SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुलतान महम्मद ] पेथडशाह [ ८१ परिहरनार, सत्शील विगेरेथी पोताना जन्मने पवित्र करनार, प्राये रोषनो नाश करनार, सारी रीते विशाल अनेक पौषधशालाओ करावनार, मंत्रमय स्तोत्रद्वारा विदीर्ण थयेला लिंगथी विवृत ( प्रकट ) थयेल श्रीपार्श्वनी पूजा करनार, विद्यन्मालिदेवे करेल, देवाधिदेव नामथी प्रख्यात महावीरनी देदीप्यमान प्रतिकृति ( मूर्ति ) नी आडंबरथी पूजा करनार, नित्य त्रिकाल जिनराजनी पूजनविधि तथा बे वखत आवश्यक ( प्रतिक्रमण ) करनार, धार्मिक मात्र साधु पर पण मोटी भक्ति करनार, संसार पर विरक्ति करनार, सारां पर्वोमां पौषध करनार, साधर्मिकोनुं सदा वैयावृत्त्य अने उच्च प्रकारे हर्षथी वात्सल्य करनार, पुण्य- सागर श्रीमत् संप्रतिराजाना, कुमारपाल भूपालना अने सचिवाधीश वस्तुपालना चरितने संभारी संभारीने उदार हर्षरूपी सुधा - सागरनी ऊर्मियोमा उन्मज्जन करता, श्रेयरूपी उद्यानने सिंचित करवामां वर्षाकालना श्रेष्ठ मेघ जेवा सज्जन पृथ्वीधर ( पेथड ) शाहे सम्यग् न्यायथी सारी रीते उपार्जित करेला बहोळा धनने सारा स्थानोमां स्थापतां वि. सं. १३२० वीत्या पछी नेत्रोने प्रसाद-जनक, सुख आपनारा जे जे प्रासादो, जे जे गिरि (पर्वत) पर, श्रेष्ठ नगरमां अथवा गाममां कराव्या, वे प्रासादोने तेमां रहेला जिननायकोना नाम साथे श्रद्धापूर्वक हुं स्तनुं हुं - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034907
Book TitleJinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra Bhagwan Gandhi
PublisherJinharisagarsuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages204
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy