ [ ,, २६९] सयलाहि-वाहिजलहर !) २२ वीरस्तव (सं. कंसारिक्रम- २५ [प्र. र. भा. २, नियंदापगा-) पृ. २४५; का.७ गुच्छ पृ. ११२] ' (सं. निर्वाणकल्या. १९ [, पृ. ११९] णक । श्रीसिद्धार्थनरेन्द्रवंश-) * आ स्तोत्रं पर टिप्पनक छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] ७०० सातसो स्तोत्रो भेट कर्या हतां. ' २४ वीरस्तव (सं. चित्रस्तव । २७ चित्रैः स्तोष्ये जिनं वीरं ) २५ २६ २७ २८ २९ ३० 33 99 "" 97 " 33 ३१ ” [ जिनप्रभसूरि अने (सं. पंचवर्गपरि - २६ हार । स्वःश्रेयससरसीरुह ) ३२ चतुर्विंशति - ( सं . कनककान्तिधनुः) जिनस्तब (सं. पंचकल्याणमय । ३६ [,, पृ. २४९] पराक्रमेणेव पराजितोऽयं ) (सं. श्रीवर्द्धमानः सुखवृद्धयेऽस्तु ) । (सं. लक्षण प्रयोगमय । १७ [,, पृ. २६० ] निस्तीर्ण विस्तीर्णभवार्णवं ज्ञै - ) (सं. विविधद्वंदो जातिरुचिर । २९ [प्र.२.भा. ४, असमशम निवासं) पृ. २८ ] ( सं. श्रीबर्द्धमान १३ [प्र. र. भा. २, परिपूरित ) पृ. २५७ ] ( प्रा. सिरिवीयराय ! ३५ देवाहिदेव ! ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ जैनस्तोत्रसं. पृ. ९२ ] [प्र. र. भा. २, पृ. २४२ ] ९ [, पृ. २५१] ........ २९ [ प्र. र. भा. २, पृ. २४७; का. ७ गुच्छ पृ. ११५] www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m ~ ~ ~ ~ ~ ~ सुलतान महम्मद. ] तीर्थकरो, गणधरो, तीर्थो, तीर्थरक्षको, शारदादेवी, ३३ चतुर्विंशति- (सं. ऋषभ ! २९ [प्र. र. भा. ४ जिनस्तवन नम्रसुगसुरशेखर !) पृ. ३१; जैनस्तो. सं. पृ. १४९] (सं. आनन्दसुन्दर. २९ [ , पृ. १९१] पुरन्दरनम्र !) (सं. पात्वादिदेवो २९ [प्र. र. भा. २, दश कल्पवृक्षाः) पृ. १७५ ] (सं. प्रणम्यादि- २८ [प्र. र. भा. २, जिनं प्राणी) पृ. २५८ ] (सं. निनषभ ! ७ [प्र. र. भा. ४, प्रीणितभव्यसार्थ) पृ. २२ ] (सं.आनम्रनाकि. २५ [प्र. र. भा. ४, पति) पृ.३०२ ] (सं. यमकमय । त. २८ [प्र. र. भा. ४, त्त्वानि तत्त्वानिमूतेषु सिद्धं) पृ. ३०३] (सं. श्लेषमय ।यं ३० [जैनस्तोत्रसंदोह सततमक्षमालो) पृ. २१६] (सं. ऋषभदेवम- ३० अप्रसिद्ध नन्तमहोदयं) * मा स्तवनी अवरि जयचनसरिए रची छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ] [जिनप्रभसूरि अने पोताना गुरु ( जिनसिंहमूरि ) ए विगेरेने उद्देशीने संस्कृत, ४२ नंदीश्वरकल्प- (सं. आराध्य श्री ४८ [प्र. र. भा. २, __स्तव जिनाधीशान) पृ. २९२] ४३ वीतरागस्तवन (सं. जयन्ति पादा १६ [प्र. र. भा. २, जिननायकस्य) पृ. २६१ ] ४४ मंत्रस्तव (सं. स्वःश्रियं ५ [प्र. र. मा. २, श्रीमदहन्तः ) पृ. २५१ ] ४५ अहंदादिस्तवन (सं. मानेनोर्वी ८ [प्र. र. भा. ४, व्यहृत परितो) पृ. २२] ४६ पंचपरमेष्ठिमहा- ( प्रा. किं कप्प. १३ [प्रा. जैनस्तो. सं.] मंत्रस्तव तरु रे !) ४७ पंचनमस्कृति- (सं. प्रतिष्ठितं ३३ [प्र. र. भा. २, स्तवन तमःपारे ) पृ. २५६ ] ४८ कल्याणकपंचक- (सं. निलिम्प- ८ [प्र. र. भा. २, स्तवन लोकायितभूतलं पृ. ५६०] ४९ मंगलाष्टक (सं. नतसुरेन्द्र ९ [प्रा. जैनस्तोत्रसं.] जिनेन्द्र !) ५० गौतमस्तोत्र (सं. श्रीमन्तं २१ [प्र. र. मा. २, मगधेषु ) पृ.२४३;का.७ गुच्छ पृ.११०] ५१ " (प्रा. जम्म पवि- २५ [जैनस्तोत्रसंदोह त्तिय सिरि) पृ. २३९ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] [ १७ प्राकृत, अपभ्रंश विगेरे विविध भाषामां, विविध छंदोमां, विविध अलंकारोमां, विविध चातुर्यथी रचायेलां चित्रमय मंत्रादिगर्भित ए मनोहर स्तोत्रोमांथी लगभग ७० सीत्तेर जेटलां स्तोत्रो आजे पण उपलब्ध थई शके छे. एमांनां केटलांक निर्णयसागरनी काव्यमाला( गु. ७)मां, प्रकरणरत्नाकर (भा. २-४) मां, जैनस्तोत्र-संग्रहोमां, जैनस्तोत्रसमुच्चय, जैनस्तोत्रसंदोह विगेरेमा प्रकाशित थयेलां जोवाय छे.बीजां ५२ , (सं. महामंत्रमय । ९ [ , पृ. २३७] ॐ नमखिजगन्नेतुः) ५३ जिनसिंहमूरि- (सं. प्रभुः प्रदद्या- १३ [प्र. र. भा. २, स्तवन न्मुनि-पक्षिपते-) पृ. २५५ ] ५४ जिनागमस्तवन (सं. नत्वा गुरुभ्यः) ४६ [प्र. र. भा. ४, पृ.३००; का.७ गुच्छ पृ.८६] ६५ शारदास्तवन (सं. वाग्देवते ! १३ [प्र. र. भा. २, भक्तिमतां स्वशक्ति-) पृ. २५४ ] ५६ , (सं. अष्टक । ॐ ९ अप्रसिद्ध नमस्त्रिजगद्वन्दित) ६७ पद्मावती- (जिनशासन चतुष्पदिका अवधारि) ५८ वर्धमानविद्या (प्रा. इय वद्धमाणविज्जा) १७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. १८ ] [ जिनप्रभसूरि अने केटलांक पाटण, खंभात, लोंबडी, बीकानेर विगेरेना जैन भंडारोमां जडी आवे छे. तेओए पारसी भाषामां रचेलं ऋषभजिन स्तोत्र (जैनसाहित्य-संशोधक खं. ३, अं. १ मां तथा नि. सा. प्रकाशित 'जैनस्तोत्रसमुच्चय ' मां प्रकाशित ) पाठकोनुं खास ध्यान खेंचे तेवू छे. तेमने ते विदेशी-विजातियोनी भाषा पर पण काबु हतो, जे भाषादिना अभ्यास तरफ केटलाक डाह्या (1) घृणा धरावे छे. जिनप्रभसूरिए तो आ भाषाज्ञानथी अने बीजा केटलांक व्यवहारज्ञान-चातुर्यादि सद्गुणोथी विदेशी पातशाहीमां-दिल्लीश्वरना राज-दरबारमा पण सन्मान मेळव्युं हतुं अने तेओ समाजने उपयोगी अनेक सत्कर्तव्यो करवा भाग्यशाळी थई शक्या हता. शहेनशाह अकबरना दरबारमा सन्मान मेळवनार तपागच्छना उ. भानुचंद्र अने सिद्धिचंद्र वाचक विगेरेए ए विदेशी भाषा पर काबू मेळयो हतो-जेओ आ आचार्य पछी लगभग बसो वर्षे थयो. ए उपर सूचवेलां स्तोत्रो, वृत्ति-टीकाओ अने बीजा ग्रंथोमां कल्प-प्रदीप तेमनो कल्प-प्रदीप नामनो तीर्थकल्प १ 'कविवर समयसुंदरना प्रशिष्यरानसोमे करेल ऋषभनिनस्तवन पारसी भाषामां मळे छ, तथा संभवतः जिनप्रभसूरिजीकृत शांतिनाथ-स्तवन पण पारसी भाषामां उपलब्ध थाय छे' एम अगरचंद नाइटा जणावे छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] तीर्थ-कल्प ग्रंथ ऐतिहासिक दृष्टिए अति महत्त्वनो छे. सौराष्ट्र, गुजरात, राजपूताना, मालवा, मध्यदेश, पूर्वदेश अने दक्षिणमां आवेलां जैन तीर्थोना विश्वसनीय प्राचीन इतिहासनो परिचय करावनार ए ग्रंथ तेओए देश-पर्यटनादिद्वारा बहोळो अनुभव मेळव्या पछी वृद्धावस्थामां रच्यो जणाय छे. तेमना तीर्थ-कल्पनु अवलोकन करतां समजाय छे के-जिनप्रभसूरिए अनेक देशोमां पर्यटन कयु हतुं, अनेक तीर्थोनी यात्रा-प्रतिष्ठा करी हती, अनेक वार राज-सभाओमां प्रवेश को हतो, अनेक शास्त्रोद् अवलोकन कर्यु हतुं, अनेक भाषाओमां प्रवीणता मेळवी हती, काव्य-साहित्यकलामां कुशलता प्राप्त करी हती, अनेक पंडितो साथे चातुर्यगोष्ठी करी हती, अनेक मुनियोने अध्ययन करावी विद्या-वृद्धि करी हती. तेमना तीर्थ-कल्पमां मुख्यताए नीचे जणावेल तीर्थो अने तीर्थ-भक्तो संबंधी संक्षेप अने विस्तारथी परिचय आपत्रामां आव्यो के तीर्थो १ शत्रुजय ५ अर्बुद (आबू) २ उज्जयंत (गिरनार) ६ मथुरा ३ पार्श्व (स्तंभन-खंभात) ७ अश्वावबोध (भरुच) ४ अहिच्छत्रा ८ वैभारगिरि (राजगृह) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] [जिनप्रभसूरि अने ९ कौशांबी २५ हरिकंखी-पार्श्व १० अयोध्या २६ शुद्धदंती ११ पावापुरी २७ अभिनंदन १२ कलिकुंड २८ चंपापुरी १३ हस्तिनापुर २९ पाटलिपुत्र(पटना) १४ सत्यपुर (साचोर) ३० श्रावस्ती १५ अष्टापद ३१ वाराणसी १६ मिथिला ३२ कोका-पार्श्व (पाटण) १७ रत्नपुर ३३ कोटिशिला १८ कन्नाणयनयर कनानूर, ३४ चेल्लण पार्श्व (ढिंपुरी) दक्षिण) वीर ३५ कुडंगेश्वर (उज्जयिनी) १९ प्रतिष्ठान(पेठण)पत्तन ३६ माणिक्यदेव(कुल्पाक,दक्षिण) २० नंदीश्वर ३७ अंतरिक्ष पार्श्व २१ कांपिल्यपुर ३८ फलवद्धि (फलोधी) पार्श्व २२ अरिष्टनेमि(शौरीपुर) ३९ समवसरण-रचना २३ शंखपुर ४० महावीर-गणघर २४ नासिकपुर ४१ तीर्थ-नामसंग्रह तीर्थ-भक्तो १ कपर्दियक्ष २ कोहंडिय देवी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] [ २१ ३ अंबिका देवी ५ व्याघ्री (शत्रुजय पर ४ आरामकुंड अनशन करनारी वाघण) पद्मावती देवी ६ मंत्रीश्वर वस्तुपाल तेजपाल जिनप्रभसूरिए संस्कृतमां अने प्राकृतमां गद्यमां अने पद्यमां छटादार शैलीथी रचेला ग्रं. ३५०३ (६०) श्लोक प्रमाणवाळा आ तीर्थकल्प ग्रंथमां उपर्युक्त तीर्थो अने तीर्थ-भक्तो साथे संबंध धरावती पोताना समय सुधीनी अनेक घटनाओनुं विश्वसनीय वर्णन कयु छे. जेमांथी ते ते देशो, नगरो अने राज्योनी स्थितिनो पण सारो ख्याल थई शके छे, बीजो पण घणो उपयोगी जाणवा लायक इतिहास एमांथी मळी आवे छे. ए सर्व तीर्थोना कल्पो संबंधी विशेष परिचय करावतां आ लेखनिबन्ध एक ग्रन्थरूप बनी जाय; एथी अहिं मात्र प्रासंगिक सूचवीशं. आ तीर्थ-कल्पमां सौथी प्रथम शत्रुजयनो कल्प छे. तेना अंतमां तेनो रचना-समय वि. सं. राज-प्रसाद १३८५ माघ व.७ शुक्रवार सूचवेल छे; शत्रुजयकल्प ते साथे एक खास विशेषता तेमां सूचवी छे के-' आ(शत्रुजय-कल्प)नो प्रारंभ करतांज राजाधिराज, संघ पर प्रसन्न थया; आथी आ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] [ जिनप्रभसूरि अने कल्प ' राज-प्रसाद ' नामे लांबा वखत सुधी जयवंत रहो.' उपर्युक्त उल्लेख परथी विचारने अवकाश मळे अने जिज्ञासा थाय ए स्वाभाविक छे के-आमां सूचवेल दील्लीश्वर हम्मीर राजाओनो अधिराज-महान सम्राट् कोण? महम्मदनी अने ए संघ पर केवी रीते प्रसन्न थयो ? प्रसन्नता. कोना प्रभावथी प्रसन्न थयो ? प्रसन्न ___थईने तेणे शुं कर्यु ? आ जैनाचार्य साथे एने शो संबंध-परिचय ? के जेथी आ ग्रंथकारने एना स्मरण माटे पोतानी एक कृतिनु-शत्रुजय-तीर्थना कल्पनुं 'राजप्रसाद ' एवं नाम राखवार्नु उचित समजायु. आ संबंधी अन्यत्र तपास करतां पहेलां आ ग्रंथ परथी शुं जणाय छे, ते तपासीए. उपर्युक्त तीर्थकल्पना अंतिम भागमां जिनप्रभसरिए ग्रंथकार तरीके पोताना नामनो निर्देश चातुर्यथी सूचवी 'कल्पप्रदीप ' अपरनामवाळा आ ग्रन्थने वि. सं. १३८९ १ " प्रारम्भेऽप्यस्य राजाधिराजः सके प्रसन्नवान् । अतो राजप्रसादाख्यः कल्पोऽयं जयताञ्चिरम् ।। श्रीविक्रमाब्दे बोणाष्ट-विश्वदेवमिते शितो । सप्तम्यां तपसः काव्यदिवसेऽयं समर्षितः ॥" -तीर्थकल्प (शत्रुजयकल्प ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [२३ मां भाद्रपद व० १० ने दिवसे पृथ्वीन्द्र ( पातशाह ) हम्मीर महम्मदना प्रतापी राज्य अमलमां योगिनीपत्तन(दिल्ली)मां परिपूर्ण कों हेतो-एम सूचव्युं छे. ए उपरथी विचारी शकाय छे के-शत्रुजय-कल्पना अंतमां सूचवायेल राजाधिराज ए अन्य कोइ नहि, परंतु दिल्लीश्वर सुलतान हम्मीर महम्मद होवो जोइये, के जेने इतिहासमां 'महम्मद तघलक' नामथी ओळखवामां आवे छे अने जे वि. सं. १३८१ ( ईस्वी सन् १३२५ ) थी वि. सं. १४०७ (ईस्वी सन् १३५१ ) सुधी-आजथी लगभग छसो वर्ष पर दिल्लीना १ " को(का)ऽर्थे भ( स )जेत् ? किं प्रतिषेधवाचि ? पदं ब्रवीति प्रथमोपसर्गः १।। कीदग् निशा ? प्राणभृतां प्रियः कः ? के प्रन्थमेतं रचयांप्रचक्रुः ? ॥" -श्रीजि न प्रभसूरयः । नन्दानेकप-शक्ति-शीतगुमिते श्रीविक्रमोवीपते वर्षे भाद्रपदस्य मास्यवरजे सौम्ये दशम्यां तिथौ । श्रीहम्मीरमहम्मदे प्रतपति मामण्डलाखण्डले __ अन्थोऽयं परिपूर्णतामभजत श्रीयोगिनीपत्तने ।। तीर्थानां तीर्थभक्तानां कीर्तनेन पवित्रितः । कल्पपदीपनामाऽयं प्रन्थो विजयतां चिरम् ॥" -तीर्थकल्प [ का. प. ६४] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] [जिनप्रभसूरि अने तख्त पर आरूढ रही प्रतापी सार्वभौम तरीके राज्यअमल करतो हतो. जेना संबंधमां इंग्लीश ऐतिहासिक पुस्तकोमां केटलुक जाणवालायक सचित्र वृत्तान्त मळी आवे छे. आराजाधिराज हम्मीर महम्मद तवलकक्यारे? कई रीते संघपर प्रसन्नथयो?जिनप्रभसूरिए शत्रुजय तीर्थकल्पमां एनुं स्मरण शामाटे कर्यु एनी पाछळ रहेला गूढ इतिहासनो भेद समजवा तत्कालीन अथवा तेना निकटना प्रामाणिक विश्वसनीय उल्लेखो तपासवा जोइये. सौथी पहेलां स्वयं ए ग्रन्थकारे ए संबधी क्यांय सविस्तर स्पष्टताथी सूचव्यु छे के केम ? ए शोधq जोइये. ए शोध करतां तेमना तीर्थकल्प तरफ दृष्टि करीए. आ तोर्थ १ प्राचीन बृहट्टिपनिकामां सूचवायेला अने मर्डम प्रो. पिटर्सनना रि. ४ था [ पृ. ९१ थी १०० ] मां स्वल्प अंशो साथे निर्दिष्ट करायेला आ ' तीर्थकल्प' नुं प्रकाशन कार्य, एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाले हाथ धर्यु हतुं; परंतु इ. स. १९२३ मां प्रकट थयेल एक भाग [ पृ. ९६ ] पछीनो भाग हजु अम्हाग जोवामां आवेल नथी. आ लेखनी बीनी आवृत्ति प्रकाशमां आवे छे त्यारे आ • विविध तीर्थकल्प ' प्रसिद्ध साक्षर जिनविजयजीद्वारा संपादित थइ, सिंघी जैन-ग्रन्थमालामां विश्वभारती सिंघी जैन-ज्ञानपीठ शान्तिनिकेतनद्वारा प्रकाशित थाय छे, ए खुशी थवा जेवू के. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] कल्पनी नवीन लखावेली प्रति प्रवर्तकजी श्रीकान्तिविजयजी महाराजना संग्रहमां वडोदराना आत्मारामजी जैन-ज्ञानमन्दिरमां छे, ते प. ४१ थी ४४ ]मां तथा सं. १९७१ मा प्रकाशित थयेल ' अभिधानराजेन्द्र ' नामना प्राकृतमहाकोष [ भा. ३, पृ. २१२ थी २१५] मां जोवामां आवता अशुद्धियोनी बहुलतावाळा प्राकृतभाषामय ' कनाणयपुर-बीरकप्प ' मां प्रस्तुत विषय साथे संबंध धरावतो इतिहास मळी आवे छे. कन्नाणयनयर-कल्पमा जणावेल ऐतिहासिक वृत्तान्त. " अगणित गुणगणवाळा, मेरुपर्वत जेवा घीर महावीरजिनने प्रणाम करीने कनाणयपुर( कानानूर, दक्षिण )मां रहेली ते( महावीर जिन )नी प्रतिमानो कंइक कल्प ( आम्नाय-प्राचीन अर्वाचीन इतिहास ) हुं कहीशः चोलदेशना अवतंस( आभूषण-तिलक रूप कैनाणय १ जिनप्रभसूरि तथा तेमना अनुयायी विद्यातिलक मुनिना उल्लेखोमां आ नगर कन्नाणयपुर, कण्णाणयनयर, कना. य, कन्यानयनीय विगेरे नामोथी सूचवायेल छे. प्रो. पिटर्सनना रिपोट ४ [पृ. ९५, ९९ ] मां एने बदले कल्याण, कात्यायनीय वगेरे नाम पण प्रकट थयेल छे. एने अनुसरीने पं. ही. हं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] [ जिनप्रभसूरि अने नयर( कानानूर, दक्षिण )मां विक्रमना 'जैनधर्मना प्राचीन इतिहास' [ भा. १, पृ. ३६ ] मां, 'जैनग्रंथावली' [पृ. ३३ ] मां, ‘जैनसाहित्यमें इतिहास के साधन ' [जैनसाहित्य-संमेलन रि. ले. पृ. १० ] विगेरेमां पण तेवू नाम दर्शावेलुं जोवामां आवे छे; परंतु ए संबंधमां वधारे विचार अने तपास कर्या पछी जणाय छे के-दक्षिणमा चोलदेशमां श्रीरंगम टापू( पट्टन )नी उत्तरे पांच माइल पर आवेलु, हालमां कन्नानूर( कानानूर ) नामथी ओळखातुं ते ज आ नगर होQ जोइये. जे नगर एक वखते होयसाल राजाओनी गजधानी तरीके उन्नत थई प्रसिद्धिमा हतुं. होयसाल वीर सोमेश्वरे तेने किल्लाथी सुरक्षित कर्यु इतुं. विशेष माटे जुओ केम्ब्रीज हीस्ट्री ऑफ इन्डिया [ वॉ. ३, पृ. ४८१, ४८४, ४८८ ] आ नाम निश्चित करवामां बरोडा कॉलेजना इतिहासना प्रोफेसर म्हारा स्नेही श्रीयुत केशवलालभाई हिं. कामदारनो हुँ खास आभारी छ. विक्रमनी तेरमी सदीना पूर्वार्धमां त्यां महावीर-प्रतिमानी प्रतिष्ठा थयेली होई श्रीमान् जैनोनुं ए वास-स्थान बन्यु हो, जोइए अने ते समये ते व्यापार विगेरेथी सुसमृद्ध स्थितिमा होवू जोइये. १ अहिं सूचवेल विक्रमपुर पण उपर्युक्त पुस्तकमां सूचवेल दक्षिणमांगें उपर्युक्त कमानूरनी समीपर्नु जणाय छ, जिनपतिसूरि-रासमां-- अत्यि मरुमंडले नयरविकमपुरे जसोवद्धणु जग जाणिए ए' जणावेल होइ विक्रमपुर जेसलमेर-निकटवर्ती स्थान होवू जोइए' एम अगरचंदजी नाहटा अणावे छे, ते विचारणीय छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [ २७ महावीरनी पुरवासी, जिंनपतिसूरिना काका शाह प्राचीन मनोहर मानदेवे करावेली अने वि. सं. १२३३ मां आषाढ शु. १० गुरुवारे अम्हारा ज पूर्वाचार्य श्रीजिनपतिसूरिए प्रतिष्ठित प्रतिमा १ आ जिनपतिसूरिनो संस्कृतमां संक्षेपमां परिचय अम्हे ' जेसलमेर - भांडागारीय ग्रंथसूची ' ना अप्रसिद्ध प्रन्थ- प्रन्थकृत्परिचय [ पृ. २८ ] मां तथा ' अपभ्रंशकान्यत्रयी' नी भूमिका [ पृ. ६५-६८ ] मां आप्यो छे. ते परथी समजाशे के संघपट्टकटीका, पंचलिंगी विवरण, प्रबोधोदय वादस्थल विगेरे ग्रंथो रचनारा आ प्रौढ विद्वान् वि. सं. १२१० थी १२७७ सुधी विद्यमान हता. तेमनः पट्टधर जिनेश्वरसूरिए अने जिनपाल उपाध्याय, सूरप्रभ उपाध्याय, पूर्णभद्रगणि, सुमतिगणि विगेरे विद्वान् शिष्योए पण ग्रन्थ - रचनादिद्वारा जन-समाज पर घणो उपकार कर्यो छे. आ जिनपतिसूरिए गुजरातनी भूमिमां आशापल्ली (आसावळ ) मां अने पृथ्वीराजनी सभामा प्रतिवादियोने परास्त करी वादमां जय मेळव्यो हतो अने विधिमार्गने विस्तार्यो हतो - एवा अनेक उल्लेखो मळी आवे छे, जे अम्हे त्यां दर्शाव्या होवाथी अहिं आ लेखने विस्तारीशुं नहि. - २ आ शाह मानदेव, ऊकेश ( ओसवाल ) वंशना हता, तेमना वंशनुं विस्तृत वर्णन, जिनपतिसूरिना प्रशिष्य अने जिनेश्वरसूरिना शिष्य कुमारगणि कविए चंद्रतिलक उपाध्यायना अभय- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] [जिनप्रभसूरि अने करेली, स्वप्नना आदेश प्रमाणे मम्माणशैल( खाण )मां प्रकट थयेल जोई( ज्योती )रस उपल( रत्न )नी घडेली, अनकवाल (?) नामनी पृथ्वी-धातुविशेषना स्पर्शवडे नखमात्र लागतां पण घंटानी जेम ध्वनि करती, २३ त्रेवीश पर्व ( आंगळ ) परिमाणवाळी. संनिहितप्रातिहार्यवाळी (चमत्कारी) महावीर-प्रतिमा श्रावकसंघवडे लांबा वखत सुधी पूजाती हती. वि. सं. १२४८ मां चाहुयाण( चौहाण )कुळना प्रदीप पृथ्वीराज नरेन्द्र, सुलतान साहबदीन शहाबुद्दीन घोरी (शहाबुद्दीन चोरी )वडे मरण पामतां, ना अमलमांगुप्त राज्य-प्रधान परमश्रावक शेठ रामदेवे कुमारचरित( पं. ही. हं. प्रकाशित )नी प्रांत प्रशस्तिमा ४८ श्लोकोथी कर्यु छे. ए परथी समजाय छे के-जिनपतिसुरिना पिता यशोवर्धन, आ शाह मानदेवना लघुबंधु हता, तेमना वंशना विशेष परिचय माटे जुओ पूर्वोक्त प्रशस्ति तथा गुजरातीमां अम्हे सूचवेल सार [वीजापुर-बृहद्वृत्तांत बुद्धिसागरजी ग्रंथमाळा, प्र. अध्यात्मज्ञान प्र. मंडळ आवृत्ति २ जी पृ. १३६-१४८ थी १५०] १ जैनोना प्रज्ञापना( पन्नवणा )सूत्रमा तथा वराहमिहिरनी बृहत्संहिता[ पृ. ४०६ ]मां उपलरत्नोनी विविध जातिमां 'ज्योतीरस' नामनी पण एक जाति सूचवी छे. जावडशाहे वि. सं. १०८ मां शत्रुजय पर प्रतिष्ठित करेली श्रीआदीश्वरनी मूर्ति ‘पण आ ज जातिनी हती-एम अन्यान्य ग्रंथो परथी जणाय छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] ___ श्रावक-संघने लेख मोकल्यो के-'तुरकोनुं राज्य थयु छे. श्रीमहावीरनी प्रतिमा अत्यंत छानी रीते धारण करी राखवी.' त्यारपछी श्रावकोए दाहिमकुलना मंडनरूप कर्यवास मांडलिकना नामथी अंकित थयेला कयंवास स्थळमां विपुल वेळुना पूरमां ते प्रतिमा स्थापी हती. वि. सं. १३११ मां अतिदारुण दुर्भिक्ष थतां निर्वाह न थवाथी जाजओ नामनो सूत्रधार जीविका महावीर- निमित्ते कुटुंब साथे कन्नाणय(कन्नानूर) प्रतिमानुं पुनः थी सुभिक्षदेश तरफ चाल्यो हतो. 'पहेलु प्रकट थर्बु प्रयाण थोडं करवू जोइए ' एम विचारी कयंवास स्थळमां ( ते मूर्तिवाळा प्रदेशमां)ज ते राते वास को हतो. अर्धी राते देवताए तेने स्वप्न आप्यु के-' अहिं ज्यां तुं सूतो छे, तेनी हेठे आटला हाथ पर भगवंत महावीरनी प्रतिमा छे. तारे पण देशांतर जर्बु नहि पडे, अहिं ज तारो निर्वाह थशे.' संभ्रमपूर्वक जागीने तेणे ते स्थानने पुत्रादिद्वारा खणाव्युं एटले ते प्रतिमा दीठी. तेथी हृष्ट तुष्ट थयेला तेणे नगरमा जइ श्रावकसंघने निवेदन कर्यु. श्रावकोए महोत्सवपूर्वक परमेश्वरने प्रवेश करावी चैत्यगृह-मंदिरमा स्थाप्या. त्रिकाळ पूजावा लाग्या. अनेक वार तुरकोना उपद्रवथी मुक्त रह्या. श्रावकोए ते सूत्रधारने वृत्ति-निर्वाह करी आप्यो. प्रतिमानो परिकर शोधाववा छतां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] [ जिनप्रभसूरि अने पण तेओने प्राप्त थयो नहि. कोइपण स्थळ-परिसरमां ते रह्यो होवो जोइए. प्रशस्ति वर्ष विगेरे तेना पर ज लखेलुं संभवे छे. एक वखते न्हवण थया पछी भगवंतना शरीर पर परसेवो पसरतो दीठो, लूहवा छतां पण ते अटक्यो उपद्रवना नहिं; तेथी विदग्ध श्रावकोए जाण्यु केवखतमां 'कोइपण उपद्रव अवश्य अहिं थशे.' एवामां प्रभातमां जय(जेठवा) राजपूतो ( १ यवनो )नी धाड आवी. नगरने चोतरफथी विध्वस्तविनष्ट कयु. एवी रीते प्रकट प्रभाववाळा स्वामी वि. सं. १३८५ सुधी पूजाया. वि. सं. १३८५ मां आवेला आसीनगरना विय (?) वंशमां धयेला घोर परिणामवाळाए ( ? तुगलकाबादमां घोरीए ) श्रावकोने अने साधुओने बंदी शाही खजानामां (केदी) करीने विडंब्या. पार्श्वनाथर्नु शैलमय बिंब भाग्युं अने महावीरनी ते प्रतिमाने अखंडित ज गाडामां चडावीने दिल्लीपुरमा १ इ. सन्. १३२८ [वि. सं. १३८५ मां दक्षिणमां मुसलमानी हुमलो थयो हतो, अने ते वखते मदुरा अने तेनी बहारवें मुख्य कनानूर, महम्मद तघलके कब्जे कर्यु हतुं, एवो इतिहास मळी आवे छे (जुओ केन्त्रीज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया चॉ. ३, पृ. ४८८). संभव छ के-उपर्युक्त खेदजनक घटना ते वखते बनी हशे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] [३१ ww . ~~ ~ ~~ ~ ~ ~ ~~ ~ ~ ~~ ~ आणीने तुगुलकाबादमा रहेला सुलतानना भंडारमा स्थापी. ते एवा आशयथी के-'सुलतान अहिं आव्या पछी जेम फरमावशे तेम करशं. ' एथी ते प्रतिमा १५ मास सुधी तुरकोना कब्जामां रही. कालक्रमे महम्मद सुलतान देवगिरि ( दोलताबाद ) नगरथी योगिनीपुर(दिल्ली)मां आव्यो. जिनप्रभसूरिने अन्यदा खरतरगच्छना अलंकाररूप, पातशाहनं जिनसिंहसरिना पट्ट पर प्रतिष्ठित थयेला आमंत्रण जिनप्रभसूरि, विविध देशोमां विहार करता दिल्लीनासाहपुर(शाखापुर-परा)मांआव्या. क्रम प्रमाणे महाराज-सभा(पातशाही दरबार)मां पंडितोनी गोष्ठी थतां महाराजाए( पातशाहे ) पूज्यु के-' अतिशय विशिष्ट पंडित कोण छे ?' जोषी धाराधरे तेमना (जिनप्रमसूरिना) गुणोनी स्तुति करी. त्यारपछी महाराजे ते १ आ तुघलकाबाद, दिल्हीथी पूर्वमां ६ माइल पर ग्यास्उद्-दीन तघलके ( महम्मद तघलकना पिताए ) इ. सन् १३२१ (वि. सं. १३०७) लगभगमां वसाव्युं हतुं, तेम अन्यत्र इतिहासमां वांचवामां आवे छे. एनुं चित्र पण मळी आवे छे. २ वि. सं. १३३१ लगभगमां खरतरगच्छनी लघुशाखा आ आचार्यथी प्रवर्ती हती, ए पहेलां कहेवाइ गयुं छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ] [ जिनप्रभसूरि अने ( पं. धाराधर ) ने ज मोकली जिनप्रभसूरिने बहुमानपूर्वक आमंत्रण करी बोलाव्या. [वि. सं. १३८५ ] पोष शु. २ नी सांझे सूरिजी महाराज महाराजाधिराज (महम्मद) ने भेट्या. पातशाहे सुलताने सूरिजीने अत्यंत पासे बेसारी जिनप्रभसूरिनो कुशलादि वृत्तान्त पूछयो. सूरिजीए नवीन करेल सत्कार काव्य रची आशीर्वाद आप्यो, ते तेणे सांभळ्यो. लगभग अर्धी रात सुधी एकां - तमां गोष्ठी करी. राते त्यां( पातशाही महलमां ) ज वास कवीने प्रभाते सूरिजीने फरी बोलाव्या. संतुष्ट थयेला महानरेंद्रे १००० गायो, द्रव्यसमूह, श्रेष्ठ बाग, १०० वस्त्रो, १०० कांबल अने अगर, चंदन, कपूर विगेरे सुगंधी द्रव्यो देवा मांड्यां; 'परंतु साधुओने ए न कल्पे ' एम महाराजाने समजावी, गुरुजी ते सर्व वस्तुओनो प्रतिषेध कर्यो. तेम छतां 'राजाधिराने अप्रीति न थाओ' एम विचारी राजाभियोगवडे गुरुजीए तेमांथी कंबल, वस्त्र, अगर विगेरे कडक अंगीकार कर्यु. ते पछी विविध देशांतरमांथी आवेला पंडितो साधे वाद -गोष्ठी करावी सुलताने मदकल (श्रेष्ठ) बे हाथीओ अणाव्या. तेमांना एक पर गुरुजी (जिनप्रभसूरि ) ने अने बीजा पर जिनदेव १ अहिं सूचवेल जिनदेवसूरि, जणाय हे. जैनमन्थावली [ पृ. ३२, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat जिनप्रभसूरिना पट्टधर ७९ ]मां जिनदेवसूरिने www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [३३ आचार्यने चडावी, सुलताननी आठ मदन मेरीओ वागतां, यमल शंखो फूंकाता, मृदंग, मर्दल, कंसाल, ढोल विगेरेना शब्दो घुमघुम थतां, भट्ट-चट्टो पाठ करते छते, चारे वर्णो साथे अने चारे प्रकारना संघ साथे सूरिजीने पोसहशालाए( उपाश्रये ) पाठव्या. श्रावकोए प्रवेश-महोत्सव कयों. महादानो आप्यां. कन्नाणय-कल्प-परिशेष रचनाग आगळ जणावेला विद्यातिलक अपरनाम सोमतिलकसूरिना शिष्य सचव्या छे; परंतु ते विद्यातिलकमुनिना ज जणावेला. उल्लेख प्रमाणे प्रस्तुत जिनप्रभसूरिना शिष्य सिद्ध थाय छे. वि. सं. १३८३ (१)मां हैमनाममालानो शिलोग्छ( नि. सा. ना अभिधानसंग्रहमा प्रकाशित) रचनार जिनदेवसूरि पण एज होवानुं अनुमान छे. १ आ प्रमाणे जैन आचार्ये हाथी पर चडवू, ए मुनिधर्मविरुद्ध विचारणीय विचित्र घटना छे छतां उपर्युक्त उल्लेख परथी एवो आशय समजाय छे. राजाभियोग आदिनु अवलंबन लइ भविप्यना लाभालाभनी तरतमता विचारी समय-धर्मने मान आपी, अपवादथी एम कयु हशे. वि. सं. १३३४ मां प्रभाचंद्रसूरिए रचेला प्रभावकचरित्र(पृ. २५१ थी २६०)मां जणाव्या प्रमाणे-सूराचार्य नामना विद्वद्वर्य जैनाचार्य भोजराजानी सन्मुख जतां हाथी पर आरूढ थया हता अने भीमदेवे तेमनो पाटणमा प्रवेशोत्सव कों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] [ जिनप्रभसूरि अने विशेषमां पातशाहे सकळ श्वेतांबर दर्शनने उपद्रवथी रक्षण करवामां समर्थ फरमान समर्पण कर्यु. जैन श्वे. तीर्थ-रक्षा गुरुजीए तेनी नकलो चारे दिशाओमां मोकलावी. शासननी उन्नति थइ. अन्यदा मूरिजीए शत्रुंजय, गिरनार, फलोधी विगेरे तीर्थोंना रक्षण माटे फरमान माग्युं सार्वभौमे ते ते ज क्षणे आयुं. तेने तीर्थोमां मोकलायुं. फरमान बंदी -मोचन गुरुजीनुं वचन थतां ज राजाधिराजे अनेक बंदी ( केदी तरीके पकडेला ) ओने मुक्त कर्या हता. फरी सोमवारना दिवसे गुरुजी राज-कुलमां पहोंच्या. त्यारे पण तेओ हाथो पर आरूढ थया हता. चैत्यवासीओना प्राबल्यकालमा अने मुसलमानी आक्रमणना युगमां शिथिलाचा न गणानां शासन - प्रभावना अथवा दर्शन - गौरवना रूपमा ए गणायुं जणाय छे. १ आ परथी स्पष्ट समजी शकाय तेम ले के-पहेलां जणाव्या प्रमाणे वि. सं. १३८१ मां माव व. ७ शुक्रवारे रचायेल शत्रुंजय-कल्प, दिल्लीमां रचायो होवो जोइए अने राजाधिराजे ( महम्मद तघलके ) ए ज समयमां जिनप्रभ सूरिना परिचयथी तेमना वचनने मान आपी संघ - रक्षानां तथा शत्रुंजय विगेरे तीर्थोनां फरमानो आप्यां जणाय छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [ ३५ वरसता वरसादमां सुलतानने भेट्या. महावीर-प्रतिमान गुरुजीना कादवथी खरडायेला पगने समपेण-सन्मान महाराजाए मलिक कापू( फू )र पासे श्रेष्ठ वस्त्र-खंडवडे लूहाव्या. त्यारपछी आशीर्वाद आपतां अने वर्णना-काव्यनुं व्याख्यान करतां महानरेन्द्र चित्तमां अत्यंत चमत्कार पाम्या. अवसर जाणीने सर्व स्वरूप कहेवापूर्वक भगवंत महावीरनी ते प्रतिमा मागी. एकछत्र वसुधाना अधिपतिए( महम्मद सुलताने) सुकुमार गोष्ठीओ करतां ते आपी. तुगुलकाबादना खजानामांथी असूअग( असूया करनार! ) मलिकोनी खांधे स्थापन करावी, सकल सभा समक्ष पोतानी आगळ अणावी, दर्शन करी, गुरुजीने ते समर्पण करी. त्यारपछी सकल संघे महोत्सव प्रभावनापूर्वक सुखासन( पालखी )मां स्थापी ते प्रतिमाने मलिक ताजदीन-सराईमां चैत्यमा स्थापी. गुरुजीए वासक्षेप करतां महापूजाओथी पूजाय छे. त्यारपछी महाराजना आदेशवडे जिनदेवमूरिने बीजा चौद साधुओ साथे (पोताना प्रतिसूरि-विहार निधि तरीके) दिल्ली-मंडलमा स्थापी, गुरुजीए अनुक्रमे महाराष्ट्र-मंडल (दक्षिण) तरफ प्रस्थान कयु. श्रावकोना संघ साथे जता गुरुजीने राजा धिराजे वळद, ऊंट, घोडा, गुलयिणी(तंबू), सुखासन(पालखी) विगेरे सहायक सामग्री आपी हती. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] [जिनप्रभसूरि अने वच्चे आवेलां नगरोमां प्रभावना करता, पगले पगले संघोवडे सन्मान कराता अने अपूर्व देवगिरि तीर्थोने नमता सूरिजी अनुक्रमे देवगिरि (दोलताबाद)मा ( दोलताबाद) नगरे पहोंच्या. संघे प्रवेश महोत्सव को. संघ-पूजा थइ. संघपति जगसीह, साहण, मल्लदेव विगेरे संघ माथे पइट्टाण(प्रेतिष्ठान-पेठण )पुरमां जीवंतप्रतिष्ठान(पैठण) स्वामी मुनिसुव्रतनी प्रतिमानी यात्रा पुर-यात्रा करी. पछी आ तरफ दिल्लीमां विजयकटकमां जिनदेवमूरिए १ देवगिरि(दोलताबाद)मां सं. १३८३ का. शु. १३ ने दिवसे राजसीहना सुत शाह तिहुणसिंहे उपदेशमाला-लघुवृत्ति लखावी हती (जुओ पिटर्सन रि. ३, पृ. १३१ ). ए विगेरे जोतां विक्रमनी चौदमी सदीना उत्तगर्धमां आ नगरमा श्रीमान् जैनो वसता होई आ नगर व्यापारादिद्वारा सुसमृद्ध अने उन्नत स्थितिमा हतुं-तेम जणाय छे. अन्यत्र मळता इतिहास परथी जणाय छे के-आ महम्मद तघलक पातशाहे आ देवगिरिने पोतानी राजधानी बनाववा दौलतथी आबाद (दोलताबाद) बनाव्युं हतुं. २ जिनप्रभसूरिना तीर्थकल्पमां प्रतिष्ठानपत्तननो पण कल्प छे, ए उपर सूचित थइ गयुं छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] महाराजने दीठा (सुलताननी मुलाकात दिल्लीमां सुलताने करी.)