Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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जिणभद्द - खमासमण - विरइयं
जो जह-सन्तो बहुतर- गुणो व तस्साहियं पि देजाहि । ature हीणतरगं, झोसेज व सव्व-हीणस्स ॥ ७२ ॥ एत्थ पुण बहुतरा भिक्खुणो त्ति अकयकरणाणभिगया य । जन्तेण जीयममभत्तन्तं निब्बियाईयं ॥ ७३ ॥ (६) आउट्टियाइ दप्प-पमाय कप्पेहि वा निसेवेज्जा ।
दव्वं खेत्तं कालं भावं वा सेवओ पुरिसो ॥ ७४ ॥ जं जीय- दाणमुत्तं एवं पायं पमायसहियस्स ।
एतो चि ठाणन्तरमेगं वहेज्ज दप्पवओ ॥ ७५ ॥ आउट्टियाइ ठाणन्तरं च, सहाणमेव वा देजा ।
कप्पेण पडिक्कमणं तदुभयमहवा विणिद्दिहं ॥ ७६ ॥ आलोय - कालमिव संकेस - विसोहि भावओ नाउं ।
ही वा अहियं वा तम्मत्तं वा वि देजाहि ॥ ७७ ॥ इति दव्वाइ- बहु-गुणे गुरु- सेवाए य बहुतरं देजा ।
हीणतरे हीणतरं, हीणतरे जाव झोस त्ति ॥ ७८ ॥ झोसिज सुबहुं पि हु जीएणऽन्नं तवारिहं वहओ ।
antaraरस्स य दिजइ साणुग्गहतरं वा ॥ ७९ ॥ ७. तव-गव्विओ तवस्स य असमत्थो तवमसद्दहन्तो य । तवसाय जो न दम्मइ अइपरिणाम-पसंगी य ॥ ८० ॥ सुबहुत्तर-गुण-भंसी छेयावत्तिसु पसज्जमाणो य ।
पासत्थाई जो वि य जईण पडितपिओ बहुसो ॥ ८१ ॥ कोसं तव भूमिं समईओ सावसेस - चरणो य ।
छेयं पणगाईयं पावइ जा घरइ परियाओ ॥ ८२ ॥ ८. आउट्टियाइ पञ्चिन्दिय-घाए, मेहुणे य दप्पेणं ।
सेसेसुक्कोसाभिक्ख-सेवणाईसु तीसुं पि ॥ ८३ ॥ तव-गव्वियाइए य मूलत्तर-दोस - वइयर गए ।
दंसण- चरितवन्ते चियत्त - किचे य सेहे य ॥ ८४ ॥ अच्चन्तोन्नेसु य परलिंग- दुगे य मूलकम्मे य ।
भिक्खुम्मिय विहि तवे ऽणवट्ट- पारश्चियं पत्ते ॥ ८५ ॥ छेएण उ परियाए Sणवट्ट- पारश्चियावसाणे य । मूलं मूलात्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ॥ ८६ ॥
VI
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[ गाथा ७२-८६
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