Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ ११ gaur- श्रीप्रद्युम्न क्षमाश्रमणादिशिष्यत्वेन श्रीहरिभद्रसूरितः प्राचीना एव यथाकालभाविनो बोध्याः । १११५ श्रीजिनभद्रगणिर्युगप्रधानः । अयं च जिनभद्रीयध्यानशतककरणान् भिन्नः संभाव्यते । - इण्डियन एण्टीरी, पु. ११, पृ. २५३. खरतर गच्छनी पट्टावलिओ – जेमां छेल्ला सैकामां थई गयेला क्षमाकल्याणमुनिनी बनावेली मुख्य कही शकाय अने जेनो सार डॉ. क्लाटे इण्डियन एण्टिकेरीना पु० ११, पृ० २४३-४९ मां आप्यो छे—ते अनुसारे जिनभद्रनो समय वीरनिर्वाणनो दशमो सैको छे । ए पट्टावलिमां लख्या प्रमाणे वीर सं० ९८० मां देवर्द्धिगणी थया । ते ज समयमां चतुर्थीनी संवत्सरी स्थापन करनार कालकाचार्य थया ( वी. सं. ९९३ ); ते ज अरसामां विशेषावश्यक भाष्यादिना कर्ता [ बीजी प्रतिप्रमाणे सर्व भाष्यकर्ता ] जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ( वी. स. ९८० ), तथा आचारांगादि सूत्रोनी टीका करनार तेमना शिष्य शीलांकाचार्य थया; अने ते ज जमानामां १४४४ ग्रन्थोना रचनार हरिभद्रसूरि थया । आ प्रमाणे आ पट्टावलिलेखकना हिसाबे देवर्धिगणी, कालकाचार्य, जिनभद्र, शीलांकाचार्य अने हरिभद्रसूरिः ए बधा समकालीन छे । आ बधामां हरिभद्रसूरि सिवाय बाकीमा आचार्योनो समय हजी प्रमाण पुरस्सर निर्णीत थयो नथी । पण, सांप्रदायिक इतिहासनुं एकंदर वळण जोतां ए बधा समकालीन होय ते संभवतुं नथी । हरिभद्रनो समय, लगभग विक्रमना आठमा सैकानो छेल्लो भाग निश्चित थयो छे । देवर्धिगणी अने कालकाचार्य छट्ठा सैकानी शुरुआतमां थएला मनाय छे । एटले एमनी वच्चे ओछामां ओछु २५० वर्ष जेटलं अंतर पडे छे । एमांथी हरिभद्रने बाद करी देवामां आवे - कारण के तेमनो समय निर्णीत छे—अने बाकीना बधाने समकालीन मानी लेवामां आवे तो ते सप्रमाण होई शके के केम; ए प्रश्न विचारणीय रहे छे खरो । पण, आ स्थळे देवर्धिगणी अने कालकाचार्यना समयना विचारने पुरतो अवकाश नथी, तेथी हुं ए बाबतने वगर चर्चे ज मुंकी देवा मांगु छु । जिनभद्रगणी अने शीलांकाचार्यनी समकालीनता अने गुरु-शिष्य-सम्बन्ध माटे कांईक विचार अवश्य कर्तव्य छे । कमनशीबे, शीलांकाचार्य संबंधी जे संवत्नो उल्लेख मळे छे ते पण परस्पर विरोधी छे । आचारांगसूत्रनी टीकानी केटलीक प्रतिओमां टीका बनाव्याना समयनो निर्देश बे रीते मळे छेः एक निर्देश गद्यमां छे, अने बीजो पद्यमां छे । तेमांए वळी दरेकमां बब्बे पाठभेद छे । ( १ ) A पहेलो गद्य निर्देश आ प्रमाणे: "शकनृपकालातीतसंवत्सरशतेषु सप्तसु चतुरशीत्यधिकेषु वैशाखपञ्चम्यां आचारटीका ब्धेति । " खंभातना शान्तिनाथना भंडारमां सं० १३२७ मां लखाएली ताडपत्रनी प्रति छे तेमां आ पंक्ति छे. जुओ, पीटर्सन रिपोर्ट ३, पृ. ९०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92