महाराजे(सुलताने) बहु मान आप्यु. समर्पल सराई, एक सराई आपी, तेनुं नाम 'सुलतानचैत्य,उपाश्रय वि. सराई' स्थाप्यु.त्यां ४०० चारसो श्राव. कोनां कुलो(कुटुंबो)ने वास माटे आदेश को कलिकाल-चक्रवर्तीए (सुलतान महम्मदे) त्यां पोसहशाला ( उपाश्रय ) अने चैत्य कराव्यु. ते चैत्यमां ते ज (कन्नानूरना) देव महावीरने स्थाप्या. भगवंतने परतीथिको( अन्यधर्मीओ) तथा श्वेताम्बर अने दिगंबर भक्त श्रावको त्रिकाळ महामूल्य पूजा-प्रकारोथी पूजे छे. __एवी रीते महम्मदशाहे करेली शासननी उन्नति जोई लोको पंचम काळने पण चोथा काळ( आरा ) तरीके ज अनुभवे छे. क्लेश दूर करनारा वारजिनेशन, मन अने नयनोने आनंद आपनारु, विघ्नादिने प्रतिहत करनारं आ बिंब यावच्चंद्रदिवाकरौ जयवंत रहो. ___ कनाणयपुर( कनानूर )मा रहेल देव महावीरनी प्रतिमानो आ कल्प, जिनसिंहमुनींद्रना शिष्य मुनीश्वरे ( जिनप्रमे) लख्यो छे." १ जिनप्रभसूरिए ३५०३ साडात्रण हजार श्लोकप्रमाण रचेला आ तीर्थकल्पना अन्तमां पोताना नामनो निर्देश कर्यो छे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] [ जिनप्रभसूरि अने [ २ ] हवे संघतिलकसरिजीना आदेशथी विद्यातिलकमुनि. 46 तेम तेमां आवेला जुदा जुदा कल्पोना अन्तमां पण प्रायशः पोतानुं नाम सूचित कर्यु छे; तेम छतां तेमां ज आवेला आ कन्नाणयनयर ( कन्नानूर ) - वीरना कल्पना अंतमां पोतानुं नाम स्पष्ट रीते न सूचवतां प्रकागन्तरे सूचव्युं छे. तेम कग्वानो हेतु एवो समजाय छे के - आकल्पमां सूचवेली महत्त्वनी घटना साथे ए कल्पकारनो निकट संबंध होइ पोताना महत्त्वने प्रकाशित करनारी छे. जैनशासनना गौरवने सूचवती, जैनसमाजने आनन्दजनक ए घटना वास्तविक इतिहास - प्रतिपादननी दृष्टिए एमने वर्णववी पडी छे: तेम छतां कोइ एने आत्मश्लाघा -दोषरूप न समजे एवा आशयथी पोतानी लघुता सूचववा अने ए महत्त्वनां कार्यो थवामां गुरु. प्रभाव ध्वनित करवा ' जिनसिंह मुनीन्द्रना शिष्य मुनीश्वरे आ कल्प लख्यो छे. ' एवं जणाव्युं छे. जिनसिंह सूरिना शिष्य सूरि तरीके 'जिनप्रभसूरि' नामनुं सूचन, आज तीर्थकल्प ग्रंथमां पहेलां आवी गयेल होवाथी अहिं स्पष्ट नामनिर्देश न कग्वा छतां आ कन्नाणयनयर ( कन्नानूर ) - वीर - कल्पना कर्ता तरीके ए जिनप्रभसूरि ज समजवा जोईए. १ आ संघतिलकसूरि, रुद्रपल्लीय गच्छना गुणशेखरसूरिना शिष्य हना. तेओए विद्याभ्यास आ जिनप्रभसूरि पासे कर्यो हतो. तेमणे वि. सं. १४२२ मां सारस्वन पत्तन ( पाटण ) मां 'सम्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] [ ३९ कन्नाणय-वीरकल्पनो परिशेष लेश कहे छेकूत्वसप्तति' ग्रंथ पर गद्य पद्य संस्कृन प्राकृत कथाओनी छटावाळी ७७११ श्लोकप्रमाण विस्तृत विवृति रची हती. तेना प्रारंभमां पोताना विद्यागुरु तरीके, शाह महम्मदने मुदित करनारा आ जिनप्रभसूग्नुि स्मरण कर्यु छे:" ढि(दिल्ल्यां साहिमहम्मदं शककुलक्ष्मापालचूडामणिं येन ज्ञानकलाकलापमुदितं निर्माय षड्दर्शनी । प्राकाश्यं गमिता निजेन यशसा साकं स सर्वागम __ ग्रन्थज्ञो जयतात् जिनप्रभगुरुर्विद्यागुरुनः सदा ॥" – सम्यक्त्वसप्ततिवृत्ति (दे.ला. पु. फंड प्रकाशित श्लो०८) भावार्थ:-जेणे दिल्लीमां शककुलना गजाओमां चूडामणि जेवा शाह महम्मदने ज्ञानकलाना समूहथी हर्षित करी पोताना यश साथे छ दर्शनोने प्रकाशमां आण्यां; सर्व आगम-प्रन्थोना जाण अने अम्हारा विद्यागुरु ते जिनप्रभसरि सदा जयवंत रहो. प्रो. पिटर्सनना रि. ४ थामां आ ग्रंथनो उल्लेख थयेलो छे, परंतु त्यां आ श्लोकनो आशय समजवामां फेरफार थवाथी आ एक ज जिनप्रभसरिने जुदा जुदा ओळखावी बीजा जिनप्रभसूरिने रुद्रपल्लीयगच्छना अने षड्दर्शनी ग्रंथ बनावनार तरीके सूचव्या छे. एनो अनुवाद अन्यत्र जैनधर्मना प्राचीन इतिहास ' (पं. ही. हं. मा. १, पृ. ३७ ) मां, 'गच्छमत-प्रबंध' ( अध्यात्म ज्ञान प्र. मंडळ प्र. पृ. ४७ ) मां तथा बीजा ग्रंथोमां पण गतानुगतिकताथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] [ जिनप्रभसूरि अने भट्टारक श्रीजिनप्रभसरिए ते वखते [वि. सं. १३८५ उतरी आवेल छे. खरी रीते जोतां खरतरगच्छना आ जिनप्रभसूरिथी अन्य रुद्रपल्लीयगच्छना जिनप्रमसूरि थयानुं त्यां सूचन नथी, तेम तेओए षड्दर्शनी ग्रन्थ रच्यानो आशय, उपरना श्लोकमांथी नीकळतो नथी. संघतिलकसरि, रुद्रपल्जीयगच्छना गुणशेखरसूरिना शिष्य होवा छतां तेमणे उपरनी कृतिमा विद्यागुरु तरीके जिनप्रभसूरिनुं स्मरण पर्यु छे अने पोताना एक शिष्य विद्यातिलक मुनिद्वारा कनाणय वीर-कल्पनो परिशेष रचावी, पोताना विद्यागुरु तरफ कृतज्ञता दर्शावी छे. २ आ विद्यातिलकमुनि, उपर जणावेला संघतिल करिना शिष्य हता अने तेमनुं बीजं नाम सोमतिलकसूरि जणाय छे. वि. सं. १३९७ मां लघुस्तवनी वृत्ति रचनारा आ विद्वाने वि. सं. १३९४ (१) मां शीलोपदेशमाला ग्रंथ पर ७००० श्लोक प्रमाण शीलतरंगिणी नामनी विस्तृत विवृति रची छे. तेमां पोताना गुरु संघतिलकसरिनो परिचय करावतां, शकराजाने प्रतिबोध करनारा प्रस्तुत जिनप्रभसूरिद्वारा तेमने प्राप्त थयेल सूरिपद प्रमुख तत्त्वविद्यानुं सूचन कर्यु छे. पं. ही. हं.द्वारा प्रकट थयेली आवृत्तिमा अन्तिम प्रशस्तिनो भाग जोवामां आवतो नथी, परंतु अहिं प्राच्यविद्यामन्दिरनी प्रतिमां ले: ___" तदीयचरणद्वयीसरसिजैकपुष्पन्धयः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [४१ ....ARAAN -१३८७ मां] दोलताबादनगरमां शाह स सहतिलकप्रभुर्जयति साम्प्रतं गच्छराट् । शक्षितिपबोधकृत्प्रभुजिनप्रभानुप(ग्र)हान्ववाप्तगु(ग)णभृत्पदप्रमुखतत्त्वविद्यागमः ॥" -प. १२५, श्लो० ९ आ वृत्तिना अंतमां तेना कर्ता तरीके विद्यातिलक अने सोमतिलक ए बने नामो वांचवामां आवे छे । इति श्रीशीलोपदेशमालावृत्तौ स्वभावशीलपालनलीलायत. श्रीरुद्रप० भट्टा० संघ० सूरिशिष्यविद्यातिल[क]सू० विरचि.'" तत्पादपद्महंसोऽधिवृत्तिं शीलोपदेशमालायाः । श्रीसोमतिलकसूरिः कृतवान् श्रीशीलतरङ्गिणीम् ।। लालासाधोस्तनुजः प्रगुणनिधिः साधुसेढानुमया(?) छाजूः शीलोपदेशनजममलधिया सूत्रतोऽधीत्य सम्यग् । अर्थ विज्ञातमस्या युग-'निधि-मरवो वत्सरे विक्रमांके वृत्तिं नव्यां स विद्यातिलकमुनिवरात् कारयामास साधुः ॥" -प्रा. वि. प्रति प.१२४-१२५ श्लो०१०-११ उपर्युक्त संघतिलकसरिना बीजा शिष्य अने पूर्वोक्त सोमतिलकमूरिना लघुगुरुबन्धु देवेन्द्रसूरिए प्रभोत्तररत्नमालानी वृत्ति वि. सं. १४२९ मां रचेली छे. तेनी प्रांत प्रशस्तिमां पोताना वडिल गुरुबन्धुनुं नाम सोमतिलकसूरि सूचवी, तेने शीलोपदेश माला-वृत्तिकार तरीके ओळखान्या छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जिनप्रभसूरि अने दोलताबादमा पेथड, सहजा अने ठ. अचलनां करावेलां प्रभावना चैत्योनो तुरको द्वारा करातो भंग, फर ए उल्लेखो जोतां सामान्य( मुनि) अवस्थामां विद्यातिलक नामथी विख्यात थयेल, पाछळथी सूरिपद पछी 'सोमतिलक' नामथी प्रसिद्धिमां आव्या होय ए संभवित छे. उपर उद्धत करवामां आवेल कन्नाणय-वीरकल्पनो परिशेष, · विद्यातिलकमुनि " नामथी सूचव्यो होवाथी सूरिपद मळ्या पहेलां अने संभवतः जिनप्रभसरिनी अने महम्मद तघलकनी विद्यमानतामां -विक्रमनी चौदमी सदीना अंतमा ज ते रच्यो होवो जोइए, एम आ परिशेषना अन्तिम उल्लेखथी पण विचारी शकाय छे. १ अहिं सूचवेल सहजा, वि. सं. १३७१ मां शत्रुजय-तीर्थना उद्धारक संघपति समरसिंहना ज्येष्ठ बन्धु जणाय छे. जेणे दक्षिण मंडलना देवगिरि( दोलताबाद )मां चोवीश जिनवाळू मंदिर रचावी, तेमां मूलनायक तरीके पार्श्वनाथने स्थाप्या हता, तेम उपर्युक्त शत्रुजय तीर्थना उद्धार-प्रतिष्ठा प्रसंगे त्यांथी संघ लइ शत्रुजयमां उपस्थित थया हता; एq तेमना समकालीन अने परिचित निवृत्ति. गच्छना आम्र( अंब )देवसूरिए वि.सं.१३७१( ? )मा रचेला संघपति समरसिंहरास ( गा. आ. सिरीझना प्राचीन गुर्जर काव्य-संग्रहमां तथा आत्मानंद सभाना जैन ऐतिहासिक गर्नर काव्य-संचयमा प्रकाशित )मां तथा उपकेशगच्छना कक. मूरिए वि. सं. १३९३ मां कंजरोटपुग्मां रचेला नाभिनंदनोद्धार प्रबंधमां वर्णव्युं छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४३ सुलतान महम्मद. ] मान दर्शावीने निवाय हतो. तेवी रीते जिनशासननी अतिशय प्रभावना करता, प्रातीच्छको ( ग्रहण करवा इच्छता शिष्यो ) ने सिद्धांतनी वाचना आपता, तपस्त्रीओने अंगप्रविष्ट अने अनंगप्रविष्ट आगमोनां तप करावता, शिष्योने तथा अपरंगच्छना मुनियोने पण प्रमाण, व्याकरण, १ रुद्रपल्ली यगच्छना संघतिलकसूरिए जिनप्रभसूरिने पोताना विद्यागुरु तरीके जणाव्या छे, ए उपर दर्शावाइ गयुं छे, ते सिवाय हर्षपुरीयगच्छना मलधारी राजशेखरसूरि के जेणे वि. सं. १३८७ मां प्राकृत द्वयाश्रयवृत्ति तथा चतुरशीतिप्रबंध ( विनोद कथा-संग्रह), षड्दर्शनसमुच्चय, नेमिनाथ-फाग विगेरे रचेल छे. तथा पूर्णिमागच्छना पं. ज्ञानचंद्रे रचेल रत्नाकरावतारिकाटिप्पनने, वि. सं. १४०१ मां मेरुतुंगसूरिना स्तंभनेन्द्र - प्रबन्ध (महा पुरुष - चरित ) ने अने वि. सं. १४१० मां मुनिभद्रसूरिए रचेला शांतिनाथचरित महाकाव्यने जेणे शुद्ध युं हतुं. दुर्भिक्ष-दुःखने दलनाग तथा महम्मदशाह ( तघलक ) थी गौरवित थयेला श्रीमान् जगत् सिंहना षड्दर्शन पोषक सुपुत्र महणसिंहे दिल्लीमां पोते आपेली वसतिमां जेमनी पासे वि. सं. १४०५ मां जेठ शु. ७ प्रबंधकोश ( चतुर्विंशति - प्रबंध ) ग्रंथ कराव्यो हतो- " तत्सूनुः सामन्तस्तत्कुलतिलकोऽभवज्जगत्सिंहः ः । दुर्भिक्षदुःखदलनः श्रीमहम्मदसाहिगौरवितः || तज्जो जयति सिरिभवः षड्दर्शनपोषणो महणसिंहः । ढि (दि) ल्ल्यां स्वदत्तवसतौ प्रन्थमिमं कारयामास || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] [ जिनप्रभसूरि अने काव्य, नाटक, अलंकार विगेरे शास्त्रोने भणावता, उद्भट वाद करनारा वादि-वृंदोना अतिदर्पने अपहरता सूरिजी त्यां लगभग त्रण वर्ष व्यतीत कर्या. शेर - गगन - मैनुमिताब्दे ज्येष्ठामूलीयधवलसप्तम्याम् । निष्पन्नमिदं शास्त्रं श्रोत्रध्येत्रोः सुखं तन्यात् ॥ " एज राजशेखरसूरिए, श्रीधरनी न्यायकन्दली पर संक्षिप्त विवरण रचतां, कृतज्ञताथी पोताना अध्यापक तरीके जिनप्रभसूरिनुं स्मरण कर्यु छे 99 " श्रीमज्जिनप्रभविभोर धिगत्य न्यायकन्दलीं किश्चित् । तस्यां विवृतिलयमहं करवै स्व- परोपकाराय || [ पिटर्सन रि. ३, पृ. २७३ ] मूळ आधार न तपासतां नकलीया गतानुगतिकताथी जैनधर्मनो प्राचीन इतिहास (ही. ई. भाग १, पृ. ३६ ) तथा अभिधान गजेन्द्र ( भा. ४, पृ. १५०० ) मां अने अन्य केटळेक स्थळे केटलाक लेखकोए राजशेखर नामने बदले रत्नशेखर नाम प्रकट कर्यु छे, ते पि. रि.नी परंपराथी उतरी आवेली भूल जणाय छे. वर्तमान साधु - समान, आवी रीते विद्वान् आचार्यो अने सुनियो पाथी विद्याभ्यास करतो होय, तो केटलो बधो लाभ थई शके ? १ देवगिरिनगर ( दोलताबाद ) मां रहे जिनप्रभसूरिए वि. सं. १३८७ मां भादरवा व १२ ने दिवसे दीवाळी पर्वनी उत्पत्तिना कथनथी रमणीय पावापुरी-कल्प रच्यो इतो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [४५ आ तरफ योगिनीपुर( दिल्ली )मां शकाधिराज महम्मदशाहे कोइ अवसरे सभामां पंडितोना पातशाहे करेल गोष्ठी-प्रसंगे शास्त्र-विचारमा संशय स्मरण अने फरी थतां गुरु( जिनप्रभसूरि )ना गुणोने आमंत्रण संभारी कयु के-'जो ते भट्टारक आसमये म्हारी सभाने अलंकृत करता होत, तो म्हारा मनमा रहेला संशय-शल्यने सहजमां उद्धरत. खरेखर, बृहस्पति पण तेमनी बुद्धिथी पराजित थई भूमिने तजी शून्य " इय पावापुरि-कप्पो दीवमहुप्पत्तिभणणरमणिज्जो । जिणपहसूरीहिं कओ ठिएहिं सिरिदेवगिरिनयरे ।। तेरहसत्तासीए विक्कमवरिसंमि भदवयबहुले । पूसक्कबारसीए समत्थिनो ससस्थिकरो ॥" 'जैनसाहित्यमें इतिहासके साधन' ( जैनसाहित्य-संमेलन रि. पृ. १०) मां अने अन्यत्र बीजा लेखकोए आनो रचना-समय सं. १३२७ सूचव्यो छे, ए पण परंपराथी उतरी आवेल भल जणाय छे. चतुर्विशति जिनानन्द-स्तुति (आ. समिति प्र. ) नी भूमिका(पृ. ४०)मां ही. र. कापडियाए वि. सं. १३३७ जणान्यो छे; परंतु छपायेल अने लखेल पुस्तकनो उपर्युक्त आधारपाठ विचारता ते योग्य लागतो नथी. वि. सं. १३८७ बराबर संभवे छे. जे प्रकट थइ गयेल छे. तपागच्छीय जिनसुंदरसूरिनो सं. दीपालि-कल्प, वि.सं. १४२३ मां रचायेल होइ आ पछीनो छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जिनप्रभसूरि अने आकाशमां छुपाई गयो जणाय छे. ' आवी रीते राजावडे गुरु(. जिनप्रभसूरि )ना गुणोनी वर्णना( प्रशंसा ) कराइ रही हती, तेज वखते दोलताबादथी आवेला अवसरना जाण ताजलमलिक्के भूमितल पर. भालपट्ट लगाडी विज्ञप्ति करी के--" महाराज ! ते महात्माजी (जिनप्रभसूरि) त्यां (दोलताबादमां) छे, परंतु ते नगरना नीरने सहन न करी शकवाथी अत्यंत कृश शरीरवाळा थइ गया छे.' त्यार पछी गुरुना गुणोने संभारता भूमिनाथे एज मीरने आदेश आप्यो के-'मलिक! जल्दी जइने दुवीरखाने फरमान लखाव अने त्यां तेवी सामग्री साथे मोकलाव के भट्टारक फरी अहिं आवे.' त्यार पछी तेणे ( मलिके ) तेवीज रीते करीने फरमान मोकल्यु. अनुक्रमे दोलताबाद दीवान पासे पहोंच्यु. नगर-नायक कुतूहलखाने भट्टारकने विनयपूर्वक दिल्लीपुर प्रति प्रस्थान करवानुं पातशाहर्नु आवेलुं फरमान जणाव्यु. त्यारपछी ७ (१०) दिवसमां सज्ज थइ जेठ शु. १२ ना राजयोगमा संघ-सार्थिकोनी परिषधी १ इतिहासनां पुस्तकोमा जेने क्युत्लघखान मलिक क्यामुदीन नामथी ओळखाव्यो छे, ते न आ नणाय छे. (विशेष परिचय माटे जओ--केम्ब्रीज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया वा.३ पृ.१३०, १५४, १५६, १६५) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] [४७ owww.mvww.~ ~ ~ ~~ ~ ~ ~ ~~ ~~ ~ ~ ~ ~ - ~ प्रयाण अनुगमन कराता गुरुजी (जिनप्रभसूरि) अल्लावपुरमां, मोटा आडंबरपूर्वक चाल्या. अनुक्रमे उपद्रव-निवारण स्थान स्थानमां सेंकडो महोत्सवो प्रकट करावता, विषम दुःषम काळना दर्पने दळता, बच्चे आवता सकळ देशोना मनुष्योनां नयनोने कुतूहल उपजावता, धर्मस्थानोनो उद्धार करता, दूरथी उत्कंठित धईने सामे आवता आचार्य-वर्गवडे वन्दन कराता गुरुजी राजानी भूमिना भूषणरूप अल्लावपुर दुर्ग (अलीगढ ?) पहोंच्या. तेवा प्रभावनाना प्रकर्षने न सही शकता असहिष्णु म्लेच्छोए विप्रतिपत्ति करी हती, ते जाणीने तेज गुरुना उत्तम शिष्य, गुरु-गुणोथी अलंकृत अने राज-सभाने शोभावनार जिनदेवमूरिए सुलतानने विज्ञप्ति करी; सुलताने बहुमानपूर्वक सामे फरमान मोकली मलिक मार्फत सार्थिको (साथेनां माणसो)नी सघळी वस्तुओ पाछी अपावी हती. एवी रीते विशेषताथी जिन-शासननी प्रभावना करता सूरिजीए दोढ मास रहीने अल्लावपुरथी प्रस्थान कर्यु हतुं. धरणीनाथे( पातशाहे ) फरी पाछा सिरोह नामना महानगरमांसामे मोकलावेलां अति कोमळ सिरोहमां अने कुमाशवाळां देवदूष्यप्राय दस सत्कार वस्त्रोवडे सूरिजी सत्कृत थया हता. अनुक्रमे सूरिजी हम्मीरवीर( महम्मद तघलक)नी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] [ जिनप्रभसूरि अने राजधानीना परिसर -- प्रदेशमां पहोंच्या. आ तरफ लांबा वखतथी पुष्ट थयेला भक्ति - रागवडे सामे आवेला अने मात्र दर्शनथी पण जाणे अमृतकुंडमां न्हाया होय तेम पोताना आत्माने धन्य मानता आचार्य, यति-संघ अने श्रावकोना समूहथी परवरेला युगप्रधाने भादवा शु. २ ने दिवसे राज - समाने शोभावी. ते वखते अतिशय आनन्दित थयेली आंखोवडे अभ्युत्थान आचरता होय तेवी रीते धरणिराज महम्मद पातशाहे कोमल वाणीथी कुशलप्रवृत्ति पूछी. स्नेहपूर्वक गुरुजीना हाथने चुब्यो . अने अत्यंत आदरपूर्वक पोताना हृदय पर धर्यो. गुरुजीए तत्क्षण नवीन रचेल काव्यवडे आशीर्वाद आप्यो. एथी नरेश्वरनुं मन चमत्कार पाम्युं अने महोत्सवपूर्वक विशाल पोसहशालाए मोकल्या. महीनाथे गुरुजीनी साथे जत्रा माटे प्रधान पुरुषोने, हिंदु राजाओ ने अने दीनार विगेरे मोटा मलिकोने आज्ञा करी. लांबा वखतथी उत्कंठित थयेला सेंकडो, हजारो श्रावक लोको प्रणाम करता हता. लांबा वखतथी दर्शनातुर थयेला नगरना लोको आवी मळ्या. प्रकृति ( राज्यना प्रधान अधिकारीओ ) अने देशना मनुष्यो कुतूहळथी एकठा थया. त्यारपछी बंदीना समूहवडे बिरुदावलीथी स्तवाता अने राजाए प्रसादित करेल भेरी, वेणु, वीणा, मर्दल, मृदंग, पटु पटह, यमल, शंख, भृंगल विगेरे घणा प्रकारनां विपुल वाद्योना ध्वनिवडे दिशाओना अन्तरालने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com दिल्लीमां सूरिनुं स्वागत Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] वाचाळ बनावता, विप्रवर्गवडे वेदध्वनिद्वारा स्तवाता तथा गंधर्वोवडे अने सुभग-सधवाओथी मंगल-गीतवडे गवाता सूरिजी 'सुलतान-सराई । पोसहशालाए पहोंच्या. संघना पुरुषोए वर्धापन-महोत्सवो कर्या. भादरवा शु. ३ ने दिवसे सकळ संघे श्रेष्ठ महोत्सव करीने श्रीपर्युषणा-कल्पवंचाव्यो. आगमनपर्युषणामां प्रभावनाना लेखो स्थाने स्थानमा पहोंच्या. प्रभावना- सकळ देशना संघो रंजित थया. राजाना सत्कर्तव्यो बंदी तरीके बंधायेला अनेक श्रावकोने लाखोना राजदेय(दंड, कर)थी मुक्त कराव्या. अने इतर लोकोने करुणावडे केदखानामांथी मुक्त कराव्या. अप्रतिष्ठित थयेलाओने प्रतिष्ठा आपी-अपावी. अनेक प्रकारे जैनधर्मनी प्रभावना करी-करावी. एवी रीते नित्य राज-समामां जवाथी तथा पंडितो अनेवादीओना वृंद पर विजय मेळववाथी प्रभावना प्रवर्ततां अनुक्रमे वर्षारात्र-चोमासु वीत्युं. अन्यदा फागण मासमा दोलताबादथी आवती मगदूमई १ सुलताननी मातानुं नाम आ सिवाय अन्यत्र वाचवामां आवतुं नथी, परंतु तेणी घणी दयालु, दानेश्वरी, उदार अने विवेकिनी हती. तेणीनुं मरण थयुं त्यारे फक्त सुलतानने ज नहि, प्रजाजनोने पण घणुं दुःख थयुं हतुं; कारण के ए सद्गुणी राज-माताना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] [ जिनप्रभसूरि अने ___ जहां नामनी पोतानी जननी सामे चतुरंग सुलताननी मा- चमू साथे सज्ज थई जतां सुलताने अभ्यताना सन्मानमां र्थना करी गुरुजीने पोतानी साथे चला व्या. वडथूण( १) स्थानमां महाराजे जननीने भेटी सर्वने महादान आप्यु. प्रधान विगेरे सर्वने वनोनी पहेरामणी करी. अनुक्रमे महोत्सवमयी (ध्वजा-पताकाथी शणगारेली ) राजधानीमां पहोंच्या. वस्त्रो, कपूर विगेरेवडे गुरुजीनुं सन्मान कयु. चैत्र शु. १२ ने दिवसे राजयोगमां महाराजानी अनुम तिथी( रजा लइ ) पातशाहे आपेल दीक्षा विगेरे साइबाणनी छायामां नंदी करी, त्यां पांच कर्तव्यो शिष्योने दीक्षित कर्या. मालारोपण, सम्यक्त्वारोपण विगेरे धर्मकृत्यो को. थिरदेवना नंदन ठ. मदने ( बंभदत्ते ) वित्त वावयु. आषाढ शु. १० ने दिवसे नवां करावेलां १३ विबोने ___महोत्सवपूर्वक प्रतिष्ठित कर्यो. तेमां जैनबिंब- बिंब करावनाराओए अने खास करीने प्रतिष्ठा साह म(स)हराजना पुत्र अजयदेवे बहु वित्त वापयु हतुं. प्रभावे अनेक लोको गज-प्रकोपथी बची गया हता [जूओ केम्ब्रीज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया वॉ. ३, पृ. १६. ]. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] [ ५१ अन्यदा 'गुरुजीने दूरथी हमेशां पासे आववामां कष्ट छे. ' एम विचारी सुलताने खुद पोते ज सुलताने समर्पल पोताना प्रासाद( महेल ) पासे शोभतां भट्टारकसराईमां भवनोवाळी अभिनव(नवी) सराई आपी. प्रवेशोत्सव श्रावक-संघने त्यां वसवा माटे फरमाव्यु. खुद सुलताने तेनुं 'भट्टारक-सराई' एवं नाम कयु. पातशाहे त्यां ज वीर-विहार अने पोसह-शाला करावी. त्यारपछी वि. सं. १३८९ वर्षे आषाढ वदि ७ ने दिवसे सुमुहूर्ते महीपतिए फरमावेल गीत, नृत्य, वाद्य विगेरे विभूतिद्वारा प्रकट कराता असाधारण महान् उत्सवपूर्वक, खुद सुलतानवडे अपाता महादानपूर्वक, मंगल-गीत गवातां भट्टारके( जिनप्रभसूरिजीए) पोसहशालामा प्रवेश कयों. प्रीतिदानवडे विद्वानोने संतुष्ट कर्या हता. दानद्वारा दीन, अनाथ आदि लोकोनो उद्धार को हतो. ते पछी [वि. सं. १३९० मां ] मागशिर मासमां पूर्व दिशा तरफ जय-यात्रा माटे प्रस्थान १ ईस्वी सन् १३३३ [वि. सं. १३९०]मां महम्मद तघलके पूर्वदेशमा विजय-यात्रा माटे प्रयाण कर्यु हतुं, एम अन्यत्र उल्लेख मळे छे [जूओ केम्ब्रीज हिस्ट्रो ऑफ इन्डिया वॉ. ३, पृ. १४७-१४८ ]. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ] [ जिनप्रभसूरि अने मथुरा तीर्थनो करता महाराजाए ( पातशाहे ) सूरिजीने उद्धार वि. प्रार्थना करी पोतानी साथे चलाव्या हता. सूरिजीए ठेकाणे ठेकाणे बंदीमोचन विगेरे द्वारा जिनधर्मनी प्रभावना करावी हती. मथुरा तीर्थनो उद्धार कर्यो हतो; तथा दानादिवडे ब्राह्मणो, गरीबो विगेरेने संतुष्ट कर्या हता. ' नित्य प्रवासी गुरुजीने स्कंधावार ( लश्करी कूच )मां कष्ट थाय छे.' एम मानता महीनाथे हस्तिनापुर- ( महम्मदे ) खोजेजहां मलिक साथ सत्य यात्रा - फरमान प्रतिज्ञावाळा गुरुजीने आगरानगरथी राजधानी (दिल्ली) तरफ पाछा मोकल्या हता. हस्तिनापुरनी यात्रानुं फरमान लइ मुनिपति पोताना स्थानमां आव्या हता. १ जिनप्रभसूरिए विविध तीर्थोना कल्पोमां मथुरा - कल्प पण रच्यो छे [ जूओ ए. सो. बेंगाल प्रकाशित तीर्थ-कल्प पृ. ५९-६४ ]. २ महम्मद तघलकना मान्य एक प्रधान पुरुष तरीके प्रसिद्ध छे [ जूओ १३४. १४०, १४३, 4 ख्वाजाजहान् ' नुं नाम इतिहासमा बहु केम्ब्रीज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया वॉ. ३, प्र. १४८, १५२, १५८, १७२ ]. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] त्यारपछी चतुर्विध संघ मेळवी शाह बोहित्थने वाहड पुत्र साथे संघपतिनुं तिलक करी, आचार्य संघ साथे हस्ति- विगेरे परिवार साथे गुरुजीए शुभ मुहूर्ते नापुरमा प्रतिष्ठा हस्तिनापुरनी यात्रा माटे प्रस्थान कर्यु महोत्सव हतुं. संवपति बोहित्थे ठेकाणे ठेकाणे महोत्सवो कर्या हता. तीर्थभूमिए पहोंच्या, बद्धावणुं कयु. नवां करावेलां शांति, कुंथु अने अरजिननां १ जिनप्रभसूरिए संघ साथे आ यात्रा, शकाब्द १२५५ ( वि. सं. १३९० ) मां वैशाख शु. ६ ने दिवसे करी हती, ते वखते तेओए गज( हस्तिना )पुरनुं स्तोत्र रच्युं हतुं; तेना अन्तमा ए स्पष्ट सूचन कर्यु छे" इत्थं पृषत्क-विषयोर्कमिते शकाब्दे वैशाखमासि शितिपक्षगषष्ठतिथ्याम् । यात्रोत्सवोपनतः संघयुतो मुनीन्द्रः स्तोत्रं व्यधाद् गजपुरस्य जिनप्रभाख्यः ॥" -तीर्थकल्प [ का. प. ६४-६५ ] पिटर्सन रि. ४ था [ पृ. ९९ ] मां उपर दर्शावेल श्लोक टांक्यो छे, पण त्यां बाणवाची पृषक शब्द न समनायाथी पृथक [ थत्त्व ] एवो अशुद्ध पाठ छपाव्यो जणाय छे. उपकेशगच्छोय कक्कसूरिए वि. सं. १३९३ मां कंजरोट. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] [जिनप्रभसूरि अने बिंबोने गुरुजीए त्यां प्रतिष्ठित काँ अने अंबिकानी प्रतिमा स्थापी. संघपतिए चैत्य-स्थानोमां संघ-वात्सल्य विगेरे महोत्सवो कर्या हता अने संघे वस्त्र, भोजन, तांबूल विगेरे द्वारा याचकोना समूहने संतुष्ट कर्यो हतो. पुरमां रचेला नाभिनंदनोद्धार-प्रबंधमां जणाव्युं छे के-वि. सं. १३७१ मां शत्रुजयतीर्थनो उद्धार करनारा सुप्रसिद्ध समरसिंहे पातशाह(ग्यासुदीन)ना फरमानथी संघपति थइ घणा संघ-पुरुषो अने जिनप्रभसूरि साथे मथुरा अने हस्तिनापुरमा तीर्थ-यात्रा करी हती. जे समरने पातशाह ग्यासुदीने( तघलके ) पोताना पुत्र तरीके अने तेना पुत्र उल्ल[ग]खाने विश्वासपात्र पोताना भाइ तरीके स्वीकारी तिलंगदेशनो स्वामी( सूबो ) बनान्यो हतो; अने जे समराशाहे सुलतान( ग्यासुद्दीन तघलक )ना बंदी बनेला पांडु( पांड्य ) देशना स्वामी वीरवल्ल ( वीर बल्लाल ) राजाने पातशाह पासेथी मुक्त करावी, पुनः तेने तेना देशमा स्थपावी राज-संस्थापनाचार्यता उपार्जी हती. जेणे तुर्कोथी बंदी तरीके पक. डायेल लाखो मनुष्योने मुक्त कराव्या हता, अनेक राजा-राणाओ अने व्यवहारियो पर पण अनेक वार उपकार कर्या हता, जेणे सर्व देशोमांथी बोलावी श्रावकोना कुटुंबोने तिलंगदेशमा स्थापी, उरंगलपुरमां जिनालयो करावी जैनशासननुं महत्व वधायुं हतुं. आमां सूचवेल उल्लगखान, ए प्रस्तुत लेख साथे संबंध धराShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] [ ५५ यात्राथी, आवतां ज गुरुजी ( जिनप्रभसूरिजी ) ए वैशाख शु. १० ना दिवसे सकळ दुरित अने महावीर - बिंबनी विघ्नो दूर करनार ते ज श्रीमहावीरना पुन: स्थापना बिंबने साहिराजे (पातशाहे) करावेला विहार ( जैन मंदिर ) मां श्रेष्ठ महोत्सवपूर्वक स्थायुं इतुं, त्यारथी ते संघद्वारा विशेष प्रकारे पूजाय छे. दिग्विजय यात्राथी महाराज ( पातशाह) पाछा आवतां चैत्यमा अने वसतिमां उत्सवो प्रवर्ते छे. सार्वभौम उत्तरोत्तर मान आपीने गुरुजीनुं सन्मान करे छे. दरेक दिशामां सार्वभौमना प्रभावक श्रेष्ठ यशः पटहो वागे छे. शक - सैन्यवडे दिक्- चक्र पराभव पामवा छतां पण खरतरगच्छना अलंकाररूप गुरु ( जिनप्रभपातशाही फर- सूरि ) ना प्रसादथी राजाधिराजे आपेल मानथी जैन फरमान हाथमां राखनारा श्वेतांबरो अने समाज अने दिगंबरो सर्व देशोमां उपसर्ग विना विचरे जैन तीर्थोमां छे. गुरुजीए फरमान ग्रहण करीने श्री निर्भयता शत्रुंजय, गिरनार तथा फलोधी विगेरे तीर्थोंने अकुतोभय - निर्भय कर्या छे. वनार महम्मद तघलक जणाय छे. जूओ केम्ब्रीज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया [ वॉ. ३, पृ. १२९-१३४ ] हस्तिनापुरमा पोते करेली आ प्रतिष्ठा वि. सं. १३९० मां www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [जिनप्रभसूरि अने ए विगेरे कृत्योवडे पालित्तसूरि, मल्लवादी, सिद्ध सेन दिवाकर, हरिभद्रसूरि, हेमचंद्रमरि प्रभावक जिन- प्रमुख पूर्वपुरुषोने उद्योतित कर्या-दीपाप्रभसूरिना प्रभा- व्या छे. बहु कहेवाथी शुं ? सूरि-चक्रवथी प्रवर्तेला वर्ति(जिनप्रभसूरि)ना गुणोथी सुलतान धार्मिक महो- आवर्जित(अनुकूळ-अनुरागी) थतां सकळ त्सवो धर्म-कार्योना आरंभो प्रकट रीते प्रवर्ते छे. प्रतिप्रभाते चैत्यो अने वसति(उपाश्रयो मां यमल-शंखो वागे छे. ___ वीर-विहारमा धार्मिकोवडे मर्दल, मृदंग, भंगल, ताल विगेरे वाद्योनी गंभीर ध्वनि साथे प्रेक्षणकोथी सारभूत महापूजाओ कराय छे. श्रीमहावीरनी आगळ भव्यलोकोवडे उद्ग्रहण करावातो(उखेवातो) कपूर अने अगरना परिमलनो उद्गार(सुवास), दिक्चक्रने सुवासित करे छे. हिंदुओनां राज्यमां जेम होय तेम, दूषम-सुषमकाळ(चोथा आरा)नी जेम; अनार्यराज्यमां पण अने दूषमकाळमां पण जिन-शासननी प्रभावनामां परायण जैन मुनिओ स्वेच्छाए संचरे छे एटलुंज नहि, इतर पांचे दर्शनवाळा, परिवार साथे थयेली होइ, ते पहेलां वि. सं. १३८२ मां पूर्ण करेल तीर्थकल्पमा सूचवेला हस्तिनापुर-तीर्थकल्पमा ए वर्णन न आपी शके ए समनी शकाय तेम छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] [ ५७ गुरुजीना पादपीठमां किंकरोनी जेम आळोटे छे. प्रातीच्छकोनी जेम गुरुजीना वचनने स्वीकारे छे. आ लोक अने परलोकना कार्यना अभिलाषी परतीथिको(अन्यधर्मीओ) गुरुजीना दर्शन माटे उत्सुक थइने निरंतर वसतिना द्वारदेशने सेवे छे. राजानी अभ्यर्थनाथी गुरुजी हमेशां राज-सभामां जाय छे. बंदि-वर्गने मुक्त करावे छे. महासुलताननी सभा- पुरुषोना चरितने आचरता, सुचारित्रने मां सूरिजीनो पाळनारा सूरिजी, जिनवचनने अनुसरतां वचन-प्रभाव युक्तियुक्त वचनोवडे निरंतर राजा (सुलतान)ना मनमां मोटुं कुतूहल उपजावे छे. पगले पगले प्रभावना प्रवर्ते छे. गंगा-जळ जेवा स्वच्छ चित्तवाळा सूरिजी पोतानी यश-चंद्रिकावडे दिशाओना अंतराल(मध्यभाग)ने धवल-उज्ज्वल करे छे. पोतानां वचनामृतोवडे जीवलोकने उज्जीवित करे छे.