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________________ सुलतान महम्मद, ] अने महणसिंह [ १३१ रीते मदनसिंह पण राजा विगेरेमां वल्लभ थयों हता. 'ज्यां ज्यां गुणोनो आदर होय, त्यां त्यां प्रतिष्ठा संभवे छे. ' 66 एक वखते मांदा थयेला सुलतानने मेवाडथी आवेला पोला नामना महावैद्ये रोगरहित कर्या हता. विविध औषधो अने योगोनो जाणकार, रसांगवेदी शास्त्रज्ञ ते वैद्यराज त्यारथी राजा विगेरेनो पण मान्य थयो हतो. अत्यंत बलवान् ते वैद्य - राज एक साथे ९ नाळिएर भांगी नाखतो हतो, अने सोपारीने पोताना अंगुठावडे नाळिएरमां नाखी शकतो हतो. बेने ढींचो पर, बेने काखमां, बेने कफोणि पर, बेने खभा पर अने एकने चिबुक पर राखीने ते नव नाळिएरने चूर्ण करी सिंहने घरे कोइ खरसाणी वणिक् पांच लाख टंका थापण मूकी करीने गयो हतो. ७ वर्षो गयां. त्यार पछी तेणे जगसिंह ने मृत्यु पामेलो सांभळी विचार्य के 'धन गयुं.' फरी विचार्थी के - ' तेनो पुत्र मुहणसिंह छे, तेनी परीक्षा करीए.' त्यार पछी त्यां आवीने तेणे करूं के - ' मुहणसिंह ! तम्हारा पिता म्हारा मित्र हता. में तमारा पितानी पासे X × ते बंने सुलताननी पासे गया, बनेए पोतपोतानो संबंध कह्यो. खरसाणीए करूं के - ' आप पिताना सम करो. ' महणसिंहे कां के - ' पांच लाखवडे शुं बापने वेचे ? ' त्यार पछी तेने पांच लाख आप्या. खरसाणीए जगसिंहना अक्षरो दर्शावीने क ुएं के - ' सिंहथी सिंह ज थाय छे.' ए साधुं थयुं. मुहणसिंहने एक लाखनी पहे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034907
Book TitleJinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra Bhagwan Gandhi
PublisherJinharisagarsuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages204
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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