Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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माथा ५७-७१]
जीयकप्प-सुतं दप्पेणं पश्चिन्दिय-चोरमणे संकिलिट्ठ-कम्मे य ।
दीहद्धाणासेवी गिलाण-कप्पावसाणे य ॥ ५७॥ सव्योवहि-कप्पम्मि य पुरिमत्ता पेहणे य चरिमाए।
चाउम्मासे वरिसे य सोहणं पञ्च-कल्लाणं ॥ ५८॥ छेयाइमसद्दहओ मिउणो परियाय-गव्वियस्स वि य ।
छेयाईए वि तवो जीएण गणाहिवइणो य ॥ ५९॥ जं जं न भणियमिहइं तस्सावत्तीऍ दाण-संखेवं ।
भिन्नाइया य वोच्छं छम्मासन्ताय जीएणं ॥ ६०॥ भिन्नो अविसिट्ठो चिय मासो चउरो य छच्च लहु-गुरुया।
निवियगाई अहमभत्तन्तं दाणमेएसि ॥ ६१ ॥ इय सव्वावत्तीओ तवसो नाउँ जह-कम समए ।
जीएण देज निव्वीइगाइ-दाणं जहाभिहियं ॥ ६२॥ एयं पुण सव्वं चिय पायं सामन्नओ विणिद्दिडं।
दाणं विभागओ पुण दव्वाइ-विसेसियं जाण ॥ ६३ ॥ दव्वं १ खेत्तं २ कालं ३ भावं ४ पुरिस ५-पडिसेवणाओ ६ य ।
___ नाउमियं चिय देजा तम्मत्तं हीणमहियं वा ॥ ६४॥ (१) आहाराई दव्वं बलियं सुलहं च नाउमहियं पि।
देजा हि; दुब्बलं दुल्लहं च नाऊण हीणं पि ॥६५॥ (२) लुक्खं सीयल-साहारणं च खेत्तमहियं पि सीयम्मि ।
लुक्खम्मि हीणतरयं. (३) एवं काले वि तिविहम्मि ॥६६॥ गिम्ह-सिसिर-वासासुं देजष्टम-दसम-बारसन्ताई।
नाउं विहिणा नवविह-सुयववहारोवएसेणं ॥ ६७ ॥ (४) हट-गिलाणा भावम्मि-देज हट्ठस्स, न उ गिलाणस्स।
जावइयं वा विसहइ तं देज, सहेज वा कालं ॥ ६८॥ (५) पुरिसा गीयाऽगीया सहाऽसहा तह सढाऽसढा केई ।
परिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ॥ ६९॥ तह घिइ-संघयणोभय-संपन्ना तदुभएण हीणा य।
आय-परोभय-नोभय-तरगा तह अन्नतरगा य ॥७॥ कप्पट्ठियादओ वि य चउरो जे सेयरा समक्खाया।
सावेक्खेयर-भेयादओ वि जे ताण पुरिसाणं ॥ ७१ ॥
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