Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra Author(s): Jinvijay Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti View full book textPage 9
________________ संपादकीय प्रस्तावना आधारभूत प्रतिओनो परिचय जीतकल्पसूत्रनी प्रस्तुत आवृत्ति नीचे जणावेली हस्तलिखित प्रतिओना आधारे तैयार करवामां आवी छे:[१] जीतकल्पसूत्र मूलपाठ. (A) ताडपत्र ऊपर लखेली बृहचूर्णिसाथेनी,पूनाना भांडारकर ओरिएन्टलरीसर्च इन्स्टीट्युटमांना राजकीय ग्रन्थ संग्रहनी । (B) कागळ ऊपर लखेली केवळ मूलमात्रनी ३ पानानी, गूजरातपुरातत्त्वमन्दिरमा (अमदाबाद) ना संग्रहनी। (C) तिलकाचार्यकृत वृत्तिसमेतनी श्रीयुत के. प्रे. मोदी मारफत आवेली । (D) जर्मन विद्वान् डॉ. अर्नस्त लॉयमान संपादित अने Sitzungsberichte der Koniglich Preussischen Akademie der Wissenschaften, Berlin, 1892. मां रोमना क्षरमां मुद्रित । [२] सिद्धसेनसूरिकृत बृहचूर्णि. (A) पूनाना भांडारकर ओरिएन्टल रीसर्च इन्स्टीव्युटमांना संग्रहमांनी ताडपत्रनी नं. २३, १८८०-८१ वाळी प्रति । ए प्रतिने आ आवृत्तिमां पाठान्तर सूचववा माटे A संज्ञा आपवामां आवी छे । ए प्रतिमां लेखनकाल आपेलो नथी पण लीपिनी आकृति ऊपरथी ते विक्रमना १२ मां सैकामां लखाएली होय तेम लागे छ । प्रति बहु शुद्ध नथी । एमां मूळ सूत्र-पाठ पूर्ण आपेलो छ । (B) उक्त संग्रहमांनी ताडपत्रनी नं. २४; १८८०-८१ वाळी बीजी प्रति । ए प्रतिना पाठान्तर सूचववा माटे, एने अहिं B संज्ञा आपी छे । ए, प्रमाणमां कांईक वधारे शुद्ध छे। हांसियाओमां घणी जग्याए ढूंका टिप्पणो पण आपेलांछे। पण एनां अन्तनां केटलांक पांनां नष्ट थई गयां छे तेथी एनो पण लेखनकाल ज्ञात थई शक्यो नथी। वर्णाकृति ऊपरथी अनुमाने ए १३ मा सैकामां लखाएली होय तेम जणाय छ । [३] श्रीचंद्रसूरिरचित चूर्णिविषमपव्याख्या. (A) श्रीयुत के. प्रे. मोदी मारफत मळेली मुनिवर्य श्रीहंसविजयजीना शास्त्रसंग्रहमांनी कागळ ऊपर लखेली नवीन प्रति । (B) आचार्य श्रीविजयनेमी सूरिना संग्रहमांनी ए ज जातनी बीजी प्रति । आ बन्ने प्रतिओ कोई एक ज मूल प्रति ऊपरथी लखाएली नवीन नकलो छ । प्रतिओ सामान्यरीते बहु ज अशुद्धतावाळी छे । जूनी प्रतिनी लीपिना वळणने बराबर नहीं सम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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