स्वदर्शनी अने परदर्शनीओ समग्र व्यापारोमा गुरुजीनी आज्ञाने शिर पर स्थापी वहन करे छे. युग-प्रधान आचार्य(जिनप्रभसूरि). अनन्यसाधारण शैलीवडे स्व-पर-सिद्धान्तनुं व्याख्यान करे छे.. आवा प्रकारना प्रकट रीते अनुभवाता, नित्य प्रवर्तता ___ प्रभावनाना प्रकों, अल्पमतियोवडे केटउपसंहार लाक कही शकाय ? मात्र ‘आ सूरिवर करोडो वर्ष जीवता रहो अने लांबा वखत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [जिनप्रभसूरि अने सुधी श्रीजिन-शासननी प्रभावना करो.'' श्रीजिनप्रभसूरिना गुणोनी आ लेश स्तुति, प्रभावनाना अंगरूप छे-एम विचारी कनाणय-वीरकल्पना परिशेषमां कहेवामां आवी छे. " १ आ कथन, जिनप्रभसूरिजीना जीवितकालमां उच्चरायु होय, एम विचारतां जणाय छे. २ तपागच्छना पं. शुभशीलगणिए वि. सं. १५२९(१)मां रचेला पंचशतीप्रबंध-कथाकोश(ह. प्रति)मां जणाव्युं छे के-" एक वखते सुलताने कान्हड गाम भांग्युं. त्यांनी वीरनी प्रतिमाने लावीने यवनोए दिल्लीमा मसीतने बारणे पगथियाने ठेकाणे राखी हती. त्यारपछी एक वखते सुलतान, सूरिना खभा पर हाथ राखता जेटलामां मसीतमा प्रवेश करे छे; तेवामां मूरि, वीग्नी प्रतिमाने जोइने एक तरफ ऊभा रह्या. त्यारे सुलतान बोल्या के' एम केम कयु ?' जिनप्रभसूरिए का के-'प्रभु ! देव छे.' सुलतान बोल्या के-'आ भूत शुं जाणे ?, कंइ नहि.' सूरिए का के- आ देव सत्यवादी ज्ञानी छे.' राजा बोल्या-'तो बोलावो.' सूरिए कह्यु के-' स्वामिन् ! ज्यारे भूतनुं स्थानक उपदेश माटे करावाय, त्यां मंडावाय, पूजाय, त्याग्पछी पूछाय, त्यारे पूछेलु कहे.' त्यारपछी स्वामिए(पातशाहे) देवगृह(मंदिर) कराव्यु. ज्यारे प्रतिमा न उपडी त्यारे सूरिए कह्यु के-' तमे हाथ लगाडो, जेथी उठे.' त्यारपछी तेवी रीते कार्य करता ते प्रतिमाने देवालयमां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [ ५९ [३] जिनप्रभसूरिनां चमत्कारी वृत्तान्तो. पीरोज सुलतान पर प्रभाव. जिनप्रभसूरि पछी लगभग पोणोसो वर्ष पछी थयेला, तपागच्छना पं. सोमधर्मगणिए वि. सं. १५०३ मां रचेली सं. उपदेशसप्ततिमां जिनप्रभसूरिना केटलांक चमत्कारी वृत्तान्तोनुं सूचन कयु छे; त्यां महम्मद सुलतानने बदले पीरोज सुलताननुं नाम जणाव्युं छे " कलियुगमां केटलाक सूरिओ, जिन-शासनरूपी भवनमां दीवा जेवा थइ गया; आ विषयमां, म्लेच्छपतिने प्रबोध करनार जिनप्रभसूरिनुं निदर्शन(दृष्टांत) कहेवाय छे-- __पद्मावतीथी वरदान प्राप्त करनारा, राज-मान्य जिनप्रभसूरिजी [वि. सं. ]१३३२ वर्षमां थइ गया. एक वखत स्थापी, श्रेष्ठ भोगवडे पूजावीने बच्चे वस्त्र बंधावतां राजा जे जे संबंधी पूछे तेना तेना उत्तर आपती हती. २१ प्रिय ह्यां. सुलतान हर्षित थयो. शंकाथी वख दूर करतां पण ते ज प्रमाणे कडं; तेथी विशेष करीने वीर ए प्रमाणे ख्याति थइ. ____ए प्रमाणे कान्हडा महावीरने स्थापन करवामां जिनप्रभा. चार्यनो संबंध दर्शाव्यो." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] [ जिनप्रभसूरि अने तेओ योगिनीपुर (दिल्ली ) मां चोमासुं रह्या हता; के ज्यां राजा पीरोज सुलतान विराजे छे. ते नगरमां एक वखते उपद्रव करनारा म्लेच्छोने, तेओए ( जिनप्रभसूरिए ) डोक मरडीने तेने साजी करवी विगेरे प्रकारोथी शिक्षा करी हती. विश्वने विस्मय करनारा ते वृत्तान्तथी ते आचार्य, राजाथी लइ गोपाळपर्यन्त जगत्मां विख्यात कीर्तिवाळा थया. राजावडे बोलावायेला ते आचार्य, प्रतिदिन धर्म - कथनपूर्वक अवसरोचित वाक्योवडे ते राजाने प्रसन्न करता हता. ते राजा विजययंत्रनो आम्नाय पूछयो. सूरिए तेने कां के-ते तेवाओनो विषय नथी. ' हे विजययंत्र - महिमा यंत्र होय नहि अने राजन् ! जेनी समीपमां आ तेने देवता अत्र पण लागे रोषवडे रातो थयेलो पण वेरी करी शके नहि. ' ए प्रमाणे सांभळ्या पछी राजाए ते यंत्र करावीने परीक्षा माटे एक बकराना कंठ पर बंधाव्यो. तेणे तेने पीडा १ महम्मद तलक पछी दिल्लीनी गादीए आवनार पीरोजशाहनो राज्य - समय वि. सं. १४०७ थी १४४४ मनाय छे. जिनप्रभसूरिजी तेना राज्यअमलमां विद्यमान होवानुं शंकित छे. एथी आ वर्णवेळ घटना महम्मद तघलकना राज्यकालमां-पीरोज तघलकना युवराज - कालमां संभवे छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सुलतान महम्मद. ] [३१ मृकावेला तरवार विगेरे अस्त्रोना प्रहारो, बख्तर धारण करेल होय तेम तेना शरीरे लागता न हता. ए विजययंत्रने छत्रदंड पर बांधीने, तेनी नीचे उंदर राखीने कौतुकी ते राजाए बिलाडीने प्रेरी-हकारी हती. ते उंदरने जोवा मात्रथी वैर उत्पन्न थवाथी तेना तरफ दोडी, पासे रहेलाओए तेने प्रेरी, तो पण ते ( बिलाडी) ते विजययंत्रवाळा छत्रनी छायामां आवी नहि. ए बंने अद्भुत जोइने ते राजाए ताम्रमय( तांबानां) बे यंत्रो करावीने तेमांथी एक यंत्र पोतानी पासे रखाव्यु, अने एक पूज्य गुरुजीने भेट कयु; केमके सज्जनो उपकार कदापि भूलता नथी. त्यारपछी आ राजा, स्थान, यान, घर, गाम, सभा, विजन ( एकांत ) के वनमा क्यांय गुरुजीने मूकतो नहि ( साथे ज राखतो हतो.) एक वखते सुलताने, गुजरातमा जवानी इच्छाथी गाम नी बहार एक वडनी नीचे प्रस्थान कर्यु वडनुं चालवू हतुं. शीतळ, लीली छायावाळा विशाळ १ ही. र. कापडियाए मेरु० चतु० स्तुतिनी भूमिका[ पृ. ४५ मां जणाव्यु छ के-' तेमणे म्लेच्छोना आक्रमणथी पीरोज सुलतान( पीरोजशाह ? )नुं केवी रीते विजययन्त्रद्वारा ग्क्षण कयु xx चोरेली साधुनी सिक्किका(?)नी पुनः प्राप्ति xx' आवो आशय उपदेशसप्ततिमांथी केवी रीते काढयो, ते समजी शकातुं नथी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२] [जिनप्रभसूरि अने ते वडने वारंवार जोतां सुलताने गुरुजीने हृदयमां रहेलु पूज्यु के-'सूरि ! आ वड सारो छे.' तेना मनना भावने जाणनारा सूरिजी पण बोल्या के- जो तमारी चाहना होय तो आ वडने साथे चलावीए. राजाए ते स्त्रीकारतां राजा चाल्यो त्यारे ते वड पण मूरिना प्रभावथी सेवकनी जेम चालवा लाग्यो. ते वडने चालतो जोइ लोको प्रफुल्लित आंखोवाळा थइ पगले पगले सूरीन्द्रनी अने नरेन्द्रनी प्रशंसा करता हता. केटलोक मार्ग ओळंग्या पछी राजाए गुरुजीने कयु के-' आ वडने विसर्जन करो. आने बहु फेरो थयो. ' सूरिजीए वडने कह्यु के- राजाने नमीने तुं स्व-स्थानमा जा. ' वडे पण सुशिष्यनी जेम तेवी ज रीते कर्यु. राजा ज्यारे मरुस्थली( मारवाड )मां आव्यो, त्यारे १ तपागच्छना पं. शुभशीलगणिए वि. सं. १५२९ (?) मां रचेला पंचशतीप्रबंध-कथाकोश[ ह. लि. प. १ मां सूचव्यु छे के-" एक वखते सुलतान गरमीनी ऋतुमां नगर बहार वडलाना झाड नीचे रहा हता. छायावाळा ते वृक्षने जोइ जिनप्रभ आगळ बोल्या के-' जो आवा प्रकारनी शीतळ छाया साथे आवे तो अत्यन्त सुख थाय.' त्यारपछी सूरिए कह्यु के-' वृक्ष साथे आवशे.' त्यारपछी सुलतान चालतां ते झाड पण सांझ सुधी चाल्यु. पाछळ स्थान जोयुं, त्यां न जणायु. पछी वृक्ष (वड)ने विसर्जित कर्यो, पोताने ठेकाणे गयो. राजा चमत्कार पाम्यो." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [६३ त्यांना नगरजनो भेटणां हाथमां लइने ठेकाणे ठेकाणे सामे आवता हता; तेमने सामान्य वेषवाळा जोइने राजाए ते गुरुजी (जिनप्रभसूरि )ने पूछयु के-' आ लोको लुटायेलानी जेम आवा प्रकारना कम जोवामां आवे छे ? ' [मूरिजीए जणाव्यु के-राजन् ! देशना आचारथी अने घणा द्रव्यना अभावथी अहिं प्राये आवा प्रकारना लोको होय छेबीजं कई कारण नथी. त्यारपछी प्रत्येक नर दीठ दिव्य पांच पांच वस्त्रो अपाव्यां अने प्रत्येक स्त्री दीठ सोनाना बब्बे टंका (चलणी नाणुं ) अने साडी अपांवी. ए प्रमाणे मेघनी जेम लोकनी आशाने पूर्ण करता [जिनप्रभमरि ] अनुक्रमे पत्तन (पाटण ) पासे जवराल नामना मोटा नगरे पहोंच्या. त्यां पहेलेथी तपापक्षना सोम १ त. शुभशीलगणिए कथाकोश[ ह. लि. प. २ मां जणाव्यु छ के-" एक वखते सुलतान, मरुस्थली( मारवाड )मां आव्यो हतो. ज्यारे गामडानी नारीओ अक्षत( चोखा) आणी वधावा लागी, त्यारे सुलताने धन आपीने कधु के-'स्त्रीओ आभरणथी रहित केम जोवामां आवे छे ? कोइवडे लुटाइ छ ? अथवा दंडाइ छ के शुं !' मूरिए कह्यु के-'आ मरुस्थली रुक्ष अने धनहीन छे.' त्याग्पक्छो सुलताने प्रत्येक खो दीठ सो सो दीनार (सोनामहोर ) आपी जुहार कयों." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] [ जिनप्रभसूरि अने प्रभसूरि हता, तेमने मळवा माटे सूरिजी ( जिनप्रभ ) नगरमां गया. त्यां सोमप्रभमूरिजीथी अभ्युत्थान, आसन विगेरे द्वारा बहु मानित थयेला जिनप्रभसूरि तेमना प्रत्ये बोल्या के - 'तमे आराध्य छो, के जेमनी आवा प्रकारनी क्रिया छे. ' तेओ ( सोमप्रभरि ) पण प्रत्युत्तररूपे बोल्या के -' प्रभो ! अमारी प्रशंसा शी करवानी होय ?, तमे धन्य छो, के जेना आधारे जिन - शासन जागे छे. ' ए प्रमाणे प्रीतिपूर्वक ते बंने आचार्यो ज्यारे परस्पर वात करता हता, तेत्रामां शालामां जे कौतुक थयुं ते कहेवामां आवे छे' एक साधुनी सिक्किका ( सीकली ) ने उंदरे विनष्ट करी हती, ते मुनिए गुरुजीनी आगळ आवीने राव करी. ते वखते जिनप्रभसूरिजीए विद्याओवडे आकर्षेला, शालानी अंदरना सर्व उदरो उपस्थित थया. म्हों ऊंचेथी नमावी, बे हाथ (आग - ळना बे पग ) जोडी भय-भीरु ते उंदरो विनीत शिष्योनी जेम गुरुजीनी आगळ ऊभा रह्या. [जिनप्रभसूरिजीए कह्युं के ] ' हे उदरो ! सांभळो, जे कोइ अपराधी ( गुन्हेगार ) होय, ते रहो अने बीजा बधा जाव, स्वेच्छापूर्वक हरो-फरो. 'ए प्रमाणे आचार्य ( जिनप्रभसूरि ) ना वचनने सांभळी सघळा उदरो त्वराथी पग उपाडता कूदीने गया अने एक तो चोरनी जेम आगळ रह्यो. सूरीन्द्रे तेने पण कहां के -' डर नहि, धीरता धारण कर. अमे साधुओ छीए, कोइने पण पीडा करता नथी. ' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] एम कहीने तेने पण शालामाथी बहार काढ्यो. ए विगेरे कौतुकोवडे तेओए (जिनप्रभसरिजीए ) साधु-वर्गने पणा वखत सुधी प्रसन्न कर्यो हतो.' १ जिनप्रभसूरि-प्रबंध( व. का. )मा जणाव्युं छे के " गामनी सीममा श्रेष्ठ शोभावाळा आंबाना झाड नीचे गया पछी सुलताने सूरिजीने कयु के-' आ वृक्षनी छाया केवी सारी छ ।' त्यार पछी ते वृक्ष साथे चाल्यो हतो. बीना प्रयाणमां राजाए सूरिने कह्यु के-'आ आगळथी साथे शा माटे आवे छे ?' सूरि'तुम्हारी मया हुइ तो पाछळ वधावणुं करे' जि. प्र. (व.का.)-मार्गमां सुल.-' आस्त्रीओ आभग्णो, श्रेष्ठ वेष, पट्टकल वि.थी रहित केम जोवामां आवे छे १ शुं कोइए लूटी दंडी छे के शु ? ' मं.-' आ देश निद्रव्य छे, तेथी एवा वेषवाळी वे.' त्यार पछी सुलताने प्रत्येक स्त्री दीठ पांच पांच सोनाना टंको भाजनमां नाखी सर्वने जोहार कर्या. पाटण सुधी सघळा य मार्गमां एवी रीते कयु.” जि. प्र. ( व. का. ) मां जणाव्युं छे के-" सैन्य जंघरालमा बहार उत£. जिनप्रभसूरि गाममा तपापक्षना पूज्य सोमप्रभसूरिजीनी पोसहशालामां उतर्या. सोमप्रभमूरिए जिनप्रभसरिनी प्रशंसा करी के- भगवन् ! तम्हारा प्रसादे करीने जिनधर्म जयवंत वर्ते छे.' त्यार पछी जिनप्रभसरिए का के-' अम्हे अत्यंत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [जिनप्रभसूरि अने अविरती बीए. सुलतानना सैन्य साथे प्रतिदिन परवश तरीके जवाय छे. अम्हे तम्हारा पगनी रज सरखा पण नथी. हालमां चारित्र तम्हारा आधारे छे.' तेवामां साधुओए प्रतिलेखन करवा माटे सिकिका (झोळी) उतारी. एक साधुनी सिक्किकाने उंदरे करडेली जोइ जिनप्रभसूरिए रोहरण भमाडीने कमु के-सघळा उंदरो अहिं आवो. तम्हारामांथी जेणे सिक्किका करडी होय ते रहो, बीजा जाओ. एक रमो, बीजा गया. तेने देश-त्याग कराव्यो. ते प्रतोली( पोळ) मूकी बीजे गयो." अहिं सूचवायेल जंघराल स्थान, ऐ. दृष्टिए महत्त्ववाळु जणाय छे. अणहिलवाड पाटणमां भीमदेवर्नु राज्य हतुं, ते समयमां-वि. सं. १२९५ मां दीशापाल आम्नाय( डीसावाल ज्ञाति )ना वीर नामना सुश्रावके जगचंद्रसूरि( तपागच्छाधार )ना वचनश्रवणथी ज्ञातासूत्र विगेरे अंगोनी ताडपत्रीय प्रति लखावी हती; जेनुं आ जंघराल स्थानना युगादिनिन-मंदिरमा देवेन्द्रसूरिए वि. सं. १२९७ मां संघ आगळ व्याख्यान कर्यु हतुं (जे ताड प्रति खंभातमां प्राचीन शांतिनाथजी जैन भंडारमा विद्यमान छे). उपर्युक्त सोमप्रभसूरिजीनो जन्म वि. सं. १३१० मां, दीक्षा वि. सं. १३२१ मां, सूरिपदप्रतिष्ठा वि. सं. १३३२मां अने स्वर्गगमन वि. सं. १३७३मां थयुं हतुं. आ सोमप्रभसूरिना पट्टने शोभावनार सोमतिलकसूरिने आचार्यपद वि. सं. १३७३मां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] [६७ सूरिजी( जिनप्रभसूरि )ना उपदेशवडे त्यारशत्रुजयमां पछी सुलतान, सैन्य अने संघ साथे रायणथी दूध शत्रुजय पर्वत पर गयो हतो. त्यां ते वरसावq. वखते संघपति तरीकेनां कृत्यो करनारा जंघरालनगरमां वीर-जिनालयमां, त्यांना संघपति गजे २५००० टकोना व्ययद्वारा करेला महोत्सवपूर्वक प्राप्त थयुं हतुं-एम मुनि. सुंदरसूरिनी वि. सं. १४६६ मां रचायेली गुर्वावली [ य. वि. पं. श्लो० २६६, २७२-२८४] विगेरे परथी जणाय छे. तपोटमतकुट्टनशतक (वडोदरामां प्राच्यविद्यामंदिरमा तथा आत्मारामजी जैन ज्ञानमन्दिरमा ह. लि. प्रति ) जेवी कृति रची तपागच्छना तत्कालीन साधुओ प्रत्ये गमे ते कारणे वैमनस्य दर्शावनार जिनप्रभसूरि, तपागच्छना उपर्युक्त आचार्य सोमप्रभसूरिने प्रीतिपूर्वक मळया होय तो खुशी थवा जेतुं छे; परन्तु बीजी रीते विचारतां ए घटना शंकास्पद लागे छे. वि. सं. १३३२ मां सूरिपद प्राप्त करनार सोमप्रभसूरिनो स्वर्गवास वि. सं. १३७३ मां थयेल होवार्नु तपागच्छ-पट्टावली विगेरे साधनोथी जणाय छे. तथा महम्मद तघलक वि. सं. १३८१ मां दिल्लीना तख्त पर आरूढ थयानु, तथा जिनप्रभसूरिए तेनी प्रथम मुलाकात वि. सं. १३८५ मां कर्यानुं विश्वस्त साधनो द्वारा पहेलां (पृ. २३, ३२) सचवाई गयुं छे. अन्य साधनो द्वारा सुलतान महम्मद तघलकनुं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जिनप्रभसूरि अने ६८ ] राजा पर सूरिए रायण झाडथी दूध वरसाव्युं हेतुं. गुजरातमां आगमन वि. सं. १३९० पहेलां थयुं होय तेम जणातुं नथी. ए सर्वनो विचार करतां सोमप्रभसूरिना पट्टधर सोमतिलक सूरि साथे जिनप्रभसूरिनो समागम संभवे छे. १९२१ मां रचेला पंच १ त. शुभशीलगणिए वि. सं. शतीप्रबंध कथाकोश[६. लि. कथा ९] मां मणान्युं वे के" एक वखते सुलतान बोल्या- ' जेवी रीते चमत्कारी तीर्थ कान्हड महावीर छे, तेवी रीते बीजुं पण कोइ छे १' त्यारपछी सूरिए शत्रुंजयतीर्थनुं व्याख्यान कर्यु. त्यारपछी संघ अने जिनप्रभसूरि साथै सुलतान शत्रुंजय गयो, त्यां तीर्थ जोइने ते क्यारे चमत्कार पाम्यो, त्यारे सूरिप कां के - 'आ रायणने जो मोतीओबडे वधाववामां आवे तो क्षीर ( दूध) झरे बे.' त्यारपट्टी तेम करवामां आवतां (रायणने मोतीओथी वधावतां ) रायण दूध झरी. राजाने संघपतिनो आचार कराव्यो. त्यां लखान्युं के- 'जे आ तीर्थनी अवज्ञा करशे, ते पातशाहनी अवज्ञा करे छे. ' श्यारपछी त्यां पाषाणोवडे ७ रेखाओ करावी. स्यारपछी नीचे उतरीने सर्व लोको प्रत्ये क के पोतपोताना देवने लावो. ' त्यारपछी लोको महादेव, विष्णु, ब्रह्मा, जिन विगेरे पोतपोताना देवमे लाव्या. राजा सर्व देवो मंडावीने पूछ के - ' आ वधा देवोम वृद्ध ( बडा ) देव कया छे ? ' ज्यारे लोको न बोल्या त्यारे जिनप्रतिमाने मुख्य स्थानमा बेसारीने हरि, ब्रह्मा विगेरेनी प्रतिमाओोने 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] ~ ~inr - ~ ~ ~-~ ~ - ~ गिरनारमां. रैवतक(गिरनार)मां पण एवी रीते गुरुजी साथे यात्रा करी सुलतान श्रेष्ठ उत्सवपूर्वक योगिनीपुर(दिल्ली)मां पहोंच्या हता. चोतरफ आसपास राखी अने पोते आसन पर बेसीने चोतरफ हथियार सहित सेवकोने स्थापीने सुलतान बोल्या के- कोण वृद्ध( बडो) कहेवाय ?' लोको बोल्या के-' स्वामी ज वृद्ध (बडा ) छे.' सुलताने का के-'जो एम ज थे, तो जिन, शस्त्रोथी रहित होवाथी वृद्ध( बडा ) छे अने हथियारवाळा सर्व सेवको छे.' त्यारपछी लोकोए कह्यु के-' प्रभु( पातशाह )नुं वचन प्रमाण छे.'" जि. प्र. ( व. का.)-" सुलताने सूरिजीने पूछयु के–' सर्व ‘पर्वतोमा मोटो पर्वत कयो ?' सूरिजीए शत्रुजय कह्यो. त्यां गया. स०-'आनो शो प्रभाव छे?' मूरि-'जे कोई संघपतिनो आचार करे तेना उपर दुधवडे झरे छे.' सुलतान तेम करी रायगना झाड नीचे रह्यो. सर्व तुरको अने वणिकोना उपर कंकू, केसर अने दूध वि. थी वृष्टि करी हती. सुलताने रंजित थइ सोनाना टंकाओथी थाळ भरावी गयणने वधावी हती." १त. शुभशीलगणिए कथाकोश[ह. लि. कथा१०]मां जणाव्युं छे के-" त्यारपछो सुलतान गिरनारगिरि पर गया हता. त्यां नेमिनाथनी अच्छेद्य अभेद्य प्रतिमा जाणीने घा-प्रहारो कर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] [ जिनप्रभसूरि अने .. AAAAA. एक वखते सुलतान, सभामां बेसीने मूरिजी साथे इष्ट अर्थने साधनारी प्रीति-गोष्ठी करता हता, अन्य प्रसङ्गो ते वखते त्यां तेनो कोइ गुरु आव्यो, तेणे गोष्ठी-विनोद माथा पर रहेली टोपीने आकाशमां निराधार राखी. मूरिए लकुट जेवा पोताना रजोहरण (ओघा)वडे ते टोपीने प्रहार करी पाडी नाखी अने ते(रजोहरण)ने त्यां राख्यु. आचार्ये तेने( सुलतानना गुरुने ) कह्यु के 'जो तारी कंइ पण शक्ति होय तो आ( रजोहरण)ने पृथ्वी पर पाड, नहि तो मौन रहे.' घणो वखत जवा छतां ते तेने पाडवामां समर्थ थइ शक्यो नहि. त्यारपछी गुरुजीए पोते ते ग्रहण कर्यु. ते( सुलताननो गुरु ) लजित थयो, लोकोथी हसायो. बीजे दिवसे पण एणे( सुलतानना गुरुए ) पाणीथी भरेला घडाने आकाशमां राख्यो अने ते बहु ज गर्व करवा लाग्यो. ते ज सरिए ( जिनप्रभसूरिए ) घडाने पण प्रहार करी खंड खंड कयों, छतां पाणीने तो पोतानी विद्यावडे त्यां ज थंभाव्यु. ते चमत्कार जोइने मात्र तेना एक गुरुने मूकी कया वाथी स्फुलिंग( अग्निना तणखा ) नीसरवाथी सुलताने प्रभुने प्रणाम करीने, खमावीने सोनाना [१०.] टंकाओवडे वधाव्या हता." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] [ ७१ माणसोने विस्मय थयो न हतो ? त्यारपछी सौ पोतपोताने घरे गया. १ शुभशीलगणिए कथाकोश[ह. लि. कथा २]मां जणाव्यु जे के-" एक वखते जिनभप्रसूरिजी पीरोज सुलतान साथे गोष्ठी करता बेठा हता त्यारे त्यां मलाणको(मलाणा-मौलाना-मुल्ल्लांओ) आव्या. एक मुलाणके( मौलानाए ) पोतानी टोपी आकाशमा उछाली, ते त्यां निराधार रही. सुलताने जिनप्रभसूरिनी सामे जोड का के-अहो! मोटुं आश्चर्य ! सूरि बोल्या-सारं. त्यारपछी सूरिए ते टोपीने त्यां ज थंभावी. त्यारपछी मुलतान बोल्या-' टोपी आणो' त्यारपछी तेणे( मौलानाए) आकर्षण मन्त्रनो प्रयोग कयों, पण टोपी आवी नहि. त्यारपछी सुलताने कह्यु के-जिनप्रभसूरि ! तमे आणो. त्यारपछी मूरिए रजोहरण(ओघो) फेंक्यु. तेणे त्यां जइ टोपी आणी, तेथी सुलतान चमत्कार पाम्या." जि. प्र. (व. का.)-" योगिनीपुर( दिल्ली )मां पातसाह पीरोजसुलतानना राज्यमा जिनशासनना प्रभावक जिनप्रभसूरि थया. तेना केटलाक चमत्कारो लखवामां आवे छे. पातसाहनी सभामा एक मुल्लाणके टोपीने आकाशमां निराधार राखी. सुलताने जिनप्रभसूरिजीना सामुंजोयु, सरिए रजोहरण (ओघा )वडे टोपीने प्रहार करी नीचे पाडी अने रजोहरणने त्यां( अढर ) राख्यु. मुल्लाणके बहु करवा छतां पण न पडयु. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ ७२ ] [ जिनप्रभसूरि अने ए विगेरे विविध श्रेष्ठ प्रभावनाओवडे जेणे सुलतानने पछी सूरिजीए हाथ ऊंचो करी ते लइ लीधुं. " [आ प्रसंगने सूचवतुं एक चित्र पण प्राप्त थाय छे ]. शुभशोलगणिए कथाकोष कथा २]मां जणाव्यु छ के"बीजे दिवसे माथा पर रहेल, पाणीथी भरेल घडावाळो पनिहारी ज्यारे राजा आगळ चाली त्यारे मौलानाए तेवं कर्यु के मेथी बंने घडाओ आकाशमां निराधार रह्या. स्त्री तो आगळ गइ. मावे घडाने न जोता अने त्यां निराधार जोई राजा चित्तमा चमत्कार पाम्यो, तेथी गजाए ज्यारे तेनी प्रशंसा करी त्यारे गुरुए कके-'जो पाणी निराधार रहे तो श्रेष्ठ कला. त्यारपछी राजाए ते मौलानाने काय, परंतु ते ते कला न जाणतो होवाथी मौन रह्यो, त्यारपछी गुरुप कांकरावडे बंने घडा फोडी पाणीने निराधार राख्यु, रामा चमत्कार पाम्यो." मि. प्र. ( व. का.)-" बीजे दिवसे पाणीथी भरेलो घडो आकाशमा राख्यो. सुलताने सामे जोयुं. सूरिए पाषाणथी प्रहार करी कपालो( घडानां ठीकगं ) पृथ्वी पर पाड्यां. पाणी निराधार [लाडवाना आकारे ] ज रां. शासननी महाप्रभावना थइ." १. शुभशीलगणिए कथाकोश[इ. लि. कथा ४] मां जणाव्यु छे के-" एक वखते सुलताने कडं-'जिनप्रभसूरि ! तमे विज्ञ को. कहो, आजे हुं नगरना कया वारणाथी नीकलीश !' त्यारShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] पण विशेष प्रकारे बोध पमाड्यो हतो. x x" -उपदेशसप्तति [अधि. ३, उप. ५, आ. सभा पृ. ५७-५९] पछी जिनप्रभसूरिए पत्रमा लखीने बंध करीने सुलतानने ते लेख आप्यो अने कह्यु के–'नगरथी बहार गया पछी लेख वाचवो.' त्यार. पछी सुलताने [काकर नामना] किल्लाना २१मा लंगक पासेनी(३१ थरोनी) इंटो दूर करावी, बहार नीकल्या. पछी लेख वांच्यो. जेवी रीते नीकल्यो हतो तेवी रीते ज लखेलुं हतुं. राजा हर्षित थयो." [कथा १ मां] एक वखते सुलतान बोल्या के-" आजे हुं शुं खाइश ?' त्यारपछी सूरिए लेख लखीने बंध करीने आप्यो अने का के-'जम्या पछी वांचवो.' त्यारपछी सुलताने खोळ खाधो. त्यारपछी लेख जोतां खोळ खावानुं लखेलु जोयु. राजा हर्षित थयो." [कथा ६ म]एक वखते सुलतान बोल्या के-'सूरि ! कहो, साकर शेमां नाखतां मीठी लागे?' मंत्रीओने अने पंडितोने पूछy. अने ज्यारे कोइए पण न कह्यं त्यारे सूरि बोल्या के-' म्होंमां नाखतां' [कथा ७ मां] एक वखते सुलतान बहार बागा गया हता. पाणीथी भरेलु मोटुं सरोवर जोइ सघळानी आगळ कमु के-"आ सरोवर धूळ पूर्या विना नानु केम थाय ?' एम पूछतां ज्यारे कोइए पण उत्तर न आप्यो त्यारे मूरिए( जिनप्रमे ) कह्यु के-'आ सरोवरनी पासे बीजं मोटुं सरोवर करावाय तो आ नानु थाय.' राजा हर्षित थयो." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] [ जिनप्रभसूरि अने १ [कथा ११ मां ] " एक वखते सुलताने जिनप्रभसूरिने फूल्यु के-' पृथ्वी पर कयुं फूल मोटु ?' सूरिए कह्यु-'जगत्ने ढांकतुं होवाथी वउणि( वण-कपास)नु.' शुभशीलगणिए कथाकोश[ कथा १६ ]मां सूचव्यु के के-" एक नगरमां श्रावकोमा रोग उत्पन्न थयो हतो, ते कोइ रीते निवर्ततो न हतो. त्यांथी बे श्रावकोने जिनप्रभसूरि पासे मोकलवामां आव्या हता. ते बंने श्रावको ज्यारे ध्यान करता जिनप्रभसूरिजीनी पासे आव्या, त्यारे तेओए गुरुजीनी पासे बे युवतीओ जोइ, तेथी ते बंने विचारवा लाग्या के-" गुरुजीने स्त्रीओनो परिग्रह विद्यमान छे' ते बंने ज्यारे पाछा फर्या के स्तंभित थइ गया. ध्यान पछी ते बंने देवीओए पूछयु के- अम्हने बनेने अहिं केम आणी छे ? ' गुरुजीए कह्यु के-' तमो बंने द्वारा श्रीसंघने उपद्रव करवामां आवे छे, आ कारणथी शिक्षा आपवामां आवशे.' त्यार पछी ते देवीओ बोली के-' आजथी ( हवे पछी ) श्रीसंघने उपद्रव नहि करवामां आवे.' स्यारे ते बनेने विसर्जित करी हती. बंने श्रावको मुक्त थया. गुरुजीने नम्या. स्त्री-संबंध पूछतां गुरुजीए का के-आपना नगरमां श्रावकोने उपद्रव सांभळ्यो हतो, ते हालमां निवार्यों छे. आप बनेए जोयु. त्यार पछी ते बने श्रावकोए पोताना नगरमां नइ गुरुए करेलु नणाव्यु हतुं." जिनप्रभसूरिना प्रबन्धनी जूदी जूदी प्रतियोमां पण थोडा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [ ७५ फेरफार साथे उपर जणावेलो, तथा वींटी विगेरेनो बीनो पण केटलोक वृत्तांत मले छे. ___ एक ह. लि. पोथी[ १७ श. प. जय. भं. मां प्राचीन गुजराती भाषामां एवा आशयनो उल्लेख मले छे के-" वि. सं. १३३१ मां लघुखरतर जिनसिंहसूरिना पट्ट पर जिनप्रभसूरि महान थया. तेमना गुरुजीए छ मास सुधी आयंबिल करतां पद्मावतीदेवीने आराधी हती. पद्मावतीए प्रत्यक्ष थइ कयुं हतुं के'भगवन् ! तम्हारं आयुष्य थोडं छे, तम्हारा शिष्य जिनप्रभ. सरिने फलदायिनी थइश. वागड देशमां वडोद्रा(द) गाममा अमुकने त्यां नानो बेटो पगे घाइ ( खोडवालो ?) छे, तेने दीक्षा आपो.' एम कही पद्मावती अदृश्य थई हती. गुरुजीए त्यां जइ दीक्षा दीधी. शिष्यने पाट आपी गुरुजी परलोक पहोंच्या. जिनप्रभसूरिने ११ मे वर्षे पद दीधुं. ते जिनप्रभमूरिए ढिल्ली( दिल्ली) नगरमां महम्मद पातसाहने प्रतिबोध्यो हतो. अलावदीव [ थी ? ] पण मोटो पातशाह प्रतिबोध्यो. महावीरनी पाषाणमयी प्रतिमा बोलावी. पातशाह पासे प्रासाद कराव्यो. श्रीशत्रुनयनी यात्रा करावी. पद दीधां. रायण दूधे वरसावी. बार गाऊ वड चलाव्यो. मल्लाणा( मौलाना )ओ साथे वाद कर्या. राघवचैतन्य साथे वाद कर्यो. पातशाहनी हर्म राणी बालादेने क्षेत्र( खेतर )पाल लाग्यो हतो, ते छंडाव्यो. जाते पीपलनी शाखा भांगी बेठो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] [ जिनप्रभसूरि अने wwwwwwwwwwwwww __समकालीन इतिहास. जावालिपुर( जालोर )मा रहेला जिनेश्वरसूरिए पोतानो अंतसमय जाणी पोताना पट्ट पर पोताना हाथे वाचनाचार्य प्रबोधमूर्ति गणिने स्थापित कर्या हता, सकळ संघ आगळ बोलाव्यो. पातशाहना चित्तना अनेक चमत्कारो पूग कर्या. मंत्रगर्भित ७०० स्तोत्रो का x x मोटा अवदातवाला ( अतिशयवाला प्रभावक ) पुरुष थई गया. " बी. ज्ञानभंडारनी ७ पत्रवाली बीजी पट्टावलोमां सूचव्युं छे के-" लघुखरतर श्रीजिनप्रभसूरि थया. जेणे महावीरनी मूर्तिने बोलावी, अमावास्यामाथी पुनम करी, अलावदीन (1) पातशाहने शत्रुजयनो संघवी कर्यो, रायणथी दूध वरसाव्यु, संघ साथे वह चळाव्यो, कलावंत शेखनी कुलह( टोपी )ने मुहपत्तिथी मारी आकाशथी माथे आणी, ब्राह्मणनी पाणी भरेली गागर, आकाशमाथी ओघावडे भांगी ठीकरांने हेठल नांख्या. पाणी पिण्डरूप थयु, पातशाहे हाथ धर्यो, ऊपरथी पाणी ऊतयु. शीतज्वरने झोलीमां बांध्यो, लघुखरतरगच्छमां एवा चमत्कारी थया. " ख. ग. नी एक पट्टावली [ साक्षर जिनविजयजी द्वारा संगृहीत अने स्व० बाबू पूरनचंदजी नाहर प्र. पृ. ५४ मां आ प्रभावक जिनप्रभसूरिना घणा अवदातो होवार्नु जणावी अन्य ग्रंथमांथी पद्य उध्धत करी मूक्युं छे, ते पाठान्तर साथे सूचq ढुं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [७७ तेनुं नाम जिनप्रबोधसूरि आप्यु हतु-एम तेमना शिष्य कवि सोममूर्तिगणिए रचेला जिनेश्वरसूरि-चीवाह-रास (ऐ. जैन गू. काव्य-संचय पृ. २२६-२२७ पद्य २९ थी ३१ )मा सूचित कर्यु छे. वि. सं. १३३१ ना आश्विन व. ५ जिनप्रबोधसूरिनी पद-स्थापना अने ते पछी बीजे दिवसे (व. ६) जिनेश्वरसूरिनो स्वर्गवास थयो हतो, एम रास, ख. ग. पहावली वि. परथी जणाय छे. आ जिनप्रबोधसरिए वि. सं. १३२८ मा ( सूरि-गच्छपति थया पहेला) कातंत्रदुर्गपद-प्रबोध रच्यो हतो, तथा सरिपद थया पछी वि. सं. १३३३ मां प्रतिमा-प्रतिष्ठा करी हती. ए विगेरे अम्हे जेसलमेर मां. सूची ( अप्रसिद्धग्रन्थग्रन्थकृत्परिचय )मां जणाव्युं छे, तथा ए जिनप्रबोधसूरिए वि. सं. १३३४ मा प्रतिष्ठित करेल जिनदत्तमरि-मूर्तिनो फोटो अम्हे अपभ्रंशकाव्यत्रयीमां प्रकट कराव्यो छे. "गयणथकी जिनि(णि) कुलह नांषि(आणि) ओघा उत्तारी, किद्ध महिष(य) मुष(ख)वाद नयर पिक्खइ नव वारी; डिली(दिल्ली)पति सुरताण पूठि तमु (वह)वृक्ष चलाविय, रायणि सेत्तुंजि सिहरि दुद्ध जलहर बरसाविय; दोरडइ मुद्र कीधी(किय) प्रकट, जिन-प्रतिमा बुल्लि वयणि, जिनप्रभसूरि सम कवण ?, भरतखंड-मंडिण रयणि." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ] [ जिनप्रभसूरि अने जिनेश्वरमरिना पट्ट पर उपर्युक्त जिनप्रबोधसरि नियुक्त थया ए अवसरे वि. सं. १३३१ मां जिनेश्वरमरिना अन्य शिष्य जिनसिंहसूरि (श्रीमालवंशी)द्वारा खरतरगच्छमांथी एक शाखा-भेद प्रकट थयो, जे लघु खरतरगच्छ( गण ) तरीके ओळखायो. ख. ग.नी केटलीक पट्टावली तथा जिनप्रभमूरिप्रबंध( व. का. )मां जणाव्युं छे के-" आ जिनसिंहमूरिए ६ मासना आयंबिल द्वारा पद्मावती देवीचं आराधन कयु हतुं देवीए तेमनुं अल्प आयुष्य सूचवी तेमना योग्य पट्टधर राजप्रतिबोधक अने प्रभावक जिनप्रभसूरि थशे, तेनो परिचय आपी तेमना पर प्रसन्न थवा वचन आप्यु हतुं." पेथडशाहे देवगिरि( दोलताबाद )मां राजा रामदेव अने मंत्री हेमाद्रिना समयमां जिनदेवमंदिर केवी रीते कराव्यु ! जेनी रक्षा जिनप्रभसूरिए करी हती. मुनिसुंदरसूरिए वि. सं. १४६६ मां रचेली गुर्वावलीमा सूचव्युं छे के-" वि. सं. १३२७ मां देवेन्द्रसरि अने तेना प्रथम पट्टधर विद्यानन्दसूरि १३ दिवसना अन्तरे स्वर्गवासी थतां तेमना बीजा पट्टधर विद्यानन्द-बंधु धर्मकीर्ति गणी ( गणनायक ) थया हता, जे धर्मघोषसरि नामे प्रसिद्ध थया १. जुओ पृ. ४१-४२ नो उल्लेख. