________________
सुलतान महम्मद ]
[ ५५
यात्राथी, आवतां ज गुरुजी ( जिनप्रभसूरिजी ) ए वैशाख शु. १० ना दिवसे सकळ दुरित अने महावीर - बिंबनी विघ्नो दूर करनार ते ज श्रीमहावीरना पुन: स्थापना बिंबने साहिराजे (पातशाहे) करावेला विहार ( जैन मंदिर ) मां श्रेष्ठ महोत्सवपूर्वक स्थायुं इतुं, त्यारथी ते संघद्वारा विशेष प्रकारे पूजाय छे.
दिग्विजय यात्राथी महाराज ( पातशाह) पाछा आवतां चैत्यमा अने वसतिमां उत्सवो प्रवर्ते छे. सार्वभौम उत्तरोत्तर मान आपीने गुरुजीनुं सन्मान करे छे. दरेक दिशामां सार्वभौमना प्रभावक श्रेष्ठ यशः पटहो वागे छे.
शक - सैन्यवडे दिक्- चक्र पराभव पामवा छतां पण खरतरगच्छना अलंकाररूप गुरु ( जिनप्रभपातशाही फर- सूरि ) ना प्रसादथी राजाधिराजे आपेल मानथी जैन फरमान हाथमां राखनारा श्वेतांबरो अने समाज अने दिगंबरो सर्व देशोमां उपसर्ग विना विचरे जैन तीर्थोमां छे. गुरुजीए फरमान ग्रहण करीने श्री
निर्भयता
शत्रुंजय, गिरनार तथा फलोधी विगेरे तीर्थोंने अकुतोभय - निर्भय कर्या छे.
वनार महम्मद तघलक जणाय छे. जूओ केम्ब्रीज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया [ वॉ. ३, पृ. १२९-१३४ ]
हस्तिनापुरमा पोते करेली आ प्रतिष्ठा वि. सं. १३९० मां
www.umaragyanbhandar.com
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat