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[ जिनप्रभसूरि अने
[ २ ] हवे संघतिलकसरिजीना आदेशथी विद्यातिलकमुनि.
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तेम तेमां आवेला जुदा जुदा कल्पोना अन्तमां पण प्रायशः पोतानुं नाम सूचित कर्यु छे; तेम छतां तेमां ज आवेला आ कन्नाणयनयर ( कन्नानूर ) - वीरना कल्पना अंतमां पोतानुं नाम स्पष्ट रीते न सूचवतां प्रकागन्तरे सूचव्युं छे. तेम कग्वानो हेतु एवो समजाय छे के - आकल्पमां सूचवेली महत्त्वनी घटना साथे ए कल्पकारनो निकट संबंध होइ पोताना महत्त्वने प्रकाशित करनारी छे. जैनशासनना गौरवने सूचवती, जैनसमाजने आनन्दजनक ए घटना वास्तविक इतिहास - प्रतिपादननी दृष्टिए एमने वर्णववी पडी छे: तेम छतां कोइ एने आत्मश्लाघा -दोषरूप न समजे एवा आशयथी पोतानी लघुता सूचववा अने ए महत्त्वनां कार्यो थवामां गुरु. प्रभाव ध्वनित करवा ' जिनसिंह मुनीन्द्रना शिष्य मुनीश्वरे आ कल्प लख्यो छे. ' एवं जणाव्युं छे. जिनसिंह सूरिना शिष्य सूरि तरीके 'जिनप्रभसूरि' नामनुं सूचन, आज तीर्थकल्प ग्रंथमां पहेलां आवी गयेल होवाथी अहिं स्पष्ट नामनिर्देश न कग्वा छतां आ कन्नाणयनयर ( कन्नानूर ) - वीर - कल्पना कर्ता तरीके ए जिनप्रभसूरि ज समजवा जोईए.
१ आ संघतिलकसूरि, रुद्रपल्लीय गच्छना गुणशेखरसूरिना शिष्य हना. तेओए विद्याभ्यास आ जिनप्रभसूरि पासे कर्यो हतो. तेमणे वि. सं. १४२२ मां सारस्वन पत्तन ( पाटण ) मां 'सम्य
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