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] [७९ हता. उदार बुद्धिवाळा ते गुरुए माळवा मंडळनी भूमिना विभूपणरूप मंडपदुर्ग( मांडवगढ ) नामना नगरमां शाह पृथ्वीधर( पेथड )ने आहेत धर्मनो प्रबोध को हतो. त्रिकालज्ञानी ते भगवाने सम्यक्त्व साथे बारव्रत अंगीकार करता ते(अनाढ्य)ने पण पांचमा व्रत( परिग्रह-परिमाण )मां लाख द्रव्य(रू.)नी छूट रखावी हती. अनुक्रमे ते( पृथ्वीधर ) मालवमंडलना राजानुं प्रजाओथी पूजातुं सचिवत्व प्राप्त करी शक्यो हतो. ऋद्धि वडे कुबेर जेवो थयो हतो. ते पृथ्वीधरे (पेथडशाहे) चैत्योद्वारा पृथ्वीने व्याप्त करी हती, सद्गुणोद्वारा मनीषी( सजनो)नां हृदयोने व्याप्त को हतां, कीर्तिओद्वारा दिशाओने व्याप्त करी हती. धनद्वारा भंडारोने व्याप्त कर्या हता, अने षड्गुणना जाणकार एवा तेणे पृथ्वीना प्रभुओ ( राजाओ) पर पण प्रकृष्ट शासन कयु हतुं. पोताना गुरु धर्मघोष ज्यारे ते नगर( मांडवगढ )मां पधार्या, त्यारे ते पृथ्वीधरे हर्षथी ३ अयुत अने ६ हजार (३६००० ) जूना टंकाओना व्ययवडे तेमनो प्रवेशोत्सव को हतो. प्रसन्न थयेला गुरुए आपेल क्रम(अनुष्ठानादि आम्नाय)वाळा १. प्रभावक चमत्कारी आ योगी सूरिनो स्वर्गवास वि. सं. १३५७ मां थयो होवानुं गुर्वावली, तपागच्छ-पट्टावली विगेरे साधनोथी जणाय छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० ] [ जिनप्रभसूरि अने अने क्रमथी द्रव्यव्ययनां स्थानो जाणनारा आ पृथ्वीधरे उज्ज्वल ८४ चैत्यो कराव्यां हतां. श्रेष्ठ उदार धीर अचिन्त्य चरितोवडे तेणे लांबा काळ पर थइ गयेला, हरिषेण चक्रवर्ती, संप्रति अने कुमारपाळ राजानुं स्मरण करावयुं हर्तु. मुक्तिलक्ष्मीथी संयुक्त जिन - नायकोथी विभूषित थयेला ये विहारो ( जिनमंदिरो ), भूमिरूपी भामिनीना हृदय पर रहेला मोतीना हारो जेवा शोभे छे. ' कोटाकोटि ' एवा नामथी प्रसिद्ध महिमावाळो अने शांतिनो शत्रुंजय पर, तथा 'पृथ्वीधर ' एवी संज्ञावडे सुरगिरि(देवगिरि - दोलताबाद) मां अने मंडपाद्रि (मांडवगढ) मां अने पृथ्वी पर नगरो, गामो विगेरेमां रहेला तेना बीजा पण घणा ऊंचा प्रासादो मुक्तिरूपी वलभी पर चडवाने नीसरमीना दंड जेवा शोभे छे. पृथ्वीधरशाहे करावेला प्रासादोना स्थानोनी संख्या अने मूलनायक जिनोनां नामो विगेरे वक्तव्य, पूज्य गुरु सोमतिलकसूरिजीए करेलुं स्तोत्र, अहिं उतारीने पठन करं जोइए; ते आ प्रमाणे छे " दीन विगेरेने सुविधिपूर्वक उत्कृष्ट दान आपनार, जयसिंह राजा प्रत्ये भक्तिवाळा, पोतानुं औचित्य साचवनार, अर्हन्तोनी भक्तिथी पुष्ट, गुरुना चरण सेवनार, मिथ्यामतिने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] पेथडशाह [ ८१ परिहरनार, सत्शील विगेरेथी पोताना जन्मने पवित्र करनार, प्राये रोषनो नाश करनार, सारी रीते विशाल अनेक पौषधशालाओ करावनार, मंत्रमय स्तोत्रद्वारा विदीर्ण थयेला लिंगथी विवृत ( प्रकट ) थयेल श्रीपार्श्वनी पूजा करनार, विद्यन्मालिदेवे करेल, देवाधिदेव नामथी प्रख्यात महावीरनी देदीप्यमान प्रतिकृति ( मूर्ति ) नी आडंबरथी पूजा करनार, नित्य त्रिकाल जिनराजनी पूजनविधि तथा बे वखत आवश्यक ( प्रतिक्रमण ) करनार, धार्मिक मात्र साधु पर पण मोटी भक्ति करनार, संसार पर विरक्ति करनार, सारां पर्वोमां पौषध करनार, साधर्मिकोनुं सदा वैयावृत्त्य अने उच्च प्रकारे हर्षथी वात्सल्य करनार, पुण्य- सागर श्रीमत् संप्रतिराजाना, कुमारपाल भूपालना अने सचिवाधीश वस्तुपालना चरितने संभारी संभारीने उदार हर्षरूपी सुधा - सागरनी ऊर्मियोमा उन्मज्जन करता, श्रेयरूपी उद्यानने सिंचित करवामां वर्षाकालना श्रेष्ठ मेघ जेवा सज्जन पृथ्वीधर ( पेथड ) शाहे सम्यग् न्यायथी सारी रीते उपार्जित करेला बहोळा धनने सारा स्थानोमां स्थापतां वि. सं. १३२० वीत्या पछी नेत्रोने प्रसाद-जनक, सुख आपनारा जे जे प्रासादो, जे जे गिरि (पर्वत) पर, श्रेष्ठ नगरमां अथवा गाममां कराव्या, वे प्रासादोने तेमां रहेला जिननायकोना नाम साथे श्रद्धापूर्वक हुं स्तनुं हुं - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ ] पेथडशाहे करावेला [जिनप्रभसूरि अने वि. सं. १३२० लगभगमां पेथडशाहे करावेला सोनाना दंड-कलशवाळा ८४ जिन-प्रासादोनां मुख्य स्थानो. नग-नगरादि-नाम. मूलनायक जिन नाम १ मंडपगिरि( मांडवगढ-माळवा)मां आदिजिन २ निंबस्थूर पर्वत पर (गिरनार-स्मारक) नेमिजिन ३ * , , नीचे भूमि पर पार्श्वनाथ ४ *उज्जयिनीपुर(उजेणी-माळवा)मां , ५ विक्रमपुरमां नेमिजिन ६-७*मुकुटिका(मकुडी)पुरीमां पार्श्वजिन अने आदिजिन ८ विन्धनपुरमा मल्लिनाथ ९ आशापुरमां पार्श्वनाथ घोषकीपुरमा आदिजिन ११ अर्यापुरमां शांतिजिन १२ धारा नगरमां नेमिनाथ १. रत्नमंडनगणिए रचेला सुकृतसागर काव्यमां शत्रुजयावतार (शत्रुजय-स्मारक) नामना आ चैत्यने ७२ जिनालयोवाळु, सोनाना दंड-कलशवाळु १८००००० अढार लाख द्रम्मोवडे करावेलु जणाव्युं छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ maana . सुलतान महम्मद.] जिन-प्रासादो [८३ १३ वर्धनपुरमा नेमिनाथ चंद्रकपुरीमा आदिजिन १५ जीरापुरमां १६ जलपद्रमां पार्श्वनाथ १७ दाहडपुरमां १८ हंसलपुरमा वीरजिन १९ *मान्धाताना मूलमां अजितनाथ २० धनमातृकापुर(धणियावी? )मां आदिजिन २१ मंगलपुरमां अभिनंदन जिन २२ *चिक्खलपुरमां पार्श्वनाथ २३ *जयसिंहपुरमां वीरजिन २४ सिंहानकमां नेमिजिन २५ सलक्षणपुरमां पार्श्वनाथ २६ *औन्द्रीपुर(इंदोर ?)मां । ताह्मणपुरमां शांतिजिन २८ हस्तिनापुरमा अरजिन ___ *करहेटक(करहेडा)मां पार्श्वनाथ ३० नलपुरमा नेमीश्वर ३१ दुर्गमा १-२. सु. सा. मां चंद्रावती तथा ज्यापुर जणावेल छे. ३. आगळ पृ. ८६ नी टिप्पणी जुओ. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ ] पेथडशाहे करावेला ३३ ३२ * विहारक ( बिहार ? व्यारा १) मां लंबकर्णीपुरमां खंडोह ( खंडवा ) मां ३४ ३५ ३६ ३७ चंद्रानकमां ३८ *वं ( वां) कीमां नीलकपुरमां mmo * चित्रकूटाचल ( चित्तोडगढ ) पर * पर्णविहारपुरमां ३९ ४० *नागपुरमां मध्यकपुरमां ४२ *दर्भावतिकापुर ( डभोई ) मां ४१ ४३ * नागहूद ( नागदा )मां ४४ *धवलक्क ( धोळका ) नगरमां जीर्णदुर्ग ( जूनागढ ) मां ४५ ४६ *सोमेश्वरपत्तन ( प्रभासपाटण ) मां ४७ [ जिनप्रभसूरि अने वीरजिन " कुंथुनाथ आदिजिन 99 पार्श्वनाथ आदिजिन अजितनाथ आदिजिन पार्श्वनाथ चंद्रप्रभजिन नमिनाथ मल्लिनाथ पार्श्वनाथ "" मुनिसुव्रत जिन महावीर जिन नेमिजिन चंद्रप्रभ जिन पार्श्वजिन शंखपुरमां ४८ सौवर्तकमां ४९ वामनस्थली (वणथली) मां ५० * नासिक्य (नाशिक) पुरमां ५१ *सोपारपुरमां रूणनगरमां ५२ 19 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] जिन-प्रासादो. [८५ ५३ उरुंगल( वरंगल )मां पार्शजिन ५४ प्रतिष्ठान( पैठण )मां ५५ सेतुबंधमां नेमिजिन ५६ *वटपद्र(वडोदरा ?)मां वीरजिन ५७ नागलपुरमा ५८ टक्कारिकामा ५९ *जालंधरमां ६० *देवपाल( देपाल )पुरमां ६१ *देवगिरि( दोलताबाद )मां ६२ चारूपमा शांतिजिन ६३ द्रोणतमां नेमिजिन ६४ रत्नपुरमा ६५ अर्बुकपुरमा अजितनाथ ६६ *कोरंटकमां मल्लिनाथ ६७ ढो(द्वारसमुद्र (पशुसागर ) देशमां पार्श्वनाथ ६८ *सरस्वती पत्तन( पाटण )मां ६९ *शत्रुजय पर कोटाकोटि' जिनेन्द्रमंडप साथे शान्तिनाथ ७० *तारापुरमा आदिजिन ७१ *वर्धमानपुर(वढवाण ? बडवाणी? )मां मुनिसुव्रतजिन १ सु.सा. मां आने ( भार-प्रमाण सोनाना ७२ दंड-कलशवाळो प्रासाद सूचव्यो छे. भार-प्रमाण माटे पृ. ८७ नी टिप्पणी वांचो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ पेथडशाहनां [जिनप्रभसूरि अने ७२ वटपद्र ( वडोद ?) मां आदिजिन ७३ गोगपुरमा ७४ पिच्छनमां चंद्रप्रभजिन ७५ *ओंकारपुरमा अद्भुत(उत्कृष्ट) तोरणवाल्लं जिनमंदिर मांधात(ता)पुरमा त्रिक्षण , ७७ विकनपुरमा नेमिनाथ ७८ चेलकपुरमा आदिजिन एवी रीते पृथ्वीधरे प्रत्येक पर्वत, नगर, गाम अने सीममा सर्वत्र( चोतरफ ) हिमालयनां शिखरो साथे स्पर्धा करनारां उंचां चैत्योमां, पृथ्वीरूपी युवतिना माथाना मुकुट जेवां, जिनोनां जे बिबोने स्थाप्यां तेने तथा देवोए अने नरवरोए * आवी निशानीवाळां नगर, गाम विगेरेनां नामो सु. सा. मां पण सूचवेल छे. १. पुरण-प्रख्यात 'ओंकार-मान्धाता' संबंधी एक परिचयलेख 'वाणी' हिन्दी पत्रिकाना वि. सं. १९९१ना 'नीमाड' २ अंकमां छे. ओंकारपुरमा पेथडशाहे हेमाद्रिना नामे चलावेल सत्र भोजनदानशाला माटे आगल वांचो. अनेक राज्य-परिवर्तन उथलपाथल अने अन्य आस्मानी-सुलतानी पछी हालमा अहिं ते श्वे. जैन मन्दिरोनां दर्शन थतां नथी, परंतु ओंकारजीमां अर्वाचीन दि. जैनमन्दिर ' सिद्धवरकूट' सिद्धक्षेत्र नामथी ओळखावाय छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] सुकृतो. [८७ करावेलां अने न करावेलां( अकृत्रिम-शाश्वत) अन्य जिन-बिबोने पण हूं वंदन करूं छं." पृथ्वीधरशाहे करावेला चैत्योर्नु (श्लो० १८६ थी २०१) १६ काव्योवालं स्तोत्र, पूज्य सोमतिलकरिए करेलुं छे. फरकता ध्वजरूपी हंसोथी शोभती आकाशगंगाने चन्द्रकांत रत्नना पाणीवडे स्रवतो, स्फटिकरत्नमय कलशरूपी चंद्रने मस्तकपर धारण करतो, मरकतमणिद्वारा नीलकंठवाको तेनो उज्ज्वल चैत्योनो समूह, ज्योत्स्नावाळा हर( महादेव )ना विलासनो आश्रय करे छे. (महादेवना विलासनी जेवो शोभे छे). आ( पृथ्वीधर-पेथडशाह )नुं वारंवार वर्णन शुं कराय ? जेणे हर्षथी २१ घडी प्रमाण सोनाना व्ययद्वारा, शत्रुजय पर सुमेरुपर्वतना शिखर जेवू आदीश्वरनुं सुवर्णमय मंदिर कराव्यु हतुं. तेना पुत्र- झंझणदेवने उत्तम जनो उदार कहो अथवा कृपण कहो; आश्चर्य छे के-जेणे शत्रुजयमां अने रैवतक(गिरनार )मों पण सोना-रूपानो एक ज ध्वज आप्यो हतो. केटलाक कहे छे के-'सोनानी ५६ धडीनो व्यय करी तेणे लीलामात्रथी हर्षपूर्वक इंद्रमाला पहेरी हती.' पृथ्वीने त्रण १. गणितसार विगेरे प्राचीन गणित ग्रंथोमां, सोनाना तोल संबंधमा सूचव्यु छ के-५ गुंजा (चणोठी)=१ मासो. १६ मासा= १ कर्ष. ४ वर्ष १ पल. ६ पल-पा मण १२ पल अधमण, २४ पल-१ मण. आवा १० दश मणनी १ घडी अने १. घडी= भार गणाय छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ ] पेथडशाहे देवगिरिमां [ जिनप्रभसूरि अने दिशामां धारण करता कूर्म ( कच्छप ), वराह भने शेष घणुं कष्ट पामता हता; तेओ ते पृथ्वीने चोथी दिशामां धारण करनार पृथ्वीधरने प्राप्त करीने हर्षित थया. मोक्ष आपवामां जामीन जेवां, जिनोए कथन करेलां समग्र शास्त्रो लखावीने तेणे उच्च प्रकारनां सरस्वती - क्रीडागृहो जेवा ७ श्रेष्ठ कोशो ( भंडारो ) भराव्या हता. स्तंभतीर्थ ( खंभात ) मां निवास करता प्रभावक संघपति भीमे शील (ब्रह्मचर्य ) स्वीकारतां, समस्त साधर्मिकोनो सत्कार करतां पृथ्वीधरने पण उचित वेष मोकलाव्यो हते . प्रथमिनी नामनी सुपत्नी साथे, तेवी रीते (ब्रह्मचारी थइने) ज साधर्मिकपणानो विचार करतां ३२ वषनो भट ( शक्तिसंपन्न युवक ) होवा छतां पण, कामने जीती, शील (ब्रह्मचर्य ) स्वीकारीने पृथ्वीधरे ते वेष पहेर्यो हतो. आ ( पृथ्वीधर ) नी प्रिया प्रथमिनी पण सतीओमां प्रथम तरीके प्रख्यात थइ हती; गुरु - देव-भक्त एवी जे पण कोइ वार पण, क्यांय पण पुण्य कृत्योद्वारा पृथ्वीधरथी हीन थइ न हती. राजाए अर्पण करेल मालवा (देश )नी रक्षानी महार्चितावाळो होवा छतां पण गुरुना उपदेशने वश रहेनार, बंने वार प्रतिक्रमण करनार, नित्य ३ वार जिन-पूजन, गुरु-नमन, साधर्मिकोनुं अभ्यर्चन ( सन्मान ), दीन विगेरेनो उद्धार, सुशास्त्रोनुं पठन, पर्वदिवसोमां पौषध, ए प्रमाणे कृत्योने वे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] जिन प्रासाद केवी रीते कराव्यो ? [ ८९ - आश्चर्यकारक रीते करतो हतो. श्रेष्ठ उदार समग्र सद्गुणोवाळो, सदा ६ आवश्यकोमां तत्पर, अर्हद्-गुरु-भक्त, मत - प्रभावक ते ( पृथ्वीधर=पेथड ) पृथ्वीना अलंकाररूप थइ गयो. " [ मुनिसुंदरसूरिनी सं. गुर्वावली श्लो० २०२थी २१२] देवगिरिमां जिन - प्रासाद केवी रीते कराव्यो ? पं. रत्नमंडनगणिए विक्रमनी १६ मी सदीमां रचेला पेथडशाहना ऐतिहासिक प्रबंधरूप सुकृतसागर नामना मंडनांक सं. काव्य ( चतुर्थ तरंग) मां सूचयुं छे के “ ते प्रासादोमां, देवगिरिपुरमां एक दिव्य प्रासाद, जे री बन्यो, ते प्रबंध जाणवा योग्य छे " हाथीओनी मद - वृष्टिनी सुगंधथी बहेकता मुख्य द्वार - वाळं, घणा सुवर्णथी सार्थक नाम धरावतुं देवगिरि ( देवोनो पर्वत स्वर्णगिरि = मेरु)पुर छे. प्राकार ( किल्लो), परिखा (खाइ ) अने आराम ( उद्यानो) नी पंक्तिओथी परिवेष्टित थयेला श्रीबीज जेवा जे नगरने शत्रुओ एकतानवाळा थइ संभारे (ध्यानमां धरे ) छे. ते नगरमां ध्वनि करतां बार हजार वाद्योद्वारा शत्रुओने त्रास पमाडनार, संग्रामनी शोभाना प्रयोजनरूप थयेल शस्त्र विगेरेनी सामग्रीवाळो, तथा १ मोतीनी जोड, २ चित्तने चोरनार स्त्री, ३ कष्टभंजन घोडो अने ४ बावनाचंदन ए चार रत्नोवाळो, ५६ करोड सोनैयावाळो, ८०००० एंशी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___९० ] पेथडशाहे देवगिरिमा [जिनप्रभसूरि अने हजार घोडाओवाळो तथा १२००० बार हजार हाथीओवाळो राम नामनो राजा हतो. तेनो धी-सख ( मंत्री) हेमादि हतो, जेनी पासे घj हेम विगेरे हतुं. आश्चर्य छे के जेणे कृपणताथी पोतानुं पाप पण याचकोने आप्युं न हतुं. ते वखते त्यां ब्राह्मणोनुं एकछत्र राजा १ उपर सूचवायेल हेमादि ए देवगिरि-राज्यमां दक्षिणना इतिहासमां सुप्रसिद्ध हेमाद्रि एक नामांकित अधिकारी थइ गयेल छे. तेनो परिचय करतां पहेला आपणे गुजरात अने दक्षिणनो तत्कालीन पूर्व इतिहास लक्ष्यमां लेवो जोइए. विक्रमनी १३मी सदीना उत्तरार्धमा देवगिरिना राजा सिंहणे मोटुं सैन्य मोकली गुजरात पर चडाइ करवानी एक तक साधी हती, परंतु गुर्जरेश्वर-महामात्य मंत्रीश्वर वस्तुपालनी-वीरता. भरी समयसूचकताथी तथा महामंडलेश्वर वाघेला लावण्यप्रसाद अने महाराणा वीरधवलनी वीरताथी तेमां तेने सफलता मळी जणाती नथी.भरुचनी सरहदमां-नर्मदा अने तापी नदीना तट पर बने पक्षनां सैन्योए भयानक परिस्थिति उपस्थित करवा छतां अंते संधि थयार्नु सूचन मळे छे. गूर्नरेश्वर-पुरोहितकवि सोमेश्वरे रचेली कीर्तिकौमुदी ( सर्ग ४, श्लो० ४३-४७), जयसिंहसूरिए रचेल हम्मी. रमदमर्दन नाटक, तथा मं. वस्तुपालनो ऐ. परिचय कगवतां केटलांक अन्य साधनो परथी ए जणाय छे. गा. ओ. सि. तर फथी प्रकाशित थयेली लेखपद्धतिमा यमलपत्रना उदाहरण तरीके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] जिन-प्रासाद केवीरीते कराव्यो ? [ ९१ साम्राज्य हाँ; जैन चैत्य करावनाराओने तेओ बलवडे अटकावता हता. ए वात सांभळीने देदना नंदन पेथडशाहे विचार्यु के-'जो कोइ पण रीते आ नगरमां विहार(जिनमंदिर) करावाय तो घणो लाभ थाय अने जैनदर्शननी प्रभावना थाय. फरी विचार कयों के 'तो हेमादि साथे हुं प्रेम धारण करूं, जेथी तेनी प्रेरणाद्वारा म्हारं आ प्रयोजन राजाथकी सिद्ध थाय. सर्वांग-पूर्ण लक्ष्मीवाळो आ राजा तो घणा सोनावडे, माणेकोवडे, घोडाओवडे के हाथीओवडे तुष्ट करी शकाय तेम नथी. 'प्रधानने संतुष्ट कर्या विना राजाने तुष्ट करवा'-ए न्याययुक्त नथी. 'बारणाना बिबने वि. सं. १२८८ वै. शु. १५ना निर्देश साथे ए संधिनी शरतो सूचवी छे के-" सिंहणदेवे अने महामंडलेश्वर राणा लावण्यप्रसादे पूर्व रूढि प्रमाणे पोतपोताना देशमा रहेg, कोइए पण कोइनी भूमि पर आक्रमण करवु नहि-दबाववी नहि; शत्रुथी हल्लो थाय तो एकबीजाए सैन्यनी सहायता करवी." सिंहणनी बिरुदावलीमां तेने 'गूर्जरराज-हस्त्यंकुश' तरीके तथा गूर्जरेश्वर वीसलदेवने 'सिंघणसैन्य-समुद्र-संशोषणवडवानल' तरीके ओळखावेल छे. उपर्युक्त चंद्रवंशी सिंहण पछी, जैत्रपाल पछी, राजधानी देवगिरि( दक्षिण )नी गादी पर आवेल महादेव राजाना अने तेना उत्तराधिकारी रामदेव राजाना राज्यमां (विक्रमनी ११ मी सदीना पूर्वार्धमां) श्रीकरणाध्यक्ष हेमाद्रि नामनो अतिबुद्धिशाली राज्याधिकारी थई गयो. पुराणो, स्मृतियो विगेरेमांथी उध्धृत करी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ ] पेथडशाहे देवगिरिमां [ जिनप्रभसूरि अने पूज्या विना मूलनायक पूजाय नहि. ' तेथी सत्र ( सदावत - दानशाला - भोजनशाला ) मांडवामां आवे अने त्यां हेमादितुं नाम कहेवामां आवे; तो लोकमां पोतानो प्रासुक (पोते न करेल, न करावेल ) यश सांभळीने ते तुष्ट थाय. एवी रीते तेनुं तोषण अने दानथी उत्पन्न थतुं म्हारुं पुण्य - ' आंबाने पाणी सिंचाय अने पितृओने तृप्ति थाय ' ए विगेरे नीतिनी जेम - ए बने कार्यों थाय. " उपर प्रमाणे विचार करीने पृथ्वीधरे (पेथडशाहे ) मुसाफरोने आनंद आपनार विशाळ सत्रागार ( सदादान - भोजनशाळा) ओंकारनगरमां मंडाव्युं. त्यां सज्जनोने उज्ज्वल पाणीवडे १ व्रत, २ दान, ३ तीर्थ अने ४ मोक्ष ( परिशिष्ट साथे ) विषय पर योजायेल 'चतुर्वर्ग चिंतामणि ' नामनो विशाल संग्रह ग्रंथ ए हेमाद्रिनी कृति तरीके ओळखाय छे. तेमां देवगिरिना यादव ( जाधव ) राजाओ साथै हेमाद्रिनी पण प्रत्येक परिच्छेदमां प्रशंसा करवामां आवी छे. ए विचारतां वास्तविक रीते ते संग्रह कृति, हेमाद्रिना आश्रित कोई विद्वान्नी जणाय छे. आ हेमाद्रि संबंधमां मराठी भाषामा ' हेमाद्रि ऊर्फ हेमाडपंत ' नामनुं विस्तृत माहितीवाळु पुस्तक, केशव आप्पा पाध्ये, बी. ए. एल् एल्. बी. ( अॅडव्होकेट, मुंबई हाइकोर्ट ) द्वारा सन् १९३१मां प्रकाशमां आवेलं छे, एटले अहिं तेनो विशेष परिचय कराववानी खास अपेक्षा रहेती नथी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] जिन-प्रासाद केवी रीते कराव्यो ? [ ९३ स्नान करावातां हतां. प्राकृत ( सामान्य ) मनुष्यो माटे पग घोवा लायक पाणी तैयार रखातां हतां. सत्रनी समीपमा विहार (जैन मंदिर)मां अर्हन्तोने प्रणाम करावी साधर्मिक थयेला सर्वने विवेकथी भोजन करावातां हता. घणां पक्वान्नो, खांडथी भरपूर मंडो ( मालपूडा), अखंड उज्ज्वल शालि ( चोखा), पीळी गुणकारी दाळ, नाकथी पीवाय एवं घी, घणां शाको, पित्तने शांत करनारा करंभा, स्निग्ध ( तर-चीकाशवालं) दहीं, लवंगना संगथी सुगंधि पाणी मनुष्योवडे स्वेच्छापूर्वक आस्वादित करातुं हतुं. नागरवेलनां पानो, कपूर अने सोपारी साथे अपातां हतां. पछी निद्रा विगेरे माटे दिव्य खाटो ( पलंगो ) अपाती हती. त्यां आवेला प्रवासीओ स्वादु भोजन करता अने सुखे सूता छता पोतानी स्त्रीओना अने माताओना हाथोने तथा पोतानां घरोने संभारता नहि. पूछनाराओनी आगळ तो हेमादिनुं ज नाम कहेवामां आवतुं हतुं. एवी रीते पेथडशाहे त्यां ज्यारे ३ वर्षों सुधी सत्र चलाव्यु; त्यारे भोजनथी प्रसन्न थयेला, देवगिरिमां गयेला भाट विगेरे, ३ वर्ष सुधी हेमादिनी आदरथी एवी रीते स्तुति करता हता के___ओंकारपुररूपी क्यारामां, पृथ्वीना जनोने अतिप्रिय एवं सत्र, यतिओना समूहवडे परम ध्येय पवित्र बीज जेवू आ. चरण करे छे ते थकी उत्पन्न थयेली अने कवितारूपी आ. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ ] पेथडशाहे देवगिरिमां [ जिनप्रभसूरि अने नीकोवडे विस्तरेली तमारी असाधारण कीर्तिरूपी लता आजे मांडवानी जेम ब्रह्मांड पर चडे छे." ___ए विगैरे प्रकारनुं प्रशंसावाळू खोटुं वर्णन नित्य सांभळतां हेमादिए एक वखते चित्तमां विचार कयों के-" में जन्मथी मांडीने याचकोने पण काइ आप्युं नथी, तो आ लोको सत्र (दानशाला-भोजनशाला )शुं कहे छे ? अने आ वळी जो कदाचित् कोइ एक कहे तो खोटुं होई शके; परंतु आटला बधा लोको आटला वखत सुधी असत्य बोलनारा न होइ शके." एवो विचार करीने ते जोवा माटे तेणे एक माणसने ओंकारपुरमां मोकल्यो. त्यां जइ आवेला ते माणसे जाणेलो संबंध जणाव्यो के-" सर्व प्रकारना स्वाद रसवाळी ते भोजनशालामां जे भोजननो स्वाद ग्रहण करे, ते ज रसना( जीभ )ने हुं रसज्ञा जाणुं हुं, बीजी जीभने तो रसना कहो. त्यां आवेलो कोइ पण माणस असंतुष्ट थइने जतो नथी, तेम ज अन्य भोजनोनी अवज्ञा कर्या विना जतो नथी, तथा तमारी प्रशंसा कर्या विना जतो नथी. तमने ते भोजनशालामां आटला वखतमां सवाकरोड द्रम्मनो व्यय थयो; परंतु तमारो यश अने पुण्य करोड कल्प पर्यन्त रहे तेवां थयां छे. कानरूपी नीकद्वारा आवेलां आ वचनरूपीपाणीवडे सिंचायेला हेमादिना शरीर पर रोमांचरूपी अंकुरा प्रकट थया. त्यार पछी आकारपुरमा जइ भोजनशालाना अधिकारीओने सारी रीते पूछीने ते भोजनशाला चलावनार तरीके पृथ्वीधर( पेथडशाह )ने जाणीने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] जिन- प्रासाद केवी रीते कराव्यो ? [ ९५ हेमादिए तेनी स्तुति करी के " ते पुण्यवती स्त्रीनी कुक्षिना ओवारणा लउ, के जेणीए पृथ्वीधर नामथी प्रख्यात पुरुष - रत्न उत्पन्न कर्यु. ते पुत्रवती सती युवती भले गर्व धारण करो के जेणीने गुणोवडे अलौकिक पृथ्वीधर ( पेथड ) जेवो पुत्र छे." "बीजाना द्रव्यवडे पोताना नामने प्रख्यात करे तेवा पुष्कळ मनुष्यो छे; परंतु पोताना द्रव्यवडे बीजानी ख्याति करावनार तो मात्र पृथ्वीधर ( पेथड ) ज छे " ए प्रमाणे स्तुति करीने हेमादि, स्वर्गनगरीना गौरवने न्यून करनार दुर्ग ( मांडवगढ ) मां जइने पेथडशाहने मळ्यो. पेथडशाहे तेनों हर्षथी सत्कार कर्यो, हेमादिए तेने कं के-तमोए आवी भोजनशाळा म्हारा नामे मांडी, तेनो जे हेतु होय ते खुशीथी मने कहो. जो के तमारा उपकारनो बदलो तो हुं कोइ रीते वाळी न शकुं, तो पण म्हारा योग्य कार्यनुं कथन करी मने आनंदित करो. ' प्रधान ( हेमादि ) वडे आग्रहपूर्वक पूछातां पृथ्वीधरे ( पेथडशाहे ) कघुं के - ' जो विलंब विना कार्यसिद्धि थाय, तो कार्य कहेवामां आवे ' हेमादिए कं के - 'बहुशुं कहुं १, तमोए इच्छेलुं कार्य, मारे द्रव्यवडे, बलवडे अने शरीर द्वारा पण करवानुं छे, ' पेथडशाह बोल्या - ' तो देवगिरि पुरनी मध्यमां विहार ( जिनमंदिर ) ने योग्य एवी मोटी भूमि मने अपावो. ' ब्राह्मणोनी उद्धताइथी दुःसाध्य एवं पण ते कार्य, प्रौढ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ ] पेथडशाहे देवगिरिमां [ जिनप्रभसूरि अने उपकारना भारथी दबायेला ते बुद्धिशाळी मंत्री हेमादिए ते ज चखते स्वीकार्यु. त्यारपछी सपरिवार ते बने देवगिरि पुरीमां गया. हेमादिए मंत्री पेथडने रमणीय हर्म्य ( हवेली ) मां उतार्या. 'चैत्यनी भूमि माटे हुं जाते राजाने विज्ञप्ति करीश, आ विषयमां तमारे कांड पण चिंता न करवी एम कही हेमादि घरे आव्यो. हेमादि अवसर जोतो हतो; कारण के अवसर विना करातुं कार्य सारुं थतुं नथी. एवामां एक सारो अवसर मळी गयो. घोडा वेचनारा त्यां आव्या. राजाए तेमांथी एक श्रेष्ठ घोडो लेवा प्रधानने कयुं. अश्वलक्षणना विचक्षण परीक्षक हेमादिए एक जातिवंत घोडो दर्शाव्यो. समस्त लक्षणवाळो देवसत्त्व ते घोडो राजाने पसंद पड्यो गति विगेरेथी तेनी परीक्षा करी ६०००० साठ हजार टंका (रू.) वडे ते घोडो लड़ राजा घरे गयो. अन्य प्रसंगे पाणी - पार उतरतां हेमादि मंत्रीनी प्रतिभाथी ते जातिवंत ( कुलीन ) घोडानी उत्तमतानी प्रतीति थइ. राजाए तेनुं नाम ' कष्टभंजन प्रकट कर्यु. श्रेष्ठ सत्कार कर्यो. हेमादिना विस्मयकारी ते विज्ञानथी तुष्ट थह राजाए अभीष्ट मागवा कां. ए अवसरे मंत्री हेमादिए मायुं - ' मारो एक बन्धु अहिं मनोहर विहार ( जिन - मंदिर ) कराववा इच्छे छे; ते माटे मनोऽभिलषित स्थानमां भूमि अर्पण करो. ' राजाए कह्युं के - ' ब्राह्मणोनी अप्रीति होवा छतां पण में तमने भूमि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] जिन-प्रासाद केवी रीते कराव्यो ? [ ९७ आपवी छे ज; परंतु कहो के-ते बन्धुनुं नाम शुं छे ? अने ते क्यां वसे छे ? ' हेमादिए कह्यु के-' राजन् ! अवंती (माळवा )नो अलंकार, धर्मकर्ममां कुशल पृथ्वीधर (पेथड) नामनो जीभथी मानेलो म्हारो बंधु छे. माळवामां जयसिंह नामना राजा बिंबमात्र छे छत्र अने चामरोथी रहित होवा छतां पण पृथ्वीधर( पेथड ) ज पति( राजा) छे, ते प्रातःकाले प्रभु( आप महाराजा )ने प्रणाम करवा माटे आवे त्यारे स्नेहथी घरे आवेल मालवराजने योग्य एवा सर्व गौरखने योग्य छे.' ___ राजाए( रामदेवे ) ए अवधारण करी हृदयमां निश्चय कर्यो. हेमादिए हर्षित थइ पेथडशाहने सूचित कर्यु. बीजे दिवसे माळवाना मंत्री पेथडशाह, राजसभामां राजाने मळवा आव्या त्यारे थाळमां सोनानी महोरो उपर श्रीफळ( नाळीएर )नी भेट धरी, समीप आवतां राजा( रामदेव ) जल्दीथी ऊभा थइ हर्षथी तेने भेट्या. राजाए पेथडशाहने योग्य आसन पर बेसारी, स्वागतादि पूछी, नाळिएर ग्रहण करी भेटणुं पार्छ आप्यु. प्रधानने पहेरामणी करी राजा पृथ्वीना दान माटे घणा परिवार साथे घोडा पर बेसीने नगरीमां गया. चौटानी अंदरनी पृथ्वीनी प्रार्थना थतां राजाए ते आपी, ब्राह्मणो दून थवा छतां पण दोरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८] पेथडशाहे देवगिरिमां [ जिनप्रभसरि अने देवरावी. प्रधाने भेट माटे आणेला सोनैयाओ वडे, नगरीना जनोने संतोषित करी वाद्योना ध्वनिपूर्वक हर्षथी महोत्सव को. कच्छ-भंगनी उचितता विचारी महेभ्य-श्रीमानोनी ७ हवेलीओ थइ शके तेटली भूमिमा हाट, घर विगेरे सघडं पडावी नाख्यु. शुभ दिवसे ३ वांस प्रमाण पायो खोदावतां घj स्वादिष्ट अपूर्व पाणी प्रकट थयु. ते जाणीने मत्सरी भूदेवो(ब्राह्मणो )ए उत्सुक थइ सांझे रामदेव राजाने विज्ञप्ति करी-'राजन् ! पहेलां अहिं क्यांय स्वादु पाणी न हतुं, ते हालमां तमारा भाग्यथी विहार( जिनमंदिर )नी भूमिमां प्रकट थयुं छे, तो त्यां वाव करावो. अहिं तरस्या अढारे वर्ण पाणी पीशे; तेमां तमने जे पुण्य थशे तेनो तो पार नथी. हे राजन ! कूवा विगेरेमांथी निपान( अवेडो) कराववामां पुराणमां पण चोरना उदाहरणपूर्वक बहु पुण्य कहेवामां आव्यु छे, तो चैत्यने योग्य भूमि बीजे आपी आ स्थळमां घणा पुण्य माटे कृपा करी वाव करावो. ब्राह्मणोना वाक्यथी राजार्नु चित्त दोलायमान थयु. ' सवारे त्यां आवी, पाणी पीने स्वादु जणातां विपुल वाव ज करावाशे' एम कहीने राजाए तेओने विसर्जित कर्या. पेथडशाहे पोताने उतारे हमेशां आवता, राजाना एक नापित( नाइ-हजाम )ने तुष्ट करेलो हतो, तेणे पेथडशाहने ते जणाव्यु. अवसरज्ञ माळवानो अमात्य पेथडशाह राते लवणShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] जिन-प्रासाद केवी रीते कराव्यो ? [ ९९ बालदि ( मीठाना अगर ) जाणी, द्वारपाळने द्रव्य आपी पोठ्योने नगरीमा दाखल करावी, मीठं नखावी, पाणी खारं करी, तेमने खाना करी, घरे आवीने सुखे सूतो. सवारे त्यां आवेला राजाए माणसो द्वारा मंगावी ते पाणीनो जाते आस्वाद को. खारु जणातां धुंकी नाख्यु. 'ब्राह्मणोए मत्सरथी खोटुं कह्यु' एम विचारी ब्राह्मणोने उपको आप्यो. पृथ्वीधर(पेथड )नुं सन्मान कयु. एवी रीते बुद्धिभंडार प्रधान पेथडने प्रासाद माटे पृथ्वी प्राप्त थइ. [कहे छे के-सिद्धराजे रुद्रमहालय कराव्या पछी ते करनार सूत्रधारने ' एना जेवू शिल्पकाम ए अन्यत्र न करे । ए हेतुथी अंध कयों हतो. सूत्रधारे एथी पण श्रेष्ठ जैनप्रासाद करवा प्रतिज्ञाथी इच्छा राखी हती. अपूर्णाश ते सूत्रधारनी पेढीनो पांचमो वंशज कला-रत्नाकर रत्नाकर भमतो भमतो ते अवसर पर मंत्री(पेथड)ने मळ्यो हतो.] बुद्धिशाळी मंत्री पेथडशाह, ते रत्नाकर सूत्रधारद्वारा कर्मस्थायनो आरंभ करावी त्यां वणिकपुत्रो( वाणोतरो )ने मूकी माळवा गया अने तेओए कर्मस्थाय माटे सोनाथी भरेली ३२ साढणी मोकलावी आपी. ते माटे हजार हजार इंटो पकवनारा १० नीभाडा थया हता. ३ वांस प्रमाण पायावाळी पाषाणनी ३ संधियोमा अनुक्रमे ५ शेर, १० शेर अने १५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] पेथडशाहे देवगिरिमां [ जिनप्रभसूरि अने शेर लोढानी पादुकाओ हती. १४४४ थरमां केटलीक पाषाणनी पट्टीओ (पाटो ), १९ (३९) गजनी लांबी हती. इंडुं चडाववानी पाटने बच्चे रहेला किल्लाथी विघ्न थतुं सांभळी साहसिक पेथडशाहे त्यां आवी रात्रे तेटला भागमां किल्लाने पडावी नाख्यो हतो; पछी बने तरफना पद्या ( पाज )ना खंडोने संयुक्त करावी, इंडुं चडावी किल्लाने पाछो सज्ज करावी दीधो हतो. " आ चैत्यमां संपूर्ण घाट, सारोदार ( सारूआर ) थयो हतो, जेनाथी सामान्य चैत्यो ८४ थइ शके. ' ८४ हजार टंकोनां दोरडां तुट्यां तां १ लाख टंकोना दीवा राते कर्मस्थायमां बळ्या हता. ' ए प्रमाणे वणिक्पुत्रो द्वारा चैत्य करावतां थयेलो धन-व्यय सांभळी उदार पेथडशाहे लेखांनी वही पाणीमां नखावतां लोकोए आ प्रासादने ' अमूल्यविहार ' नामथी प्रख्यात कर्यो हतो. ते जिन - प्रासादमां स्थापन करवा माटे चंद्रनी ज्योति जेवा आरासण पाषाणनुं ८३ आंगळ - प्रमाण श्रीवीरनुं चिंब कराव्युं हतुं.' मनोहर पूतळीओ तथा निपुणताथी उत्कीर्ण करेल ( उकेरेल ) वस्तुओनी आकृतिवाळो घणो रमणीय प्रासाद तैयार थतां ते प्रासादनी, प्रतिमानी, सुवर्णकलशनी, दंडनी १. विक्रमनी १९ मी सदीमां रचायेला जणाता एक सं. स्तोत्र मां भिन्न भिन्न स्थानमा रहेला वीर ( जिन - बिंब ) ना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] जिन-प्रासाद केवी रीते कराव्यो ? [ १०१ अने ध्वजनी प्रतिष्ठा-पूजा बहुलक्ष्मीना व्ययथी महोत्सवपूर्वक करावी हती.