Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 19
________________ ५ शकता नथी । कमनशीबे, पूनाना ग्रन्थसंग्रहमां ए टीकानी जे प्रति छे तेनां आद्यन्तनां केटलांक पानां खंडित थई गएला छे, तेथी टीकाकारे मंगलाचरणमां के प्रशस्तिमां पोताना विषे के जिनभद्रगणीविषे कोई विशेष सूचन कर्यु छे के नहीं, ते जाणवानुं कशुं साधन नथी । पण टीकामां वच्चे वच्चे कटलीक जग्याए भाष्यकारनी खोपज्ञ व्याख्याविषे जे केटलाक उल्लेखो करेला छे ते ऊपरथी कांईक अनुमान थई शके तेम छ । शीलांक ऊर्फ कोट्याचार्य पोतानी टीकामां जिनभटाचार्य अने जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण एम बे आचार्योनो वारंवार मत प्रदर्शित करे छे । दाखला तरीके थोडांक अवतरणो जोईए(१) उपयोगस्तु छद्मस्थस्य सर्वत्रान्तर्गौहर्तिक एव श्रोत्रादिषु प्राय ईहान्वयत्वात् । इति जिनभटाचार्यपूज्यपादाः इति । (२) तत्राप्यपूर्वमिवापूर्वमिति जिनभटाचार्यपूज्यपादाः इति । (३) जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणपूज्यपादैस्तु नोक्तम् ।। (४) अत एव पूज्यपादैः स्वटीकायां प्रायोग्रहणं कृतम् । (५) क्षमाश्रमणटीकात्वियम् । (६) क्षमाश्रमणटीकापीयम् । (७) श्रीमत्क्षमाश्रमणपूज्यपादानामभिप्रायो लक्षणीयः। आमांनां प्रथमनां बे अवतरणोमां जिनभटाचार्यनो उल्लेख छ । जिनभटाचार्यनी कोई कृति जैन साहित्यमां जाण्यामां नथी; तेम ज आ अवतरणो ऊपरथी एम पण नथी भासतुं के आमां जिनभटना कोई ग्रन्थना आधारे कोट्याचार्य आ अभिप्रायो टांकता होय । आ अभिप्रायो तो एम सूचवता होय तेम लागे छे के, कोट्याचार्ये जिनभटना मुखेथी कांई विचारो सांभळ्या-सीख्या होय अने ते प्रसंगवश आ टीकामां व्याख्यान्तररूपे टांकी देवामां आव्या होय । आथी हुं एम अनुमानु छ के जिनभट पासे शीलांकाचार्ये शास्त्राभ्यास कर्यो होवो जोईए, अने तेथी तेओ तेमना एक गुरु थवा जोईए । हवे बीजां अवतरणोमां जोईए तो तेमां जिनभद्रगणी अने तेमनी खोपज्ञटीकानो निर्देश स्पष्ट ज करेलो छ । आ निर्देश ऊपरथी, जिनभद्रगणीना शीलांकाचार्य शिष्य थता होय तेवो कशो ध्वनि प्रकट थतो नथी । जो तेओ तेमना साक्षात् शिष्य होत तो केक ठेकाणे ते विषेनो स्पष्ट-अस्पष्ट उल्लेख तेओ अवश्य करत । ए टीकामां एक उल्लेख तो एवो पण नजरे पडे छे, जे, ए बेनो परस्पर कालकृत विशेष भेद सूचवनारो कही शकाय । ए उल्लेख आ प्रमाणे छे:___ "भाष्याननुयायि पाठान्तरमिदं अग्रतः, एवमनेनैव वृद्धिक्रमेणेत्यादेराक; न चेदं भूयसीषु प्रतिषु दृश्यते ।" वि० भाष्यनी ६३७ मी गाथानी व्याख्यामां आ उल्लेख आवेलो छ । अहिं, कोई जूनी प्रतिओमां शीलांकाचार्यने पाठभेद नजरे पड्यो छे अने ते पाठभेद भाष्यकारना अभिप्रायथी जूदो पडतो जणायो छे; तेथी ते माटे पोतानी टीकामां एमने उल्लेख करवो पड्यो छे के आ पाठभेद भाष्यने अनुगत नथी; तेम ज घणी प्रतिओमां आ पाठ मळतो पण नथी। आ उल्लेख स्पष्ट सूचवे छे के शीलांकाचार्यना समयमा विशेषावश्यकमां पाठभेदो थई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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