Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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गाथा २७-४१]
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जीयकप्प-सुत्तं आगाढाणागाढम्मि सव्व-भंगे य देस-भंगे य।
जोगे छट्ट-चउत्थं चउत्थमायम्बिलं कमसो ॥ २७॥ (२) संकाइएसु देसे खमणं मिच्छोवबूहणाइसु य ।
पुरिमाई खमणन्तं भिक्खु-प्पभिईण व चउण्हं ॥२८॥ एवं चिय पत्तेयं उवबूहाईणमकरणे जइणं ।
___आयामन्तं निव्वीइगाइ पासत्थ-सड्डेसु ॥ २९ ॥ परिवाराइ-निमित्तं ममत्त-परिपालणाइ वच्छल्ले ।
____साहम्मिओ त्ति संजम-हेउं वा सव्वहिं सुद्धो ॥ ३०॥ (३) एगिन्दियाण घट्टणमगाढ-गाढ-परियावणुद्दवणे ।
निव्वीयं पुरिमटुं आसणमायामगं कमसो ॥ ३१॥ पुरिमाई खमणन्तं अणन्त-विगलिन्दियाण पत्तेयं ।।
पश्चिन्दियम्मि एगासणाइ कल्लाणयमहेगं ॥ ३२॥ मोसाइसु मेहुण-वजिएसु व्वाइ-वत्थु-भिन्नेसु।
हीणे मझुक्कोसे आसणमायाम-खमणाई ॥ ३३ ॥ लेवाडय-परिवासे अभत्तट्ठो सुक्क-सन्निहीए य ।
इयराए छट्ठ-भत्तं, अट्ठमगं सेस-निसिभत्ते ॥ ३४ ॥ १ उद्देसिय-चरिम-तिगे कम्मे पासण्ड-स-घर-मीसे य ।
बायर-पाहुडियाए सपञ्चवायाहडे लोभे ॥ ३५॥ . अइरं अणन्त-निक्खित्त-पिहिय-साहरिय-मीसयाईसु।
__संजोग-स-इंगाले दुविह-निमित्ते य खमणं तु ॥ ३६॥ २ कम्मुद्देसिय-मीसे धायाइ-पगासणाइएसुं च ।
पुर-पच्छ-कम्म-कुच्छिय-संसत्तालित्त-कर-मत्ते ॥ ३७॥ अइरं परित्त-निक्खित्त-पिहिय-साहरिय-मीसयाईसु ।
अइमाण-धूम-कारण विवजए विहिय मायामं ॥ ३८॥ ३ अज्झोयर-कड-पूइय-मायाऽणन्ते परंपरगए य।
मीसाणन्ताणन्तरगया इए चे गमासणयं ॥ ३९ ॥ ४ ओह-विभागुद्देसोवगरण-पूईय-ठविय-पागडिए ।
लोउत्तर-परियट्टिय-पमिच्च-परभावकीए य ॥ ४० ॥ सग्गामाहड-ददर-जहन्न-मालोहडोझरे पढमे।
सुहुम-तिगिच्छा-सन्थव-तिग-मक्खिय-दायगो वहए ॥ ४१ ॥
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