माधव नामनामंगलपाठके लाखोश्रीमंतोनी पर्षद्मा पेथडशाहनी साचा पृथ्वीधर तरीके प्रशंसा करी हती (विशेष वृत्तान्त माटे सुकृतसागर काव्य वांचj ). देवगिरिमां रामदेवराजाना राज्यमा शाह देसल अने सहजाशाहे करावेल जिनदेव-मंदिर, जेनी रक्षा जिनप्रभसूरिए करी हती. उपकेशगच्छीय कक्कसरिए वि. सं. १३९३मां कंजरोट (कंजरडा)पुरमा रचेला नाभिनंदन-जिनोद्धार प्रबंध (प्र. २, श्लो. ९२२ थी ९५३ )मां जणाव्युं छे के-" वि. सं. १३७१मां शत्रुजय पर उद्धार प्रतिष्ठा करावनार ओसवाल संघपति देसलशाहे पोताना सद्गुणी मोटा पुत्र सहजने देवगिरिपुरमा वास माटे मोकल्यो हतो. सहजे देवगिरिमां उल्लेखोमां, पृथ्वीधरे( पेथडे ) देवगिरि ( दोलताबाद )मां करावेला रम्य विहारमा रहेला तथा योगिनीपुर( दिल्ली )मां रहेला कन्नाण नामना वीरदेव- पण संस्मरण मळे छे" श्रीपृथ्वीधरकारिते सुरगिरी रम्ये विहारे स्थितं कमाणाभिधयोगिनीपुरगतं देवं सदारासणे । श्रीजावालपुरेऽपि लेपचरि(सहि)तं पंचासरे वायडे श्रीवीरं वरभीमपल्लीकमिति ख्यातं रवेटिके॥" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] सहजाशाहे करावेल [जिनप्रभसूरि अने रामदेव राजाने गुणोवडे तेवो वश कर्यो हतो, के ते बीजानी कथा पण न करे. कर्पूरना पूरथी सुभग एवं तांबूल आपता जे( सहज )ने मंगल-पाठकोए ' कर्पूरधाराप्रवाह । विरुद आप्यु हतुं. जे( सहज )नी सांभळेली कीर्तिथी प्रेराइ तिलंगाधिपतिए पोताना नपरमां देव-मंदिर माटे स्थान आप्युं हतुं. कर्णाट अने पांडुदेशमां सदा पसरता जेना जशे त्यांना राजा प्रमुख लोकोने तेना दर्शन माटे उत्कंठित कर्या हता. देसलशाहे देवगिरिमां नवं जैनमंदिर कराववानो मनोरथ सिद्धसरिने जणाव्यो हतो. सरिए प्रोत्साहित करी मूलनायक पार्श्वजिन कराववा सूचना करी हती. त्यार पछी जिनमंदिर माटे देसलशाहे सहजने आदेश आप्यो हतो. सहजशाहे एथी हर्षित थइ रामदेव राजाने भेटणांओथी संतोष पमाडी जिनमंदिर माटे भूमि लीधी हती. घणा धनदानवडे वैज्ञानिको( शिल्पीओ )ना उत्साहथी थोडा दिवसोमां संपूर्ण देवमंदिर तैयार थयुं हतुं. देसले चंद्र जेवा उज्ज्वल आरासण-शिलामय मूलनायक पार्श्वनाथ ) कराव्या हता. तथा २४ जिनबिंबो अने २ मोटां बिंबो तथा सत्या (सच्चिका ), अंबा, शारदायुगल तथा गुरुनी मूर्तियो करावी हती. अभ्यर्थनाथी सिद्धसरिने साथे लइ स्कंधवाहो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] जिन-प्रासाद. [ १०३ (मजूरो)ना खभा पर बिबोने आपी देसलशाह देवगिरि तरफ चाल्या हता. सहजपाल, मूलनायक अने अन्य जिनषिबोनी तथा गुरुनी सामे संघ साथे ४ प्रयाणो सुधी गया हता. देवगिरि पहोंचतां मंगल वाद्योना ध्वनिथी श्रेष्ठ प्रवेश-महोत्सव कराव्यो हतो. घरेघर तोरणो अने पूर्णकळशोनी शोभा थइ हती. देसलशाहे देवगृहनी तथा पौषधालयनी प्रतिष्ठा सिद्धसरिद्वारा करावी हती. देसलशाहे श्रेष्ठ भोजनो अने वस्त्रो द्वारा चतुर्विध संघy हर्षथी पूजन कर्यु हतुं. प्रासाद आगळ विशाल मंडप, २४ देवकुलिकाओ साथे कराव्यो हतो. प्रासादनी चोतरफ रम्य हम्यों सहित दुर्ग बनाव्यो हतो. प्रासाद उपर स्वर्णमय दंड साथे सुवर्णकलश स्थाप्यो हतो. त्यार पछी देसलशाह, गुरुजी साथे पाटण( गुजरात ) गया हता. भयानक अल्लाउद्दीन-युग. वि. सं. ८४५ मां गजणवइ हम्मीरना सैन्यद्वारा वलमीनो भंग अने शिलादित्यनुं मरण थया पछी लगभग सवाबसो वर्षों पछी गुजरात भांगीने, वि. सं. १०८१मां चडी आवेला बीजा म्लेच्छराज गज्जणणवइ(गजनवी)ए, ते पछी घणे काळे आवेला मालवी राजाए अने वि. सं. १३४८ मां आवेल काफूरना प्रबल सैन्ये अन्यत्र आक्रमण उपद्रव कर्या छतां ज्यांना महावीरना प्रभावे साचोरनी सीम चंपाणी न हती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] अल्लाउद्दीन-युग. [ जिनप्रभसूरि अने ते संबंधमां सत्यपुरकल्पमा प्रस्तुत जिनप्रभसरिए पोताना समयमां बनेली ऐ. दुःखद घटना सूचवीछे के-"वि. सं. १३५६ मां अल्लावदीन सुलताननो नानो भाइ उलूखान ढि(दिल्लीपुरथी, मंत्री माधवथी प्रेराइने गुजरातनी धरा तरफ चाल्यो हतो. ते वखते चित्तकूड( चित्तोड )ना राजा समरसिंहे दंड आपीने मेवाडदेशनी रक्षा करी हती. त्यार पछी ते हम्मीर-युवराज वागडदेश अने मुहडासा (मोडासा) विगेरे नगरोने भांगीने आसावल्ली ( आसावळ, अमदावाद पासे ) पहोंच्यो हतो. कर्णदेव राजा नाठो.' सोमनाथने घणना घाथी भांगीने गाडामां चडावी दिल्ली( दिल्ली) मोकल्या हता. फरी वामणथली( वणथली) जइ मंडलीक राणाने दंडी सोरठमां पोतानी आण प्रवर्तावी आसावळमां पडाव नाख्यो हतो. मठो, मंदिरो, देवळो विगेरे बाळी देवामां १. उपकेशगच्छना कक्कसूरिए वि. सं. १३९३ मां कंजरोटपुरमा पूर्ण करेला नाभिनंदन-जिनोद्धार प्रबंध ( ३ जा प्रस्ताव)मां सूचव्युं छे के-उछळता घोडाओरूपी कल्लोलोवडे समुद्रनी जेम पृथ्वीने व्याप्त करनार अलावदीन सुलतान ते वखते त्यां( पाटणमां ) राजा थयो हतो. जेणे देवगिरिमां जइ तेना राजाने बांधीने पोताना जयस्तंभनी जेम फरी त्यां ज स्थाप्यो हतो. सपादलक्ष( सेवालिक )ना रणथंमोरना स्वामी अभिमानी वीर हम्मीर राजाने हणी तेनुं सर्वस्व लइ लीधुं हतुं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद्. ] अल्लाउद्दीन युग. [ १०५ आव्यां हतां. अनुक्रमे सत्तसयदेशमां पहोंच्यो साचोरमां ढक्का - नादथी म्लेच्छोनुं सैन्य पलायन करी गयुं हतुं; परंतु त्यार पछी भवन, गोमांस अने लोहीथी छंटातां देवताओ दूर थतां भवितव्यता अलंघ्य होवाथी, दुःषमकाळना विलासथी अधिष्ठायक ब्रह्मशांति यक्ष प्रमादी थइ असंनिहित थवां अल्लादीन राजा वि. सं. १३६७मां ते ज भगवान् महावीर ( ब ) ने दिल्लीमां लावी आशातना - पात्र कर्या हता. ' ते कालांतरे फरीथी पाछा बीजी प्रतिमामां प्रकट प्रभाववाळा थइ पूजा - योग्य थशे. " कन्भाणयनयर ( कानानूर )वाळी महावीर - प्रतिमाने दिल्लीमां सुलतान महम्मद तघलकद्वारा सन्मानित - प्रतिष्ठित करावी उपर्युक्त भविष्यवाणीने वि. सं. १३८५ थी १३९०मां जिनप्रभसूरिए साची करी बतावी हती. चित्रकूटदुर्ग ( चित्तोडगढ ) ना राजाने बांधी तेनुं धन लइ तेने नगरे नगरमां वानरनी जेम भमाड्यो हतो. जेना प्रतापथी गुजरातनो राजा कर्ण, जल्दी नाशी, विदेशोमां भमीने रंकनी जेम मरण पाम्यो. माळवानो राजा पण पुरुषार्थ - रहित बनी किल्लामां केदीनी जेम घणा दिवसो वीतावी त्यां ( किल्लामां ) ज मृत्यु पाम्यो हतो. जेणे कर्णाट, पांडु, विलंग विगेरे देशोना समस्त राजाओने वश कर्या हता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] अल्लाउद्दीन युगमा [ जिनप्रभसूरि अने वि. सं. १३६९ मां शत्रुजय तीर्थना मूलनायक आदीश्वरना बिंबने म्लेच्छोए भांग्यानुं तथा वि. सं. १३७१ मां समराशाहे तेनो उद्धार कर्यानुं सूचन जिनप्रभसरिए वि. सं. १३८५मां रखेला राज-प्रसाद नामना शत्रुजय-कल्पमा कर्यु __ जेणे समियानक (समियाणा), जावालिपुर( जालोर ) जेवां केटलांय विषम स्थानोने ग्रहण कयाँ हतां, के जेनी संख्या करी शकाती न हती. जेणे खापरराजनां सैन्योने पोताना देशमां भमतां अट. काव्यां हतां." ए विषम समयमां पण शूरवीर राजपूतोए प्राणोनी परवा न करतां स्वदेश अने स्वमाननी रक्षार्थे पोतानां पाणी बताव्यां हताते संबंधमां जयसिंहसूरि-शिष्य महाकवि मुनि नयचंद्रे रचेला वीरांक सं. हम्मीरमहाकाव्य तथा पमनाभ कविए वि. सं. १५१२मां रचेल प्रा. ग. कान्हडदे-प्रबंध विगेरे प्रन्यो विशेष जिज्ञासुओए जोवा जोइये. " अलावदीन सुलताननो प्रसादपात्र प्रतापी प्रतिनिधि सेवक अलपखान, पत्तन( पाटण )मां नरनायक (राजा-सूबो) हतो, तेना राज्य अमलमा वि. सं. १३६६मां पिनशासन-प्रभावक उकेशवंशी ( ओसवाल ) सुश्रावक शाह जेसले स्तंमतीर्थ(खंभात)मां, खरतरगच्छना जिनचंद्रसूरिना सदुपदेशथी कोहडिका स्थापनपूर्वक, श्रावक-पोषधशाला साथे, अजितस्वामि देवनो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] कन्नाणपुरना जैन शिल्पशास्त्री. [ १०७ छे, जे शत्रुजय-तीर्थनायक(प्रतिमा)ना उद्धार-प्रतिष्ठा-प्रसंगर्नु संक्षेप-विस्तारथी वर्णन ते ज समयमां अंबदेवसरिए समरारास (गु.) द्वारा, तथा वि. सं. १३९३ मां उपकेशगच्छीय ककसरिए ( उपर्युक्त प्रतिष्ठा करनार सिद्धसरिना पट्टधरे ) रचेला नाभिनंदन जिनोद्धार-प्रबंध (सं.) द्वारा कयुं छे, जे अन्यत्र प्रसिद्धिमां आव्युं छे. विक्रमनी चौदमी सदीना उत्तरार्धमां-अलावदीनना राज्य-समयमां ठ. फेरु नामनों शिल्पकन्नाणपुरना जैन शास्त्री जैन विद्वान् ग्रन्थकार थइ गयो. शिल्पशास्त्री जेना पितामहनो तथा तेनो पोतानो वास ठक्कुर फेरु पण पहेलां कन्नाणपुरमा अने पाछळथी दिल्लीमा हतो तेम तेणे सूचित कर्यु छे. विधिचैत्यालय कराव्यो हतो, ते त्यांना शिलालेख( नकल प्राचीनगर्जरकाव्यसंग्रह गा. ओ. नं. १३, परि. (मां प्रकट थइ गयेल छे)थी विदित थाय छे. शाह देसलना सुपुत्र समरसिंह ते( अलपखान )नी सदा सेवा करता हता. राजा पण तेना गुणोथी प्रसन्न थइ बंधुनी जेम तेना पर प्रीति करता हता. राज-प्रसाद छतां पण समरशाह चंद्रकांतनी जेम शीतल हता. राज-प्रसाद प्राप्त करीने तेणे देश-स्वामी (राजाओ)नां कार्यों पण काँ हतां." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] दिल्लीश्वर पातशाहोथी [जिनप्रभसूरि अने रत्न-परीक्षा नामना ग्रन्थना अंत( प्रा. सं.)मां तेणे सूचव्यु छ के-" धंधकुलमां कन्नाणपुरमां कालिय नामना शेठ हता. तेना पुत्र ठक्कुर चंद्रनो पुत्र फेरु थयो, तेणे ढिल्लिय(दिल्ली)पुरीमा वि. सं. १३७२मां अलावदीनना राज्यमां संक्षेपथी रत्न-परीक्षा रची हती. ढि(दिल्लीनगरमा श्रेष्ठ बुद्धिशाली, जिनेन्द्रवचनना विचारकोमा अग्रणी फेरु नामनो वणिक्-शिरोमणि थयो. तेणे लोकोना हित माटे विद्वानोने चमत्कार करे तेवी, प्रासादोनी अने बिबोनी क्रिया-रत्नोनी सारभूत परीक्षा स्फुट करी हता." वास्तुसार ग्रंथना अंतमां तेणे जणाव्युं छे के-" धंधकलसकुलमां उत्पन्न थयेल चंद्रना पुत्र फेरुए कनाणपुरमां रहीने पूर्वशास्त्रोनुं निरीक्षण करीने वि. सं. १३७३मां १ " सिरिधंधकुल आसी कन्नाणपुरम्मि सिटिकालियओ । तस्स य ठक्कुरचंदो फेरु तस्सेव अंगरुहो ।। तेण य रयण-परिक्खा रइया संखेवि ढिल्लियपुरीए । कर-मुणि-गुण-ससिरिसे अलावदीणस्स रज्जम्मि ॥ श्रीढिल्लीनगरे वरेण्यधीषणः फेरु इति व्यक्तधी मूर्धन्यो वणिजां जिनेन्द्रवचने वैचारिकप्रामणीः । तेनेयं विहिता हिताय जगतां प्रासाद-बिम्ब-क्रिया रत्नानां विदुषां चमस्कृतिकरी सारा परीक्षा स्फुटा।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] सन्मानित जैनाचार्यो. [ १०९ विजयदशमीने दिने स्व-परोपकार माटे वास्तुसार( गृहप्रतिमा-लक्षणादि ) शास्त्रने रच्यु हतुं." अम्हारा स्नेही पं. भगवानदासजी जैनीए हिंदी अनु. वाद साथे जैन विविध ग्रंथमाळा, जयपुर सिटीथी हालमां प्रसिद्ध करेला आ ग्रन्थमां कन्नाणपुरने कल्याणपुर (करनाल, देहली ) सूचवेल छे, परन्तु अम्हारा धारवा प्रमाणे जिनप्रभसरिना कन्नाणयनयर-कल्पमां सूचित ते चोलदेश( दक्षिण )नुं कानानूर संभवे छे. संभव छे के ठ. फेरुए पितामहना प्रसंगथी पहेलां कन्नाणपुरमां वसवाट अने शास्त्र-निरीक्षण कर्या पछी दिल्लीमां आवी उपर्युक्त ग्रन्थ-रचना करी होय. दिल्लीश्वर पातशाहोथी सन्मानित समकालीन अन्य जैनाचार्यो. वि. सं. १४१० मा ६२७२ श्लोकप्रमाण सं. शांति १. " सिरिधंधकलसकुलसंभवेण चंदासुएण फेरेण । कनाणपुरठिएण य निरिक्खिउं पुवसत्थाई ॥ स-परोवगारहेऊ वयण-मुणि-राम-चंदवरिसम्मि । विजयदसमीइ रइअं गिह-पडिमा-लक्खणाईणं ।। परमजैनचन्द्राङ्गजठक्कुरफेरुविरचिते वास्तुसारे प्रासाद विधिप्रकरणं तृतीयम् । " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] दिल्लीश्वर पातशाहोथी [ जिनप्रभसूरि अने नाथ-चरित महाकाव्य रचनार, पेरोज शाहि महम्मद पातशाहनी सभामा प्रतिष्ठोदय प्राप्त करअने पेरोजथी नार मुनिभद्रसूरिए पोताना गुरु गुणगौरवित गुण- भद्रसूरिनो परिचय करावतां सूचव्युं छे भद्रसूरि अने के-" ते (बृहद्गच्छना मानभद्रसूरि )ना मुनिभद्रसूरि पट्टने शोभावनार गुणभद्रसूरि सुगुरु थया, जेओ व्याकरण, छंद, नाटक, तर्क, साहित्य, अलंकार विगेरे सर्व शास्त्रोमां चातुर्य घरावता हता. जेना श्लोकोना व्याख्यानथी रंजित थइ अयुत( दस हजार ) सौवर्णटंको( सोनैया ) आपता क्ष्मापाल-चूडामणि शाहि मुहंमदनी आगळ ' तपस्वीओथी ए ग्रहण न ज कराय ' एम बोलतां जेणे चारित्रने स्थापित कर्यु हतुं.' १. " तस्य श्रीगुणमद्रमूरिसुगुरुः पट्टावतंसोऽभवद् यः श्रीशाहिमुहंमदस्य पुरतः क्षमापालचूडामणेः । लोकव्याकृतिरस्जितस्य ददतः सौवर्णटङ्कायुतं प्राचं नैव तपस्विनामिति वदंश्चारित्रमस्थापयत् ॥ x x सच्छिष्यो मुनिभद्रसरिरजनि स्याद्वादिसंमाननः श्रीपेरोजमहीमहेन्द्रसदसि प्राप्तप्रतिष्ठोदयः । तेनेदं निरमायि मन्दमतिना श्रीशान्तिवृत्तं नवं तत्तजन्मसहस्रसंचितमहादुष्कर्मविच्छित्तये ॥ xx Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] सन्मानित जैनाचार्यो. [१११ वि. सं. १४१२ ना राजगृहीना जैनमंदिरना शिलालेखमा सूचन छे के-सकल महीपालोथी नमन करावा सुलतान शाह पेरोजना राज्यकालमां तेना हुकमथी मगधमां मलिकवयो (१) नामना मंडलेश्वरना समयमां, तेना सेवक सहणासदुरदीननी सहायताथी उपर्युक्त पार्श्वनाथ जैनमंदिर रचायुं हतुं. जेनी प्रतिष्ठा, खरतरगच्छना जिनचंद्रहरिनी आज्ञाथी उपाध्याय भुवनहिते करी हती. _ वि. सं. १४२२ मां ६३०७ श्लोकप्रमाण सं. पद्य महम्मदशाहथी कुमारपाल-चरित महाकाव्य रचनार, प्रशंसित कृष्णर्षिगच्छीय जयसिंहमूरिए पोताना महेन्द्रसूरि गुरु महेन्द्रसरिनो परिचय करावतां सूचव्युं छे के अन्तरिक्ष-रजनीहृदीश्वर-ब्रह्मवक्त्र-शशि-सनव्यवत्सरे । वैक्रमे शुचितपोजयातिथौ शान्तिनाथचरितं व्यरच्यत ॥" -मुनिभद्रपूरिना शांतिनाथचरित-महाकाव्यनी प्रशस्ति (श्लो. ७, ९, १७ य. वि. पं.) १. " सकलमहीपालचक्रचूलामाणिक्यमरीचिमखरीपिचरितचरणसरोजे सुरत्राणश्रीसाहिपेरोजे महीमनुशासति । तदीयनियोगान्मगधेषु मलिकवयोनाममंडलेश्वरसमये तदीयसेवकसहणासदुरदीनसाहाय्येन xx" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ ] दिल्लीश्वर पातशाहोथी [ जिनप्रभसूरि अने " प्रतिवर्ष दीन, दुःस्थो ( खराब स्थितिवाळा दुःखी ) ना उद्धार सुकृत माटे मानपूर्वक साक्षात् अपाती लाख दीनारो ( सोनामहोरो ) ने जेणे निर्लोभभावथी तृणनी जेम तजतां " आ ते एक ज महात्मा छे, बीजो नथी. ' एवं स्तोत्र राजा महम्मदसाहि तरफथी प्राप्त कर्यु हतुं, ते भगवान् महेन्द्रसूरि अम्हारा ता (पा) पनो विनाश करो. श्रेष्ठ भृगुपुर ( भरुच ) मां गणकचक्र - चूडामणि (ग विशेष माटे जुओ स्व, बाबू पूरनचंदजी नाहरनो जैन लेखसंग्रह ( भा. १ लो ), तथा जिनवि प्रा. जैनलेखसंग्रह ( भा. २, ले. ३८० ). १. " प्रत्यहं दीन-दुःस्थोद्धृतिसुकृतकृते दीयमानं समानं साक्षाद् दीनारलक्षं तृणमिव झटिति ( कटरि!) प्रोज्ज्ञय निर्लोभभावात् । एकः सोऽयं महात्माऽनघ ( न पर ) इति नृपश्री महम्मदसाहेः स्तोत्रं प्रापत् स ता (पा) पं क्षपयतु भगवान् श्रीमहेन्द्रप्रभुर्नः ॥ ७ ॥ तत्पट्टपूर्वाचलमण्डनैकचण्डद्युतिः श्रीजयसिंहसूरिः । कुमारपालक्षितिभृच्चरित्रमिदं व्यधत्त स्वगुरुप्रसादात् ॥ ८ ! × × " श्रीविक्रमनृपाद् द्वि-द्वि-मन्वब्देऽयमजायत । ग्रन्थः सप्त - त्रिशती - षट्सहस्राण्यनुष्टुभाम् ॥ —ही. हं. तरफथी वि. सं. १९७१ मां अने विजयदेवसूरि -संघ पेढी, मुंबइ तरफथी वि. सं. १९८२ मां प्र. कुमारपाल - चरित प्र. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] सन्मानित जैनाचार्यो [११३ णितज्ञ विद्वानोमां श्रेष्ठ ), राज-संस्तुत पेराज पातशा- (सन्मानित) मदनसूरि नामना विद्वान हना मान्य गणि- गुरु थया; तेना पद(सूरिपद)थी शोमता तज्ञ महेन्द्रसरि. महेन्द्रगुरुए परोपकार माटे कान्द १२९२=वि.सं.१४२७ मां गहन गणितशास्त्र सुयंत्रागम (यंत्रराज ) ग्रंथनी रचना करी हती. तेनी व्याख्या रचनार तेमना विद्वान् शिष्य मलयेन्दुसरिए उपयुक्त गुरु महेन्द्र सूरिने पेरोज पातशाहना सर्व गणको(गणितज्ञ विद्वानो )मां अग्रेसर तरीके सूचव्या छे.' चंद्रकीर्तिमरिना शिष्य हषकीर्तिमरिए स्त्रोपज्ञ धातुपाठवृत्ति( धातुतरंगिणी )नी प्रशस्तिमा पोताना पूर्वजोनो परिचय कराव्यो छे के१" अभूद् भृगुपुरे वरे गणकचक्रचूडामणिः कृती नृपतिसंस्तुतो मदनसुरिनामा गुरुः । तदीयपदशालिना विरचिते सुयन्त्रागमे . महेन्द्रगुरुणोदिताऽजनि विचारणा यन्त्रमा || x x श्रीपेरोजमहेन्द्रसर्वगणकः पृष्टो(क-प्रष्ठो) महेन्द्रप्रभु तिः सूरिवरस्तदीयचरणाम्भोकभृङ्गाता (ति)। सूरिश्रीमलयेन्दुना विरचितेऽस्मिन् यन्त्रराजागम___ व्याख्याने प्रविचारणादिकथनाध्यायोऽगमत् पञ्चमः ॥" विशेष माटे जुओ यंत्र राज । सुधाकरद्विवेदीद्वाग संशोधित, सं. १९३९मां काशीमां प्र.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] दिल्लीश्वर पातशाहोथी [ जिनप्रभसूरि अने " अवनितलने पवित्र करनारा जे गच्छमां, हम्मीरदेवथी पूजायेला सद्गुणी जयशेखरसूरि सुचरित पेरोज पातशा- पुरुषोमां मुकुट जेवा थइ गया. रूणा हथी सत्कृत पुरीमा सीहडना वचनथी अल्लावदी[न] रत्नशेखरसूरि. राजावडे सद्वस्त्र साथे फरमान-दानपूर्वक पूजायेला वज्रसेन गुरु पछी विद्यानिधि रत्नशखरसूरि गुरु थइ गया, जेने पातशाह पेरोज साहिए हर्षथी श्रेष्ठ वस्त्रोद्वारा सारी रीते पहेरामणी करी हती. अने नागपुरीय श्रेष्ठ पाठक हंसकीर्ति, दिल्लीमां साहि सिकंदर आगळ प्रतापथी अधिक थइ गया.'". १. " गच्छे यत्र पवित्रितावनितले हम्मीरदेवार्चितः सूरिः श्रीजयशेखरः सुचरितश्रीशेखरः सद्गुणः । रुणायां पुरि सीहडस्य वचनादलावदीभूभुना मद्वासः-फुरमानदानमहितः श्रीवज्रसेनो गुरुः ॥ १ ॥ सूरिश्रीप्रभुरत्नशेखरगुरुर्विद्यानिधिर्य मुदा सक्षोमैः किल पर्यधापयदरं पेरोजसाहिप्रभुः । श्रीमतसाहिसिकंदरस्य पुरतो जातः प्रतापाधिको दिल्ल्यां नागपुरीयपाठकवरः श्रीहंसकीया॑तयः॥२॥" -धातुतरंगिणी-प्रशस्ति (भां. रि. १८८२-८३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] सम्मानित जैनो [ ११५ बृहद्गच्छमां थयेला रत्नशेखरसूरि प्रा. सिरिवालकहा ( श्रीपालकथा दे. ला. नं. ६३ ) रची हती. जेनी प्रथमादर्श प्रतिने वि. सं. १४२८मां तेमना शिष्य साधु हेमचंद्रे लखी हती. सिद्धचक्रयंत्रोद्धार, गुणस्थान - स्वरूप ( क्रमारोह ), गुरुगुणपत्षिट्त्रिंशिका, क्षेत्रसमास, संबोधसत्तरी, छंद : कोश विगेरे ग्रंथरत्नो रचनारा पण आज रत्नशेखरसूरि जणाय छे. वि. सं. १४२९मां का. शु. ४ रविवारे पत्तन (पाटण) मां पूर्णिमापक्षना ज्ञानकलश मुनिद्वारा लखायेल नलायन महाकाव्य पुस्तकना अंतमां उल्लेख छे के-ते समये महाराजाधि - राज पीरोज पातसाहिथी नियुक्त खान दफरखान समस्त गूर्जर धरित्रीनुं परिपालन करता हता. सुलतान - सन्मानित शाह जगसिंह अने महणसिंह जेना देवगिरिना जिन-मंदिरनी प्रशंसा जिनप्रभसूरिए करी हती. तपागच्छनायक रत्नशेखरसूरिए वि. सं. १५०६ मां रवेली स्वोपज्ञ श्राद्धविधिनी ६७६१ श्लोकप्रमाणनी विधिकौमुदी नामनी वृत्ति [पृ. १६३] मां सूचव्युं छे के - " देवगिरिमा शाह जगसिंहे पोतानी समान करेला ३६० वणिक्पुत्रो ( वाणोतर ) द्वारा ७२००० टंकाओना व्ययद्वारा प्रतिदिन एकैक साधर्मिकवात्सल्य कराव्युं हतुं. एवी रीते प्रतिवर्ष तेनां ३६० साधर्मिक - वात्सल्यो थतां हतां. " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाह जगसिंह [जिनप्रभसूरि अने वि. सं. १५१७ मां भोज-प्रबंध विगेरे रचनार रत्नमदिरगणिनी उपदेशतरंगिणी(य. वि. ग्रं. पृ. १६५)मां तथा जिनप्रभसूरि-प्रबंध(सं.)मां पण आने मळतो उल्लेख छे. वि. सं. १५२१ मां पं. शुभशीलगणिए रचेला कथाकोश( कथा २२ मी)मां साधर्मिक-भक्ति पर जगसिंहनो संबंध सूचव्यो छे के-'साधर्मिकोना वात्सल्यन फळ मुक्ति-सुख प्राप्त करावनारुं छे' एम सांभळी जगसिंह शाहे देवगिरिमां धन-व्यवसाय विगेरेमां सांनिध्य कर विगेरे प्रकारोथी ३६० व्यवहारीओने पोतानी समान (समृद्ध ) साधर्मिको कर्या हता. त्यार पछी प्रतिदिन एकैकना घरे पक्वान विगेरे रसोई बनावाती हती. त्या सर्व श्रावको कुटुंब साथे जमता हता. त्यां प्रतिदिन ७२००० पोतेर हजार द्रव्यनो व्यय थतो हतो. एवी रीते प्रत्येकना घरे जमतां वर्षने अंते बीजी वार वारो आवतोहतो. तेवी रीते धर्म-कृत्य करता जगतसिंह शाहे भरत, दंडवीर्य राजाओने याद कराव्या हता." तपागच्छाधिपति सोमतिलकसरि, देवगिरिमां साह जगसिंहने घरे देवोने नमन करवा गया, त्यारे तेणे संघनी भक्ति कर्यानुं सूचन उपदेशतरंगिणी(पृ. १५९-१६०)मां मळे छे. ना कथाकोश( कथा २३)मां जणाव्यं छे के" एक वखते जगसिंह शाहे सोमतिलकसरि पासे धर्मर्नु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अने महणसिंह [ ११७ स्वरूप पूछयु हतुं. x x गुरुजीनो उपदेश सांभळी जगसिंह शाहे २९९ गाडां, हजारो घोडा, ५२ देवालयो विगेरे संघ तथा सोमतिलकसरिजी साथे शत्रुजय अने गिरनारनी यात्रा करी हती." जिनप्रभसूरिना सं. प्रबन्धमा उल्लेख छ के-"जिनप्रमसूरिजी सर्वत्र चैत्य-परिपाटी करता [म]हम्मद सुलतान साथे देवगिरिमां पहोंच्या त्यारे ते सा. जगसिंहे ३२००० बत्रीश हजार टंकाना व्ययथी प्रौढ प्रवेश-महोत्सव अने संघ-पूजन विगेरेथी तेमनो सत्कार को हतो. तेना देवतावसरमां, देवोने नमस्कार करवाना अवसरे माथु धूणावतां तेमने सा. जगसिंहे कारण पूछयु; त्यारे जिनप्रभसूरिए जणाव्यु के-हालमां बे अपूर्व तीर्थों जोयां-एक तम्हारं आ रत्नमय बिंब अने बीजें जंगम तीर्थ अणहिल्लपुरमा तपागच्छेन्द्र सोमतिलकसरिजी." ए सांभली तेना भक्त होवाथी सा. जगसिंहे विशेष प्रकारे भक्ति करी हती." 'जिनप्रभसूरिए देवगिरिमां शाह जगसिंहना अद्भुत गृह-चैत्यनां दर्शन कर्या हता. ' ए प्रसंग-संबंधमां पं. शुभशीलना कथाकोश( कथा २१)मां सूचव्यु छ के " एक वखते जिनप्रभसूरिजी नगरे नगर अने गामे गाम देवोने नमन करवा चाल्या हता. अहम्मद (१) एवा अपरShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] शाह जगसिंह [जिनप्रभसूरि अने नामवाळा परोिज सुलतान साथे देवगिरि पहोंच्या हता, त्यां तेमना पुर-प्रवेश-महोत्सवमां श्रावकोए घणा धननो व्यय को हतो. सर्व प्रासादो( जिनमंदिरो )मां देवोने नमस्कार करी, गृहचैत्योने वन्दन करता जिनप्रभसरिजी शाह जगत्सिंहने घरे गया हता. त्यां सूरिए श्रेष्ठ वैडूर्यरत्नमय, स्फटिकरत्नमय, स्वर्णमय, रूप्यमय, पित्तलमय प्रतिमाओने वंदन कयु हतुं. ते घर-तीर्थ जोइ सुरिजीए माथु धूणाव्युं तेथी जगसिंहे पूछयु के-' माथु केम धूणाव्यु ? ' गुरुजीए कधु के-अम्हे स्थाने स्थान, गामे गाम, नगरे नगरमां देवोने वांद्या, परंतु हालमां एक आ आपनुं घर-चैत्य अने वीजें जंघरालपुरमा तपा श्री सोमतिलकसरिजी वांद्या. हमणां आ बने उत्कृष्ट तीर्थो मनमा आव्यां, आथी माथु धूणाव्यु..xx प्रासंगिक धर्मोपदेश सांभळीने अने धर्मिष्ठो प्रत्ये अनुराग जाणीने शाह जगसिंहे श्रेष्ठ वस्त्रना तथा अन्न-पानना दानथी जिनप्रभसूरिजीनी विशेष प्रकारे भक्ति करी हती." वि.सं.१५०३मां पं. सोमधर्मगणिए रचेली उपदेशसप्तति(पांचमा गृहस्थधर्माधिकारना उ० ६ )मां जणाव्युं छे के____“पीरोज सुलताननी सभाने शोभावनार जगतसिंह नामनो शेठ योगिनीपुर( दिल्ली )मां थइ गयो. जे त्रण वखत जिन-पूजा अने बे वखत आवश्यक (प्रतिक्रमण) ए पांच वेळा साचवतो हतो. समस्त नगरमां अद्वितीय सत्यवादी तरीके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] अने महणसिंह [ ११९ प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि पाम्यो हतो. तेनी तेवी ख्याति सांभळी, तेनी परीक्षा करवा इच्छता सुलताने तेना मर्म जाणनारा दुर्जनोने एकान्तमा पूछयु के-' आ शेठ पासे केटलं धन छे?' तेना द्रोहीओए ७० लाख कह्या. केटलाक दिवसो पछी सलताने जगतसिंहने पूछयं के'तमारे त्यां केटलं धन छे ?' तेणे प्रत्युत्तरमांजणाव्यु के-विचारीने कहेवाशे' पछी बीजे दिवसे घरना सरसामाननी संभाळ करी सूचव्यु के-'पातशाह ! म्हारे त्यां चोराशी लाख द्रव्य छे.' बीजा लोकोए पहेलां जणावेली संख्याथी अधिक कहेवाथी आ साचो ज छे पोताना द्रव्यनी संख्याना कथनमां प्राये थोडा ज सत्यवादी होय छे.' एवो विचार करी तेना सत्य वचनथी संतुष्ट थयेला पातशाहे सोळ लाख आपीने ते शेठने कोटिध्वज( करोडपति ) को हतो.' १. वि. सं. १९०६मां रत्नशेखरसूरिए रचेली श्राद्धविधिवृत्ति[ पृ. ९६ ]मां जणान्युं छे के "संभळाय छे के ढि(दिल्लीमां ' शाह महणसिंह सत्यवादी छे ' एवी ख्याति सांभळी परीक्षा माटे सुलताने तेने पूछ\ के-' तम्हारे त्यां केटलुं धन छ ? ' तेणे कयु के–' जोइने जणावीश.' पछी सघळु लेखु ठीक करी राजानी प्रागड कडं के- म्हारे घरे अनुमानथी ८४००००० चोराशी लाख टंको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] शाह जगसिंह [जिनप्रभसूरि अने संभवे छे.' ' में थोडं सांभळयुं हतुं, प्राणे घणुं कद्यं' एवी सत्य सतिथी हर्षित थयेला राजाए तेने कोशाध्यक्ष (राम-भंडारी) बनान्यो हतो. वि. सं. १५२१ मां पं. शुभशीलगणिए रचेला पंचशती. प्रबंध (ह. लि, कथाकोश कथा १२ )मां सूचव्यु के के-" एक मनुष्ये सुलताननी आगळ कयु के-'जगसिंह शाह खौटुं बोलता नथी.' त्यार पछी सुलताने पूछयु के-'जगसिंह ! सम्हारा घरमां केटधन छे ?' तेणे कमु के-'काले कडेवाशे' त्यार पछी घरे मइशाहे घरनी सर्व लक्ष्मीनी संख्या करी सुलताननी पासे अइ का के-'म्हारा घरमा चोराशी लाख सोनाना टंको छे.' ते पछी सुलताने सत्य माणी सोळ लाख पोताना खजानामांथी अपाच्या अने तेने कोटिभ्वज कों हतो.” वि. सं. १९९५मां इंद्रहंसगणिए रचेली उपदेशकरूपबल्ली[फ्ट व ७] मां सूचन मळे छ के __"सत्यवादी तरीके प्रसिद्ध महणसिंहने असत्यवादी करवानी इच्छाथी कोइ दुर्जने ६४ हजार] सोनाना टंकावाळी तेनी लक्ष्मी प्रकाशित करी.