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[जिनप्रभसूरि अने तख्त पर आरूढ रही प्रतापी सार्वभौम तरीके राज्यअमल करतो हतो. जेना संबंधमां इंग्लीश ऐतिहासिक पुस्तकोमां केटलुक जाणवालायक सचित्र वृत्तान्त मळी आवे छे.
आराजाधिराज हम्मीर महम्मद तवलकक्यारे? कई रीते संघपर प्रसन्नथयो?जिनप्रभसूरिए शत्रुजय तीर्थकल्पमां एनुं स्मरण शामाटे कर्यु एनी पाछळ रहेला गूढ इतिहासनो भेद समजवा तत्कालीन अथवा तेना निकटना प्रामाणिक विश्वसनीय उल्लेखो तपासवा जोइये. सौथी पहेलां स्वयं ए ग्रन्थकारे ए संबधी क्यांय सविस्तर स्पष्टताथी सूचव्यु छे के केम ? ए शोधq जोइये. ए शोध करतां तेमना तीर्थकल्प तरफ दृष्टि करीए. आ तोर्थ
१ प्राचीन बृहट्टिपनिकामां सूचवायेला अने मर्डम प्रो. पिटर्सनना रि. ४ था [ पृ. ९१ थी १०० ] मां स्वल्प अंशो साथे निर्दिष्ट करायेला आ ' तीर्थकल्प' नुं प्रकाशन कार्य, एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाले हाथ धर्यु हतुं; परंतु इ. स. १९२३ मां प्रकट थयेल एक भाग [ पृ. ९६ ] पछीनो भाग हजु अम्हाग जोवामां आवेल नथी.
आ लेखनी बीनी आवृत्ति प्रकाशमां आवे छे त्यारे आ • विविध तीर्थकल्प ' प्रसिद्ध साक्षर जिनविजयजीद्वारा संपादित थइ, सिंघी जैन-ग्रन्थमालामां विश्वभारती सिंघी जैन-ज्ञानपीठ
शान्तिनिकेतनद्वारा प्रकाशित थाय छे, ए खुशी थवा जेवू के. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com