Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 18
________________ तेमनी सत्यता जो पुरवार थाय तो ते काल संभवनीय बनी शके छे । पण, केटलांक अवान्तर प्रमाणोनो विचार करतां आ समय पण शीलांकाचार्य माटे जरा वधारे अर्वाचीन जणाय छे । शकसंवत् ७७२-७९८ एटले विक्रम संवत् ९०७-९३३ जेटला थाय । परंतु एम छेक विक्रमना दशमा सैकामां शीलांकाचार्य, अस्तित्व स्वीकारवं ते कदाचित् भ्रमपूर्ण थशे । प्रमाणो जो के स्पष्ट नथी; छतां शीलांगाचार्य हरिभद्र करतां वधारे अर्वाचीन होय एवं मानवु शंकाशील लागे छ । परंपरागत किम्वदन्ती प्रमाणे शीलांकाचार्य अणहिल्लपुर संस्थापक वनराज चावडाना गुरु थता हता । ते जो किम्वदन्ती साची होय-खोटी होवा माटे खास प्रमाण मळतुं नथीतो शीलांकाचार्यनी हयाती विक्रम संवत् ८०० नी आसपास होई शके । कारण के वनराजे सं०८०२ मां पाटणनी संस्थापना करी हती । शीलांकाचार्यना एक विद्या-गुरु जिनभट होय एम तेमनी विशेषावश्यकटीकामांना उल्लेखोथी अनुमान थाय छे । जिनभट ज हरिभद्रना पण धर्माचार्य थता हता एम हारिभद्रीय आवश्यक-वृत्तिना प्रान्तोल्लेखथी ज्ञात थाय छे । हरिभद्रनो समय वनराजना समय साथे एकता धरावे छे, ए तो हरिभद्रना समय निर्णयथी सिद्ध ज छे । एटले जिनभटना शिष्य शीलांक अने हरिभद्र बन्ने समकालीन होय एवा आ पुरावाओ जणाय छे । वळी एक विशेष प्रमाण पण ए कथननी पुष्टि करतुं होय एवं कही शकाय तेम छे । कुवलयमाला कथा जे दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरिए शक संवत् ७०० मां रची छे तेनी प्रशस्तिनी ८ मी ९ मी गाथामां* तत्त्वाचार्य नामना एक आचार्य- वर्णन आवे छे। ए तत्त्वाचार्य शीलांक ज होय एम मारी कल्पना थाय छ। कारण के आचारांगटीकानी प्रांते शीलांकाचायेनुं बीजुं नाम तत्त्वादित्य स्पष्ट पणे लखेलं मळे छ; अने कुवलमालानी ९ मी गाथामां तत्त्वाचार्यने सीलंगविउलसालो एवा श्लेषात्मक विशेषणद्वारा शीलांक उपपदथी सूचित करवामां आवेला छे, एवो मारो अभिप्राय छ । जो ए अभिप्राय यथार्थ होय तो ए ज तत्त्वाचार्य ऊर्फ शीलांकाचार्य कुवलयमालाकर्ता उद्योतन सूरिना दीक्षा-गुरु सिद्ध थाय छे अने तेम थवाथी उद्योतन सूरिना एक विद्या-गुरु हरिभद्रसूरि शीलांकना समकालीन सहजे साबीत थई जाय छे । ___ आ हकीकत ऊपरथी ए विचार स्पष्ट थतो लागे छे के शीलांक हरिभद्रना समकालीन होई, विक्रमना ८ मा सैकाना छेल्ला भागमां ते थएला होवा जोईए; पण आचारांगटीकाना प्रांतोल्लेख प्रमाणे १० मा सैकाना पूर्व भागमां तो नहीं । परंतु, ऊपर जोई गया तेम केटलीक पट्टावलिओमां जे एमने साक्षात् जिनभद्र क्षमाश्रमणना शिष्य जणाव्या छे तेनी शी स्थिति छे ए विचार तो बाकी ज रहे छे । एटले हवे जरा ए विचार तरफ पण दृष्टि फेरवी जोईए । विशेषावश्यक भाष्यटीकाकार कोट्याचार्य ए ज शीलांकाचार्य होय-ए टीका अने प्रघोष प्रमाणे ते होय पण खरा तो ए टीकागत उल्लेखोथी तो शीलांकाचार्य जिनभद्रगणीना शिष्य सिद्ध थई * तस्स य आयारधरो तत्तायरिओ त्ति नाम सारगुणो। आसि तवतेयनिजियपावतमोहो दिणयरो च ॥ जो दूसमसलिलपवाहवेगहीरन्तगुणसहस्साण । सीलंगविउलसालो लग्गणखंभो व्व निकंपो॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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