पातशाहे सभामां तेने पूछयु के-'तमारे त्यां केटलुं धन के ? ' महणसिंहे कथु के-'तमे ७ दिन आपो, जेथी ते धन गणी शकुं.' त्यार पछी जोइने साचे साचं जणाव्यु के-'चोगशी (?) हजार लाख छे. ते सिवाय रूपुं विगेरे घरनो बीजो सार जुदो जाणवो. रामा ( पातशाह ) आश्चर्य पाम्यो के-'कोइ क्यांय सर्वस्व Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] अने महणसिंह [ १२१ पातशाहे एक वखते जगतसिंह शेठने पोताना खजानामांथी मंगावीने सूर्य जेवू तेजस्त्रि रत्न दर्शाव्यु अने पूछयु के 'आ रत्न जेवू बीजुं रत्न पृथ्वीमां कयांय छे ? ' जगतसिंहे जवाब आप्यो के-'पृथ्वी पर शुंबे पातशाहो होय ? । तेना वचनथी रंजित थयेला पातशाहे ते उत्तम रत्न तेने स्थापन करवा माटे ( थापणरूपे) आप्युं हतुं. भेद विना नेनी गाढ प्रीति थइ हती.' कहेतुं नथी. जेने म्हारा तरफथी द्रव्यना अपहरणनी वीक पण न लागी' सुलताने सत्यवादी मंत्रीनी गुण-प्रशंसा करी के-'आ सचिव म्हारा गज्यमा पृथ्वी पर शिरोमणि छे.' तथा तेनो सत्कार करी पहेरामणी आपी. तेनो यश पृथ्वी पर विस्तयों हतो." १" एक वखते सुलताननी आगळ कोइए ३ रत्नो वेषवा आण्यां हतां. रत्न-परीक्षको( झवेरीयो )ने बोलाववामां आव्या. सघळाए रत्नो वखाण्यां. त्यार पछी शाह जगसिंहने दर्शावतां तेणे का के-'पहेलं अमूल्य छे, बीजं लाख मूल्यनुं अने त्रीजु कोडीना मूल्यनुं छे.' राजाए पूछयु के-केम जणाय ?' पहेलु घणना सो घावडे पण भांग्युं नहि, बीजं घणना दस घा थतां सहज उच्छ्वसित थयुं (उखडयु), अने त्रीगँ घणनो घा थवाथी बे ककडा थइ गयु. पहेलो घा थतां सूक्ष्म देडकी नीकळी. तेथी शाह मानीता थया. ते वणिक( वेपारी )ने पहेला रस्मना ३ लाख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ ] शाह जगसिंह [जिनप्रभसूरि अने अपाठया, बीजा रत्नना एक लाख अपाव्या अने त्रीजा रत्ननी कोडी अपावी हती." [ह. लि. कथाकोश कथा १५ ] " एक वखते सुलताने पोताना हाथमां श्रेष्ठ रत्न लइ पूछयु के 'जगसिंह ! आ रत्नथी बीजु कोइ मोटुं श्रेष्ठ रत्न छे के नहि ?' शाहे का के 'आथी श्रेष्ठ रत्न आप छो.' सुलताने एथी रंजित थइ घणी लक्ष्मी आपी हती.” (कथाकोश कथा १३) " धर्मधुरंधर शाह जगसिंहे वचन-माधुर्यादि गुणोथी धरापीठमा प्रशस्त नाम धारण कयु हतुं. जेने सुलताने एक वखते राजसभामां पूछयुं हतुं के-' शाह ! आ मणि ( रत्न ) सरखं बीलु छ ? कहो.' शाहे प्रत्युत्तर आप्यो हतो के-पातशाह ! पृथ्वीमा सुलतान एक न होय, बीजो नहि. ते वचनथी रंजित थयेला राजाए तेने महाप्रसादपूर्वक पहेरामणी करी हती.” (उ. क.) वि. सं. १९५५ मां इंद्रहंसगणिए रचेली उपदेशकल्पवल्ली वृत्ति( ७मा पल्लव )मां प्रतिक्रमण करवाना विषयमां महणसिंहनो प्रबंध सूचव्यो छे "सुख संपदाओवें स्थान, अनुपम गामो अने आरामोथी अलंकृत भूमिवाळो देवगिरि नामनो देश शोभतो हतो. त्यां ऊकेश. बंशमां शिरोमणि जगसिंह नामनो धनिक वसतो हतो. जे अनर्गल लक्ष्मीवाळो, महेभ्योनी मंडलीमा मणि जेवो, सौजन्यपात्र हतो. राज-सभाने शोभाववामां हीरा जेवा, गुण-लक्ष्मीना घरसमा जे धन्य श्रेष्टीए अनर्गल धन-वृष्टिथी समस्त याचकोने पोध्या हता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अने महणसिंह [१२३ शुभ कर्मोद्वारा जेणे रत्नाकरथी उत्पन्न धन-राशि उपार्जन करी सुयश विस्तार्यो हतो. संसारनी असारता जोनार, मद मत्सरने तजनार, सदाचारी ने श्रीमान् चार प्रकारनी बुद्धिना सागर हता. जगत्ने आनंद पमाडनारा जे दानी, मननी आर्ति दूर करी धनने सदा सात क्षेत्रोमां वावता हता. दुर्भिक्ष( दुष्काल )मा, क्षीणसंपत्तिना प्रसंगमां ज्यारे दुरवस्थाथी अने अक्षेमथी लाखो लोको खळभळी उठ्या हता त्यारे ते श्रीमान् सेवा करवा योग्य थया हता. 'प्राप्त थयेली बहोळी चंचळ लक्ष्मी, सुफल हुं लइश.' एम विचारी जे श्रीमान् चडता उत्कृष्ट हर्षथी साधर्मिक लोकोने कुटुंब साथे सर्वदा जमाडे, परंतु ते साधर्मिको प्रतिदिन भोजन माटेनुं निमंत्रण मानता न हता; एथी तात्त्विक बुद्धिशाली जे श्रीमाने व्यवसाय( वेपार-उद्यम )ना बहानाथी पोतानुं द्रव्य आपी ३६० वणिकोने पोतानी समान कर्या हता, अने तेमनी द्वारा वर्षना ३६० दिवसोमां सदा नवीन नवीन प्रकारथी साधर्मिक-वात्सल्य कराव्युं हतुं. 'सारी अवस्थावाळा गृहस्थोना ते उत्सवो खरेखर प्रशंसायोग्य गणाय के जेमा सक्रियावाळा तत्त्वज्ञ सज्जनोनो सत्कार करवामां आवे.' x x ए जगसिहनो पुत्र कामदेव जेवो रूपवंत, कपट रहित मनवाळो, सर्व शाहोमां श्रेष्ठ,क्रियानिष्ठ,मंत्रिराज महणसिंह धर्मकृत्योमा द्रव्यव्यय करतो हतो. बंने वखत प्रतिक्रमण करतो हतो. अन्य जनोनी आपदा हरतां पुण्यनो भंडार भरतो अने संसाररूपी सागरथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] शाह जगसिंह [ जिनप्रभसूरि अने केटलोक काळ वीत्या पछी कोइ पण कारणथी पातशाह तेना पर रुष्ट थया !! तेथी पातशाहे तेने केदखानामां नखाव्या, तेनी रक्षा माटे पोताना एक सेवकनी योजना करी हती. सेवा वखते पण शेठने पातशाहे करेली परतंत्रताथी नही, परंतु पोताना पांच वेळाना धर्म - व्यतिक्रमथी खेद थतो हतो. तेथी ते सेवकने खानगीमा एकैक सोनानो टंको अपावी ए धर्मिष्ठ श्रीमान् पोतानी पुण्य - वेलाओने साधतो हतो. २१ दिवस सुधी २१ टंका अपावी तेणे पोतानां धर्मकार्यों कर्या हतां. त्यार पछी सुलताने प्रसन्न थइ तेने पोतानां शरीर परनां पांच आभूषणो अने पांच पंचरंगी दुकूलो ( उत्तम वस्त्रो )नी पहेरामणी करी हती. त्यार पछी घणां वाद्यो अने घणा लोको साथे वाजते गाजते, याचकोने इच्छित दान आपता शेठ पोताने घरे आव्या हता. पातशाह विगेरेथी डरतो ते रक्षक, एकांत थतां आवीने ते लीला टंका पाछा आपवा लाग्यो. शेठे कछु के-'भद्र ! पोतानो उद्धार करतो हतो. सज्जनो पर उपकार करतो अने दुर्जनोनो तिरस्कार करतो ते जगत्मां शोभतो हतो. " चंचल अधिकारोने प्राप्त करीने जेणे शत्रुओ पर अपकार कर्यो नहि, मित्रो पर उपकार कर्यो नहि, बंधु - वर्गोनो सत्कार कर्यो नहि; तेणे शुं कर्यु ? " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अने महणसिंह [१२५ में आ टंका तने समर्पण कर्या छे, तेथी तुं एने जेम रुचे तेम दे, भोगव अने सुखी था; कारण के में तारा प्रसादथी धर्मनुं अनुष्ठान कयु. धर्म संबंधी एक क्षण, करोडथी पण दुर्लभ छे. सेवा पांच पांच क्षणोने में एकैक टंकाद्वारा कृतार्थ कर्या. तेथी तने एथी पण अधिक द्रव्य आप, जोइए; तेने बदले लेवाय केम ? ' एम कही फरीथी वधारे दान आपी तेने विसर्जित कर्यो.' [ उपदेश-तरंगिणी ( य. वि. ग्रं. पृ. २१३ )मां सा. जगसिंहने बदले भूलथी साजणसिंह नाम छपायुं छे; त्यां पीरोज पातशाह द्वारा बंदी करातां ५० हाटको (सोनैया ) द्वारा ५० प्रतिक्रमणो कर्यानो अने पाछळथी सुलताने तेनो सत्कार कर्यानो उल्लेख छ.] १" लोकने प्रसन्न करनार गुणवाळा, सुवर्ण-भूषणोथी भूषित थयेला, अमृत जेवू भाषित करनारा ए अमात्यरूपी चंद्रमा वचनछलथी सुलताने रोषथी लाल आंखवाळा थइ अधिकार-विषयक कंइक दूषण हृदयमां विचार्य, अने तेने निगडो(बेडी)थी जकडी केदमां नाख्यो. बंदिर केदी)स्थानमा रहेवा छतां पण नियममां तेनी हृढता हती. लांघण थवा छतां पण ते प्रतिक्रमण करतो हतो. प्रतिदिन बब्बे सोनाना टंका आपवाथी रक्षको तेने प्रतिक्रमणनी वेळाए बंधनथी छोडता हता. क्रियामां रुचिवाळा, तेणे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] शाह जगसिंह [जिनप्रभसूरि अने सपादलक्ष (सेवालिक-अजमेर तरफनो देश)नो राजा एक वखते सुलताननी सेवा माटे हजूरमां आव्यो हतो. तेणे सुलतान आगळ बे वस्तु भेट धरी हती. (१) सूखडनो कटको अने (२) निर्मल मोतीनी जोड. ते अल्प भेट जोइ पातशाह क्षणवार रुष्ट जेवो थइ गयो हतो. सर्व सभ्यो जोई रडा हता, परंतु कोइ परीक्षा करतो न हतो. सपादलक्षनो राजा, जनोनी मूर्खतानो विचार करतो हतो. ए अवसरे जगतसिंहे पातशाहने जणाव्युं के-"आ बने वस्तु अमूल्य छे. आ चंदनना खंडनुं माहात्म्य एवं छे के–'अग्निथी तपेलं सो मण प्रमाण तेल होय, तेमां पण आ चंदननो खड नखातां ते तेल हिम जेवू शीतल थई जाय. बीजुं, कोइ छ महिनाना तावथी पण पीडातो होय, प्रतिक्रमणो करतां एक महिनाना ६० सोनाना टंका आप्या हता. भाग्ययोगे राजाए ( पातशाहे) तेनो क्रिया करवानो संबंध जाणी तेने मुक्त कर्यो अने विशेष प्रकारे पहेरामणी करी. राजारूपी अग्निनी परीक्षामाथी पसार थएल मंत्रिराजरूपी सोनुं विशेष तेजस्वी अने यशस्वी थयुं हतुं. तेना गुणो गातां होय तेवां वाद्यो वागतां ते आडंबरपूर्वक पोताना आवास पर आव्यो हतो. प्रतिक्रमणादि समस्त पुण्य करनारा ते मंत्रीने जोइ अन्य भव्यो क्रियामोमां सद्भाववाळा थया हता. राजाना सन्मानने जोई डरतो केदखानानो अधिकारी लीधेलु द्रव्य पाळु आपवा माटे मंत्रीना मंदिरे पहोंच्यो अने बोल्योShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अने महणसिंह [ १२७ ते आ चंदननो खंड घसीने पीए, तो ते पण रोगरहित थाय. पातशाह ! आ बने मोतीनुं कौतुक पण अवधारो-'आ बेमांथी एक मोती वेचीने बीजुं गांठे बांधवामां आवे तो सांझे पार्छ उत्सुक मित्रनी जेम जरूर तेने मळे. ए सांभळी पातशाह विस्मय पाम्यो अने ते बंने वस्तुनी परीक्षा करावी.' पातशाहे जगतसिंहने पूछy के-'तमे केवी रीते जाणो छो ? ' तेना प्रत्युत्तरमा जगतसिंहे जणाव्यु के-'बालपणथी अभ्यासथी वस्तु-परीक्षा हुं शीख्यो छु." । ___ तेना वचनथी प्रसन्न थइ पातशाहे सपादलक्षना राजा ' मंत्रीश्वर ! प्रसन्न थाओ. राज-प्रसादने प्राप्त थयेला तमे म्हारावडे भेट कराता आ सोनाना टंकाओने स्वीकारो.' मंत्रीचंद्रे जणाव्यु के-'आपे म्हाराथी बीह नहि. म्हारो ते क्षण धर्मकार्यथी सफल थयो. मनुष्यना आयुष्यनो जे क्षण, करोडो रत्नोद्वारा पण दुर्लभ छे, तेने में प्रतिक्रमणथी पवित्र कर्यो छे.' मंत्रीश्वरे २४ सुवर्ण टंकाओथी तेना सत्कार को हतो.' (उ.क.) १. " महेभ्य जगसिंहनो पुत्र महणसिंह हतो, मां कलाओ वृद्धि पामी हती. गुरुना सदुपदेशथी कुमित्रोनो कुसंग तनी जे सुशील, निर्मल अंत:करणवाळो, शीतल, प्रियभाषी अने विनयनम्र मस्तकथी शोभतो हतो. ___ जोडले उत्पन्न थनारां अने बीजाना हाथमां जवा छतां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ] शाह जगसिंह [ जिनप्रभसूरि अने पर तथा जगतसिंह पर घणो प्रसाद विस्तार्यो हतो. एवी रीते जीवन पर्यंत पांच पुण्य वेळाने आराधतां अने सत्य भाषा बोलतां शेठ जगत् सिंहे जैनशासनने लांबा वखत सुधी जागतुं कर्यु हतुं. " उपर्युक्त जगतसिंह शेठनो पुत्र मदनसिंह पण चतुर होइ लोकोमा तेवो ज प्रख्यात भयो हतो. पहेलां खुरासाणनिवासी धनद नामनो वस्तुपति तेना पितानो प्रीतिपात्र हतो. जगत्सिंह स्वर्गवासी थया त्यारे ते योगिनीपुर (दिल्ली ) मां व्यवसाय माटे आव्यो हतो, अने तेने घरे पण आव्यो हतो. कुटुंबनुं कुशल तथा तेनो निर्वाह, व्यवसाय विगेरे पूछी जगत् सिंहनी जेम तेना पुत्र साधे पण व्यवहार करवानी इच्छावाळो थयो हतो, परंतु तेनी परीक्षा माटे तेणे उपाय कर्यो. मायावडे कृत्रिम आदर दर्शावी तेणे मदन सिंहने कछु के - ' तारा पिता पासेनुं मारुं जे लेणुं छे, ते तुं आप; कारण के घणां वर्षों सुधी में तारा बाप साथे व्यवहार कर्यो, पण परस्पर मळी जनागं शिव-शक्ति नामनां, मोतीओने लइ महणसिंह दिल्लीमां गयो इतो, अने त्यां पातशाहने नमीने गंगाजल जेवां निर्मल ए मोती भेट कर्या हतां. ए मोतीओनो प्रभाव सांभळी सुलतान चमत्कार पाम्या पातशाहे महणसिंहने पोसाना अंतःपुर (अनानखाना)नो रक्षाधिकारी बनाव्यो हतो. राजमान्य थइ ते सदा धन्य अने उदार बन्यो हतो. " (ए. क.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अने महणसिंह [१२९ तेथी लेणदेण पण घणी थइ. पहेला सो घोडा आपीने देवू वाळयु हतुं, अने उत्सुकताथी पोताना नगरमां पहोंची गया त्यारे बाकीचं लेणुं अहिं रही गयु हतुं. 'केटलुं लेणुं छे ?' एम पूछातां तेणे कयु के-जूनां नाणां प्रमाणे ३२००० बत्रीश हजार लेणा थाय, जो बराबर होय तो आपो. मदनसिंहे पण का के-"पिताजीनुं देवु थोडं अथवा वधारे वहीमां में जे प्रमाणे जोडे ते नाम प्रमाणे में आपी दीधुं छे, परंतु तेमां आपनुं नाम में कयांय जोयुं नथी, तो लख्या बोल्या विना लेणु केवी रीते लेणुं थइ शके ?" चित्तमां हर्षित थवा छतां पण ते शेठ रुष्ट जेवो थइ तेना प्रत्ये बोल्यो के-'अरे ! पितानुं देवं पुत्र आपे तेमां विचार शो?' मदनसिंह-'शेठ ! आप आ फोकट प्रयास शा माटे करो छो ? साक्षी विना अथवा लखाण विना लेणुं लइ शकाशे नहि. ' ते शेठ सुलताननी सभामांगयो अने एकांत करावी सुलतानने विज्ञप्ति करी के-' परीक्षा माटे जगतसिंहना पुत्र साथे में बनावटी कलह मांड्यो छे जे ते प्रलाप करवामां मने कोई दोष देवो नहि.' एवी रीते खानगीमां महणसिंह बने वखत प्रतिक्रमण अने त्रिकाल देव-पूजा करतो हतो. साधुओने वहोरावी( दान आपीने ) ज जमतो हतो. प्रतिवर्ष त्रण वार साधर्मिक-वात्सल्य अने त्रण वार संघ-पूजा करतो हतो. " ( उ. क. प. ७) आज महणसिंहे दिल्लीमां वि. सं. ११०५मां पोते प्रापेली वसतिमां वास करावी रानशेखर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०] शाह जगसिंह [जिनप्रभसूरि अने कही सर्व समक्ष ते बोल्यो के-'पातशाह! जगसिंह पासे म्हारुं पहेलानुं लेगुं छे, ते आ तेनो पुत्र आपतो नथी; तो शुं करवामां आवे?ए आप फरमावो.' पातशाहना बोलाव्याथी सभामां आवेला जगतसिंहना पुत्रे पण पोतानुं स्वरूप का. तेणे पोतार्नु कपु. बनेनो विवाद थयो. वस्तुपति बोल्यो के'जो तारा बाप पासे लेणुं न होय तो सौना देखतां तुं बापना सोगन कर. ' पुत्र(मदनसिंह) धीरजपूर्वक बोल्यो के- आप लहेणु ल्यो अथवा म्हारं सर्वस्व ल्यो, परंतु हुं पिताजीना सोगन नहि करूं. करोडो उपकारोथी पण जेनो बदलो वाळी शकाय नहि तेवा पिताजीने शुं हुं ३२००० बत्रीश हजारमा वेचुं ?' महणसिंहनी एवा प्रकारनी उक्ति सांभळी सौ सभ्योए विस्मयपूर्वक तेनी प्रशंसा करी. ते वस्तुपति पण बोल्यो के-"वत्स ! तुं धन्य-शिरोमणि छो, के जेनुं आवा प्रकारच् साहस छे. में आ परीक्षा करी, म्हारं लेणुं कंइ ए नथी.' सिंहनो बच्चो सिंह जेवो होय, सूर्यथी अंधकारनी वृष्टि न होइ शके, चंद्रथी अंगाराओनी वृष्टि न होइ शके. एवी रीते तेणे तेनी प्रशंसा करी तेने जगतसिंहना श्रेष्ठ स्थान पर स्थापी तेनी जेम महणसिंह साथे पण व्यवहार विस्तार्यो हतो. एवी सूरिद्वारा चतुर्विशति-प्रबन्ध ग्रन्थ कराव्यो हतो-ए पहेलां (पृ. ४३ मां) अम्हे जणाव्युं छे. १"ऊकेश (योसवाळ ) ज्ञातिना आगेवान शाह जग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद, ] अने महणसिंह [ १३१ रीते मदनसिंह पण राजा विगेरेमां वल्लभ थयों हता. 'ज्यां ज्यां गुणोनो आदर होय, त्यां त्यां प्रतिष्ठा संभवे छे. ' 66 एक वखते मांदा थयेला सुलतानने मेवाडथी आवेला पोला नामना महावैद्ये रोगरहित कर्या हता. विविध औषधो अने योगोनो जाणकार, रसांगवेदी शास्त्रज्ञ ते वैद्यराज त्यारथी राजा विगेरेनो पण मान्य थयो हतो. अत्यंत बलवान् ते वैद्य - राज एक साथे ९ नाळिएर भांगी नाखतो हतो, अने सोपारीने पोताना अंगुठावडे नाळिएरमां नाखी शकतो हतो. बेने ढींचो पर, बेने काखमां, बेने कफोणि पर, बेने खभा पर अने एकने चिबुक पर राखीने ते नव नाळिएरने चूर्ण करी सिंहने घरे कोइ खरसाणी वणिक् पांच लाख टंका थापण मूकी करीने गयो हतो. ७ वर्षो गयां. त्यार पछी तेणे जगसिंह ने मृत्यु पामेलो सांभळी विचार्य के 'धन गयुं.' फरी विचार्थी के - ' तेनो पुत्र मुहणसिंह छे, तेनी परीक्षा करीए.' त्यार पछी त्यां आवीने तेणे करूं के - ' मुहणसिंह ! तम्हारा पिता म्हारा मित्र हता. में तमारा पितानी पासे X × ते बंने सुलताननी पासे गया, बनेए पोतपोतानो संबंध कह्यो. खरसाणीए करूं के - ' आप पिताना सम करो. ' महणसिंहे कां के - ' पांच लाखवडे शुं बापने वेचे ? ' त्यार पछी तेने पांच लाख आप्या. खरसाणीए जगसिंहना अक्षरो दर्शावीने क ुएं के - ' सिंहथी सिंह ज थाय छे.' ए साधुं थयुं. मुहणसिंहने एक लाखनी पहे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] शाह जगसिंह [ जिनप्रभसूरि अने नाखतो हतो. ते महावैद्य एक वखते महाजन साथे शाला ( उपाश्रय ) मां आव्यो हतो. त्यां वेषधारीद्वारा कराता व्याख्यानमां बेठो हतो. त्यां कोइक अधिकारमां तपागच्छनी अवहीलना अने पोतानी प्रशंसा करी त्यारे पोलाक बोल्या :-'अरे बोकडा ! शुं बोले छे ? महाजनने जोतो नथी ? ' एम कही एकदम ऊठीने तेने लातथी प्रहार कर्यो हतो. वेषधारी रोषथी लालचोळ थइ सुलताननी सभामां गया अने वैद्य पण त्यां पहोंच्या. बनेए पोतपोतानो वृत्तांत कह्यो बनेनुं मान्यपणुं होवाथी राजा बोल्या नहि, तेवामां मदनसिंह बोल्या - 'पातशाह ! आमां विचारणा शी ? एके जीभ वापरी अने बीजाए हाथ चलाव्यो. एकनो दंड थतां बीजानो पण दंड थवो जोइए; तेथी बनेनो पण न करवो. ' ए सांभळी पातशाहे अंतःकरणमां हसतां ते बनेने मृदु वचनोथी सान्त्वन पमाडी पोतपोताना स्थानमां विसर्जित कर्या हता. " ( उपदेशसप्तति अ. ५, उ. ७, पृ. ८६) गमणी करी. मैत्री करीने ते गयो. " ( शु. कथाकोश कथा १४ ) 9 १ " एक वखते मेवाडी वैद्य पाल्हाक, सुलताननी चिकित्सा माटे आव्यो हतो, ते कोमलसूरिनी शालामां गयो हतो, त्यां तेओए ( कोमल यति- सूरिओए ) तपागच्छना सूरिवरोनी निंदा करी हती, तेथी तेणे कोमल यतियोने हक्कित कर्या, तेथी कलह थयो. केटलाकना हाथ भांग्या, केटलाकनां मोढां भांग्यां, त्यार पछी वाद करता सौ सुलताननी पासे सर्वनी चेष्टा जाणी करूं के -' कोनो दंड Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat गया हता. सुलताने कराय १ सर्वे न्यायी www.umaragyanbhandar.com Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwwwwwwwwww सुलतान महम्मद.] अने महणसिंह [१३३ अने सर्वे अन्यायी छो. हवे पछी कोइए पण कलह करवो नदि. ए प्रमाणे समता पर पीरोज सुलताननो संबंध" जिनप्रभसूरिना केटलाक अवदात संबंधोमां शुभशीलना कथाकोश [कथा १७ मां जणावेल छे. केटलाक दुर्जनोए असद् दूषणोनी घोषणा करी पवित्र एवा महणसिंहने पण दूषित कर्यो हतो, अंत:पुरना द्वार पर आवतां भूपाले ( पातशाहे ) ते स्थानमांथी नीकळता ते( महणसिंह )ने जोयो. प्रज्वलित कोपानिनी ज्वालाथी लालचोळ आंखोवाळा थइ पातशाहे तलवार खेंची; वस्त्रो उतरावी प्रहार करता ७ ताळांवाळो कच्छोटो जोयो. पातशाहे ताळांओ उघाडवा कडं. महणसिंहे जणाव्यु के' कुंचीओ स्त्रीना हाथमा छे.' घरे गया पद्धी ताळांओ उघाडवानुं बनशे.' [ग्रीक राज्योमां भावी पद्धति होवार्नु जणाय छे ] पातशाहे तेना शरीर-नियंत्रणनी अने उज्ज्वल शीलनी प्रशंसा करी. शीलना माहात्म्यथी महणसिंहनी कीर्ति आदन( एडन ) बंदर सुधी पहोंची हती. सर्व कलाओथी युक्त कामलता नामनी रूपवती वेश्या तेनुं नाम सांभळी खंचाइने त्यां आवी. अद्भुत नृत्य करतां नर्तकीए सुलतानने रंजित को. दानना अवसरे तेणीनी याचना प्रमाणे महणसिंहने घरे नाटक( नृत्य ) प्रकट करवानुं पातशाहे फरमाव्युं. ते चतुर नर्तकीए त्यां आवी ७ वार नृत्य कर्यु छतां । आ महणसिंह छे' एम जाण्यु नहि. त्यार पछी गुणी महणसिंहे नाटक कराव्यु. तेने जोइ हृष्ट तुष्ट थयेली, पोताने धन्य मानती ते नर्तकीए नृत्य कयु. गुणवंत महणसिंहनी परीक्षा करी सुलतान आगळ प्रशंसा करी हती." ( उपदेशकल्पवल्ली प. ७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ] जिनप्रभसूरिनो [जिनप्रभसूरि अने - जिनप्रभसूरिनो विशेष परिचय (प्राचीन प्राकृत *प्रबंधना आधारे) जिनपतिसूरिना पट्ट पर जिनेश्वरमरि थया (जेमना पिता नेमिचंद्र भंडारी हता). तेमने बे श्रीमालसंघना गुरु शिष्यो हता. एक श्रीमाल जिनसिंहजिनसिंहसूरि सूरि अने बीजा ओसवाल जिनप्रबो धसूरि. एकवखते जिनेश्वरसूरि पल्हूपुर (पालणपुर) नगरमां पोसहशालामां बेठा हता, एवामां सूरिनो * आ प्राकृत गद्य प्रबंधनी प्राचीन प्रति जोवा मळी शकी नथी, परंतु ते उपरथी नवी लखावेली ९ पत्रवाळी अशुद्ध एक प्रति हालमां ज म्हने बीकानेर( मारवाड )थी जिनहरिसागरसूरिजीए जोवा मोकलावी छे. तेनी रचना विक्रमनी पंदरमी सदीमां थइ हशे, तेम धारवामां आवे छे. तेमां कर्ता, नाम जणातुं नथी, तेम छतां जिनप्रभसूरिना नजीकना कोइ शिष्य-प्रशिष्ये तेनी रचना करी हशे-तेम तेना उल्लेखो परथी अने शैली परथी कल्पना करी शकाय. तेमां जिनप्रभसूरिना पूर्वजो( वर्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचंद्रसूरि, अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनचंद्रसूरि, जिनपतिसूरि, जिनेश्वरसूरि )ना अने गुरु जिनसिंहसूरिना प्रबंधो जणाव्या पछी छेल्ले जिनप्रभसूरिनो प्रबंध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] विशेष परिचय [ १३५ गयो. दंडो अकस्मात् ' तडतड' एवो शब्द करीने बे ककडा थइ सूरिए पूछयूँ के - ' शिष्यो ! आ शब्द केम थयो ? ' शिष्योए जोने कछु के-स्वामी ! तम्हारो आखो दंडो बे ककडा थह गयो. ते पछी आचार्ये विचार कयों के - " म्हारी पाछळ बे गच्छो थशे, तो हुं जाते ज गच्छने म्हारा हाथमां करीश. " 4 आज अवसरमा श्रीमाल संघोए मळीने विचार्य के - आ देशमां कोइ गुरु आवता नथी. चालो गुरु पासे, गुरुने लावीए.' सकल संघ मळीने गुरु पासे गयो. आचार्यने वांदीने सकल संघ विज्ञप्ति करी के - ' स्वामी ! अम्हारा देशमां कोइ पण गुरु आवता नथी, तो अम्हे शुं करीए ? गुरु विना सामग्री ( धर्म - साधना ) न थाय. ' गुरुए पूर्व निमित्त जाणीने श्रीमालवंशमां उत्पन्न थयेला जिनसिंहगणिने पोताना पट्ट पर स्थाप्या. ' जिनसिंहसूरि ' एवं नाम कर्यु अने कहां के - ' आ श्रावको में तमने सोप्या, संघ साथे जाओ.' त्यारपछी गुरुने वांदी जिनसिंहरि श्रावको साथे आव्या. सर्व श्रीमाल संघोए क के - ' आजथी मांडीने आज अम्हारा धर्माचार्य छे. ' छे. एमना पूर्वाचार्यों संबंधी वृत्तांत अन्यत्र प्रकाशित थयेल होवाथी अने केटाको परिचय अम्हे अन्यत्र आपेल होवाथी अहिं प्रस्तुत प्रबंधनोज अनुवाद प्रकट करवामां आवे छे. पहेलां सूचवेला उल्लेखो साथै तुलनात्मक दृष्टि सरखाववाथी आ प्रबंधनी उपयोगिता समजाशे अने पुनरुक्ति जणाशे नहि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ] जिनप्रभसूरिनो [ जिनप्रभसूरि अने आथी बे गच्छो थया. वि. सं. १२८० संवत्सरे पल्हूपुर (पालणपुर) नगरमां जिनेश्वरसूरिए जिनसिंहने सूरि कर्या, पद्मावतीमंत्रनो उपदेश कर्यो. केटलांक वर्षो पछी जिनेश्वरसूरि देवलोकमां गया. जिनेश्वरसूरिना पट्ट पर जिनसिंहसूरि थया, तेओ पद्मावतीना मंत्रनी साधनामां तत्पर थइ जिनप्रभसूरिनां नित्य ध्यान धरता हता. ध्यानना अंतमां पद्मावतीए कह्युं के ' तम्हारुं जन्म - दीक्षासूरिपदादि आयुष्य छ मास (१) छे.' सूरिए कां के " म्हारा शिष्योने प्रत्यक्ष थजो, म्हारा पट्ट पर कोण थशे ? ए कहो. ' पद्मावतीए कछु के- " सो (मो) हिलवाडी नगरीमां तांबी गोत्रने पवित्र करनार महाधर नामनो महर्द्धिक ( श्रीमान् ) श्रावक छे. तेना पुत्र रत्नपालने खेतल्लदेवी भार्याथी उत्पन्न थयेल सुभटपाल नामनो पुत्र सर्वलक्षणसंपन्न छे, ते तम्हारा पट्ट पर जिनप्रभसूरि नामना भट्टारक जिनशासनना प्रभावक थशे. " ए वचन सांभळी जिनसिंहरि त्यां गया. मोटा महोत्सवपूर्वक श्रावके पुर - प्रवेश कराव्यो. पछी सूरि महाधर शेठने घरे गया. आचार्यने जोइ [शेठ] सात आठ पगलां सामे गया. वंदन करी आसन पर निमंत्रण कर्यु - ' भगवन् ! म्हारा उपर मोटो प्रसाद कयों के - आप म्हारे घरे पधार्या, परंतु आगमननुं प्रयो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] विशेष परिचय [१३७ जन कहो, त्यारपछी गुरुए कह्यु- महानुभाव ! तम्हारे घरे हुँ शिष्य-निमित्ते आव्यो छु, म्हने एक पुत्र आपो. ' तेणे 'तथा' कही ते स्वीकार्यु. अन्य पुत्रो साथे वस्त्र विगेरेथी संस्कार करीने ते पुत्र आण्यो, अने कहा के-'आमांथी तम्हने जे रुचे, तेने ग्रहण करो. ' गुरुए कह्यु के-' आ ( अन्य ) पुत्रो दीर्घ आयुष्यवाळा थइ तम्हारे घरे रहो, परंतु जे सुभटपाल बाल छे, ते आपो. । तेमज कयु. वहोराव्यो( अर्पण कों). तेने सुमुहूर्ते दीक्षित कर्यो. वि. सं. १३२(३)६ वर्षे दीक्षा, शिक्षा आपी, पद्मावती-मंत्र समर्पित कर्यो. अनुक्रमे ते गीतार्थचूडामणि थया. वि. सं. १३४१ वर्षे किढिवाणा नगरमां जिनसिंहमूरिए सुमुहूर्ते पोताना पट्ट पर जिनप्रभसूरिने स्थाप्या; जिनसिंहमरि देवलोकमां गया. जिनसिंहसरिना पट्ट पर जिनप्रभसूरि थया. तेने पूर्व ___पुण्यना वशथी पद्मावती प्रत्यक्ष थई पद्मावतीना प्रभावी हती. सरिजीए एक वखते पद्मावचमत्कारो तीने पूछयं के-' भगवति ! कहो, कया नगरमां म्हारी उन्नति थशे?' पद्मावतीए जणाव्यु के-" तम्हारो विहार जोगिणी-पीठ ढीली( दिल्ली )नगरमा महोच्छ्रय( महोदय )वाळो थशे, त्यां तम्हे जाव." त्यार पछी गुरुए विहार को, अनुक्रमे योगिनीपुरमां आव्या. बहार वाहा( शाखा)पुरमा उता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ] जिनप्रभसूरिनो [ जिनप्रभसूरि अने मुलाकात एक वखते सूरि, बहार शौचभूमि तरफ गया हता. त्यां मिथ्यादृष्टि अनार्यो ( मुस्लीमो ) लेष्टु महम्मदशाहनी ( ढेफां-ढेखाळा ) विगेरेथी पराभव करवा लाग्या. तेथी गुरुजी बोल्या के - ' पद्मावति ! सारो महोच्छ्रय थयो !' त्यार पछी पद्मावतीए ते वध करनारनी ज ते लेण्ड (ढेफां - देखाळा) विगेरेथी पूजा करी. तेथी अनार्यो ( मुस्लीमो ) पलायन करता महम्मदशाहनी पासे गया. सूरिनो वृत्तांत को. तेथी चित्तमां चमत्कार पामेला शाहे पूछधुं के - ' ते पुरुष कथां छे ? ' तेओए जणाव्युं के - " अम्हे तेने बहारना प्रदेशमां जोयो हतो. " पातशाहे प्रधान पुरुषोने आदेश कर्यो - ' जाओ, तम्हे तेने अहि आणो, जेथी हूं तेने जोउं . ' तेओए जइने गुरु पासे निवेदन कर्यु के - ' स्वामी ! अमारा प्रभु ( शाह ) पासे आवो, त्यार पछी तमे जजो. त्यार पछी आचार्य पोळ ( राजमहेल ) ना द्वारे जइने रह्या. सेवकोए जइने निवेदित कर्यु. तेओ शाहने निवेदन करे ते समयमा सूरिए शिष्योने कछु के- ' हुं कुंभकासन करूं छं, ज्यारे शाह आवे, त्यारे तम्हारे कहेतुं के - ' आ अम्हारा गुरु छे. 'त्यार पछी ते कहेशे के - ' जेवा हता, तेवा करो. त्यार पछी ' तम्हे भीनुं वस्त्र घरी उठाडजो. " ए , प्रमाणे कहीने गुरु ध्यानमां बेठा, कुंभ-समान थया. त्यार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [१३९ पछी महम्मदशाहे आवीने शिष्यने पूछयु के-' तम्हारा गुरु कयां छे ११ तेणे कडं के-' तम्हारी आगळ देखाय छे.' शाहे कयु के-' ते पहेलां जेवा हता, तेवा करो. ' त्यार पछी शिष्ये वस्त्र सरस करी सन्ज कर्या. ऊठीने सूरिए धर्म-लाभनी आशिष आपी. त्यार पछी बनेनो कथा-संलाप थयो. शाहे कयु के- स्वामी ! अम्हारी प्राणप्रिया बालादे राणी छे, तेने व्यंतर वळग्यो छे तेथी व्यंतरनो वळगाड तेणी पोताना देहपर वस्त्रोने ग्रहण करती दूर करवो (पहेरती) नथी, शुश्रूषा पण करती नथी. तमे प्रसन्न थइने तेने साजी करो. में मंत्र-जंत्रना जाणकारोने अने चिकित्सा करनाराओने बोलाव्या हता; परंतु ते जेने जेने जुए तेने तेने लेष्टु ( ढेफांढेखाळा ), लाठी विगेरेथी हणे छे. तमे प्रसाद करीने हमणां तेने जुओ. ' गुरुए कह्यु के-" तम्हे तेनी पासे जाओ अने एवी रीते निवेदन करो के-जिनप्रभसूरि तम्हारी पासे आवे छे." शाहे जइने कडं. ते वचन सांभळी सहसा ऊठीने तेणीए कह्यु- दासी ! वस्त्र लावो. ' त्यार पछी दासीओए लावीने वस्त्र पहेराव्यु. तेथी शाह चमत्कार पाम्या, आवीने गुरुने कह्यु-'तेनी समीपमा आवो, तेने तम्हे जुओ.' सरि त्यां गया अने तेने जोइने सूरिए कद्दु के-रे दुष्ट! तुं अहिं कयां आव्यो ? तुं आनी पासेथी जा. तेणे जणाव्यु के-'हुँ केम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ] जिनप्रभसूरिनो [जिनप्रभसूरि अने जाउं ? सारं घर मल्यु छे.' गुरुए कह्यु के-'बीजे घर नथी ? ' तेणे जणाव्यु के-' आवा प्रकारचें नथी.' त्यार पछी गुरुए मेघनाद क्षेत्रपालने बोलाव्यो अने कह्यु के-'आ ( व्यंतर )ने दूर कर.' त्यार पछी मेघनादे ते व्यंतरने खूब पीडा करतां व्यंतरे जणाव्यु के-'. हुं क्षुधातुर छ-भूखथी पीडाउं छु, म्हने कंइक भक्ष्य (खावानु) आपो. ' 'शु आपुं?" एम पूछतां तेणे कयु के-'मने पाडा विगेरे आपो. ' गुरुए कह्यु के-' म्हारी आगळ एवं न बोलो, हुं तमने मजबूत बंधनथी बांधु छ. ' त्यार पछी सूरिए मंत्रनो जाप को. ते पछी व्यंतरे कह्यु के-' स्वामी! तम्हे सर्व जीवो प्रत्ये दयाने पाळनारा छो, म्हने केम पीडो छो ? ' सरिए कह्यु के–' तुं आ स्थानमांथी जा. ' तेणे कयुं के–' म्हने कंइ पण आपो. ' 'शुं आ ?' एम पूछातां तेणे कयु के-' घी, गोळ साथे लोट आपो.' शाहे कयु के-' ते आपुं छ.' गुरुजीए का के–' हुं केम जाणुं के-तुं गयो छे ?' तेणे कयु के-म्हारा जतां अमुक पीपळानी डाळ पडशे, तेथी जाणज्यो. त्यार पछी रातना समये ते प्रमाणे ज थयु. प्रभातमां बालादे राणीने सज्ज( साजी) थयेली जोइने शाहने महान हर्ष थयो. तेणे निवेदित कयु के-प्रिया ! जो आ महानुभाग ( महाप्रभावक) न आल्या होत तो तुं कयां होत ? ' ए सांभळीने तेणीए कह्यु के-" स्वामि ! आ (पूज्य पुरुष ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [ १४१ म्हारा पिता-सरखा छे. आ महात्मा ज्यारे तमारी पासे आवे त्यारे तमे एमनी आगता-स्वागता करज्यो, एमने अर्धा आसने बेसारज्यो." शाहे ते प्रमाणे स्वीकार्यु. राजा गुरु पासे जता हता, गुरुने पोताने घरे ( राज-महालमां) लावता हता, अर्धासन आपता हता. एवी रीते सुखे सुखे काल व्यतीत थतो हतो. त्यार पछी सर्व पाखंडो( दर्शनानुयायी-मतवाळा )नो प्रवेश थयो. आ प्रसंगमां वाणारसी राघवचैतन्यने (बनारस-काशी )थी चौदे विद्यानो हराववा पारगामी,मंत्र-तंत्रनो जाणकार,राघव __ चैतन्य ब्राह्मण आव्यो. ते आवीने राजाने मळ्यो. शाहे तेने बहु मानीतो कयों. ते हमेशां राजा पासे आवतो हतो. एक प्रसंगे सरि( जिनप्रभ) सभामां बेठा १ एपिग्राफिआ इन्डिका (पृ. १९२-१९४ ) मां तथा निर्णयसागर प्रेसनी प्राचीन लेखमाला (भाग २, ले. १००) मां प्रकट थयेल यमकच्छटावाळा ज्वालामुखी-देवी-स्तोत्रना रचनार राघवचैतन्य मुनि आ जणाय छे. ते स्तोत्र(शिलालेख)मां तेना नामनुं सूचन छे, कांगरा(डा) (पंजाबना) राजा संसारचंद्रनी प्रशस्ति पछी त्यां प्रस्तुत साहि महम्मदनी कीर्तिरूप ते परम योगिनी(ज्वालामुखी)ने सूचववामां भावी छेShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___१४२ ] जिनप्रभसूरिनो [ जिनप्रभसूरि अने हता, राघवचैतन्य विगेरे कथा-विनोद करता हता.