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परिशिष्ट
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शीलांकाचार्य विषे वधारे विगत पाछळनां पानाओमां शीलांकाचार्य विषे केटलीक चर्चा करी छे अने तेमां में एम अभिप्राय दर्शाव्यो छे के शीलांकाचार्य घणुं करीने हरिभद्र सूरिना समकालीन होवा जोईए । आ प्रस्तावना प्रेसमां गया बाद डॉ. हर्मन याकोबीनी लखेली हरिभद्रकृत समराइचकहानी प्रस्तावना मारा जोवामा आवी । ए प्रस्तावनामा प्रसंगवशात् शीलांकाचार्य विषे एक बे ठेकाणे डॉ. याकोबीए उल्लेख करेलो छ भने एमना मते ए आचार्य हरिभद्र करतो एक सैका पछी थया हता तेम लागे छ । प्रमाण जो के कोई नवु ए नथी आपता पण आचारांग टीकानी प्रांते जे शक संवत् ७९८ नी पंक्ति मळी आवे छे तेने ज प्रमाण मानी ए पोतानो अभिप्राय व्यक्त करे छ। प्रस्तावनाना पृष्ठ १. नी नोटमा ए जणावे छे के___In the Laghuvrtti [ of Ganadhara Sārdha Sataka] V. 60. According to that source and to the Pattavali of the Kharataragaccha S'ilāņk was the successor of Haribhadra; but that is impossible, since the date of his Achārāngaţika is said to be S'aka 798=872 A. D., or more than century later than Haribhadra.
एज प्रस्तावनाना पृष्ठ १२ ऊपर एक बीजी रीते पण हरिभद्र अने शीलांक वच्चे एक सैकानुं भंतर सूचवता ए विद्वान् लखे छे के
For according to Prof. Leumann Haribhadra commented on the text in Sanskļit, but retained the Kathānakas and certain other parts of the Cūrni in the original Prakrit; while Slilānk who flourished more than a century later, translates such passages also into Sanskrit.
___ आमांना प्रथम अवतरणमां तो आचारांग टीकाना शक संवत् ७९८ वाला उल्लेखने, ज्यां सुधी ते अन्य प्रमाणोथी असिद्ध न ठरे, प्रमाणभूत मानी, खरतरगच्छ पट्टावलीमा जे शीलांकने हरिभद्रना शिष्य लख्या छे तेने डॉ. याकोबी असंभव माने छ; अने हरिभद्रनो जे समय में निर्णीत को छे तेनो संपूर्ण स्वीकार करी, तेज समयना हिसाबे, ए बंने आचार्यों बच्चे एक सैका जेटलं अंतर बतावे छे ।
बीजा अवतरणमा प्रो. लॉयमाने पोताना दशवैकालिक सूत्र ऊपरना निबंधमां (Z. D. M.G., vol. 46 p. 581. ff.) जैन आगमो ऊपरना व्याख्या साहित्यना कालक्रम संबंधे जे अभिप्राय जणाव्यो छे तेने भनुसरीने डॉ. याकोबीए हरिभद्र अने शीलांक वच्चे एक सैका जेटलं व्यवधान सूचव्यु छ ।
आ प्रस्तावनाना वाचकोनी विशेष समजण खातर प्रो. लॉयमाने दोरेला व्याख्या-साहित्यना कालक्रमनुं स्पष्टीकरण करवु आवश्यक छ । जैन आगमो ऊपर सौथी प्रथम नियुक्ति नामे प्राकृत गाथाबद्ध ढूंकी टिप्पणीओ रचाई ते पछी प्राकृत गाथामां ज विस्तृत भाष्यो रचायां; ते पछी प्राकृतबहुल अने क्वचित् संस्कृतवाला गद्यमां चूर्णिओ रचाई ते पछी संस्कृतबहुल अने क्वचित् प्राकृतवाला गद्यमा टीकाओ रचाई अने ते पछी छेवटे केवल संस्कृतमा ज व्याख्याओनी रचना थई । आ प्रकारना दरेक व्याख्या-निबंधोनो कालक्रम साधारण रीते एक-एक सैका जेटको समजी लेवानो अभिप्राय ए विद्वानोनो थाय छ । उदाहरण तरीके-आवश्यक अने नंदिसूत्रनी चूर्णिना कर्ता जिनदासगणि महत्तर विक्रमना आठमा सैकाना पूर्वार्धमा थया । तेमना पछी एक सैका बाद संस्कृतबहुल एवी टीकाओ लखवानी शुरुआत करनार हरिभद्र थया । हरिभद्रे पोतानी टीकाओ माटे जो के संस्कृतमा ज लखवानी
१ नंदिसूत्रनी चूर्णि शक संवत् ५९८-विक्रमसंवत् ७३३ मां रचाई हती।
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