Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ गाथा १.] जीयकप्प-चुण्णी 15 पढमस्स य कजस्स पढमेण पएण सेवियं होजा । बिइए छक्के अब्भन्तरं तु पढमं भवे ठाणं॥ पढमस्स य कजस्स पढमेण पएण सेवियं होजा । बिइए छक्के अब्भन्तरं तु सेसेसु वि पएसु॥ पढमस्स य कजस्स पढमेण पएण सेवियं होजा। तइए छक्के अब्भन्तरं तु पढमं भवे ठाणं ॥ पढमस्स य कजस्स पढमेण पएण सेवियं होजा । तइए छक्के अब्भन्तरं तु सेसेसु वि पएसु॥ एवं पढमममुञ्चन्तेण बिइय-तइयमाइ जा दसमं । पुढविक्काइयाईसु पुणो वि उच्चारणियाई ॥ 5 बिइयस्स य कजस्स पढमेण पएण सेवियं होजा । पढमे छक्के अब्भन्तरं तु पढमंभवे ठाणं॥ एवं बिइयस्स वि। एयाए चेव परिवाडीए सव्वाओ गाहाओ भाणियव्वाओ। पढमं ठाणं दप्पो दप्पो च्चिय तस्स वी भवे पढमं । पढमं छक्क व्वयाइं पाणॉइवाओतहिं पढमं। ' एवं तु मुसावाओ अदत्त-मेहुण-परिग्गहो चेव । विइ-छक्के पुढवाई तइ-छक्के होन्ति कप्पाइं ॥ एवं दप्प-पयम्मी दप्पेणं चारियाई अट्ठरस । एवमकप्पाईसु वि एक्केके होन्ति अट्टरस॥ 10 बिइयं कजं कप्पो पढमपयं तत्थ दसणणिमित्तं । पढमे छकिवयाइं तत्थ उ पढमं तु पाणवहो॥ दसणममुयन्तेणं पुव्वकमेणेव चारणिजाणि । अट्ठारस ठाणाई एवं नाणाइ एकेके ॥ चउवीसवारसया एवं एए भवंति कप्पम्मि। दस होन्ती दप्पम्मी सव्वसमासे य मुण संखं॥ दुविहा पडिसेवणा-दप्पिया, कप्पिया य । दप्पिया दसविहा । तं-जहा ___ दप्प अकप्प निरालम्ब चियत्ते अप्पसत्थ वीसत्थे। ___ अपरिच्छिय'-ऽकडजोगी निरणुतावीय णिस्संको॥ तत्थ दप्पो-धावणडेवणाई । अकप्पो जं अविहीए' सेवइ । निरालम्बो-आलम्बणरहिओ सेवइ। चियत्ते त्ति-संजमाहिकारियाणि छड्डेऊण सेवइ, स त्यक्तकृत्यः। अप्पसत्थेत्ति" अप्रशस्तेन भावेन सेवइ । वीसत्थो-इहलोग-परलोगस्स न भायइ । अपरिच्छियत्ति-कजाकजाई अपरिक्खि सेवइ । अकडजोगी-जोगं अकाऊण सेवइ । निरणुतावी-जो अकिञ्चं 20 काऊण नाणुतप्पइ; जहा मए दुडु कयं। णिस्संको-जो निस्संकितो सेवइ । एसा दप्पिया ॥ कप्पिया चउवीसविहा; तं-जहादसणनाणचरित्ते तवसंजमसमिइगुत्तिहेउं वा । साहम्मियवच्छलत्तणेण कुलओ गणस्सेव ॥ संघस्सायरियस्स य असहुस्स गिलाणबालवुड्डस्स। उदयग्गिचोरसावयभय कन्तारावई वसणे ॥ 25 एएहिं कारणेहिं जो पडिसेवेइ सा कप्पिया पडिसेवणा। 'किं पुण पडिसेवियव्वं ।' 'इमाई अट्ठारस पयाई ।' तं-जहा वयछक-कायछक्कं अक्कप्पो गिहिभायणं । पलियंकनिसेजा य" सिणाणं सोभवजणं ॥ सव्वसमासे य मुण"सु संखं १८० दप्पिया, कप्पिया ४३२॥ सोऊण तस्स पडिसेवणं तुआलोयणं कम्म विहिं च।आगमपुरिसजायं परियायवलं च खेत्तंच॥ 30 अवधारेउं सीसो गंतूण य सो तओ गुरुसगासे । तेसि निवेएइ तहा जहाणुपुब्वी तयं सव्वं ॥ सो ववहारविहिन्न अणुमजित्तासुओवएसेणं । सीसस्स देइ आणं तस्स इमं देइ पच्छित्तं ॥ पढमस्स य कजस्स दसविहमालोयणं निसामेत्ता। नक्खत्ते में पीला सुक्के मासे तवं कुणह ॥ पढमस्स य कजस्स दसविहमालोयणं" निसामेत्ता।नक्खत्ते मे पीला चाउम्मासे तवं कुणह॥ 1B पढम। 2 B निमित्तं। 3 B पढमेक। 4A मसुयः। 5A एकेके। 6 B हवः। 7 B ०पडिच्छि०। 8 A अकड। 9 B विहीए। 10 A चित्तयत्तः। 11 A सत्योति। 12 B .ऊणं। 13 A नीसंको। 14 A एस। 15 A रुय। 16 B •राडवीव० । 17 A जाविय। 18 B सुणसु । 19 A व्यणकम्म। 20 A व्याग ब० । 21 B •मजिय तं । 22 Aओसेण। 23 B कजस्सा। 24 A.ह आ.। 25 A मासं। 26Aमासं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92