Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
View full book text
________________
aamaaaaaamam
सिद्धसेनसूरिकया
[गाथा ४७-५० वालमई सुत्तमई पागमई तहय इंटकडगमई । संथारगदुगमझुसिरं मुसिरं पिय डंडपणगंव खंड विडंडग-लहि-विलट्ठी तह नालिया य पंचमिया । अवलेहणि मत्त-तिगं पासवणुचारखेले य चम्मतियऽत्थुर पाउरतलिग अहवाविचम्मतिविहमिमं। कत्तीतलियावन्भा पट्टगदुगंचेव होइइम संथासत्तरपट्टो अहका सभाहपट्टपल्हत्थी । मझो अजाणं पुण अपरित्तो पारगो होह ॥ 5 अक्खा संथारो वा दुविहो एगंगिओ य इयरो वा । बिहयपय पोत्थपणगं फलगं तह होइ उक्कोसो
___एस अजाणं साहूणं चोग्गहिओ भणिओ। इयाणि अजाणं ओहिओ भन्नइ । जो श्चिय थेरकप्पियाण ओहोवही चोइसविहो सो चेव अजाणं पि । नवरंअजाणं एस च्चिय चोलट्ठाणम्मि कमढगं नवरं । अन्नो य देहलग्गो इमोवही होइ तासिं पि
ओग्गहणन्तगपट्टो अट्टोरुगचलणिया य बोधया। अब्भिन्तरबाहि-नियंसणीय तह कंचुए चेव 10 उक्कच्छिय-वेकच्छिय संघाडी चेव खंधकरणी य । ओहोवहिम्मि एए अजाणं पनधीसाओ
___ एस्थ अजाणं जहन्नो जो चेव साहूणं ओहिओ चउधिहो। उकोसो अट्टविहो-चउरो चेव पुषुदिट्टा जे साहूणं । अन्ने य इमे चउरो-अन्भिन्तरबाहि-नियंसणीय संघाडी खंधकरण एसो उक्कोसओ उ अजाणं । तेरसविहो उ मज्झो इणमो उ समासओ होइ॥
पत्ता बंधाईया चउरो ते चेव पुष्वनिहिट्ठा । मत्तो य कमढगं वा तह ओग्गहणन्तगं चेव ॥ 15 पट्टो अट्टोलविय चलणिय तह कंचुगे य उकच्छी। वेकच्छी तेरसमा अजाणं होइ णायचा ॥
- जहन्नोवहिम्मि 'विञ्चुए' पडिए पुण लछे निविईयं । मज्झिमे पुरिमटुं । उक्कोसए एक्कासणयं 'विस्सरिया पेहिए'त्ति-पडिलेहिउँ विस्सरिउ त्ति भणियं होइ । जहन्ने अप्पडिलेहिए निधिईयं मज्झिमे पुरिमटुं । उक्कोसे एक्कासणयं । 'विस्सारियानिवेयणे'त्ति निवेइउं' विस्सरियं हि
आयरियाईणं तिविहो वि। तो एवं चेव पच्छित्तं । अह पुण सधोवही विश्व 20 पुणरवि लखो। पडिलेहिउँ वा विस्सरिओ। निवेइ वा विस्सरिओ सधो चेव, तो आयाम
४७. 'हारिय धो'इच्चाह । हारिए जहन्नोवहिम्मि एमासणयं । मज्झिमे आयामं । उक्को चउत्थं धोए वि एवं चेव पच्छित्तं तिविहं। उम्गमेउं न निवेइए। जाणन्तो वि जहान पर परिग्गहिउं आयरियस्स अणिवेइओ उवही । तस्सानिवेइयस्स तिविहं एयं चेव पच्छित्तं
अदिनं वा आयरियाईहिं जहन्नाइ-मेयं उवहिं परिभुञ्जइ एयं चेव तिविहं पच्छित्तं 25 दिन्नं वा उवहिं जहन्नाइ-मेयं आयरियाईहिं अणणुन्नाओ अन्नेसि देइ । एत्थ वि एवं चे पच्छित्तं तिविहं । अह पुण सचोवहिं हारेजा। सधोवहिं वा उदुबद्धे धोवेजा । सधोवहिं । उग्गमेउन निवेएइ। सवोवाहिं वा अदिन्नं परिभुञ्जइ । सोवहिमणापुच्छाए अणणुनाउ वा अन्नेसिं देह । एवं सघहारवणाइएसुपएसु जीएण छटुं।
४८. 'मुहणन्तय' इच्चाइ । मुहणन्तए फिडिए ओग्गहाओ निधिईयं । रयहरणे अब्भत्तट्ठो 30 एवं ताव अणटे। अह पुण नासियं हारवियं वा पमाएण मुहणन्तयं तो से चउत्थं । रयहरणे छई
४९. 'कालद्धाणाईए' इञ्चाइ । विगहाइपमारणं कालाईयं करिन्ति भत्ताइ निविदर अह पुण परिभुञ्जन्ते चउत्थं । एवं अद्धाणाइक्कमे वि अपरिभुञ्जन्तस्स निविईयं; परिभुअन्तर अब्भत्तट्ठो । पारिट्ठावणियं सचमेवाविहीए विगिञ्चिन्तस्स भत्ताइ पुरिमटुं ।
५०. 'पाणस्सासंवरणे' इच्चाइ । पाणाहारासंवरणे । भूमितिगं ति-उच्चार-पासवा 35 कालभूमि। एगतर-अपडिलेहणाए वि निविईयं । चउविहाहारासंवरणे, अहवा नमोका पोरिसियाइयं पञ्चक्खाणं ण गेण्हइ; गहियं वा पञ्चक्खाणं भाइ सम्वत्थ पुरिमहूं।।
1B पुस्तके 'मई' स्थाने सर्वत्र 'मती' पाठः। 2 Aचिय। 3 Bओतरि०। 4 A पिइय 5 B चेवो। 6 B चोलगट्ठाणंमि। 7 A निवेएउ। 8 A तिविहे। 9 A निवेउं । 10. वणाइस। 11 Aपमाएण। 12 A 'वि' नास्ति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92