Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 14
________________ ए संद्रह आसरे ३०० करतां वधारे वर्षनो जूनो लखेलो छ । एमां एक ठेकाणे निशीथभाष्यनी ३ गाथा लखेली छे, अने ते पछी "इति जिनभद्रक्षमाश्रमणकृतनिशीथभाष्यस्याष्टमोद्देशके" आवी स्पष्ट नोंध करी छे । अभ्यासिओए आ बाबतमा विशेष शोध करवानी आवश्यकता छ ।* जिनभद्रगणीनो समय __ जिनभद्र गणीना गण-गच्छादिनो के गुरु-शिष्यादिनो कोई उल्लेख जोवामां आवतो नथी । सोळमा सैका पछी लखाएली पट्टावलिओमां तेमना समयनो निर्देश थएलो जोवामां आवे छे अने ते प्रमाणे महावीर निर्वाण पछी सं० १११५ मां तेमनो वर्गवास थयो मानवामां आवे छे । वीरनिर्वाण १११५ ते विक्रम संवत् ६४५ बराबर थाय छे । पट्टावलिओमां उल्लेखेलो आ समय केटलो असन्दिग्ध छे ते जाणवानां विशेष प्रमाणो अद्यापि दृष्टिगोचर थयां नथी। तपागच्छ, अंचलगच्छ, उपकेशगच्छ, लघुपोशालिक, बृहत्पोशालिक, आदि गच्छोनी जे आधुनिक पट्टावलिओ उपलब्ध छे तेमनी मुख्य परंपरामां तो जिनभद्रनो कोई निर्देश नथी । पण खरतर गच्छीय पट्टावलिओमां कोक ठेकाणे मूल पट्टपरंपरामा जिनभद्रने दाखल करी दीधेला जोवामां आवे छे खरा । पण तेमां परस्पर घणो ज विरोध नजरे पडे छ । उदाहरण तरीके, मारी पासे जे केटलांक आवां पट्टावलिनां पानाओ छे तेमांथी एकमां जिनभद्रने महावीरथी ३५ मी पाटे लख्या छे; बीजा पानामा ३८ मी पाटे लख्या छे; त्यारे वळी त्रीजा पानामां २७ मी पाटे लख्या छ । केटलांक पानाओमां जिनभद्रनी पाटे हरिभद्रने बेसार्या छे, तो केटलांकमां जिनभद्रनी पाटे शीलांकाचार्यने बेसार्या छ । एक पट्टावलिमां हरिभद्रने महावीर निर्वाण पछी ५८५ वर्षे अने जिनभद्रने ९८० वर्षे थएला जणाव्या छे । आम पट्टावलिओनी विगतो बहु ज असंबद्ध होवाथी तेमांना कोई पण कथनने अन्यान्य पुरावाओना आधारे निर्णीत कर्या सिवाय सत्य मानी शकाय तेम नथी ए स्पष्ट ज छे। धर्मसागर गणीकृत तपागच्छ पट्टावलि के जे केटलाक ऐतिहासिक ऊहापोह पछी लखवामां आवी छे अने जेनुं संशोधन पण केटलाक विद्वानोनी बनेली खास समितिए कयु छे, तेना उल्लेख प्रमाणे जिनभद्र गणी, हरिभद्र पछी ६०-६५ वर्षे थया हता। पण आ उल्लेख पण एटलो ज भूलभरेलो छ । कारण के प्रथम तो हरिभद्रनो स्वर्ग समय जे ए पट्टावलिमां वीरसंवत् १०५५, विक्रम संवत् ५८५ आप्यो छे ते ज बराबर नथी, ए में हरिभद्रना समय निर्णयमा विस्तृत चर्चा करी सिद्ध कयुं छे; अने बीजुं, हरिभद्र सूरिए पोतानी आवश्यक टीकामां अनेक ठेकाणे जिनभद्रनुं स्मरण कर्यु छे अने विशेषावश्यकनो स्पष्ट उल्लेख पण को छे । एटले हरिभद्र पछी जिनभद्र कोई पण रीते होई शक नहीं ए निश्चित छ । धर्मसागरकृत पट्टावलिनो उल्लेख आ प्रमाणे छे:__ श्री वीरात् १०५५ वि० ५८५ वर्षे याकिनीसनुः श्रीहरिभद्रसरिः स्वर्गभाक् । निशीथ-बृहत्कल्प-भाण्यावश्यकादिचूर्णिकाराः श्रीजिनदासगणिमहत्तरादयः पूर्वगत * पहावलिओना केटलांक पानाओमां तो एमने "सर्व भाज्यकर्ता" पण लखेला छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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