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उपसंहार [जिनप्रभसूरि अने आ निबन्धनी पुनरावृत्तिना प्रसङ्गे पूर्वोक्त कल्पो उपरान्त
जिनप्रभसूरि-प्रबन्ध (सं.)नी लगभग उपसंहार मळती बे प्रतियो उपलब्ध थइ हती[१]
वडोदरा आ. जैन ज्ञानमंदिरनी प्र. कान्तिविजयजी मुनिराजनासंग्रहनी, तथा [२] वि.सं. १८९५ मुंबईमां, अने वि. सं. १९२२मां अजीमगंजमां लखाएल परथी अगरचंदजी नाहटाए बीकानेरथी मोकलावेली नकल. तथा जिनहरिसागरसूरिजीए पाछलथी मोकलावेल प्राकृत प्रबन्धनी प्रति, जिनप्रभसूरिनी तथा तेमनी शिष्य-परंपरानी कृतिओ अने खरतरगच्छनी अन्य सं. गु. पट्टावलीओ, उपदेशसप्तति, श्राद्धविधि, शुभशीलगणिनो कथाकोष (छाणी जैन ज्ञानमंदिरनी ह. लि. प्रति ), उपदेशकल्पवल्ली, उपदेशतरंगिणी विगेरे अनेक ऐतिहासिक साधनो साथे समन्वय करी लीधेला तेमांना उपयोगी अंशो आ निबंधमां योग्य स्थाने दृष्टिगोचर थशे अने उपयोगी जणाशे-एवी आशा छे.
आ प्रयत्नथी महम्मद तघलकना समकालीन परिचित इब्ने बतूता जेवा परदेशी इतिहास-लेखके न जणावेली, 'मिराते मुहम्मदी (उर्दू), झीआउद्-दीन बरनीनी 'तारीखइ-फीरोजशाही , तथा 'दी क्रॉनीकल्स् ऑफ दि पठान किंग्ज
ऑफ दिल्ही' 'सुलतानम् ऑफ देहली' 'दी ट्रॅव्हलर ऑफ इस्लाम' 'कॅम्बीज हिस्टरी ऑफ इण्डिया, ' 'ऑक्सShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com