Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 28
________________ IV १९३२ जिणभद-खमासमण-विरइयं [गाथा ४२-५६ पत्तेय-परंपर-ठविय-पिहिय-मीसे अणन्तराईसु । पुरिमई संकाए जं संकइ तं समावजे ॥४२॥ इत्तर-ठविए सुहुमे ससणिद्ध-ससरक्ख-मक्खिए चेव । __ मीस-परंपर-ठवियाइएसु बीएसु याविगई ॥४३॥ सहसाऽणाभोगेणव जेसु पडिक्कमणमभिहियं तेसु । आभोगओत्ति बहुसो-अइप्पमाणे य निविगई ॥४४॥ धावण-डेवण-संघरिस-गमण-किड्डा-कुहावणाईसु। उकुहि-गीय-छेलिय-जीवरुयाईसु य चउत्थं ॥ ४५ ॥ तिविहोवहिणो विचुय-विस्तारियऽपेहियानिवेयणए । निव्वीय-पुरिममेगासणाइ, सव्वम्मि चायामं ॥४६॥ हारिय-धो-उग्गमियानिवेयणादिन्न-भोग-दाणेसु। आसण-आयाम-चउत्थगाइ, सव्वम्मि छहं तु ॥४७॥ मुहणन्तय-रयहरणे फिडिए निव्वीययं चउत्थं च । __ नासिय-हारविए वा जीएण चउत्थ-छहाई ॥४८॥ कालद्धाणाईए निविइयं खमणमेव परिभोगे। अविहि-विगिश्चणियाए भत्ताईणं तु पुरिमटुं ॥ ४९ ॥ पाणस्सासंवरणे भूमि-तिगापेहणे य निविगई। सव्वस्सासंवरणे अगहण-भंगे य पुरिम९ ॥ ५० ॥ एयं चिय सामन्नं तवपडिमाऽभिग्गहाइयाणं पि । निव्वीयगाइ पक्खिय-पुरिसाइ-विभागओ नेयं ॥ ५१ ॥ फिडिए सयमुस्सारिय-भग्गे वेगाइ वन्दणुस्सग्गे। निव्वीइय-पुरिमेगासणाइ, सव्वेसु चायाम ॥ ५२ ॥ अकएसु य पुरिमासण-आयामं, सव्वसो चउत्थं तु । पुव्वमपेहिय-थण्डिल-निसि-वोसिरणे दिया सुवणे ॥५३॥ कोहे बहुदेवसिए आसव-ककोलगाइएसुं च ।। लसुणाइसु पुरिमटुं, तन्नाई-बन्ध-मुयणे य ॥ ५४॥ अझुसिर-तणेसु निव्वीइयं तु, सेस-पणएसु पुरिमहूं । __ अप्पडिलेहिय-पणए आसणयं, तस-वहे जं च ॥५५॥ ठवणमणापुच्छाए निव्विसओ विरिय-गृहणाए य । जीएणेकासणयं, सेसय-मायासु खमणं तु ॥५६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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