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[ जिनप्रभसूरि अने कल्प ' राज-प्रसाद ' नामे लांबा वखत सुधी जयवंत रहो.' उपर्युक्त उल्लेख परथी विचारने अवकाश मळे अने जिज्ञासा
थाय ए स्वाभाविक छे के-आमां सूचवेल दील्लीश्वर हम्मीर राजाओनो अधिराज-महान सम्राट् कोण? महम्मदनी अने ए संघ पर केवी रीते प्रसन्न थयो ? प्रसन्नता. कोना प्रभावथी प्रसन्न थयो ? प्रसन्न
___थईने तेणे शुं कर्यु ? आ जैनाचार्य साथे एने शो संबंध-परिचय ? के जेथी आ ग्रंथकारने एना स्मरण माटे पोतानी एक कृतिनु-शत्रुजय-तीर्थना कल्पनुं 'राजप्रसाद ' एवं नाम राखवार्नु उचित समजायु. आ संबंधी अन्यत्र तपास करतां पहेलां आ ग्रंथ परथी शुं जणाय छे, ते तपासीए.
उपर्युक्त तीर्थकल्पना अंतिम भागमां जिनप्रभसरिए ग्रंथकार तरीके पोताना नामनो निर्देश चातुर्यथी सूचवी 'कल्पप्रदीप ' अपरनामवाळा आ ग्रन्थने वि. सं. १३८९ १ " प्रारम्भेऽप्यस्य राजाधिराजः सके प्रसन्नवान् ।
अतो राजप्रसादाख्यः कल्पोऽयं जयताञ्चिरम् ।। श्रीविक्रमाब्दे बोणाष्ट-विश्वदेवमिते शितो । सप्तम्यां तपसः काव्यदिवसेऽयं समर्षितः ॥"
-तीर्थकल्प (शत्रुजयकल्प )
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