SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [१४३ सावधान थजो.' त्यार पछी मूरिए ते मुद्रारत्न लइ, राघवचैतन्य न जाणे तेवी रीते तेना माथा परना वस्त्रमा नाख्यु. महम्मदशाह जुए छे, तो मुद्रारत्न नथी. आगळ पाछळ जुए छे, परंतु मुद्रारत्न जोवामां आवतुं नथी. शाहे पूछयु के- अहिं म्हारं मुद्रारत्न हतुं, कोणे लीधुं ?" एम पूछातां राघवे कह्यु के–' शाह ! आ मूरि पासे छे. ' शाह सूरि पासे मागवा लाग्या. सूरिए जगाव्यु के-' आ (राघव )नी पासे छे. तेणे पोतानां वस्त्रो दर्शाव्यां. सरिए कह्यु के-शाह ! आ(राघव)ना माथा पर छे. माथा पर जुए छे, तो मुद्रा (वींटी) जोवामां आवी, शाहे ते लीधी अने राघवचैतन्यने कह्यु के-'धन्य छे !, तुं खरो सत्यवादी छो, के पोते लइने जिनप्रभसरिने दूषण आपे छे ! तेथी राघवचैतन्य श्याममुखवाळो थइ पोताने घरे गयो. एक वखते ६४ जोगणीओ श्राविकाओनुं रूप करी छळवा माटे सूरि पासे आवी, सामायिक लइने ६४ जोगणीओने व्याख्यान सांभळती बेठी. पद्माववश करवी. तीए मूरिने जणाव्यु के-'तमने छ __ळवा माटे आ ६४ जोगणीओ आवी छे. सरिए तेमने जोह तो तेओ व्याख्यान-रसमां लुब्ध थइ अनिमेष दृष्टिए ( आंखनो पलकारो कर्या विना ) सूरि तरफ दृष्टि राखीने बेठी हती. मूरिए ते बधीने त्यां ज खीली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034907
Book TitleJinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra Bhagwan Gandhi
PublisherJinharisagarsuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages204
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy