Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 17
________________ १३ आव्या छे ते प्रमाणे जो गणीए तो गुप्त संवत् ७७२ एटले ११४१ विक्रम संवत् (१०९१ई.स०) थाय । ए समय तो शेषनवांग टीकाकार अभयदेवसूरिनो छ। प्रथमद्वितीयांगटीकाकर्ता शीलांकाचार्य तो ए अगाऊ घणा वर्षा पूर्वे थई गयाना घणा पुरावाओ उपलब्ध छ । तेथी कां तो गुप्त संवत् ७७२ वाळो उल्लेख भ्रमपूर्ण होवो जोईए, अने कां तो गुप्त संवत्नी जे गणत्री आज पर्यंतना बधा शोधको गणता आव्या छे ते खोटी होवी जोईए । पण, मात्र आ अनिश्चित पाठ. भेदना आधारे ज गुप्त संवत्नी गांठने आपणे ऊकेली शकीए तेम नथी; तेथी ज्यां सुधी गुप्तसंवत्नी गणना अन्य प्रमाणोथी खोटी न ठरे त्यां सुधी आ प्रस्तुत उल्लेखने आपणे सत्य न मानी शकीए । हवे रह्या शक संवत्सरवाळा उल्लेखो । एमां जो के ७७२, ७८४ अने ७९८ आम त्रण भिन्न भिन्न संवत्सरो छे, पण ते बधानो अन्तर्भाव एक ज पचीसीमां थाय छे तेथी आ बन्ने उताराओ एम बतावे छे के शीलाचार्ये गुप्त अने शक संवतूने एक गण्यो छ । एमां स्पष्टरीते एक प्रकारनी भूल तो छ ज । अने आ भूल, गुप्त अथवा शक संवत् जेने विषे एन अधुरं ज्ञान हतुं, तेनो निर्देश, कोईपण रीते दाखल करी पोतानी विद्वत्ता बताववाना हेतुने लईने थई छ । ज्यां सुधी, गुप्त संवत् ७७२ थी ७९८ (इ. स. १०९१ थी १११७) अथवा शक संवत् ७७२ थी ७९८ (इ. स. ८५० थी ८७६) ए बेमांथी कया अरसामा आचारटीका लखाई ए बताववा माटे पुरती थई पडे एवी शीलाचार्यनो खरो समय प्रदर्शित करती माहिती न मळी आवे त्यां सुधी ए भूल दूर थवानी नथी। परंतु आ उताराओ एम बताववा माटे महत्त्वना छे के शीलाचार्यना समयसुधी पण ए वातनुं स्मरण हतुं के ए संवत् (गुप्त संवत् ) के जे वल्लभीना राजाओना वापरने लीधे जाणीतो हतो अने छेवटे काठियावाडमा वल्लभी संवत् तरीके प्रचलित थयो हतो, एनो मूळ अने खास संबंध गुप्त राजाओ साथे हतो जेमणे काठिया. वाड अने बीजा पाडोशना भागोमां एनो फेलावो को हतो।" आ संवत् अने डॉ. फ्लीटनी टिप्पणी ऊपर प्रो. पीटर्सने, हस्तलिखित पुस्तकोनी शोधवाळा, पोताना त्रीजा रीपोर्टना पृ० ३६-३७ ऊपर जे नोंध करी छे ते पण आ बाबतमां उपयोगी होवाथी अहिं अवतारबामां आवे छे: नं. २५५. आचारांगसूत्र ऊपरनी शीलाचार्यनी टीका शीलाचार्य के शीलांक सुप्रसिद्ध नगर अणहिलवाड पाटणना संस्थापक वनराजना धर्मगुरु तरीके सुविदित छ। २४७ मां पान ऊपर जे अवतरण आपेलुं छे ते ऊपरथी जणाय छे के शीलांकनी आचारांगवृत्तिमां एनो रचना-समय श. सं. ७७८ छ । वधारेमा जणाय छे के जे श्लोकमां ए मिति छे ते छेवटना पान ऊपर छे एटले बहु भार मूकवा जेवी नथी । १८८६ ना मार्चना इ. ए. मां फ्लीटनी शीलाचार्यना ग्रंथ ऊपर एक ढूंकी नोंध छ । एमां भगवानलाल इंद्रजीनी प्रतिना आधारे ए लखे छ के ग्रंथना अंदरना भागमां गुप्त संवत् ७७२ अने अंतना भागमां श. सं. ७९८ आपवामां आव्या छ । हाल तो हं, अहिं आपेलो गुप्त अने शक संवत् वच्चेनो गोटाळो टाळी शकुं एम नथी; परंतु संवत् १३२७ अर्थात् इ. स. १२७१ मा लखाएली ए ग्रंथनी खंभातवाळी प्रतिमां ए मूळ ग्रंथ लखायानो जे समय आपेलो छे ते विषे मने नहीं जेवी ज शंका छ । ए ग्रंथ श. सं. ७८५-इ. स. ८६३ मां पूरो करवामां आव्यो हतो। बीजा श्लोकमांनो जे शब्द हुँ बराबर नहोतो समजी शक्यो ते “गंभूता"छे, एम फ्लीटना अवतरणथी समजाय छे। गंभूता एटले खंभात एम फ्लीटनो अभिप्राय देखाय छे । मारावाळा उतारामां ए श्लोकनो अंक बीजो आप्यो छे परंतु पहेला अंकवाळो श्लोक एमां नथी । एनुं स्थान समयनिर्देशक गद्य पंक्तिए लीधुं छे। शीलाचार्ये पोतानी टीका धीरे धीरे पूरी करी हती एटले एमणे एबे श्लोक अथवा एना जेवू काइक बच्चे बच्चे की दीधं होय एम लागे छे।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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