Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ B. बीजो गद्य निर्देश आ प्रमाणे:"शकनृपकालातीतसंवत्सरशतेषु सप्तसु अष्टानवत्यधिकेषु वैशाखशुद्धपञ्चम्यां आचारटीका कृतेति ।"-इण्डियन एण्टीक्केरी, सन् १८८६, पृ० १८८. (२) बीजो, जे पद्य निर्देश छे ते आ प्रमाणे: द्वासप्तत्यधिकेषु हि शतेषु सप्तसु गतेषु गुप्तानाम् । संवत्सरेषु मासि च भाद्रपदे शुक्लपञ्चम्याम् ॥ शीलाचार्येण कृता गम्भूतायां स्थितेन टीकैषा । सम्यगुपयुज्य शोध्या मात्सर्यविनाकृतैरायः ॥ -आगमोदयसमिति प्रकाशित आवृत्ति, पृ. ३१७। मारी पासेनी एक नोंधमां, गुप्तानां ना बदले शकानां आवो पण पाठ छे । तेम ज केटलीक प्रतिओमा आमांनो कोई पण उल्लेख सर्वथाए नथी मळतो। ___ आ रीते, आ उल्लेखो, जुदी जुदी ४ सालो बतावे छे । पहेलो, शक संवत् ७८८ नी; बीजो ७२८ नी; त्रीजो, गुप्त संवत् ७७२ नी; अने चोथो शक संवत् ७७२ नी । आमांनी कई साल साची छे ते चोकस कही शकाय तेम नथी* । गुप्त संवत्नी जे गणत्री अद्यापि विद्वानो करता * आचारांगटीकाना आ संवत्सरविषयक उल्लेखना संबंधमां डॉ. फ्लीटे इण्डियन एण्टीकेरी, पु. १५, पृ. १८८ मां एक टिप्पणी लखी छे ते जाणवा जेवी होवाथी तेनुं भाषान्तर अहिं आपवामां आवे छ । ___ आचार टीकामांथी बे उताराओ. श्रीयुत के. बी. पाठके जैन हरिवंशमांथी एक महत्त्वनो उतारो १४१ मा पान उपर आप्यो छे। एमां गुप्त राजाओना उल्लेख उपरांत महावीरना निर्वाण पछीना वंशोनो नियमित क्रम आपी ए समयनो संबंध बता. ववा प्रयत्न कर्यो छे । जो के ए संबंध बराबर नथी। हुँ अहिं थोडीघणी एने मळती ज साहित्यविषयक ध्यान खेंचे एवी बाबत आपवा इच्छु छु। डॉ. भगवानलाल एन्द्रजीए १८८३ नी शुरुआतमा, जैनप्रन्थ आचारांग सूत्र ऊपरनी शीलाचार्यनी आचारटीकानी एक हस्तलिखित प्रति मने बतावी हती। ए लगभग ३०० वर्ष पहेला लखाएली मनाय छ। एमांथी हुंबे उतारा आपुं छु । पहेलो पद्यबद्ध उतारो २०७ B अने २०८ A पान ऊपर छे, अने ते आ प्रमाणे छे: द्वासप्तत्यधिकेषु हि शतेषु सप्तसु गतेषु गुप्तानाम् । संवत्सरेषु मासि च भाद्रपदे शुक्लपञ्चम्याम् ॥ शीलाचार्येण कृता गम्भूतायां स्थितेन टीकैषा। सम्यगुपयुज्य शोध्या मात्सर्यविनाकृतैरायः॥ आ उतारो, शीलाचार्ये टीकानो आ भाग गुप्तसंवत् ७७२ ना भादरवा सुदी पांचमने दिवसे गंभूता (खंभात ) मां पूरो कर्यो एम जणावे छ । बीजो उतारो पुस्तकना अंते २५६ B पान ऊपर आवेलो छ । अने ते गद्यमां होई आ प्रमाणे छ: शकनृपकालातीतसंवत्सरशतेषु सप्तसु अष्टानवत्यधिकेषु वैशाखशुद्ध पञ्चम्यामाचारटीका कृतेति। २५६ B पान अहिं पुरुं थाय छे अने ए पछीनुं पानुं जेमां आ तिथि- आंकडामा पुनरावर्तन अने लेखकना उपसंहारना शब्दो छे ते नष्ट थई गयुं छे। आ उतारो संपूर्ण टीकानी समाप्तिनी तिथि तरीके शकसंवत् ७९८ नी वैशाख सुदी पांचमने मुंके छे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92