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प्रास्ताविक
आनंद-प्रमोदनो प्रसंग छे के-लगभग एक दसका पहेलां संक्षिप्त लेखरूपे प्रकाशित थयेल अम्हारो शुभ प्रयास, विशेष समृद्ध थइ विस्तृत स्वरूपमा आजे ग्रंथरूपे प्रकाशमां आवे छे. एना अन्वेषणमां-प्रामाणिक ऐतिहासिक संशोधनमा केटलो परिश्रम उठाव्यो हशे ? वर्षोना केटला प्रयत्नथी केवी केवी मुश्केलीओ वच्चे आ गवेषणा थइ हशे ? ' श्रेयांसि बहुविघ्नानि । सूक्तने यथार्थ प्रामाणिक करतां केवां केवां विघ्नोमांथी पसार थइ आनी संकलना थइ हशे ? अने वर्षों पछी आवा स्वरूपमा आजे आ प्रसिद्धिमां आवे छे, ते दरम्यान पण लेखकने केवा केवा प्रतिकूल संयोगो पसार करवा पड्या हशे ? ते लेखके स्वयं उच्चारवं अप्रस्तुत लेखाय. इतिहासप्रेमी परिश्रमविज्ञ सज्जनो कदाच ए समनी शके.
आ परिश्रम, आवा संशोधित-वर्षित नवीन स्वरूपमा प्रकाशमां आवी शक्यो छे, तेनो वास्तविक सुयश, इतिहासप्रेमी गुणज्ञ जैनाचार्य श्रीजिनहरिसागरसूरिजी महाराजने घटे छे, जेमना प्रेरणा-प्रोत्साहन विना आ निबंध-ग्रंथर्नु प्रकाशन कार्य प्रायः अशक्य थयुं होत. शासन-प्रभावक माननीय पूज्य पूर्वन आचार्योना इतिहास-संशोधनमां अने तेना प्रकाशनमां असाधारण उत्कंठा धरावनार उपर्युक्त आचार्यना आदर्शने कृतज्ञ अन्य महानुभावो पण अनुसरे-एम इच्छीशं.
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