राघवचैतन्ये दुष्ट स्वभावथी चिंतव्यु के-' आ जिनप्रभसरिने दोषवंत करीने आ स्थानमांथी अटकावू-कढावू.' एवो विचार करी तेणे विद्याना बलथी शाहना हाथमांथी मुद्रारत्न( वींटी )नुं अपहरण करीने सूरि न जाणे तेवी रीते जिनप्रभसूरिना रजोहरण( धर्मध्वज ओघा )मां नाखी दीधुं. पद्मावतीए सूरिने निवेदित कयु के'तम्हने चोर बनाववानी इच्छाथी राघवचैतन्ये शाहनी पासे. थी मुद्रारत्ननु अपहरण करी तम्हारा रजोहरणमां नाखेल छे. तमो " श्रीमद्राघवचैतन्यमुनिना ब्रह्मवादिना । [स्तव रत्नावली सेयं ज्वालामुख्यै समर्पिता ॥" ' श्रीमत्साहिमहम्मदस्य जयतात् कीर्तिः परा योगिनी ।' नि. सा. नी काव्यमालाना प्रथम गुच्छकना प्रारंभमां मूका. येल मंत्रमालागर्भित महागणपतिस्तोत्रना कर्ता पण आ कवि जणाय छे. तेनी व्याख्या-टिप्पणीमां तेने ' परमहंस परिव्राजका. चार्य' विशेषणथी परिचित कराव्या छे. शार्ङ्गधरे शाङ्गधरपद्धति (सुभाषितावली)मां केटलांक पद्यो ' श्रीराघवचैतन्यश्रीचरणानां ' उल्लेख साथे सूचवेलां छे, तथा शाकम्भरीश्वर हम्मीर चाहुवाण( चौहाण )नी राजसभाने शोभावनार द्विजाग्रणी राघवदेवना पौत्र तरीके पोतानो परिचय कराव्यो छे. एथी ए राघवदेव ज संन्यासी थया पछी राघव चैतन्य नामे प्रसिद्ध थया हशे-एम जणाय छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [१४३ सावधान थजो.' त्यार पछी मूरिए ते मुद्रारत्न लइ, राघवचैतन्य न जाणे तेवी रीते तेना माथा परना वस्त्रमा नाख्यु. महम्मदशाह जुए छे, तो मुद्रारत्न नथी. आगळ पाछळ जुए छे, परंतु मुद्रारत्न जोवामां आवतुं नथी. शाहे पूछयु के- अहिं म्हारं मुद्रारत्न हतुं, कोणे लीधुं ?" एम पूछातां राघवे कह्यु के–' शाह ! आ मूरि पासे छे. ' शाह सूरि पासे मागवा लाग्या. सूरिए जगाव्यु के-' आ (राघव )नी पासे छे. तेणे पोतानां वस्त्रो दर्शाव्यां. सरिए कह्यु के-शाह ! आ(राघव)ना माथा पर छे. माथा पर जुए छे, तो मुद्रा (वींटी) जोवामां आवी, शाहे ते लीधी अने राघवचैतन्यने कह्यु के-'धन्य छे !, तुं खरो सत्यवादी छो, के पोते लइने जिनप्रभसरिने दूषण आपे छे ! तेथी राघवचैतन्य श्याममुखवाळो थइ पोताने घरे गयो. एक वखते ६४ जोगणीओ श्राविकाओनुं रूप करी छळवा माटे सूरि पासे आवी, सामायिक लइने ६४ जोगणीओने व्याख्यान सांभळती बेठी. पद्माववश करवी. तीए मूरिने जणाव्यु के-'तमने छ __ळवा माटे आ ६४ जोगणीओ आवी छे. सरिए तेमने जोह तो तेओ व्याख्यान-रसमां लुब्ध थइ अनिमेष दृष्टिए ( आंखनो पलकारो कर्या विना ) सूरि तरफ दृष्टि राखीने बेठी हती. मूरिए ते बधीने त्यां ज खीली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] जिनप्रभसूरिनो [जिनप्रभसूरि अने दीधी-थंभावी दीधी. उपदेश थइ रह्या पछी सर्व श्रावको अने श्राविकाओ वांदीने पोताने घरे पहोंच्या. ते जोगणीओ आसनथी उठवा जाय छे, तो आसनने साथे लागेलुं ( चोंटेलु) जुए छे. ए जोइने फरीथी बेसी जाय छे. त्यारे सूरिजीए का के-श्राविकाओ ! ऋषिओने विहारभूमिनी ( भिक्षा माटे बहार जवानी ) वेळा थइ गइ छ, तमे वंदन करी ल्यो.” जोगणीओए जणाव्यु के-स्वामि! अम्हे तमने छळवा माटे आवी हती, परंतु तम्हे अमने छळी. प्रसाद करो, अम्हने मुक्त करो.' सूरिए कह्यु के-'जो तमे मने वचन आपो तो मुक्त करुं, नहि तो नहि. तेओ बोली के-' बोलो शी वाचा छे ? मूरिए का के-' जो म्हारा गच्छना सूरि(अधिपति)ओ तम्हारा जोगिणी-पीठ( १ उज्जेणी, २ दिल्ली, ३ अजयमेर दुर्ग अने ४ भरूच )मां जाय, तेने तमे उपद्रव न करो तो तमने मुक्त करूं.' जोगणीओए ते, ते प्रमाणे स्वीकार्यु. मुक्त करवामां आवतां ते पोतपोताना स्थानमा गइ. त्यारपछी आचार्यो सर्वत्र जाय छे, तेमने उपद्रव थतो नथी. त्यारथी ते जोगणीओ पोतानी वाचाथी बंधाइने रहे छे.' १ आ योगिनीनो संबंधमां जैनाचार्योना पण केटलाक उल्लेखो तथा प्रसंगो छे.सुप्रसिद्ध हेमचन्द्राचार्य द्वन्याश्रय(चौलुक्यवंश) महाकाव्यना १४ मा सर्गमां सिद्धराज जयसिंहने अवन्ती(मालवा)नी योगिनी साथे थयेला संलापनो उल्लेख को छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद्. ] विशेष परिचय [ १४५ एक वखते सूरि सभामां बेठा हता, तेवामां खुरासाणथी विद्यावंत एक कलंदर (मुस्लीम फकीर ) कलंदरनो गर्व हरवो आव्यो हतो. तेणे आवीने पोतानी कुल्लाह ( टोपी) उतारीने आकाशम फेंकी महम्मदशाहने कर्बु के -' शाह ! तम्हारी सभामां सेवो जिनदत्तसूरिए ६४ योगिनीओने वश कर्याना उल्लेखो म छे. योगिनीपीठ (दिल्ली ) मां विहारनो निषेध कर्यो हतो, सां दिल्लीना संघनी अभ्यर्थनाथी जिनदत्तसूरिना पट्टधर जिनचंद्रसूरि या हता; तेथी प्रवेश - महोत्सवमां ज योगिनीओए तेमने छल्या हता अने तेओ मृत्यु पाम्या हता. पुरातन दिल्लीमां तेमनों थूभ ( स्तूप ) हतो, संघ तेनो यात्रा - महोत्सव करतो हतो - एवा प्राचीन उल्लेखो मळे छे. तपागच्छना धर्मघोषसूरिए उज्जेणीना योगीना आक्रमणप्रभावनो प्रतीकार कर्यो हतो अने विद्यापुर ( बीजापुर ) नी कुलवा आवेली शाकिनीओने स्तंभित करी हती, तथा योगिनीओए करेला मरकीना उपद्रवने सुनिसुंदरसूरिए संतिकर स्तवनद्वारा शांत कर्यो हतो - एवा उल्लेखो मळे छे. आचारदिनकर जेवा जैन ग्रंथमां तथा अन्यत्र कालिकापुराण विगेरेमां ६४ योगिनीओनां नामो तथा तंत्रसार विगेरे तांत्रिक प्रथोमां तेनी साधनानां प्रकरणो जणाय छे. ૧૦ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] जिनप्रभसूरिनो [ जिनप्रभसूरि अने कोइ छे ? जे आ ( टोपी ) ने उतारे ' शाहे सभा सामे जोयुं, त्यार पछी सूरि, महम्मदशाह प्रत्ये बोल्या के - ' राजन् ! म्हारा वडे एनुं जे कराय ते तम्हे जुओ.' त्यार पछी यूरिए आकाशमां रजोहरण ( ओघो) फॅक्युं, तेणे जइने ते कुल्लाह (टोपी) ने माथे पाडी. त्यार पछी फरी पाछा ते कलंदरे एक स्त्री द्वारा लड् जवाता माथे रहेला पाणीना घडाने आकाशमां अद्धर ज थंभाव्यो. [ पहेलां प्रमाणे ] फरी पाछा शाहने कयुं. सूरिए ते घडाने भांगीने पाणीने घडाना आकारवां कर्यु. शाहे क के - ' पाणीना कण - फुसिया ( छूटा ) करो. ' सूरिए ते ज प्रमाणे कयुं. कलंदरनो अहंकार गयो. फरी पाछा एक वखते सभामां बेठेला अद्भुत निमित्त शाहे करूं के -' म्हारी सभामां बेठेला कथन विज्ञो ! मने आजे कहो के प्रभातमां हुं कया मार्गे थइने रयवाडी ( राजपाटी ) ए जइश १' त्यार पछी सर्व विज्ञोए पोतपोतानी बुद्धि प्रमाणे विचारीने चिठ्ठीमां लखीने शाहने आप्युं. शाहे सरि ( जिनप्रभ ) ने कं - ' तमे पण आपो. ' सूरिए पण पोतानी बुद्धि प्रमाणे चिठ्ठी आपी. ते सर्व चिठ्ठीओने लइने पोताना खुपट्टामां बांधी. शाहे विचार्यु के - ' आ बधा असत्यवादी ( खोटुं बोलनारा ) बने तेम करूं. एवो विचार करी शाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [१४७ बंदर बुरजो भांगीने नीकळ्यो. जइने बहार क्रीडा करी. एक स्थानमां बेठेला सूरि विगेरे सर्वने बोलाव्या, अने तेओने कह्यु के-' पोतपोतानुं लखेलु वांचो.' ते बधाए पोतपोतानुं लखेलुं वांच्यु. सूरि( जिनप्रभ )ने कह्यु के' आपनो लेख वांचो. ' आचार्ये लखेलं वांच्यु के-" बंदर बुरजो भांगीने क्रीडा करीने शाह वडना झाड नीचे वीसामो करशे." ए सांभळीने शाह चमत्कार पाम्या' अने बोल्या के'अहो ! आ आचार्य( जिनप्रभसरि) परमेश्वर सरखा छे, के देवो पण एनी सेवा करे छे.. १ आने मळती एक प्राचीन घटना जाणवामां आवी छे के मालवाना सुप्रसिद्ध महाराजा भोजे, पोते करावेला सरस्वती. कंठाभरण नामना शिव-प्रासादमांथी त्रणद्वारवाळा मंडपमाथी पोते कया मार्गे थइने नीकलशे ? आवो प्रश्न परमाहंत कवि धनपालने पूछथो हतो. पंडित धनपाले त्रिकालवी सर्व वस्तुओना ज्ञानवाळा केवलि-प्रणीत अहंछी चूडामणि नामना प्रश्नमय अतिप्रशस्त अन्थना आधारे प्रश्न विचारी, तेनुं फल पत्रमा लखी, ते पत्रने माटीना गोळानी अंदर नाखी स्थगीधरने आपी महाराजाने पधारखा कह्यु हतुं. जैन देव, गुरु अने आगम साथे तेने असत्यवादी ठराववानी इच्छाथी सूत्रधारोने बोलावी, मंडपनी पद्मशिलाने दूर करावी राजा उपरना मार्गथी नीकल्यो हतो, पछी पत्र वांच्यु तो तेमां तेवी रीते नीकळवानुं लख्यु हतुं-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ ] जिनप्रभसूरिनो [ जिनप्रभसूरि अने त्यार पछी शाहे जिनप्रभसूरिने कयु के--- आ बड शीतल छायावाळो मनोहर छे, तो ते वडने साथे प्रमाणे करो के जेथी म्हारी साथे चलाववो आवे. ' सूरिए ते प्रमाणे कर्यु. पांच कोश पछी मूरिए का के-शाह ! आ झाडने विसर्जन करो-रजा आपो तो पोताने ठेकाणे जाय. सूरिए ते प्रमाणे कर्यु के शाहे ते झाड(वड)ने रजा आपी त्यारे ते गयो. एक वखते कनाणपुरना महावीरने म्लेच्छोए लइ अइ शाहनी पोळ( राजमहाल )ना महावीरनी बारणा आगळ पाडीने नीचु प्रतिमाने मुख करावी नाखी मूक्या हता. लोको बोलती करवी तेना उपर थइने जता आवता हता. जिनप्रभसूरि आव्या, त्यारे तेमणे " सिरिभोयरायराया कवडेणुग्घाडिऊण पउमसिलं । उड्डपहेणं त(न)ह मंडवाउ सिद्ध व्व नीसरिही ॥" तेना वचनने साचं जाणी राना मनमां परितुष्ट थयो हतो अने तेणे जिनशासननी प्रशंसा करी हती." -वि. सं. १४२२मां पाटणमा संघतिलकाचार्य रचेली सम्यक्त्वसप्तति-वृत्ति( दे. ला. पत्र ८२)मां आ उल्लेख कयों छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [ १४९ प्रतिमाने ते अवस्थामा जोइ. ते पछी सूरिजीए राजमहालमां जइने शाहने जणान्यु के -' शाह ! जो आपो तो तम्हारी पासे एक प्रार्थना करूं. ' शाहे कह्यु के-'मागो ते आपुं. त्यार पछी पाउलि(राजमहाल)ना द्वार पर रहेला महावीर माग्या. त्यार पछी शाहे महावीरने पोतानी समीपमा मंगाव्या. चित्त हरनार मनोहर महावीरने जोया पछी शाह मूरि प्रत्ये बोल्या के--' आ तमने हुं नहि आपुं.' सूरिजीए कह्यु के- अम्हारं आगमन निरर्थक थयु. ' शाहे कथु के-- 'जो आ( महावीर--प्रतिमा )ने मुखथी बोलावो, तो हं आपीश. ' मूरिजीए कह्यु के-' जो ए( महावीर-मूर्ति नी पूजा-सत्कार करो, तो बोले. ' शाहे ते प्रमाणे (पूजासत्कार )को. पूजानां उपकरण( सामग्री) करी बे हाथ जोडीने शाह बोल्या के-'प्रसाद( महेरबानी) करीने आप बोलो. ' त्यार पछी महावीर जमणो हाथ पसारीने बोल्या के"विजयतां जिनशासनमुज्ज्वलं विजयतां भु(सु)ज[ना]धिपवल्लभः विजयतां भुवि साहिमहम्मदो विजयतां गुरुसूरिजिनप्रभः॥" भावार्थ:-उज्ज्वल जिन-शासन विजयी थाओ, सुजन राजाओनो वल्लभ विजयी थाओ, भूमि पर शाह महम्मद विजयी थाओ अने गुरु जिनप्रभसरि विजयी थाओ. तेनो अर्थ गुरुना मुखथी सांभळीने शाह तुष्ट थया अने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनप्रभसूरिनो [ जिनप्रभसूरि अने बोल्या के - ' आ ( महावीर देव ) ने महावीरनुं सन्मान हुं शुं आपुं ? ' सूरिजीए कर्तुं केपूजन करावं ' शाह ! आ देव सुगंधी द्रव्योथी तुष्ट थाय छे.' त्यारपछी शाहे ( महम्मदे ) खरह अने मातंड बे गाम आप्यां श्रावको धूप लावीने सदा धूप - पूजा करवा लाग्या. सुलताने ते ( महावीर )ो प्रासाद कराव्यो. १५० ] राघवचैतन्य संन्यासीने जीत्यो, सुलतानना हाथनुं मुद्रिकारत्न राघवचैतन्यने माथे नाख्युं, अन्य चमत्कारो संक्रमण दर्शाव्युं. सुलतानने शत्रुंजय पर लइ जइ संघपति कर्यो. रायणझा डने दूधथी वरसाव्यं. अमावास्या तिथिने पूनम तिथि करी बतावी. खंडेलपुर नगरमां सं. १३४७ ( ७४ ? ) मां जंगलदेश शिव-भक्तोने ( राजपूताना ) ना जिन - शासन- धर्ममां स्थाप्या; तेमनुं स्वरूप कहेवामां आवे छे - एक वखते खंडेलवाल गोत्रवाळा विष्णु (शिव) - भक्तो द्रव्य समुपार्जन करवा माटे गोळ, खांड विगेरे व्यवहार ( वेपार ) करता हता. वेपार करतां तेमने घणा दिवसो थइ गया. खंडेलवालोने जैनो कर्या १ " खंडेलपुरे नयरे तेरस्सए चउचाले । जंगलया सिवभत्ता ठविया जिणसासणे धम्मे ॥ "" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [१५१ घणो गोळ एकठो थइ गयो. तेनुं मध करवा माटे सेवकोने जणाव्युं. त्यारपछी मद्य( दारु) करावीने वेचाववा लाग्या. लोकमां मद्य करनारा तरीके विख्यात थया. तेमांथी केटलाके गुरुना उपदेशथी मद्यनो वेपार तज्यो अने केटलाफ ते तजवामां अशक्त बनी ते ज वेपार करता रह्या. त्यारपछी जिनप्रभसूरिए पद्मावतीना उपदेशथी जंगलगोत्रवाळाने प्रतिबोधित कर्या." जिनप्रभसूरिए कनाणयनयर( कन्नानूर )-कल्पमा अने विद्यातिलक मुनिए तेना परिशेषमा सूचवतां अवशिष्ट रहेल जिनप्रभसूरिना ऐतिहासिक परिचयनी पूर्ति, तेमना ज कोइ ( अज्ञात ) निकटना अनुयायीए रचेला जणाता आ प्राकृत प्रबन्धथी थएली जणाशे. पाछळना केटलाक लेखकोए जिनप्रभसूरिनो संबंध, पीरोजशाह(फीरूज तुघलक) साथे जोज्यो छे, परंतु उपर्युक्त कल्प, परिशेष अने आ प्रबन्धना आधारे महम्मद तघलक साथे सम्बन्ध मानवो विशेष प्रामाणिक जणाय छे. विशेषमां जिनप्रभसूरिनां तत्कालीन गुण-वर्णनात्मक [स्वागत] गीतो बाकानेरना जैन पुस्तक-भंडारोमांथी उत्साही श्रीमान् अगरचंदजी, भंवरलालजी अने शंकरदानजी नाहटा बंधुओना प्रयत्नथी हालमां प्रकट थयां छे* तेमां पण कमाणयनयर * ऐतिहासिक जैनकाव्य-संग्रह (अभय जैन ग्रंथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] जिनप्रभसूरिनो [ जिनप्रभसूरि अने कल्पमां अने तेना परिशेषमां पूर्वे (पृ. ३१-३३ मां ) जणावेली महम्मदशाहवाळी घटनानो निर्देश छे. माला पु. ८ पृ. १२-१३ )मां प्रकट थपल २ गीतो उचित संशोधन करी अहिं दर्शावाय - ( १ ) के सलहउ ढीली नयस है, के वरनउ वखाणू ए; जिनप्रभसूरि जग सलहीजइ, जिणि रंजिउ सुरताणू. १ चलु सखि ! वंदण जाह, गुण-गरुवड जिनप्रभसूरि; रलियइ वसु गुण गाहिं, राय- रंजणु पंडिय - तिलड. (आंचली) आगम सिद्धांतु पुराणु वखाणिइ, पडिबोहइ सम्बलोइ ए; जिणप्रभसूरि गुरु- सारिखउ हो, विरला दीसउ (इ) कोइ ए. २ माठाही आठमिहि चरथी, तेडावइ सुरिताणु ए; पुद्दवितुमुख जिणप्रभसूरि चलियउ जिमि ससि इंदु विमाणि ए. ३ पति कुतुवदीनु मनि रंजिउ, दीठलि जिणप्रभसूरि ए; पतिहि मन - सासन पूछर, राय-मणोरह पूरी ए. गाम भूरिय पटोला गजवल, तूठउ देइ सुरिवाणू ए; विणप्रभसूरि गुरु कं पि न इच्छई, तिहुअणि अ मलियमाणू ए . . ५ ढोल दमामा अरु नीसाणा, गहिरा वाजइ तूरा ए; इणपरि जिणप्रभसूरि गुरु आवद्द, संघ-मणोरह पूरा ए. ६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [१५३ (२) उदयले खरतरगच्छ-गयणि, अभिनवड सहसकरो; सिरिजिणप्रभुसूरि गणहरो, जंगम कल्पतरो. १ वंदहु भविक जन ! जिणशासण-वण-नववसंतो; छत्तीसगुणसंजुत्तो वाइय-मयगल-दलण-सीहो. (आं तेर पंचासियह पोस सुदि आठमि सणिहि वारो; भेटिउ असपते महमदो सुगुरि ढीलियनयरे. २ आपुणु पास बइसार ए, नमिवि आदरि नरिंदो; अभिनव कवितु वखाणिवि, राय रंजइ मुर्णिदो. ३ हरषि तु देइ राय गय तुरय, धण कणय देस गामा; भणइ अनेवि जे चाह हो, ते तुह दिउ इमा. ४ लेइ गहु किंपि जिणप्रभसूरि, मुणिवरो अतिनिरीहो; श्रीमुखि सलहिउ पातसाहि, विविहपरि मुणि-सीहो. ५ पूजिवि सुगुरु वस्त्रादिकहि, करिवि सहिथि निसाणु; देह फरमाणु अनु कारवइ, नववसति राय सुजाणु. ६ पाटहथि चाडिवि जुग-पवरु, जिणदेवसूरि-समेतो; मोकलइ राउ पोसालहं, बहुमलिक-परिकरीतो. ७ वाजहि पंचसबद गहिर सरि, नाचहि तरुण नारि; इंदु जिम गइंद-साहितु, गुरु आवइ वसतिहिं मझारे. ८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] जिनप्रभसूरिनी [जिनप्रमसूरि अने जिनप्रभसूरिनी अप्रकट कृतियो. जिनप्रभसूरिए 'पउमाम 'गाथानी अनुयोगचतुष्टयवाळी व्याख्या (अनेकार्थ रत्नमंजूषा दे. ला. नं. ८१ मां प्र.) मां सूचवेल रहस्यकल्पद्रुम तथा जिनप्रभसूरिनी अन्य अप्रकट कृतियो जो उपलब्ध थाय, अने तेनो संग्रह प्रकाशमां मूकाय तो नवीन जाणवानुं बनी शके. जिनदत्तमुरि-चरित्र( अगरचंदजी नाहटाद्वारा प्रकाशित उत्तरार्ध पृ.४३१-४३३ )मां प्रकाशित थयेल व्यवस्थापत्र(सं. साधुसामाचारी) जिनप्रभसरिकृत होवानुं जणाय छे. जिनप्रभसूरिनी पट्ट-परम्परा । जिनप्रभसूरिनो शिष्यादि-परिवार विशाल हशे,तेम तेमनी मळती केटलीक कृतियोथी अने अन्य जिनदेवसूरि केटलाक उल्लेखो(पृ. ५०)थी जणाय छे. ते सौमां जिनदेवसूरि अग्रस्थाने ( पट्टधर ) होवानुं जणाय छे. शाह मुहम्मद तुघलके वि. सं. धम्म-धुर-धवल संघवइ सयल, जाचक जन दिति दानु; संघ-संजुत्त बहुभगति-भरि, नमहिं गुरु गुण-निधानु. ९ सानिधि पउमिणिदेवि इम, जगि जुग जयवंतो; नंदर जिणप्रभसरि गुरु, संजमसिरि-तणत कंतो. १० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] पट्ट-परम्परा [ १५५ १३८५मां दिल्लीमां जिनप्रभसूरिनुं स्वागत-सन्मान कयु, त्यारे बीजा हाथी पर एमने बिराजमान करवामां आव्या हता-ए पहेला( पृ. ३२-३३मां ) उल्लेख थइ गयो छे. तथा उपर्युक्त गीतमां पण कथन छे. जिनप्रभसरिए दिल्लीथी महाराष्ट्र-मण्डल तरफ प्रयाण कर्यु, त्यारे पातशाहना कथनथी पोताना प्रतिनिधि तरीके चौद साधुओ साथे जिनदेवसूरिने दिल्लीमंडलमां पातशाह पासे मूकी गया हता-ए उल्लेख पण उपर (पृ.३५मां)दर्शाव्यो छे. तथा त्रण वर्ष पछी वि.सं.१३८९मां पातशाहना आमंत्रणथी जिनप्रभसूरि देवगिरिथी पुनः दिल्ली तरफ आवता हता, त्यारे मार्गमां अल्लावपुर दुर्गमां तेमना सार्थिकोने असहिष्णु म्लेच्छो द्वारा सतामणी थइ, त्यारे समाचार मलतां सुलतानने विज्ञप्ति करी ते उपद्रव दूर करावनार जिनदेवसूरि हता-ए पहेलां (पृ.४७मां) कहेवाइ गयुं छे. ए विगेरे परथी मुहम्मद तुघलकना-दिल्लीश्वरना शाही दरबारमां जिनदेवसरिनुं पण ऊंचुं गौरवभर्यु स्थान हतुं, ए विचारकोना लक्ष्यमा सहज आवी शके तेम छे. आ जिनदेवमूरिनी विशेष ग्रन्थ-रचना उपलब्ध थइ शकी नथी, तेम छतां जे मळी आवे छे, ते परथी पण तेमनी . विद्वत्ता प्रतीत थाय छे. सचित्र कल्पसूत्रना परिशिष्टमां ९७ पद्योवाळी सं. कालकाचार्य-कथाना अंतमां तेओए पोताने ' जिनप्रभसरि-स्वाङ्क-पर्या-लालितः । विशेषणद्वारा ओळखाव्या छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] जिनप्रभसूरिनी [जिनप्रभसूरि अने mmmmmmmmm हेम नाममालाना शिलोञ्छ—(नि. सा. ना अभिधानसंग्रह खं.२,११५.) कार, आ जिनदेवसूरि होवार्नु उपर (पृ. ३३ मां) सूचवाइ गयुं छे. जिनदेवसूरिनु संक्षिप्त परिचयात्मक प्राचीन गीत ऐतिहासिक जैनकाव्यसंग्रह (अभयजैन-ग्रन्थमाला पु. ८, पृ. १४) मां जोवामां आवे छे. * * योग्य संशोधन-संस्कार करी ते अहिं प्रकाशित करवामां आवे छेनिरुपम-गुणगण-मणि-निधानु संजमि-प्रधानु; सुगुरु जिणप्रभसूरि-पट-उदयगिरि उदयले नवल भाणु. वंदह भविय हो ! सुगुरु जिणदेवसरि दिलिय वरनयरि देसण; अमियरसि वरिसए मुणिवरु जणु घणु ऊनविउ. आंचली. १ जेहि कमाणापुर-मंडणु सामिउ वीरजिणु; महम्मदराइ समपिउ थापिउ सुभ लगनि सुभ दिवसि. नाणि विनाणि कला-कुसले विद्या-बलि प्रजेउ; लक्खण छंद नाटक प्रमाण वखाणए आगमि गुण अमेउ. ३ धनु कुलधरु जसु कुलि उपनु इहु मुणि-ग्यणु; धनु वीरिणि रमणि-चूडामणि जिणि गुरु उरि धरिउ. धनु जिणसिंघसूरि दिखियउ धनु चंद्रगछु; 'धनु जिणप्रभसूरि निज गुरु जिणि निज पाटिहि थापियठ, ५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद . ] पट्ट- परम्परा [ १५७ उपर्युक्त जिनदेवसूरिए पोताना पट्ट पर जिनमे सूरिने स्थापित कर्या हता, एम जिनप्रभसूरिगुरु-परंपराना एक गीत द्वारा जणाय छे. ** जिनमेरुसूरि हलि सखे ! घणउ (इ) सोहावणिय रलियावणिय; देसण जिणदेवसूरि मुणिरायहं जाणउँ नितु सुणउ . महि - मंडल धरमु समुधरए जिण - सासणिहिं; अणुदिण प्रभावन करइ गणधरो अवयरिउ वयरसामि. बादिय - मयगल–दलण- सीहो बिमलसील - धरु; छत्तीसगुणधर - गुण - कलिउ चिरु जयउ जिणदेवसूरि गुरु. } ८ ** जिणचंदसूरि जिणपतिसूरि, जिणेसरु गुण-निधानु; तणुक्रमि उपनले सुगुरु, जिणसिंघसूरि जुग-प्रधानु. तासु पाटि - उदयगिरि उदयले, जिणप्रभसूरि भाणु; भविय - कमल - पडिबोहणु, मिच्छत्त - तिमिर हरणु. राउ महंमदसाहि जिनि नियगुणि रंजियउ; मेढमंडल ढिल्लियपुरि जिण-धरमु प्रकटु किए. तसु गच्छ - धुर - धरणु भयलि जिणदेवसूरि सूरिरार; तिणि थापिठ जिणमेरुसूरि नमहु जसु नमइ [नर]राड. गीतु पवीतु जो गायए सुगुरु-परंपरह; समीहि सिन्झहिं, पुहविर्हि तसु नरह ६ सयल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ૧ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ] जिनप्रभसूरिनी [ जिनप्रभसूरि अने विक्रमनी सोळमी सदीमां उपर्युक्त जिनमेरुसूरिना पट्ट पर जिनहितसूरि स्थापित थया हता, एम जिनप्रभसूरि सुगुरुनी परंपराना उपलब्ध प्राकृत गाथाकुलकना उल्लेखथी प्रकट थाय छे. * जिनहितसूरि ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ( अभयजैनग्रन्थमाला पु. ८, पृ. ११) मां जिनप्रभसूरि - गीत तरीके जणावेल आ सुगुरुपरंपरा - गीत योग्य शुद्धि साथे अहिं दर्शाव्युं छे. *xx संजम सरसइ निरुयं ( इं ) सु ( वमु) मुणीण तित्थभर - च (ध) रणं । सुगुरुं गणहर- रयणं वंदे जिणसिंहसूरिमहं 119 11 जिणपहसूरि मुणिंदो पयडियनीसेस तिहुयणाणंदो । संपइ जिणवर सिरिवद्ध माणतित्थं पभावेइ ॥ १० ॥ सिरिजिण पहसूरीणं पट्टमि पइट्ठिओ गुणगरिट्ठो । जयइ जिणदेवसूरी नियपन्ना विजियसुरसूरी ॥ ११ ॥ जिणदेवसूरिपहो (ट्टो)दय गिरिचूडा विभूसणे माणू । जिण मेरुसूरि-सुगुरू जयउ जए सयलविज्जनिही ॥ १२ ॥ 1 जिण हितसूरिमुणिदो तप्पट्टे भविय - कुमुयवण - चंदो । मयण - करि - कुंभ - विहडण - दुद्धरपंचाणगो जयठ ॥ १३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] पट्ट-परम्परा [१५९ जिनप्रभसूरिनी शिष्य-परंपरामां विक्रमनी पन्नरमी सदीना अंतमां तथा सोलमी सदीना प्रारंवाचनाचार्य भमां चारित्रवर्धन नामना विद्वान चारित्रवर्धन मुनि वाचनाचार्य थइ गया. तेओए पोताने तेमनी परंपराना जिनहितमरिना शिष्य भूमीशवंदित कल्याणराज उपाध्यायना शिष्य तरीके ओळखाव्या छे. तेओ बहुबुद्धिशाली वादविद्या-कुशल, साहित्य, नाटक, अलंकार शास्त्रोमां तथा न्याय, बौद्ध, वेदांत विगेरे दर्शनशास्त्रोमा निष्णात हता-तेवू सूचन करे छे. नरपेष वाणी (सरस्वती) गणाता हता. तेमनी रचेली कल्याणमंदिर-स्तोत्रनी ४२३ श्लोकप्रमाण टीका वडोदराना प्राच्यविद्यामंदिरमां छे. तेओए श्रीमालवंशी ठक्कुर भीषणनी अभ्यर्थनाथी, वि. सं. १५०५ मां वैशाख शु. ८ गुरुवारे सोमप्रभाचार्यना सिन्दूरप्रकर नामना प्रसिद्ध काव्य पर दृष्टांतोथी सरस ४८०० श्लोकप्रमाण तात्पर्य टीका रची हती, जे ए ज वर्षमा पं. धर्मदासद्वारा लखाइ हती. तेनी सं. सुगुरु-परंपर-गाहाकुलयमिणं जो पढइ पच्चूसे । सो लहइ मणोवंछियसिद्धिं सव्वं पि भव्वजणो ॥ १४ ॥ --ऐतिहासिक जैनकाव्यसंग्रह( अभयजैनग्रंथमाला पु. ८, पृ. ४१-४२)मांथी संशोधन करी उद्धत. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11T १६० ] जिनप्रभसूरिनी १९६६ मां लि. प्रति वडोदराना जैनज्ञानमंदिरमां प्र. कान्तिविजयजी मुनिराजना संग्रहमा छे. [ जिनप्रभसूरि अने आज वाचनाचार्य चारित्रवर्धने कवि कालिदासना सुप्रसिद्ध रघुवंश महाकाव्य पर पण श्रीमालवंशी शाह सालिगना पुत्र अरडकमल्लनी अभ्यर्थनाथी शिशुहितैषिणी नामनी ८००० श्लोकप्रमाण टीका रवी हती, जेनी प्रति वडोदराना प्राच्यविद्यामंदिरमां तथा खंभात वि. भंडारोमा मळे छे. प्रो. पीटर्सनना रिपोर्ट ( ३, पृ. २१०) मा आनो आद्यन्त भाग प्रकट थयो छे. आज चारित्रवर्धन मुनिए वि. सं. १५११मां बै. शु. ११ तिथिए सुप्रसिद्ध नैषधकाव्यनी टीका रची हती. आज चारित्रवर्धनाचार्ये पांडुभूमंडलाखंडल-स्थापनाचार्य, कर्पूरवीरधाराप्रवाह विगेरे विरुदधारी उदार देसलना वंशमां, वट (वेस्ट) गोत्रमां थयेला वरदेव - संतानीय शाह भरवना पुत्र शाह सहस्रमल्लनी अभ्यर्थनाथी शिशुपालवध - महाकाव्यनी टीका पण रची हती, जेनी त्रुटित ( ८ मा, ११ मा सगनी) प्रति वडोदराना प्राच्यविद्यामंदिरमां छे. ए टीका ओमां देवी पद्मावती तथा शारदा देवीनां मंगल संस्मरणो दृष्टिगोचर थाय छे. तेओए १३ पद्योनी प्रशस्तिथी पोतानी गुरु-परंपरानो परिचय कराव्यो छे, तेमां सूचयुं के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] पट्ट-परम्परा [१६१ के-" जिनवल्लभ सुगुरुना वंशमां सिद्धान्त-शास्त्रार्थना जाण, गर्विष्ठ प्रतिवादीरूपी हाथीओनी घटाने परास्त करवामां सिंह जेवा, विविध नव्य रमणीय काव्योनी रचना करनार, विचारणीय विशुद्ध प्रज्ञावाळा, विज्ञोथी नमन करायेला प्रोटप्रतापी मूरिराज जिनेश्वर थइ गया. तेमना शिष्य सूरीश्वर जिनसिंहरि थया, जे प्राणि-समूहना हितार्थ-संपादनमा कल्पवृक्ष जेवा अने विपक्ष-वादीरूपी हाथीओने प्रतिहत करवामां पंचानन जेवा हता. तेना पट्टरूपी पूर्वाचल पर सूर्य जेवा मूरि-पुरंदर जिनप्रभ थया, जेमनी जीभने बुधेन्द्रोए वाग्देवता( सरस्वती )ना आस्थानपट्ट तरीके वर्णवी हती. तेमनी पछी पोतानी बुद्धिवडे बृहस्पतिने तर्जना करनार, निरुपम समरसरूपी द्रव्यवाळा, जयशाली मूरिवर जिनदेवमूरि थया. " त्यारपछी थयेला जिनमेरुसूरि, जिनहितमूरि, जिनसर्वसूरि, जिनचन्द्रसरि, जिनसमुद्रसरि, जिनतिलकसरि १. " वंशे श्रीजिनवल्लभस्य सुगुरोः सिद्धान्तशास्त्रार्थविद् दर्पिष्ठप्रतिवादिकुखरघटा-कण्ठीरवः सूरिराट् । नानानव्य-सुभव्यकाव्यरचनाकाव्यो विभाव्यामल प्रज्ञो विज्ञनतो जिनेश्वर इति प्रौढप्रतापोऽभवत् ॥ १॥ शिष्यस्तदीयोऽजनि जन्तुजातहितार्थसम्पादनकल्पवृक्षः । विपक्षवादिद्विप-पञ्चवक्त्रा सूरीश्वरश्रीजिनसिंहसरिः ॥२॥ ११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ ~ ~ ~- ~ १६२ ] जिनप्रभसूरिनी [जिनप्रभसूरि अने अने जिनहितमूरिना शिष्य कल्याणराज उपाध्याय(पोताना गुरु)नो परिचय कराव्यो छे. जिनप्रभसूरिना संतान-परिवारमांथयेला अनेक मुनिओए परिशिष्टपर्व विगेरे अनेक पुस्तको लखाव्यां हता, जेमांनां केटलांक हालमां पण दृष्टिगोचर थाय छे. वि. सं. १५८५ वै. शु. ५ गुरुवारे जिनप्रभसूरिना परिवारमा थयेला मुनिराजना उपदेशथी श्रीमालवंशी सत्पुत्रवती श्राविका रूपाईए सचित्र कल्पसूत्र अने कालकाचार्यकथानुं पुस्तक लखाव्युं हतुं. जिनप्रभसरिना संतानमा थयेला जिनचंद्रसरिना समयमां उ. सागरतिलकना शिष्य समयध्वजोपाध्यायने श्राविका पूरीए समर्पित करेलु उपर्युक्त इ. लि. पुस्तक बीकानेरना जयचंद्रजीना भंडारमा विद्यमान छे. विक्रमनी सत्तरमी सदीमां वि. सं. १६३१मा ज्ये. व. १२ बुधवारे जिनप्रभसरिना सत्पट्टपूर्वाद्रिसहस्ररश्मिर्जिनप्रमः सूरिपुरन्दरोऽभूत् । बाग्देवताया रसनां यदीयामाच्छाद(स्थान)पढें जगदुर्बुधेन्द्राः।।३।। सदनु जिनदेवमूरिः स्वशेमुषीतर्जितत्रिदशमूरिः । निरुपमस(श)मरसभूरिः सूरिवरः समजनिष्ट जयी ॥४॥" -चारित्रवर्धनाचार्यनी सिन्दूरप्रकर-टीका, नैषधमहाकाव्यटीका विगेरेनी प्रशस्तिमा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद ] पट्ट-परम्परा [ १६३ संतानमां थयेला वा. भारतीचंद्रना शिष्य भानुतिलके लिखित गुणस्थानप्रकरण-टीका चुनीभं. मां उपलब्ध थाय छे. वि. सं. १६३५मां का. व. ७ गुरुबारे जिनप्रभाचार्यना अन्वयमां थयेला देवतिलक मुमुक्षुए जिनप्रभसूरिनी पर्युषणाकल्प-पंजिका(ग्रं. ३०४१)नी प्रतिने आगरा राजधानीमां लखी हती. वि. सं. १६४१मां बीजा शुचिमास शु. ६ शुक्रवारे, कमला( पद्मा )देवीना वर-प्रसादपात्र जिनप्रभाचार्यना अन्वयमां थयेला जिनहितमरिना शिष्य आदिदेवमुनिए सिंघानकपुरमां जिनभानुमरिना समयमां लिपीकृत समयसार नाटक वृत्तिनी प्रति बीकानेरमां जयचंद्रजीना भंडारमा विद्यमान छे. विक्रमनी अढारमी सीमां. वि. सं. १७२६मां फा. शु. १० श्रीमाली खरतरगच्छमां जिनप्रभसूरिना संतानमां थयेला उ. लब्धिरंगना शिष्य पं. नारायणदासनी प्रेरणाथी कवि हेमराजे रचेली सटीक नयचक्रनी वचनिका( भाषा) बीकानेरना दानसागरजीना संग्रहमा उपलब्ध थाय छे. विशेष अन्वेषण करवामां आवे तो प्रभावक जिनप्रभसरिनी शिष्य-परम्परानो बीजो इतिहास मळया संभव छे, परंतु अति विस्तारना भयथी अहि आटला संशोधनथी संतोष मानीशं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] उपसंहार [जिनप्रभसूरि अने आ निबन्धनी पुनरावृत्तिना प्रसङ्गे पूर्वोक्त कल्पो उपरान्त जिनप्रभसूरि-प्रबन्ध (सं.)