Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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गाथा ८७ - १०१ ]
जीयकप्प-सुतं
९. उक्कोसं बहुसो वा पट्ट-चित्तो वि तेणियं कुणइ ।
पहरइ जो य स पक्खे निरवेक्खो घोर - परिणामो ॥ ८७ ॥ अहिओ सव्वे व बहुसो पारश्चियावराहेसु ।
अणवट्टप्पा वत्तिसु पसजमाणो अणेगासु ॥ ८८ ॥ कीरइ अणवटुप्पो, सो लिंग १- क्खेत्त २-कालओ ३- तवओ४ । (१) लिंगेण दव्व-भावे भणिओ पव्वावणाऽणरिहो ॥ ८९ ॥ अप्पडिविरओ-सन्नो न भाव-लिंगारिहोऽणवटुप्पो ।
(२) जो जत्थ जेण दूसइ पडिसिद्धो तत्थ सो खेत्ते ॥ ९० ॥ (३) जत्तियमित्तं कालं. (४) तवसा उ जहन्नएण छम्मासा । संवच्छरमुकोसं आसायइ जो जिणाईणं ॥ ९१ ॥ वासं बारस वासा पडिसेवी, कारणेण सव्वो वि ।
थोव धोक्तरं वा वहेज्ज, मुश्चेज वा सव्वं ॥ ९२ ॥ वन्दह न य वन्दिज्जइ, परिहार-तवं सुदुच्चरं चरइ |
संवासो से कप्पर, नालवणाईणि सेसाणि ॥ ९३ ॥ १०. तित्थयर-पवयण- सुयं आयरियं गणहरं महिड्डियं ।
आसायन्तो बहुसो आभिणिवेसेण पारची ॥ ९४ ॥ जो स-लिंगे दुट्ठो कसाय विसए हिं राय - वहगो य ।
रायग्गमहिसि -पडि सेवओ य बहुसो पगासो य ॥ ९५ ॥ द्धि-महादोसो अन्नोऽन्नासेवणापसत्तो य ।
चरिमाणावत्ति बहुसो य पसज्जए जो उ ॥ ९६ ॥ सो कीरs पारची लिंगाओ १-खेत्त २-कालओ ३- तवओ य ४ । (१) संपागड-पडि सेवी लिंगाओ थीणगिद्धी य ॥ ९७ ॥ (२) वसहि-निवेसण - वाडग- साहि-निओग-पुर-देस - रज्जाओ । खेत्ताओ पारची कुल-गण-संघालयाओ वा ॥ ९८ ॥ जत्थुपपन्नो दोसो उपज्जिस्सइ य जत्थ नाऊणं ।
ततो तत्तो कीरइ खेत्ताओ खेत्त-पारची ॥ ९९ ॥ (३) जत्तिय - मेत्तं कालं. (४) तवसा पारश्चियस्स उ स एव ।
कालो दु-विगप्पस व अणवट्टप्पस्स जोऽभिहिओ ॥ १०० ॥ गागी खेत- बहिं कुह तवं सु-विउलं महासत्तो । अवलोयणमायरिओ पइ-दिणमेगो कुणइ तस्स ॥ १०१ ॥
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VII
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