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________________ सुलतान महम्मद.] अने महणसिंह [१२९ तेथी लेणदेण पण घणी थइ. पहेला सो घोडा आपीने देवू वाळयु हतुं, अने उत्सुकताथी पोताना नगरमां पहोंची गया त्यारे बाकीचं लेणुं अहिं रही गयु हतुं. 'केटलुं लेणुं छे ?' एम पूछातां तेणे कयु के-जूनां नाणां प्रमाणे ३२००० बत्रीश हजार लेणा थाय, जो बराबर होय तो आपो. मदनसिंहे पण का के-"पिताजीनुं देवु थोडं अथवा वधारे वहीमां में जे प्रमाणे जोडे ते नाम प्रमाणे में आपी दीधुं छे, परंतु तेमां आपनुं नाम में कयांय जोयुं नथी, तो लख्या बोल्या विना लेणु केवी रीते लेणुं थइ शके ?" चित्तमां हर्षित थवा छतां पण ते शेठ रुष्ट जेवो थइ तेना प्रत्ये बोल्यो के-'अरे ! पितानुं देवं पुत्र आपे तेमां विचार शो?' मदनसिंह-'शेठ ! आप आ फोकट प्रयास शा माटे करो छो ? साक्षी विना अथवा लखाण विना लेणुं लइ शकाशे नहि. ' ते शेठ सुलताननी सभामांगयो अने एकांत करावी सुलतानने विज्ञप्ति करी के-' परीक्षा माटे जगतसिंहना पुत्र साथे में बनावटी कलह मांड्यो छे जे ते प्रलाप करवामां मने कोई दोष देवो नहि.' एवी रीते खानगीमां महणसिंह बने वखत प्रतिक्रमण अने त्रिकाल देव-पूजा करतो हतो. साधुओने वहोरावी( दान आपीने ) ज जमतो हतो. प्रतिवर्ष त्रण वार साधर्मिक-वात्सल्य अने त्रण वार संघ-पूजा करतो हतो. " ( उ. क. प. ७) आज महणसिंहे दिल्लीमां वि. सं. ११०५मां पोते प्रापेली वसतिमां वास करावी रानशेखर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034907
Book TitleJinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra Bhagwan Gandhi
PublisherJinharisagarsuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages204
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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