Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 26
________________ जिणभद्द-खमासमण-विरइयं [गाथा १२-२६ आभोगेण वि तणुएसु नेह-भय-सोग-बाउसाईसु। कन्दप्प-हास-विगहाईएसु नेयं पडिक्कमणं ॥१२॥ ३. संभम-भयाउरावइ-सहसाऽणाभोगऽणप्प-वसओ वा। ___सव्व-वयाईयारे तदुभयमासंकिए चेव ॥ १३ ॥ दुचिन्तिय-दुम्भासिय-दुच्चेट्टिय-एवमाइयं बहुसो। उवउत्तो वि न जाणइ जं देवसियाइ-अइयारं ॥ १४ ॥ सव्वेसु वि बीय-पए दंसण-नाण-चरणावराहेसु । ___आउत्तस्स तदुभयं सहसकाराइणा चेव ॥ १५ ॥ ४. पिण्डोवहि-सेन्जाई गहियं कडजोगिणोवउत्तेण । पच्छा नायमसुद्धं सुद्धो विहिणा विगिश्चन्तो॥१६॥ कालद्धाणाइच्छिय-अणुग्गयत्थमिय-गहियमसढो उ । __ कारण-गहि-उव्वरियं भत्ताइ-विगिश्चियं सुद्धो॥१७॥ . गमणागमण-विहारे सुयम्मि सावज-सुविणयाईसु । नावा-नह-सन्तारे पायच्छित्तं विउस्सग्गो ॥ १८॥ भत्ते पाणे सयणासणे य अरिहन्त-समण-सेन्नासु। उच्चारे पासवणे पणवीसं होन्ति ऊसासा ॥१९॥ हत्थ-सय-बाहिराओ गमणाऽऽगमणाइएसु पणवीसं । पाणिवहाई-सुविणे सयमट्ठसयं चउत्थम्मि ॥२०॥ देसिय-राइय-पक्खिय-चाउम्मास-वरिसेसु परिमाणं । सयमद्धं तिनि सया पंच-सयऽहुत्तरसहस्सं ॥ २१ ॥ उद्देस-समुद्देसे सत्तावीसं अणुण्णवणियाए। . __ अटेव य ऊसासा पट्ठवण-पडिक्कमणमाई ॥ २२ ॥ ६. (१) उद्देसऽज्झयण-सुयक्खन्धंगेसु कमसो पमाइस्स । कालाइक्कमणाइसु नाणायाराइयारेसु ॥ २३ ॥ निविगइय-पुरिमद्वेगभत्त-आयंबिलं चणागाढे । पुरिमाई खमणन्तं आगाढे; एवमत्थे वि ॥ २४ ॥ सामन्नं पुण सुत्ते मयमायामं चउत्थमत्थम्मि। अप्पत्ताऽपत्ताऽवत्त-वायणुद्देसणाइसु य ॥ २५ ॥ कालाविसजणाइसु मण्डलि-वसुहाऽपमजणाइसु य । निव्वीइयमकरणे अक्ख-निसेजा अभत्तहो ॥ २६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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