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२.
पद्धतिनो अंगीकार कीधो हतो पण वच्चे वचे प्रमाणरूपे जे कथानको विगेरे आपवानी जरूर पडी ते तेमणे पूर्वनी चूर्णिभोमांथी प्राकृतमा ज तद्वत् तारवी लीधां। ए पछी, एक सैका बाद शीलांकाचार्य थया जेमणे पोतानी व्याख्याओने परिपूर्णरीते संस्कृतमा ज लखवानी शैलीनो स्वीकार कीधो।
प्रो. लॉयमाने दोरेलो आ कालक्रम जो के सामान्यरीते बंध बेसतो जणाय छे अने जैन आगम-साहित्यना विकासक्रमनो इतिहास जोतां ए विचार घणाभागे स्वीकारणीय पण जणाय छे । छतां एमां कोक अपवाद पण दृष्टिगोचर थाय छ । दाखला तरीके इग्यारमा सैकामां शांत्याचार्य उत्तराध्ययनसूत्र ऊपर जे टीका लखी छे ते हरिभद्रनी पद्धतीए लखी छ । मूळ सूत्र अने नियुक्तिनी व्याख्या ज्यारे ए आचार्य संस्कृतमां लखी छे त्यारे एमां आवतां बधां कथानको प्राकृतमा ज पूर्वनी चूर्णिमाथी तद्वत् उतारी लीधां छेअने एथी ए टीकार्नु बीजु नाम पाइय (प्राकृत) टीका तरीके वधारे प्रसिद्ध छे । केवल शांत्याचार्य ज नहि पण तेमना पछीना सैकामां थएला ए ज सूत्रना बीजा टीकाकार देवेंद्रगणिए पण ए पद्धतिनुं अनुसरण करी पोतानी टीकामां लांबी लांबी कथाओ प्राकृतमा ज गुंथी छ। ____ आ ऊपरथी आपणे जोई शकीए छीए के शीलोकाचार्यना समयमाटे प्रो. लॉयमान-अंकित कालक्रम सर्वथा साधकरूप मथी। तेम ज, आचारांग टीका प्रांते आवेली शक संवत् वाळी पंक्ति पण विविध पाठभेदो धरावती होवाने लीधे, जेम में प्रस्तावना पृष्ठ १४ ऊपर जणाव्युं छे, तेम अभ्रान्त गणी शकाय तेम नथी। पण ए आचारांग टीकावाली पंक्तिनुं समर्थन करे एवं जे एक बीजं प्रमाण हमणा मारी दृष्टिगोचर थयुं छे तेनी नोंध हुँ अहिं लऊ कुं: जैन साहित्य संशोधकना प्रथम भागना, २ जा अंकमां, बृहट्टिप्पनिका नामनी एक प्राचीन जैन ग्रंथ सूचि में प्रकट करी छे । ए सूचि लगभग ५०० वर्ष जेटली जूनी छे अने बहु गवेषणा पूर्वक तैयार करवामां आवी होय तेवी तेनी संकलना छ। ए सूचिना २८३ क्रमांक ऊपर शीलाचार्य रचित प्राकृत मुख्य महापुरुष चरिवनी नोंध छ। जेनी १०००० जेटली श्लोकसंख्या, अने ९२५ वर्षे रचना थएली लखी छे । मूलग्रंथ अद्यापि मारा मोवामां आव्यो नथी तेथी एना रचना-समयनो उल्लेख केवा प्रकारनो छे ते काई कल्पी शकाय तेम नथी; परंतु जो ए चरित्रकर्ता शीलाचार्य अने आचारांग अने सूत्रकृतांग टीकाकर्ता शीलाचार्य बन्ने एक ज होय तो, आचारांग टीकागत शक संवत् ७९८ वालो उल्लेख अवश्य सत्य होई शके छे । कारण के , शक संवत् ७९८ ए विक्रम संवत् ९३३ बराबर थाय छ; अने महापुरुष चरित्रनी रचनानी जे ९२५ नी साल बृहटिप्पनिकाकारे आपेली छे ते विक्रम संवतूनी गणत्री वाली ज होवी जोईए; कारण के, ए सूचिमा प्रायः सर्वत्र एज गणत्रीनो व्यवहार करवामां भाव्यो छे। 'तेथी ए बन्ने साल वच्चे मात्र ८ वर्षनो ज तफावत रहेतो होवाथी आ बन्ने कृतिओ-आचारांग टीका अने महापुरुष चरित्र-समकालीन जठरे छ। अने तेथी ए बग्नेना कर्ता शीलाचार्य एकज व्यक्ति हता, एम मानवें प्राप्त थाय छे।
आ हकीकत ऊपरथी आचारांग टीकाकर्ता शीलाचार्यनो समय निर्णय थई शके छे; पण, विशेषावश्यक भाष्यटीका कर्ता कोट्याचार्य के जेमनुं नाम शीलांक पण कहेवामां आवे छे तेमनो तथा अणहिलपुर संस्थापक वनराजना गुरु तरीके प्रसिद्ध थएला शीलगुण के शीलांक नामना जे आचार्य छे तेमनो निर्णय तो मूल प्रस्तावनामां जणाव्या प्रमाणे अनिश्चित ज रहे छ ।
१ ए सूचिकारे आचारांग टीकानो रचना समय पण विक्रमसंवत्नी गणत्रीए गणी ९३३ वर्ष नो ज आष्यो छे-जुओ बृहट्टिप्पनिका, क्रमांक १ (३).
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