नी लगभग उपसंहार मळती बे प्रतियो उपलब्ध थइ हती[१] वडोदरा आ. जैन ज्ञानमंदिरनी प्र. कान्तिविजयजी मुनिराजनासंग्रहनी, तथा [२] वि.सं. १८९५ मुंबईमां, अने वि. सं. १९२२मां अजीमगंजमां लखाएल परथी अगरचंदजी नाहटाए बीकानेरथी मोकलावेली नकल. तथा जिनहरिसागरसूरिजीए पाछलथी मोकलावेल प्राकृत प्रबन्धनी प्रति, जिनप्रभसूरिनी तथा तेमनी शिष्य-परंपरानी कृतिओ अने खरतरगच्छनी अन्य सं. गु. पट्टावलीओ, उपदेशसप्तति, श्राद्धविधि, शुभशीलगणिनो कथाकोष (छाणी जैन ज्ञानमंदिरनी ह. लि. प्रति ), उपदेशकल्पवल्ली, उपदेशतरंगिणी विगेरे अनेक ऐतिहासिक साधनो साथे समन्वय करी लीधेला तेमांना उपयोगी अंशो आ निबंधमां योग्य स्थाने दृष्टिगोचर थशे अने उपयोगी जणाशे-एवी आशा छे. आ प्रयत्नथी महम्मद तघलकना समकालीन परिचित इब्ने बतूता जेवा परदेशी इतिहास-लेखके न जणावेली, 'मिराते मुहम्मदी (उर्दू), झीआउद्-दीन बरनीनी 'तारीखइ-फीरोजशाही , तथा 'दी क्रॉनीकल्स् ऑफ दि पठान किंग्ज ऑफ दिल्ही' 'सुलतानम् ऑफ देहली' 'दी ट्रॅव्हलर ऑफ इस्लाम' 'कॅम्बीज हिस्टरी ऑफ इण्डिया, ' 'ऑक्सShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] उपसंहार [ १६५ फर्ड हिस्टरी ऑफ इण्डिया , जेवां ऐतिहासिक प्रमाणभूत मनातां इंग्लीश पुस्तकोमां न जोवामां आवती, छतां मुहम्मद तुघ(ग)लकना समकालीन अने गाढ परिचयमां आवेला आ देशना विश्वसनीय अन्य लेखकोए प्राचीन प्रा. सं. मां लखी राखेली तेमनी साथे संबंध धरावती, जैनशासनने गौरव आपती, जिनप्रभसूरिनी प्रामाणिक ऐतिहासिक अनेक घटना प्रकाशमां आवे छे-ए इतिहासविज्ञो वांची-विचारी शकशे. पुरातत्व-प्रेमी इतिहासना अभ्यासीओने मध्यकालीन भारतना तथा दिल्लीश्वर पातशाहोना इतिहासना अभ्यासमां, जैन आचार्योनो अने जैन गृहस्थोनो अप्रकट इतिहास उकेलवामां, हिन्दुमुस्लीम-कलह निवारवामां, परस्पर सहानुभूतिभरी मैत्री वधारवामां अने शुभप्रेरणाओ आपवामां आप्रयत्न यतकिंचित उपकारक थशे; तो लेखक पोतानो वर्षोनो प्रयत्न सफल थयो समजशे. -ला. भ. गान्धी. समाप्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'जिनप्रभसूरि अने सुलतान महम्मद ' आ निबंधमां आवेलां ऐतिहासिक नामोनी अनुक्रमणिका. TRE#. नाम पृष्ठ. औ. नाम पृष्ठ. अकबर २, १८ अन्ययोगव्यवच्छेद ४ अचल ४२ अपभ्रंशकाव्यत्रयी २७, ७७ अजमेर १२६, १४४ अभयकुमारचरित २८ अजयमेर अजमेर अभयदेव सूरि १३४ अजितनाथ-मूर्ति ८३, ८५ अभिधानराजेन्द्र २५,४४ , विधिचैत्य १०६-१०७ अभिधान-संग्रह ३३,१५६ अजित-शांति-स्तव-वृत्ति ७ अभिनंदनजिन(मूर्ति) ८३ अनिमगंज १६४ , कल्प अणहिलवाड पाटण अमूल्यविहार अणहिल्लपुर पाटण अंबदेव सूरि ४२,१०७ अनुयोगचतुष्टयव्याख्या १५४ अंबा-अंबिका अनेकार्थरत्नमंजूषा १५४ अंबिकादेवी(प्रतिमा) ५४,१०२ अंतरिक्षपार्श्व-कल्प २० , कल्प २१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अनुक्रमणिका [१६७ ऐ. नाम पृष्ठ ऐ. नाम अयोध्या ६, आचार-दिनकर १४५ , तीर्थ-कल्प २० आत्मारामजी अरजिन-बिंब ५३,५४,८३ जनज्ञान-मंदिर २५,६७ अरडकमल्ल १६० आदन ( एडन) १३३ अरिष्टनेमि-कल्प २. आदिगुप्त-शिष्य १० अर्बुकपुर आदिजिन-मूर्ति २८,८२अर्बुदतीर्थ-कल्प ८७,१०६ अर्यापुर ८२ आदिदेव मुनि १६२ अर्हच्छीचूडामणि १४७ आम्रदेव अंबदेव सूरि अलपखान १०६-१०७ आरामकुंड-पद्मावती-कल्प २१ अलावदीन (ण) ७५,७६, आशापल्ली-आसावल्ली १०३.१० ८.११४ आशापुर अलाउद् दीन = अलावदीन आसावल २७,१०४ अल्लावपुर दुर्ग ४७.१५५ आसावल्ली आसावल अवंती मालवा आसीनगर ३. अश्वावबोध-कल्प १९ इंद्रहंस गणि १२०,१२२ अष्टापदतीर्थ-कल्प २० इब्न बतूता असूअग मलिक ३५ उज्जयंत= गिरनार अहम्मदावाद ,, तीर्थ-कल्प १९ अहिच्छत्रा-कल्प १९ उज्जयिनी = उल्बणी आगरा ५२, १६२ उजेणी २०,८२,१४४,१४५ १०४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ worrnwwwwwwwwwwwwwwwww १६८ ] ऐतिहासिक नामोनी [ जिनप्रभसूरि अने ऐ. नाम पृष्ठ ऐ. नाम पृष्ठ. उदयप्रभ सूरि ४ ऐ. जैन काव्य-संग्रह १५१, उदयाकर गणि १५६,१५९ उपकेश गच्छ ४२,५३,१०१, ऐन्द्रीपुर १०४,१०७ ओंकारपुर(जी) ८६,९२-९४ उपदेश-कल्पवल्ली १२०,१२२, ,, मांधाता ८६ १३३,१६४ ऑक्सफर्ड हिस्टरी, तरंगिणी ११६,१२५, १६४ ऑफ इंडिया १६४ ,, माला-लघुवृत्ति ३६ ओसवाल ऊकेश ,, सप्तति ६,९,५९,६१,७३, कक्क सूरि ४२,५३,१०१, ११८,१३२,१६४ १०४, १०७ उपसर्गहरस्तोत्र-वृत्ति कंजरोटपुर ४२, ५३, रंगलपुर ५४,८९ १०१, १०४ , जिनालय ५४ कथाकोश-पंचशतीप्रबंध उलूखान कन्नाणपुर १०७, १०९, उन[ग] खान १४८, १९६ ऊकेश वंश (ज्ञाति) २७,१०१, कन्नाणयनयर २५, २६, २९, १०६,१२२,१३०,१३४ ३०, ५८, १०५, १५१ ऋषभजिन-स्तवन १८ , वीर ३७, ३८, १९, एपिप्राफिआ इंडिका १४१ ६८, १०१ ऐतिहासिक गूर्जर काव्य-संचय ,, कल्प २०,२५,२६,१०९, ४२,७७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ सुलतान महम्मद. ] अनुक्रमणिका [ १६९ ऐ. नाम पृष्ठ ऐ. नाम पृष्ठ ,, परिशेष ३३,३९,४०,५८ कल्याणपुर १०९ कन्यानयनीय नाणय कल्याणमंदिर-टीका १५९ कपर्दियक्ष-कल्प २० कल्याणराज उ. १६१ कमलादेवी पद्मावती कष्टभंजन कयंबास स्थल काकर कांगरा (डा) करनाल १४१ करहेटक कातंत्रदुर्गपदप्रबोध करहेडा-करहेटक कातंत्र-विभ्रम-टीका ५, ७ कर्णदेव १०४, १०५ कानानूर-कन्नाणयनयर कर्णाट १०२, १०५ कान्हड-कन्नाणयनयर कर्पूरचीरधाराप्रवाह १०२,१६० , महावीर, महावीर कान्हडदे-प्रबंध कलंदर १४५,१४६ १०६ कलिकुंड तीर्थ-कल्प २० काफूर मलिक ३५, १०३ कामलता कल्पप्रदीप तीर्थकल्प कल्पसूत्र १५५, १६२ कांपिल्यपुर-कल्प कायस्थ , कलिका कालकाचार्य-कथा १५५,१६२ किरणावली कालिकापुराण १४४ दीपिका कालिदास १६. कालिय १०८ ८ काव्यमाला १३, १६, १४२ " कल्पलता ६२ , पंजिका ,, सुबोधिका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ] ऐतिहासिक नामोनी [जिनप्रभसूरि अने पृष्ठ. २० ८४ ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम किढिवाणा १३७ क्षेत्रसमास कीर्तिकौमुदी ९० खंडवा-खंडोह कुडंगेश्वरतीर्थ-कल्प खंडेलपुर कुतुबदीन १४२ खंडेलवाल कुतूहलखान-क्युतलघखान खंडोह कुंथुजिन-बिब ५३,५४,८४ खंभात स्तंभतीर्थ · कुमारगणि कवि , शांतिनाथ जैनभंडार १८,६६ कुमारपाल ८०,८१ खरतरगच्छ (गण) ४,३१, ,, चरित्र १११,११२ ४०,५५,१०६,१११,१५३ कुलधर १५६ , पट्टावली ३,४,७६.७८, कुल्पाक १६३,१६४ कृष्णर्षिगच्छ १११ ,, (बृहत् ) ४ केम्ब्रीज हिस्टरी ऑफ इंडिया , (लघु) ३१,७५-७८, २६,३०,४६,१६४ १६३ कोका पार्श्वनाथ-कल्प २० खरसाणी १३१ कोटाकोटि १५० कोमल सूरि खाजेजहां मलिक-ख्वाजाजहान् कोसला-अयोध्या खापरराज कोहंडियदेवी-कल्प २० खुरासाण १२८,१४५ कौशांबी तीर्थ-कल्प खेतरपाल ७५ क्यूतलघखान खेतल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ सुलतान महम्मद.] अनुक्रमणिका [१७१ ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम खेतलदेवी १३६ गूनरेश्वर ख्वाजाजहान् ५२ , पुरोहित गच्छमतप्रबंध ३९ , महामात्य गज संघपति गोगपुर गज्जणवइ ( वी ) १०३ ग्यास्-उद्-दीन तपलक गणितसार ८७ घोषकीपुर गिरनार तीर्थ ३४,५५,६९, चतुरशीतिप्रबंध ४३ ८२,८७,११७ चतुर्वर्गचिंतामणि ९२ गुजरात १९,२७,६१,६८, नतुर्विशतिजिनानंदस्तुति ४५,६१ ९०,१०३-१०५.११५ चतुर्विशतिप्रबंध-प्रबंधकोश गुणभद्र सूरि ११० चन्द्र (ठ.) १०८, १०९ गुणशेखरसूरि ३८,४० । चंद्रकपुरी गुणस्थान-स्वरूप ( क्रमारोह ) चंद्रकीति ११३ चंद्रगच्छ ,, टीका चंद्रतिलक उ. २७. गुरुगुणषट्त्रिंशत् चंद्रप्रभ जिन (मूर्ति) ८१,८६ षट्त्रिंशिका ११५ चंद्रवंशी गुर्वावली ११,६७,७८,७९, चंद्रानक चंपापुरी तीर्थ-कल्प २० गूर्जरधरित्री-गुजरात चारित्रवर्धन १४९,१६०,१६२ ,, राजहस्त्यंकुश ९१ चारूप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जलपद्र १७२ ] ऐतिहासिक नामोनी [जिनप्रभसूरि अने ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम पृष्ठ. चाहुयाण-चौहाण चिक्खल पुर ८३ , वीरमंदिर ११ चित्तउड-चित्तोड जठ्ठय (जेठवा) राजपूत ३० चित्रकूटाचल=चित्तोड गढ़ जयचंद्रजी-भंडार १६२ चित्तोड ८४, १०४, १०५ जयसिंह राजा ८०, ९७ चेलकपुर ८६ जयसिंह सूरि ९०, १०६, चेल्लणपार्श्व-कल्प १११, ११२ चैत्य ४२ जयसिंहपुर चैत्यवासी ८३ चोल देश २४, २६, १०९ जसोवद्धण यशोवर्धन चौहाण कुल जाज छंदाकोश जाधव-यादव छाजू शाह ४१ जालंधर जगचंद्र सूरि जालोर ७६. १०१, १०६ जगसीह-जगसिंह जावड शाह ___ २८ जगतसिंह ३६, ४३, जावालिपुर जालोर ११५-१३० जिनचंद्र सूरि (१) जंगल गोत्र जंगल देश १४. १११ जंगळया १४० , (४) १३४ जंघराल नगर ११, ६३- , (६) । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अनुक्रमणिका [१७३ ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम जिनचंद्र सुरि (६) १५७ १३४,१३६,१४२-१६४ :, (७) १६१ , प्रबंध (प्रा. सं.) ६५, ७२, " (८) १६२ ७ ४, ७८,११६, ११७, जिनतिलक सरि १६१ १३३, १३४ जिनदत्त सरि १३४, १४५ जिनभानु सूरि १६२ ,, चरित्र १५४ जिनमेरु सूरि१५७,१५८,१६१ ,, मूर्ति जिनवल्लभ सूरि १३४, १६१ जिनदेव सूरि ३२-३६.४७, जिनसमुद्र सूरि १६१ १५३-१६८. जिनसर्व सूरि १६१ १६१, १६२ जिनसिंह सूरि ४,३१,३७,३८, जिनपति सरि २७, २८, १३४ ७५-७८,१३६, १५७, १५८ १३७,१५६-१५८ , रास १६१, १६२ जिनपाल उ. २७ , स्तवन १७ जिनप्रबोध सूरि ७७,७८,१३४ जिनसुंदर सूरि ४५ जिनप्रभ मूरि (आगमिक) ३ जिनहित सूरि १५८,१५९ जिनप्रभ सरि (खरतरगच्छीय)१, १६१,१६२ ३-१०, १८, १९, जिनेश्वर सूरि (१) १३४ २१-२४, ३१-४७, जिनेश्वर सूरि (२) ६,२७,७६५१-७६,१०४-१०६, ७८,१३४,१३६ १०६, ११५, ११७, १५७,१६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmmmmmmmrrrr २६ १७४ ] ऐतिहासिक नामोनी [ जिनप्रभसूरि भने ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम पृष्ठ. जिनेश्वरसूरि-गस ७७ जैनस्तोत्रसंदोह १२,१४, जीरापुर जीर्णदुर्ग-जूनागढ जैनस्तोत्रसमुच्चय ११,१७,१८ नोइरस ज्योतीरस जूनागढ जेसल जोग(गि)णो (६४) १४३ जेसलमेर नोग(गि)णी-पीठ १४४ , जैनभंडार ज्ञातासूत्र ज्ञानकलश मुनि , ग्रंथसूची ५,२७,७७ ज्ञानचंद्र जैत्रपाल ज्योतीग्स २८ जैनग्रंथावली २६,३२ ज्वालामुखी (योगिनी) १४१ जैनतीर्थ-रक्षा फरमान ३४ , स्तोत्र १४१,१४२ ,, दर्शन , , झंझणदेव जैनधर्मनी प्राचीन इतिहास २६, झीआउद्-दीन बरनी १६४ ३९,४४ टक्कारिका जैन साहित्यसंमेलन रिपोर्ट २६, टी(ढी)पुरी तीर्थ ४३ ,, स्तोत्र साधन जैनसाहित्यमें इतिहासके ठक्कुर कुल साधन २६,४५ डभोई जैनसाहित्य-संशोधक १८ डीसावाल ज्ञाति नैनस्तोत्रसंग्रह १७ दिल्ली (ढीली) दिल्ली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद. ] ऐ. नाम ढोरसमुद्र तघलक=तुगलक तंत्रसार १४५ तपागच्छ (पक्ष) १०, ११,१८, ४१,९८-६७,१११११८,१३२,१४५ पट्टावली 99 तपोटमत कुट्टन शतक ताजदीन मलिक-सराई पृष्ठ. ८५ अनुक्रमणिका ऐ. नाम तुग (घ) लकाबाद ६७, ७९ ७,६७ ३५ ताजल मलिक ४६ तापी ९० -तांबी (श्रीमाल - गोत्र ) ४, १३६ तारापुर ८५ ताहूलणपुर ८३ तिलंग देश ५४ तिलंगाधिपति ५४,१०२,१०५ तिहुणसिंह तीर्थकल्प ९,१८,२१,२५, ३६-३८, १३ २० ३६ दंडवीर्य दफरखान दर्भावतिका डभोई दाशरथिपुर अयोध्या तुरक्क २, २९, ३१,४२, १४,६९ दक्षिण देश (मंडल) १९,२६, ३०,४२,९०,१०९ दाहडपुर दि क्रोनिकल्स ऑफ दि पठाण किंग्ज् [ १७५ पृष्ठ. ३१.३५ दिल्लीश्वर दीनार मलिक तीर्थनामसंग्रह तुग (घ) लक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ११६ ११५ ऑफ दिल्ही १६४ दिल्ली ५,७,९,२३, ३०-३६, ८३ ३९,४३,४५,९२,९८, ६०, ६९, ७१, ७५, १०१, १०४,१०९, ११४, ११८, १२८, १२९, १३७, १४४, १४१, ११२-११६ २,१८,२२,२३, ७७, १०९ ४८ www.umaragyanbhandar.com Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ. १४७ दुर्ग ८३ ४६ (५ १७६ ] ऐतिहासिक नामोनी [ जिनप्रभसूरि अने ऐ नाम पृष्ठ. ऐ. नाम दीपालिका-कल्प (१) ९ द्वयाश्रय महाकाव्य १४४ (२) ४२ धणियावी १३ दीशापाल-डीसावाल धनपाल (पं.) धनमातृकापुग्धणियावी दवीरखान धंधकलस (कुल) १०८ देद ९१ धर्मकीर्ति गणि ७८ देपालपुर धर्मघोष सूरि ७८,७९,१४५ देवगिरि ६,९.३१,३६,४१- धर्मदास १५९ ४९,७८.८०,८५, धवलक-धोळका ८९.९३,९५,१०१, धातुपाठ-वृत्ति ११३,११४ १०४,११५-१२२,१५५ धारा देवतिलक १६२ धाराधर (पं. जोषी) ३१,३२ देवपालपुर देपालपुर देवाधिदेव महावीर धी ट्रॅव्हलर ऑफ इस्लाम १६४ धोळका देवेन्द्रसूरि (१) ६६.७८ नमिनाथ (मूर्ति) देसलवंश नयचक्र-वचनिका देसल शाह १०१-१०३,१०७ नयचंद्र कवि १०६ देहली दिल्ली नर्मदा दोलताबाद-देवगिरि नलपुर द्रोणत ८५. नळायन महाकाव्य ११५ " (२) v v 500 mar ur . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अनुक्रमणिका [ १७७ occ ऐ. नाम पृष्ठ. नागदा नागहृद नागपुर ८४ नागपुरीय नागलपुर नागहृद नागेंद्र गच्छ नाभिनंदनजिनोद्वार प्रबंध ४२, ५१,१०१,१०४,१०७ नारायणदास नासिकपुर-कल्प २०,८४ नासिक्य नासिक(क) निंबस्थूर पर्वत ८२ निवृति गच्छ ४२ नीमाड अंक नीलकपुर नेमिनाथ (मूर्ति) ६९,८२-८६ , फाग ४३ नैषधमहाकाव्य-टीका १६२ न्यायकंदली-विवरण ४१. पइट्ठाण पुर २०,३६,८५ ૧૨ ऐ. नाम " कल्प पउमिणि देवी पद्मावती पंचलिंगी-विवरण २७ पंचशती-प्रबंध ५८,६२,६८, ६९, ७२, ७४, १२०, १२२, १३२, १६४ पटणा पाटलिपुत्र पट्टावली ७६,१६१ पत्तनः-पाटण पद्मनाभ कवि पद्मावती ६,१०,११,६९,७१, १३६-१३८,१५४, १६०,१६२ ,, चतुष्पदिका १७ परिशिष्ट पर्व १६२ पर्णविहार पुर प!षणाकल्प-कल्पसूत्र ४९ पल्हूपुर-पालणपुर पाटण ३३, ६३, ६६, ८५, १०३, १०६, ११५, ११७,१४८ m Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] ऐ. नाम " पृष्ठ. जैनभंडार - ग्रंथसूची ३, १८ २० १०२, १०५ पाटलिपुत्र- कल्प पांडु देश पांडुभूमंडळाखंडल ऐतिहासिक नामोनी स्थापनाचार्य १६० ५४ पांख्यदेश- राजा ८,५६ पादलिप्त सूरि पार्श्वनाथ ( बिंव, मंदिर ) ३०, ४२,८१ - ८१ पालण पुर पालित्त = पादलिप्त सूरि १३४, १३६ पाल्हाक १३१,१३२ पावापुरी तीर्थ - कल्प ९,२०, पीरोज पातशाह [ जिनप्रभसूरि अने पृष्ठ. ऐ. नाम पूर्णभद्र गणि २६ पूर्णिमा गच्छ (पक्ष) ४३, ११९ पूर्वदेश - तीर्थं १९ पृथ्वीधर = पेथड पृथ्वीराज पेठण पइट्ठाण पेथड शाह ४४, ४५ पिटर्सन- रिपोर्ट २४, २१.३६, ३९, ४४, १६० १९-६२, ७१, ११०-१११, ११८,१२१,१२९, १३३,१११ पूरी १६२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २७, २८ ४२,७८, ८२ ८६, १०१ पेरोज= पीरोज पोल्हाक ( पोला ) = पाल्हाक प्रकरणरत्नाकर ११-१३, १५,१६ प्रतिष्ठान = पइट्ठाण पत्तन प्रबंधकोश प्रबोधमूर्त्ति गणि प्रबोधोदय वादस्थल प्रभाचंद्र सूरि प्रभावकचरित्र ४३, १३० ७६ २७ ३३ ३३ प्रभासपाटण प्रश्नोत्तररत्नमाला - वृत्ति ८४ ४१ www.umaragyanbhandar.com Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सुलतान महम्मद. ] अनुक्रमणिका ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम प्राचीन गूर्जरकाव्यसंग्रह ४२, भट्टारक-जिनप्रभ सूरि ,, सराइ ( पोसहशाला ) ५१ प्राचीन जैनस्तोत्रसंग्रह १६ भयहरस्तोत्र-वृत्ति प्राचीन लेखमाला १४१ भरत प्राच्यविद्यामंदिर ४०,६७ भरुच भगुपुर 'फलवर्षी ८,३४,५५ भानुचंद्र उ. , पार्श्व-कल्प २० भानुतिलक १६२ , स्तोत्र । भारतीचंद्र १६२ 'फलोधी-फलवी भीम संघपति 'फीरूज-पाशेज भीमदेव (१) फुरमान १५३ फेरु " (२) १०७-१०९ भीमपल्लीक चंदी-मोचन ३५,५४ १०१ भुवनहित उ. अलादे राणी ७५,१३९ १११ भृगुपुर बीकानेर १३१,१५१,१६२ ९०, ११२, ,, ज्ञानभंडार ७६,१६२, ११३, १४४ १६३ १६. बृहट्टिपनिका २४ भोज राजा ३३,१४७,१४८ बृहत्संहिता २८ ,, प्रबंध ११६ बृहद्गच्छ ११०,११९ मकुडी बोहित्थ शाह ५३ मगदूमइं जहां ब्रह्मशांति यक्ष १०५ मगध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com १९ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० ] ऐतिहासिक नामोनी [ जिनप्रभसूरि अने mmmmmmmmmmmmmmmm " , कल्प यात्रा ऐ. नाम पृष्ठ ऐ. नाम पृष्ठ मंगलपुर मल्लिनाथ(मूर्ति) ८२,८४,८५ मंडप गिरिमांडव गढ मल्लिषेण सूरि ४ मंडप दुर्ग= , महणसिंह ४३, ११५, मंडपादि-3, ११९, १२०, मंडलीक १०४ १२३, १२७-१३३ मथुरातीर्थ-उद्धार महम्मद तघलक ( सुलतान, १९ पातशाह)१,२,१८,२१-२४, ३०-३९,४३-४८, ६.१, मदन सूरि ५२, ५५, ६८,७५,१०५, मदनसिंह महणसिंह ११०-११२,११७,१३:/मदुरा १५७, १६४ मध्यकपुर महागणपति-स्तोत्र ११२ मध्यदेश-तीर्थ १३६ मम्माण शैल महाराष्ट्र मंडल ३५, १५५ मरुस्थली (मंडल) २६,६२ महावीर-गणधर-कल्प २० मलिक महावीर-मूर्ति ३५,५५,५६, , वयो १११ ७६,७७,८१,८४,१०३, मलयेंदु सूरि ११३ १०१, १४८-१९० मल्लदेव ३६ महेन्द्र मूरि १११-११३ मल्ल वादी ५६ माणिक्यदेव-कल्प २० मल्लाणा ___७५ मांडव गढ ७९,८०,८२,९५ महाधर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद् ] ऐ. नाम पृष्ठ. १५० ५ १०१ मंत्री १०४ , मानदेव शाह २६, २८ मानभद्र सूरि ११० मांधातमूल ८३ मालव देश (मंडल) १९,७८, ८२, ८८, ९७, ९८, १४४, १४७ ९७, १०३ मातंड माथुर वंश माधव अनुक्रमणिका मालवराज मिथिला तीर्थ - कल्प मुकुटिका = मकुडी मुनिभद्र सूरि ४३, ११०,१११ मुनिसुन्दर सूरि ११,६७,७८,८९ मुनिसुव्रत (मूर्ति) ३६,८४,८५ मुल्लाणक मुह (मो) डासा मुहणसिंह = महणसिंह मुहम्मद = महम्मद मेघनाद १०४ ऐ. नाम मेद मंडल मेरुतुंग सूरि मेवाड (डी) मौलाना = मल्लाणा म्लेच्छ पति यंत्रराज यादव "" 99 युगादिजिन-मंदिर योगिनी (६४) १४४, १४५ पत्तन = दिल्ली पीठ = रणथंभोर रत्न- परीक्षा रत्नपाल रत्नपुर पुर= "" "" रघुवंश - टीका ( शिशु हितैषिणी ) तीर्थ-कल्प 95 रत्नमंडन गणि रत्नमंदिर गणि १४० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ १८१ पृष्ठ. १५७ ४३ १०४, १३२ 99 ५९ ११३ ९२ ६६ १६० १०४ १०८ १३६ ८५ २० ८२, ८९ ११६ www.umaragyanbhandar.com Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ ] ऐ. नाम पृष्ठ. रत्नशेखरसूरि (१) ११४,११५ (२) १११,११९ "" ऐतिहासिक नामोनी [ जिनप्रभसूरि अने ऐ. नाम रूण नगर रूणापुरी = रूणनगर रूपाइ रैवतक गिरनार रत्नाकर ९९ रत्नाकरावतारिका - पंजिका ४३ रविवाटक रहस्य कल्पद्रुम राघवचैतन्य ७५,१४१-१४३ राघवदेव = राघवचैतन्य राजगृही १०१ १५४ १११ १९ राजपूताना राजप्रसाद = शत्रुंजय तीर्थकल्प राजशेखर सूरि ४३, ४४, १२९ राजसीह ३६ राजसोम १८ राजादि - रुचादि - गण - वृत्ति ९ राजाधिगज=महम्मद रामदेव (राजा) ७८,९०, ९१, ९७,९८,१०१, १०२ २८ रामदेव (शेठ) रुद्रपल्लीय गच्छ ३८, ४१, ४३ रुद्रमहालय ९९ लब्धिरंग लंबकर्णीपुर लाला साधु ( शाह ) पृष्ठ. ८४, ११४ लावण्यप्रसाद लींबडी- जैन ज्ञानंभंडार लेख-पद्धति वकी ( वांकी ) वज्रसेन सूरि वडथूण (?) वडोद (द्रा) चंटपद्र वडोदरा = १६२ ९०,९१ १८ ९०. ८४ ११४ वटपद्र ४,७९, ८५, ८६, ११९, १६० १० १६३ ८४ ४१ " वढवाण ( ? वडवाणी )= वर्षमान पुर वणथली = वामनस्थली वरंगल= उरंगल वरदेव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १६० www.umaragyanbhandar.com Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद.] अनुक्रमणिका [१८३ ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम वर्धनपुर विद्यानंद वर्धमान तीर्थ ५८ विद्यापुर-वीजापुर वर्धमान पुर विद्युन्माली देव वलभी-मंग १०३ विधिप्रपा वस्तुपाल-तेजपाल-कल्प २१, विधिमार्ग ८१,९० विनोदकथा संग्रह ४३ वागड देश ४, ७५ विन्धनपुर ८२ वाघेला विविधतीर्थ-कल्प=तीर्थकल्प वाणारसी वाराणसी विशालराज गणि १० वाणी विहार(क)-जिनमंदिर ८४,९३ वामनस्थली ८४,१०४ वीजापुर वाराणसी , बृहदवृतांत २४ कीरजिन (बिंब, विहार ) ३५, वास्तुसार १०८,१०९ ५१,५६,५८,६७,८३-८५, वाहड विकन(म)पुर=विक्रमपुर , स्तोत्र-वृत्ति ८ विक्रमपुर २६,८२,८६ वीरधवल ९० विजयकटक वीरवल्ल (बल्लाल) विजययंत्र ६०,६१ वीरिणि विद्यातिलक मुनि ३३,३८,४०० बीसल देव ४२,१५१ वृद्ध( बृहत् क्षेत्रसमास ११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com १४१ " कल्प १५६ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " राजा " स्तवन ___१८४ ] ऐतिहासिक नामोनी [जिनप्रभसूरि अने ऐ. नाम पृष्ठ ऐ. नाम पृष्ठ. वेसट गोत्र १६० शाकंभरीश्वर १४२ वैभारगिरि तीर्थ-कल्प १९ शाकिनी व्यवस्थापत्र १५४ शान्तिनाथजिन (बिंब) ५३, ५४, व्याघी-कल्प २१ ८२, ८३, ८५ व्यारा-विहारक , प्रासाद ८. शक कुल ३९ , चरित (महाकाव्य) ४३, ३९-४१ १०९, १११ , सैन्य शकाधिराज महम्मद शारदा (मूर्ति) १०२, १६० शंखपुर शाधर १४२ शंखपुर तीर्थ-कल्प २० " " पद्धति , शिलादित्य १०३ शत्रुजय तीर्थ ३, २८, ३४, शिव-शक्ति (मोती-जोडी)१२८ ५५, ६७, ६८, ७६-७७, शिशुपालवध महाकाव्य १६० ८०, ८५,८७, १०६,११७ शीलतरंगिणी १०, ४१ , उद्धार १२, १४, १०७ शुद्धदंती तीर्थ-कल्प २० , कल्प ९, १९, २१-२४, शुभशील गणि ५८,६२, ६८. ३४, १०६ ७४, ११६, ११७, १२०, १३३ शत्रुजयावतार ८२ शेख शहाबुद्दीन (पोरी) २८ श्राविधि ११९, ११९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com , सेवक Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संप्रति सुलतान महम्मद. ] अनुक्रमणिका [१८५ ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम पृष्ठ. श्रावस्ती-तीर्थकल्प २० समयसार नाटक-वृत्ति १६२ श्रीधर ४४ समयसुंदर श्रीपालकथा सिरिवालकहा समरसिंह १२, १४, १०४, श्रीमालवंश(शी) १३४, १३५, १०६, १०७ १९९-१६३ ४२, १०७ , संघ १३४, १३५ समवसरण-कल्प २० समियानक श्रीरंगम् टापू (पट्टन) २६ श्रेणिकचरित्र (व्याश्रय ) ७ ८०, ८१ संघतिलकाचार्य ३८, ४० संबोधसत्तरी सम्यक्त्वसप्तति-वृत्ति ३९,१४८ संघपट्टक टीका २७ सरस्वती-कोश (७) ८ सत्तसय देश १०५ । सरस्वतीपत्तन पाटण सत्यपुर-तीर्थकल्प २०,१०४ । सलक्षणपुर सत्या(सच्चाइ-सच्चिकादेवी) संसारचंद्र १०२ सहजा शाह ४२, १०१,१०२ -सत्र ९३, ९४ सहणासदुरपीन(नासरुद्दीन)१११ संतिकर स्तवन १४५ सहस्रमल्ल १६० संदेहविषौषधि साइपुर सपादलक्ष १०४, १२६,१२७ साइबाण सप्ततिशतस्थान ११ साकेतपुर-अयोध्या समयध्वज १६२ सागरतिलक १६२ १४१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ऐतिहासिक नामोनी [जिनप्रभसूरि अने wwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ऐ. नाम पृष्ठ ऐ. नाम पृष्ठ साचोर १०३,१०५ सिंहा(घा)नक ८३, १६२ साधुप्रतिक्रमणसूत्र-वृत्ति सीहड सामंत सुकृतसागर काव्य ८२,८९,१०१ सारस्वतपत्तन पाटण सुगुरु-परंपरा-गाथाकुलक१५९ सारूआर घाट प्रासाद १०० , गीत १९९ सालिग सुमटपाल १३६, १३७ साहबदीन शहाब-उद्-दीन सुमति गणि २७ साहण सिकंदर सुरगिरिदेवगिरि सिद्धचक्र-यंत्रोद्धार ११५ सुरत्राण-सुलतान सिद्ध सूरि १०२,१०३,१०७ सुलतान महम्मद १६४ सिद्धराज , ऑफ देहली ९९, १४४ सिद्धवरकूट , सराइ ३७,४९ सिद्धसेन दिवाकर सिद्धांतस्तव सूराचार्य सूरिमंत्राम्नाय (विद्याकल्प) ९ ,, अपचूरि सिद्धिचंद्र वाचक सेतुबंध सिंदूरप्रकर-टीका १५९,१६२ सेत्तुंज-शत्रुजय सिरि सोपार पुर सिरिवालकहा सोमतिलक सरि (१) १०,११, सिरोह ६६, ६८, ८०, ८७,. सिंहण देव ११६-११८ सूरप्रभ उ. ४३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ९० " राजा सुलतान महम्मद.] अनुक्रमणिका [१८७ ऐ. नाम पृष्ठ. ऐ. नाम पृष्ठ. " (२) ३३,४०-४२ हरिभद्र सूरि सोमधर्म गणि ६,९,५९,११८ हरिषेण सोमनाथ १०४ हर्षकीर्ति सरि __ ११३ सोमप्रभाचार्य ६३-६८,१५९ हर्षपुरीय गच्छ हपपुराय ४३ सोममूर्ति गणि हंसकीर्ति सोमेश्वर पत्तन हंसलपुर २६ हस्तिनापुर १८, ८३ सोरठ १०४ , तीर्थ-कल्प २०, ५६ स्रो( ? मो )हिलवाडी १३६ ., प्रतिष्ठा ५५ सौराष्ट्र तीर्थ १८ , यात्रा सौवर्तक स्तंभतीर्थ ६६, ८८, १०६ हिंदूराजा (राज्य) ४७,५६ स्तंभनपार्श्व-तीर्थकल्प १९ हीरविजय सूरि स्तंभनेंद्र-प्रबंध ४३ हेमचंद्र साधु ११५ स्याद्वादमंजरी हेमचंद्राचार्य १,५६,११४ १०३, १०४ हेमनाममाला-शिलोंछ ३३,१५६ हेमाड पंत हेमाद्रि ,, देव हेमाद्रि(दि) ७८,८६,९०-९७ , =महम्मद 'हेमाद्रि ऊर्फ हेमाड पंत' हरिकंसी-पार्श्व-कल्प २० होयसाल राजा २६ ८४ . स्तोत्र हम्मीर " मद-मर्दन " चौहाण १२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिहासिक घटना-निर्देशक संवत्सर-सूची विक्रम संवत् पृष्ठ विक्रम संवत् पृष्ठ ८४५ | १३२७ १३२८ ७७ १०८१ १३३ १ ४,३१,७५,७७,७८ १३३२ ६,५९,६६,६७ १२१० १३३३ १२३३ १३३४ ३३,७७ १२४८ १३३६ १२७७ १३३७ (अयुक्त) १२८० १२८८ १२९५ १२९७ १३४७ ( ? ७४) १५० १३४८ १३४९ १३५२ १३५५ ११ १३५६ ७,१०४ ८१,८२ १३९७ ६६ / १३६३ १३१० १३११ १३२० १३२१ १३२५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६५ १९० ] ऐतिहासिक घटना-निर्देशक [जिनप्रभसूरि अने mmmxmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm विक्रम संवत् पृष्ठ विक्रम संवत् ५८ १३८९ ९, २२, २३, १३६६ ५१, १६, १५५ १३६७ १०५ । १३९० ४, ६,९,५१, १३६९ . ८, ११, १०६ । ५३, ५५, ६८, १०५ १३७१ ४२, ५४, | १३९३ ४२, ५३, १०१, १०६ १०१, १०४,१०७ १३७२ ४० ११,६६,६७ १३९७ ४० '१०८, १०९ १३७७ ११०१ १३८० ४३, ४४. १२९ १३८१ ९, २३, ६७, १४०७ २३,६० ___३३, ३६ १४१० ४३, १०९, १३८५ ९, २१, ३०, ३२, ३४, ४०, १४१२ ६७, १०५, १०६, १४२२ ३८, १११,१४८ १९३, १५५ १४२४ १३८६ ११२७ ११३ १३८७ ९, ११, ११, ११२८ ४३, ४, ५९ १४२९ ४१, ११९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलतान महम्मद्. ] विक्रम संवत् १४४४ १४६६ १४८३ १५०३ १९०५ १५०६ १५११ १५१२ १९१७ १९२१ १५५५ १९८९ संवत्सर-सूची पृष्ठ विक्रम संवत् ६० १६३१ १६३५ १६४१ ११, ६७, ७८ ४५ ६, ९, १९, ११८ १९९ १११, ११९ १६० १०६ ११६ १८, ६२, ६८, ११६, १२० १२०, १२२ १६२ १७२६ १८९५ १९२२ १९३९ १९६६ [ १९१ पृष्ठ १६२ १६३ १६३ १६३ १६४ १६४ ११३ १६० १९७१ २९, ११२ १९७९ (सन् १९२३) २४ १९८२ ११२ १९८७ (सन् १९३१) ९२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ v o पृष्ठ 29 "" १४ १७ १७ १८ 34 पंक्ति c ११, १८३, २० १६ २१ ४२ "" ६३ ८६ ९६ २२ 39 १७ ४५ २२ १४२३ ५८, ६२ ८, १४१५२९ (१) १५ १४ १५ २२ १२८ १७ १३३ १२ १५१ १८ १६० १५ १७ शुद्धि - पत्रक अशुद्ध वीरस्तोत्रसरि इत्यादि पंचकल्याणमय अप्रसिद्ध नमस्त्रिजगद्वन्दित १९, २० पारसी ( शौरीपुर ) आराम निवृत्त कथाकोश -कोश - कोश पुरण शक्ति पद्धी बाकानेर भरव सग शुद्ध वीरस्तोत्र (स्वर्णसिद्विगर्भित) सूरिमंत्र- प्रदेश विवरण इत्यादि कल्याणकमय प्रसिद्ध नमस्त्रिदशवन्दितक्रमे फारसी आराम ( आमर ) - निर्वृति १४८३ १५२१ कथाकोश (कथा २ ) - कोश ( कथा ३) - कोश ( कथा ८ ) पुराण म्हारे शक्ति पछी बीकानेर भैरव सर्ग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ICPD થી થશો पं. लालचंद्र गांधीए संपादित करेला अ (अप्रसिद्ध ग्रन्थ-ग्रन्थकृत्परिचय, प्रस्तावना भूमिका वि. साथे) गायकवाडप्राच्यग्रंथमालामा प्रकाशित IDIR 21 जेसलमेर-जैनभाण्डागारोयग्रन्थसूची 29 नलविलासनाटक कर्ता महाकवि रामचंद्र 37 अपभ्रंशकाव्यत्रयी कर्ता जिनदत्तसूरि 48 नाट्यदर्पण( सविवरण ) महाकवि रामचंद्र, गुणचंद्र 4-8 76 पत्तनस्थप्राच्यजैनभाण्डागारीयग्रन्थसूची। 8-0 [ ताडपत्रीय-विविधग्रन्थ-परिचयात्मक प्रथम भा] पाटणना प्रख्यात प्राचीन जैन भंडारोमा सेंकडो वर्षाथी छपायेला, ताडपत्रों पर सचवाइ रहेला, सं. प्रा. अपशादि। भाषाना, विविध विषयोना, अलभ्य दुर्लभ अप्रकट ग्रंथोनो परिचय करावनार,, ग्रंथकारोनी तथा ग्रन्थों लखावी समर्पण करनार श्रीमानो अने श्रीमतीओनी विशाल प्रशस्तियोथी, तथा राजाओ, राज्याधिकारीओ, विद्वानो, विविध देश-नगरो, गच्छो अने वश-ज्ञातियोना इतिहास पर प्रकाश पाउती सामग्रीओथी विभूषित थयेल, जैनोना अने गुजरातना गौरवभर्या उल्लेखाथी भरपूर, प्रत्येक पुस्तकालयो अने साक्षरोने उपयोगी महान् ग्रन्थस्यादिशब्दसमुच्चय (अवचूरि साथे) महाकवि अमरचन्द्र 0-12 1 पंचमी-माहात्म्य ( महेश्वरसूरिना प्रा. नो गु. अनुवाद 0-5 2 त्रिभुवनदोपकप्रबन्ध(प्रा.गु. आध्यात्मिक कवि जयशेखरसूरि०-८ 3 तेजपालना विजय (गोध्रा, पावागढ अने चांपानेरना -8 अप्रकट इतिहास साथे) [ साथे लेनारने योग्य लाभ थशे] -अभयचंद्र भगवान् गांधीके. रावपुरा रोड, गंभीराबिल्डींग, ठे. हेरीस रोड, वडोदरा भावनगर (काठियावाड) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com