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________________ ११४ ] दिल्लीश्वर पातशाहोथी [ जिनप्रभसूरि अने " अवनितलने पवित्र करनारा जे गच्छमां, हम्मीरदेवथी पूजायेला सद्गुणी जयशेखरसूरि सुचरित पेरोज पातशा- पुरुषोमां मुकुट जेवा थइ गया. रूणा हथी सत्कृत पुरीमा सीहडना वचनथी अल्लावदी[न] रत्नशेखरसूरि. राजावडे सद्वस्त्र साथे फरमान-दानपूर्वक पूजायेला वज्रसेन गुरु पछी विद्यानिधि रत्नशखरसूरि गुरु थइ गया, जेने पातशाह पेरोज साहिए हर्षथी श्रेष्ठ वस्त्रोद्वारा सारी रीते पहेरामणी करी हती. अने नागपुरीय श्रेष्ठ पाठक हंसकीर्ति, दिल्लीमां साहि सिकंदर आगळ प्रतापथी अधिक थइ गया.'". १. " गच्छे यत्र पवित्रितावनितले हम्मीरदेवार्चितः सूरिः श्रीजयशेखरः सुचरितश्रीशेखरः सद्गुणः । रुणायां पुरि सीहडस्य वचनादलावदीभूभुना मद्वासः-फुरमानदानमहितः श्रीवज्रसेनो गुरुः ॥ १ ॥ सूरिश्रीप्रभुरत्नशेखरगुरुर्विद्यानिधिर्य मुदा सक्षोमैः किल पर्यधापयदरं पेरोजसाहिप्रभुः । श्रीमतसाहिसिकंदरस्य पुरतो जातः प्रतापाधिको दिल्ल्यां नागपुरीयपाठकवरः श्रीहंसकीया॑तयः॥२॥" -धातुतरंगिणी-प्रशस्ति (भां. रि. १८८२-८३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034907
Book TitleJinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra Bhagwan Gandhi
PublisherJinharisagarsuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages204
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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