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________________ ५४ ] [जिनप्रभसूरि अने बिंबोने गुरुजीए त्यां प्रतिष्ठित काँ अने अंबिकानी प्रतिमा स्थापी. संघपतिए चैत्य-स्थानोमां संघ-वात्सल्य विगेरे महोत्सवो कर्या हता अने संघे वस्त्र, भोजन, तांबूल विगेरे द्वारा याचकोना समूहने संतुष्ट कर्यो हतो. पुरमां रचेला नाभिनंदनोद्धार-प्रबंधमां जणाव्युं छे के-वि. सं. १३७१ मां शत्रुजयतीर्थनो उद्धार करनारा सुप्रसिद्ध समरसिंहे पातशाह(ग्यासुदीन)ना फरमानथी संघपति थइ घणा संघ-पुरुषो अने जिनप्रभसूरि साथे मथुरा अने हस्तिनापुरमा तीर्थ-यात्रा करी हती. जे समरने पातशाह ग्यासुदीने( तघलके ) पोताना पुत्र तरीके अने तेना पुत्र उल्ल[ग]खाने विश्वासपात्र पोताना भाइ तरीके स्वीकारी तिलंगदेशनो स्वामी( सूबो ) बनान्यो हतो; अने जे समराशाहे सुलतान( ग्यासुद्दीन तघलक )ना बंदी बनेला पांडु( पांड्य ) देशना स्वामी वीरवल्ल ( वीर बल्लाल ) राजाने पातशाह पासेथी मुक्त करावी, पुनः तेने तेना देशमा स्थपावी राज-संस्थापनाचार्यता उपार्जी हती. जेणे तुर्कोथी बंदी तरीके पक. डायेल लाखो मनुष्योने मुक्त कराव्या हता, अनेक राजा-राणाओ अने व्यवहारियो पर पण अनेक वार उपकार कर्या हता, जेणे सर्व देशोमांथी बोलावी श्रावकोना कुटुंबोने तिलंगदेशमा स्थापी, उरंगलपुरमां जिनालयो करावी जैनशासननुं महत्व वधायुं हतुं. आमां सूचवेल उल्लगखान, ए प्रस्तुत लेख साथे संबंध धराShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034907
Book TitleJinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra Bhagwan Gandhi
PublisherJinharisagarsuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages204
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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