Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 33
________________ नमो त्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सिद्धसेणसूरिकया जी य क प्प-चु ण्णी 15 सिद्धत्थ-सिद्ध-सासण सिद्धत्थ-सुयं सुयं च सिद्धत्थस्स। वीर-वरं वर-वरयं वर-वरएहि महियं नमह जीव-हियं ॥१॥ एक्कारस वि गणहरे दुद्धर-गुण-धारए धराहिव-सारे। जम्बु-प्पभवाईए पणमह सिरसा समत्त-सुत्तत्थ-धरे ॥२॥ दस-नव-पुव्वी अइसेसिणो य अवसेस-नाणिणो य जत्तेणं'। सव्वे वि सव्व-कालं तिगरण-सुद्धेण नमह जइ-गुण-प्पवरे ॥३॥ एत्तो नेव्वाणगं नेव्वाणं गमयतीति निव्वाणंगे। 10 पगयं पसत्थ-वयणं पहाण-वयणं च पवयणं नमह सया ॥४॥ नमह य अणुओग-धरं जुग-प्पहाणं पहाण नाणीण मयं । सव्व-सुइ-सस्थ-कुसलं दसण-नाणोवओग-मंग्गम्मि ठियं ॥ ५॥ जस्स मुह-निज्झरामय-मय-वस-गन्धाहिवासिया इव भमरा । नाण-मयरन्द-तिसिया रत्ति' दिया य मुणिवरा सेवन्ति सया ॥ ६॥ स-समय पर-समयागम-लिवि-गणिय-च्छन्द-सद्द-निम्माओ। दससु वि दिसासु जस्स य अ णु ओ गो भमइ अणुवमो जस-पडहो ॥ ७॥ नाणाणं नाणीण य हेऊण य पमाण-गणहराण य पुच्छा। अविसेसओ विसेसा विसेसियाऽऽव स्स य म्मि अणुवम मइणा ॥ ८॥ जेण य छे य सु य त्था आवत्तीदाण-विरयणा जत्तेणं। 20 पुरिस-विसेसेण फुडा निजूढा जी य दा ण क प्प म्मि विही ॥९॥ पर-समयागम-निउणं सुसमिय-सु-समण-समाहि-मग्गेण गयं । जिण भ ६ ख मा स म णं खमासमणाणं" निहाणमिव एकं ॥१०॥ तं नमिउं मय-महणं माणरिहं लोभ-वज्जियं जिय-रोसं। तेण" य जीय-विरइय-गाहाणं विवरणं भणिहामि जहत्थं ॥ ११॥ को वि सीसो विणीओ आवस्सय-दसकालिय-उत्तरज्झयणा-ऽऽयार-निसीह-सूयगड-दसाकप्प-ववहार माइयं अंग-पविढं बाहिरं च सुत्तओ अत्थओ य अहिजिऊण गुरुमुवगम्म अणुजाणावेऊण बारसावत्त कय-किइकम्मो पायवडिओ ठिओ कर-यल-जुयलं मत्थए ठवेडं विनवेइ-'भगवं! कप्प ववहार-कप्पियाकप्पिय चुल्लकप्प-महाकप्पसुय-निसीहाइएसु छेद-सुत्तेसु अइ-वित्थरेण पच्छित्तं भणियं । पइ दिवसं च तेण असमत्थो विसोहिं काउं। मइ-वामोहो य मे भवइ अन्नन्न"-गन्थेसु । नाणाइयारेसु आवत्ती का, कम्मि वा कं दाणं दिजइत्ति । 1 B वरदं। 2 B जत्तेण। 3 B पव०। 4 B निव्वा०। 5 B सदा। 6 B बहु-मयं । 7 Bरति च। 8 B. ओगे। 9 B हेऊणं य। 10 B विसेसे य। 11 B ०समणनिः । 12 B तेणे। 13 B भवति। 14 B अन्नोन्न। 15 B. न्थे सु य। 16 Aणातियारे । 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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