Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 92
________________ Jain Education International परिशिष्टम् / ठ 53 उपरि सूचितं (24-14) जीतकल्पयत्रम् / निरपेक्ष आचा०कृत आचा. अकृत उपा० कृत गी. उपा० गी० स्थि० गी० स्थि० | अस्थि अकृत | कृत - अकृत - कृत गी. अस्थि० | अगी. स्थि० कृत - अकृत अमी. स्थि. अकृत अगी० | अगी. अस्थि. अस्थि. कृत अकृत | मल मूलं | छेदः 4 // दः 6. पारांचिकं अनवस्था० अनवस्था० अनवस्था० मूल मूलं मूलं छेदः / छेदः / छेदः / छेदः / 6 6 66 4 For Private & Personal Use Only / 6 6 / 6 6 / / / 4 / 4 4 / 4 / / / . 000 10.1. . . " F " 400 . . ___4 // 4 4 4 . . . . 25 25 / 20 . . . 0 25 25 - 20 20 15 / 15 / 10 . . 25 / 25 20 / 20 15 / 15 / 10 105 25 / 25 / 20 / 20 15 15 10 10 / 5 / 20 20 / 15 / 15 / 10 10 / 5 / 2015 10 / 5 / - 0 10 / www.jainelibrary.org

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